एक मौका

अफ्रीकी देश नाइजीरिया की राजधानी लागोस में अपनी मंज़िल को जाने के लिए तीन सहेलियां एक मिनी बस में सवार होती हैं। मगर जल्दी ही यह साफ हो जाता है कि यह उनका आखिरी सफर हो सकता है! एक नई ज़िंदगी की शुरुआत करने के लिए आप किस हद तक जा सकते हैं? किस-किस की ज़िंदगी दांव पर लगा सकते हैं? क्या आपके अतीत में ऐसा कुछ है जिसको मिटाने के लिए आप कुछ भी करने को तैयार हो सकते हैं? समाज जब आपको कलंकित करता है तो आप अपने बचाव में क्या-क्या करने को मजबूर हो सकते हैं, पढ़िए इस कहानी में...

एक मौका

पटचित्र: जिक्सिब्लड  

अनुवाद: अक्षत जैन और अंशुल राय 
स्त्रोत: WePresent

घिसे-पिटे पहियों वाली पीली डैनफ़ो उनकी तरफ किसी लहर की तरह आती है। टीन जैसी दिखने वाली इस खटारा आयताकार बस के साथ टक्कर से बचने के लिए सड़क पर चल रही बाकी सभी गाड़ियां इधर-उधर होने लगती हैं, लेकिन डैनफ़ो कोई सावधानी नहीं बरतती। वह अपने ऊपर लगी खरोंचों और गड्ढों को किसी युद्ध में मिली निशानियों की तरह गर्व से दिखाती तेजी से दौड़ती है। 

लग रहा है कि बस रुकेगी नहीं। वह धीमी भी नहीं हो रही। मगर अचानक वह बाईं ओर मुड़ती है, जिससे उसके पीछे चल रही एसयूवी को धड़ाम से ब्रेक लगाना पड़ता है। डैनफ़ो का कंडक्टर, जो बास्केटबाल प्लेयर जितना लंबा-चौड़ा है, खुले दरवाज़े से बाहर की ओर झुककर बस की सीढ़ियों पर संतुलन बनाते हुए गंतव्य स्थानों को जोर-जोर से दोहराता है, मानो सारे संभावित यात्री बहरे हों। बस के धीमे होते ही वह बाहर सीमेंट पर कूद जाता है। यह संकेत है कि अब यात्री अंदर घुस सकते हैं। 

अनु पसीने से तर लोगों की भीड़ से बाहर निकलते हुए अपने दोस्तों से कहती है, ‘यही वो बस है जिसमें हमको जाना है।’

दामी तो सिर हिला कर बताती है कि वह समझ गई, मगर रूथ की आंखें बड़ी हो जाती हैं। वह अपनी पलकें झपकाती हुई उन सफेद बसों की ओर देखती है, जो यात्रियों के लिए रुक रहीं हैं। वे बसें नई हैं। उन पर गड्ढे भी नहीं हैं और न ही कोई भित्ति चित्र (Graffiti)। वे आकार में भी ज़्यादा बड़ी हैं। अनु को उसका यह आकर्षण समझ में आ रहा है।

‘मुझे नहीं पता था कि लागोस में अभी भी पीली बसें बची हैं...’ रूथ धीरे से कहती है।

अनु बताने वाली ही होती है कि इन सफेद बसों में से कोई भी उनकी दिशा में नहीं जा रही है कि अचानक दामी बोल पड़ती है,

‘यही तो मज़ेदार बात है हमारे इस सफर की। यह एक ऐतिहासिक अनुभव है। एक आखिरी सफर, इनके पूरी तरह हटाए जाने से पहले।’

उनके सामने एक औरत खड़ी है जिसके पास घाना मस्ट गो लिखा हुआ बैग है, जो इतना बड़ा है कि उसमें एक इंसान समा जाए। कंडक्टर उस औरत को एकटक देखता है।

‘तुम नहीं,’ वह बैग वाली औरत से कहता है। 

‘क्या?’

‘तुम नहीं,’ कन्डक्टर उससे फिर कहता है। 

‘बस मेरी दिशा में जा रही है ना,’ औरत उसको बताती है और यह देखने के लिए इधर-उधर नज़र घुमाती है कि कोई कन्डक्टर के इस बर्ताव का गवाह है कि नहीं। मगर सिर्फ अनु उसकी तरफ देख रही है और अनु के हाव-भाव में कोई बदलाव नहीं आता। 

‘क्यों? तुम मुझे अंदर क्यों नहीं जाने दोगे?’ वह औरत कन्डक्टर से शिकायती अंदाज़ और ऊंचे स्वर में पूछती है। 

वह उसके सवाल का जवाब नहीं देता और इंतज़ार करता है कि वह अपना बैग उठाए और चलती बने। तब एक पल आता है, जब बैग वाली औरत सोचती है कि वह इस लंबे आदमी से लड़े या नहीं। आखिरकार वह वहां से चले जाने का निर्णय लेती है। 

अनु के दोस्त पहले बस में चढ़ते हैं। दामी बड़ी कुशलता से सीढ़ियों पर चढ़ती है, मानो उसकी डैनफ़ो पर यह पहली सवारी न हो। वह मुड़कर नाज़ुक रूथ को सहारे के लिए अपना हाथ देती है। उसके बाद अनु जैसे ही बस की सीढ़ियों पर चढ़कर अपने आप को ऊपर उठाने की कोशिश करती है, वैसे ही उसको अपने भारी शरीर के वजन का एहसास होता है, जो उसे नीचे की ओर खींच रहा होता है। उसे यह याद करना बिल्कुल पसंद नहीं कि वह अब दुबली-पतली औरत नहीं रही। अपने आप को संतुलित करने के लिए वह सीट को पकड़ती है। सीट पर तेल और मैल की मोटी परत जमी हुई है। उसका रोम-रोम उससे दूर खिसकता है। 

बस के अंदर अंधेरा है। उस अंधेरे में अनु अपने दोस्तों की पीठ देखती है। बस में बैठी एक औरत खांसती और उबकाइयां लेती है। हर बार जब वह खांसती है तो उसका विग आगे पीछे खिसकता है। उसके बगल में बैठा आदमी अधूरे मन से उसकी पीठ थपथपाता है। चूंकि बीच के गलियारे में इतनी जगह नहीं है कि अनु खांसती हुई औरत से दूर जा सके, वह अपना मुंह फेर लेती है। 

वह अपने दोनों दोस्तों के बीच चल रही बातचीत की फुसफुसाहट सुन सकती है। वे दोनों बस के छोटेपन पर आश्चर्य जताती हैं। डैनफ़ो इतनी ऊंची नहीं कि वे सीधी खड़ी हो सकें, तो सिर झुकाकर अपने आप को सिकोड़ते हुए वे पीछे की तरफ जाती हैं। एक दुर्बल बूढ़े आदमी के पास से गुज़रते समय बड़बड़ाहट सुनाई पड़ती है। वह आदमी अपने आप में कुछ बड़बड़ा रहा है; अपनी लाल-पीली आंखों से वह अनु की ओर घूरता है। उससे भयंकर बदबू आ रही है। अनु नहीं समझ पाती कि उसके पास बैठा युवक उस बदबू को कैसे झेल रहा है। उस युवक ने एक खराब फिटिंग वाला धारीदार सूट पहना है। उसकी नाक चपटी और चौड़ी है- लाल आंखों वाले आदमी की नाक की तरह। 

अनु अपने दोस्तों के साथ आगे बढ़ती है। वे लगभग अपनी सीटों तक पहुंच ही गई हैं। बाहर से डैनफ़ो को देखने पर वह कभी कल्पना भी नहीं कर पाती कि उनको इस छोटी बस के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचने के लिए दो कदम से ज़्यादा लगेंगे; शायद बस में स्पेस सापेक्षिक होता है। 

अचानक अनु को लगता है कि उसके पिछवाड़े पर किसी ने हाथ मारा है, पर वह यह देखने के लिए पीछे नहीं मुड़ती कि किसका हाथ है।

‘क्या किसी ने अभी-अभी तुम्हें छूआ?’ दामी पूछती है।

वह अनु को सच बोलने के लिए प्रोत्साहित करते हुए अपनी गर्दन घुमाकर सीधे उसकी आंखों में देख रही है। अंधेरे में, दामी की सुनहरी आंखें चट्टानों के बीच दो कंकड़ की तरह नज़र आती हैं। 

‘मुझे छूआ? किसी की औकात नहीं है।’      

संतुष्ट, दामी वापस मुड़ती है और सीट पर बैठी हुई रूथ के बगल में सरक जाती है। ये उनका लाक्षणिक व्यवहार है। अनु तीसरा पहिया है, जो बस उनसे चिपकी रहती है। रूथ अपना सिर खिड़की के बाहर निकालती है और बहुत देर से रोकी हुई सांस छोड़ती है। अनु को उससे ईर्ष्या हो रही है। दुर्गंध से भरी बस में अनु को खुलकर सांस लेने में डर लग रहा है।  

एक छोटा लड़का दामी से सटकर निकलता है, लाल धागे की गेंद के पीछे भागते हुए, जो बस के गंदे रेतीले फर्श पर लुढ़क रही है। दामी की सीट का किनारा उसकी कमर में गढ़ रहा है। 

‘माफ किया तुम्हें,’ दामी ताना मारते हुए उस लड़के से कहती है।

अगर उसने दामी की आवाज़ सुनी भी तो वह उसके सुर से विनम्र नहीं हुआ और गेंद दबोचकर भिड़ता-भिड़ाता दूसरी कतार में अपनी सीट पर वापस चला गया। 

एक अकेली सीट बची है, बस के बाईं ओर। सीट में अनु का तीन चौथाई नितंब ही समाता है और उसके घुटने दामी की सीट के पीछे सटे रहते हैं। उसकी पहुंच रूथ की खिड़की के एक चौथाई हिस्से तक है। बस फिर चलने लगती है और अनु का दिल तीन गुना तेज़ रफ्तार से धड़कने लगता है।    

अनु अपने हाथों को घूरती है। जब वह बारह या तेरह साल की थी, तब उसके स्कूल के एक दोस्त ने अपनी उंगलियां उसकी हथेली पर बनी रेखाओं पर फेरी थी और अनु को बताया था कि वह लंबी उम्र तक जिएगी। इतनी लंबी कि अपने पोते-पोतियों को देख सकेगी, शायद पड़-पोतों को भी। अब वे रेखाएं धुंधली दिखाई पड़ती हैं, मानो अनु उनकी तरफ एक शांत झरने के माध्यम से देख रही हो। वह अपने गले में थूक गटक लेती है। 

‘कंडक्टर को आकर हमारा भाड़ा वगैरह नहीं लेना चाहिए क्या?’ दामी पूछती है।

ज़ाहिर है वह सही बात बोल रही है; भले ही उसकी जानकारी डैनफ़ो बसों के बारे में अपनी होंडा अकॉर्ड की खिड़कियों से देखने तक ही सीमित हो।  

‘वो अभी आएगा,’ अनु कहती है। 

‘तुम्हारा नाम क्या है?’ गलियारे के दूसरी तरफ बैठा आदमी अनु से पूछता है; हालांकि उसको गलियारा बोलना कुछ ज़्यादा ही हो जाएगा, वह आदमी बिना ज़ोर लगाए अनु को छू सकता है। वह अपनी जांघों को एक साथ दबाती है और अपने हाथों से अपने स्तनों को ढक लेती है, यह सोचते हुए कि क्या यह वही आदमी है जिसने उसके पिछवाड़े पर मारा था। उस आदमी के बगल में खिड़की वाली सीट पर एक औरत गहरी नींद में सो रही है। उसका सिर पीछे टिका हुआ है और एक मक्खी उसके खुले मुंह के अंदर बाहर हो रही है। अगर अनु को अनुमान लगाना होता तो वह कहती कि वह औरत अपनी उम्र के सातवें दशक में है। उस औरत ने टी-शर्ट पहन रखी है, जो कभी सफेद रही होगी। उसने छाती और शरीर के निचले भाग पर हरा स्कार्फ बांध रखा है। उसकी गोद में कई बैग हैं, जो उस उम्र की औरत के हिसाब से उठाने में भारी लग रहे हैं।

‘तुम्हारा नाम क्या है’ वह आदमी अनु का ध्यान फिर अपनी तरफ खींचता है, ‘मैं तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूं।’ 

ऐसे वक्त में वह अक्सर एंजेला बन जाती है। एंजेला की शादी हो चुकी है और उसके दो बच्चे भी हैं। एंजेला ने अपनी अंगूठी छह महीने पहले समुद्र के किनारे खो दी थी। एंजेला मुस्कुराएगी, उसके साथ मज़ाक करेगी और वह किसी बात का बुरा नहीं मानेगा। अनु उस आदमी की फुंसी को घूरती है जो उसकी नाक की नोक पर है और फूटने वाली है। उसकी झुर्रीदार त्वचा पर तीन आदिवासी निशान बने हैं। 

‘वो तुम्हारी दोस्त नहीं बनना चाहती,’ दामी अनु की वकालत करती हुई जवाब देती है, हालांकि अनु ने उससे मदद नहीं मांगी थी।

रूथ कुछ नहीं कहती। वह अपनी स्कर्ट के साथ खेल रही है, किसी भी टकराव से दूरी बनाते हुए।

आदमी मुस्कराता है, ‘मैं तुम्हारा भी दोस्त बन सकता हूं।’ 

वे तीनों उससे दूर अलग-अलग दिशाओं में मुंह फेर लेती हैं लेकिन वह मुस्कुराना बंद नहीं करता। अनु उसके टूटे हुए दांतों की बदसूरत चमक अभी भी महसूस कर सकती है। बस एक गड्ढे के ऊपर से निकलती है, अनु को अपनी हील्स बस के फर्श पर दबानी पड़ती है जिससे वह गिरे नहीं। 

‘तुम ठीक हो?’ रूथ उससे पूछती है। उसने अपना शरीर पीछे की तरफ मोड़ लिया है और अनु को वह अपना सर्वश्रेष्ठ सहानुभूति पूर्ण नजरिया पेश कर रही है—बड़ी-बड़ी आंखें, सिले हुए होंठ और सिकुड़ी हुईं भौहें।

‘हां।’ 

‘तुम ऐसी दिख रही हो जैसे उलटी करने वाली हो। शायद वो सुया, जो हमने खाया था थोड़ा गड़बड़ था?’

‘मैं बिल्कुल ठीक हूं,’ अनु अपने कंधे उचकाते हुए कहती है। वह असल में यह बताना चाहती है कि उसका पेट नाज़ुक नहीं है। मगर इसके पहले कि वह कुछ कह पाए, रूथ उसे मीठी-सी मुस्कुराहट देकर उसके कंधे थपथपाती है।

‘मैं तुम्हारा दर्द महसूस कर सकती हूं। हम जल्दी ही घर पहुंच जाएंगे। फिर तुम आराम कर सकती हो।’

प्रतिक्रिया में अनु का पेट पलटी मारने लगता है। 

क्योंकि करने के लिए कुछ और नहीं है, इसलिए अनु बस में बैठे अन्य यात्रियों को आंकने लग जाती है। अंधेरे में लगता है कि सब के चेहरों से हवस टपक रही है। वह एक रंगीन शर्ट पहने इंसान के ऊपर अपना ध्यान केंद्रित करती है; रूथ की तरह वह आदमी भी खिड़की की तरफ मुंह फेरे है। वह उसके माथे पर निकले दानों और उसके गाल पर बने आदिवासी निशानों को देख सकती है। वह आदमी अपनी भौंहें सिकोड़कर गंभीरता प्रकट कर रहा है। 

‘जोसेफ, तुम्हें वह पसंद आएगी,’ उसके पास बैठी औरत कहती है। उसका गेल बस की छत को छू रहा है। टक्कर से बचने के लिए उसने अपना सिर टेढ़ा कर रखा है। औरत आगे कहती है,

‘वह लागोस की दूसरी औरतों जैसी नहीं है। उसे सिखाना आसान होगा।’

‘और उसे कौन सिखाएगा?’ जोसेफ बिना अपना सिर घुमाए पूछता है, ‘आप?’

‘हां, मैं उसे बताऊंगी कि मेरे बेटे के लिए अच्छी बीवी कैसे बने।’ 

‘और जूलिएट का क्या?’

वह जवाब में मुंह बनाती है, ‘मेरा मरा मुंह देखना पड़ेगा।’ 

जोसेफ की मां ध्यान नहीं देती कि कैसे वह अपने होंठ और नाक इस तरह सिकोड़ता है कि दोनों लगभग एक-दूसरे को चूमने लगते हैं। वह अपने बेटे के क्रोध को समझ नहीं पाती, हालांकि अनु जहां बैठी है वहीं से बता सकती है कि उसका बेटा गरम हो रहा है।

अनु ड्राइवर के सिर के पिछले हिस्से को घूरती है। उसने अभी तक ड्राइवर का चेहरा नहीं देखा है। उसको शक होने लगा कि ड्राइवर का चेहरा है ही नहीं। ड्राइवर के बस घटते बाल हैं, एक पीठ है और पहिया घुमाने के लिए हाथ। कन्डक्टर ही उसकी आंख, मुंह और नियत है। एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं। अनु कन्डक्टर की तरफ नहीं देखती, लेकिन उसको पता है कि कन्डक्टर कहां है, प्रवेश और निकास द्वार के पास अकेली सीट पर बैठा हुआ। उसके चेहरे के एक भाग का दूसरे भाग के साथ समन्वय नहीं है: उसके होंठ मोटे और आगे की ओर निकले हुए हैं। अगर वह अपना मुंह पूरा न खोले तो उसकी आवाज़ दबी-दबी सी लगती है। 

अनु को अपनी गर्दन पर कुछ बहता हुआ महसूस होता है और वह उछल पड़ती है। उसके दोस्त चौंक कर उसकी तरफ देखते हैं, ‘क्या हुआ?’ 

वह अपनी गर्दन के पिछले हिस्से पर हाथ लगाती है और अपनी दोनों उंगलियों को घूरती है, पानी है। उसके ठीक ऊपर बस की छत लीक कर रही है। वह अपने ऊपर हंसती है। एक लीक करती हुई छत, फटी सीटें, न खुलने वाली खिड़कियां और खराब दरवाज़े। 

वह ठीक उसी समय ऊपर देखती है जब वह आदमी, जो उससे दोस्ती करना चाहता है, कन्डक्टर को ‘ओके’ का इशारा कर रहा होता है। कन्डक्टर उसको अपनी तरफ देखते हुए पकड़ लेता है तो अनु जल्दी से अपना सिर घुमाती है। 

‘अरे, तुम आगे तो नहीं निकल गए?’ खांसने वाली औरत पूछती है, ‘हम लोग थर्ड मेनलैंड ब्रिज के ऊपर क्यों चढ़ रहे हैं?’ 

लोगों के इधर-उधर हिलने और फुसफुसाने की आवाजें आने लगती हैं। हां, बस गलत दिशा में जा रही है। वे लोग थर्ड मेनलैंड ब्रिज की तरफ जा रहे हैं, जो उलटी दिशा में है। अनु के हाथ पसीजे हुए और ठंडे हैं। उसने आशा की थी कि बस उनको ठिकाने तक बिना किसी अचरज के पहुंचा देगी। तभी कोई भगवान का नाम पुकारता है। 

‘कन्डक्टर, तुम हमें कहां लेकर जा रहे हो?’ दामी जवाब मांगती है।

उसे अभी भी ऐसा लगता है कि वह परिस्थितियों पर नियंत्रण पा सकती है, लेकिन ऐसा खांसने वाली औरत को नहीं लगता और वह रोने लगती है। वह समझ गई है कि वे सब लोग अच्छे से चुद चुके हैं।

कन्डक्टर दामी के सवाल का जवाब नहीं देता। उसकी पीठ उनकी तरफ घूमी हुई है। कभी भी किसी की पीठ इतनी ज़्यादा डरावनी नहीं लगी जितनी उसकी लग रही है। वह हिलता भी नहीं है।

‘हमें यहीं उतार दो,’ दामी कहती है, ‘हम लोग यहीं ठीक हैं।’ 

कोई जवाब नहीं मिलता और बस आगे चलती रहती है। दामी की आवाज़ में और आवाज़ें मिल जाती हैं। खराब फिटिंग वाला सूट पहने वह युवक अपना सिर छत से बचाते हुए एकाएक खड़ा होता है। 

‘इस बस को फौरन रोको!’ वह चिल्लाता है।

उसके बगल में बैठा लाल आंखों वाला आदमी आह भरता है। अनु उन लोगों के इतने करीब है कि उसको धातु की चमक दिखती है और लाल आंखों वाले आदमी की कोहनी का झटका भी। 

‘अंकल?’ ढेर होने से पहले वह युवक कहता है।

जहां वह खड़ी है, वहां से उसको खून नहीं दिख रहा, मगर अनु कल्पना कर सकती है कि खून तेजी से फैल रहा होगा। 

धीरे-धीरे रोने की आवाज़ें आने लगती है। उसके बगल में बैठी औरत उठ जाती है। उसका व्यवहार किसी कोने में सिमटे भयभीत जानवर की तरह का लगता है। वह मरते हुए आदमी को घूर रही है, फिर वह अपने आस-पास ध्यान से देखती है, जैसे कि सब कुछ पहली बार देख रही हो। अनु को उससे और उसकी अनभिज्ञता से ईर्ष्या हो रही है।

जैसे ही उसके आस-पास के दूसरे यात्री उठते हैं, अनु उलटी कर देती है। चारों तरफ चीखना-चिल्लाना और रोना-धोना हो रहा है। उलटी करने के बाद उसको हमेशा ही बेहतर महसूस हुआ है। इससे उसका दिमाग साफ होता है। वह खिड़की को इस आशा से ठोकती है कि कोई करीब से निकलती गाड़ी में से उसे देख लेगा। उसके दोस्त उसको देखते हैं और  साथ में शामिल हो जाते हैं। इतनी उथल-पुथल है कि शायद उनकी क्रियाशीलता पर किसी का ध्यान न जाए।

‘हमें इस बस से उतरना ही है!’ दामी रोते हुए कहती है।

एक औरत आखिरकार अपनी जी-वैगन गाड़ी के अंदर अपना सिर घुमाती है और उसकी आंखें अनु से मिलती हैं। अनु की जान में जान आती है। चलो, किसी ने तो उन्हें देखा। कोई तो मदद करेगा। मगर वह औरत अपना सिर वापस घुमाती है और गाड़ी आगे निकल जाती है। अनु को आभास नहीं था कि बस की खिड़कियों पर रंग चढ़ा हुआ है। नहीं, उनकी कोई मदद नहीं करने वाला। वे सब खुद के भरोसे हैं। यह अचंभित करने वाली बात है कि दिन के उजाले में ऐसा हो सकता है। वह सूरज की गर्मी को अपने रोम रोम में महसूस कर सकती है। 

‘खामोश!’ कन्डक्टर अपनी कमर को झुकाते हुए ताकि उसका सिर बस की छत से न भिड़े, वापस खड़ा हो जाता है। उसकी आवाज़ कर्कश है मगर वह अपना अपेक्षित प्रभाव छोड़ती है। शोर भिनभिनाहट के स्तर तक घट जाता है।

‘अपने जूते उतारो, फोन और पर्स बाहर निकालो,’ वह कहता है।

अनु अपने जूते उतारती है। सभी यह करते हैं। 

‘तुम,’ कन्डक्टर अनु की तरफ इशारा करते हुए कहता है। वह देखने के लिए मुड़ती है कि कहीं वह किसी और से तो बात नहीं कर रहा लेकिन सारे सिर झुके हुए हैं और उसने तब तक कन्डक्टर से आंखें भी मिला ली हैं, ‘सब के जूते इकट्ठे करो और उनके फोन और पर्स भी।’ 

‘सावधान रहना,’ रूथ फुसफुसाती है। उसे लगता है कि वे अभी भी तबाही की चपेट में नहीं हैं।

वह आगे जाती है और कन्डक्टर उसको एक काला झोला थमाता है। उनकी उंगलियां स्पर्श करती हैं। वह भी इंसान है, मगर इससे वह दिलासा नहीं मिलता जो मिलना चाहिए। अनु उस अनुभव के बारे में सोचती है जिसको उसने आने वाले महीनों में करने का निर्णय लिया था: एक हवाई जहाज से कूदना। कई रातों में उसने सोचा था कि हवा में गिरते हुए कैसा लगेगा? ऐसा ही लगता होगा। डर ने उसके पैर की सबसे छोटी उंगलियों तक को जकड़ लिया है।

उसके जूतों पर खून लग गया है। कोई फर्श पर पड़े उस आदमी की मदद नहीं कर रहा। वह हिल भी नहीं रहा है। पास बैठे उसके अंकल गन्ना चबाए जा रहे हैं। वह गन्ने का बचा हुआ भाग ज़मीन पर थूकते हैं और अनु की तरफ घूरते हैं, पूछते हुए कि क्या उसमें कुछ बोलने की हिम्मत है। वह अंकल के इर्द-गिर्द घूमती है, इस अनिश्चितता में कि उसको उनका भी पर्स और फोन लेना है कि नहीं, और अगर वह नहीं लेती है तो उसके साथ क्या होगा। 

‘क्या... आप मुझे अपना फोन देंगे... प्लीज?’

वह धीरे से उसकी ओर रूखे तरीके से मुस्कुराता है और दो फोन उसके हवाले कर देता है।

वह आगे बढ़कर एक पहलवान-नुमा आदमी के पास जाती है, उसके बगल में वह बच्चा बैठा है जो उन लोगों को धक्का देते हुए निकला था। वह धागों को कुण्डली के रूप में गांठ पर गांठ लगाए जा रहा है। मोबाइल फोन देने की जगह पहलवान उसको अपने हाथ पर बने तीन आदिवासी निशान दिखाते हुए कहता है, ‘आगे बढ़ो औरत।’ 

वह उसकी बात सुनती है और आगे बढ़ जाती है। बाकी सब अपने फोन आसानी से उसके हवाले कर देते हैं। वह झोला लेकर दामी और रूथ के सामने खड़ी हो जाती है। दामी अपने फोन पर तेजी से मैसेज पे मैसेज लिख रही है। वह अपना सिर ऊपर नहीं उठाती।

‘दामी...’ 

‘तुम्हें हमारे फोन लेने की ज़रूरत नहीं है। बस नाटक करो कि तुमने ले लिए हैं।’ 

उसको चक्कर आने लगते हैं मगर वह डटकर खड़ी रहती है, ‘और अगर उसने फोन गिने और देखा कि मैंने सारे नहीं लिए हैं?’

‘वह नहीं गिनेगा।’

‘क्या तुम यह जोखिम उठाने को तैयार हो?’ अपना फोन झोले में डालते हुए रूथ पूछती है। ‘तुमने नहीं देखा उन्होंने कैसे उस आदमी को मार डाला?’ 

दामी आह भरती है, ‘तुम सही हो।’

वह भी अपना फोन झोले में डाल देती है। अनु जाकर सारे फोन कन्डक्टर को पकड़ा देती है। वह उन्हें बिना गिने ही फर्श पर पटक देता है। वह इंतज़ार करती है कि कन्डक्टर उसे वापस अपनी सीट पर जाने के लिए बोले, लेकिन कुछ पल नजरंदाज होने के बाद वह अपने आप ही लौट जाती है। 

सूट वाले आदमी का खून टप-टप टपक रहा है। वह दुआ करती है कि कोई गाड़ी रोक कर शरीर को बाहर फेंक दें। एक शव के इतने करीब होने पर उसे ऐसा लग रहा है कि जैसे मौत खुद उसके ऊपर खड़ी है। 

‘प्लीज, घर पर मेरा एक बच्चा है और मैं पेट से हूं। प्लीज... मुझे जाने दो,’ आगे की तरफ बैठी हुई खांसने वाली औरत रोते हुए गुहार लगाती है। 

बाकी सब यह जानने के लिए देखते हैं कि क्या उसकी दलील कन्डक्टर के ऊपर काम करेगी, ये सोचते हुए कि वे ऐसा क्या कह सकते हैं जिससे बंदी बनाने वालों के अंदर किसी तरह की सहानुभूति जाग जाए। कन्डक्टर मुसकुराता है, उसके आगे के तीन दांत नहीं हैं। सारे यात्री एक साथ भय से थरथराने लगते हैं। वह हाथ अपनी जेब में डालता है और एक वस्तु निकालता है जिसका आकार बिल्कुल लॉलीपॉप की डंडी की तरह है। अनु उसको ठीक से देखने के लिए अपनी आंखें मीचती है।

‘इस पर मूतो,’ वह उस औरत से कहता है। 

‘क्या?’ 

‘इस पर मूतो।’

औरत अपने पास बैठे हुए मर्द की ओर घूमती है। मगर वह अपने हाथों की ओर देख रहा है। उसके सिर का गंजापन दिखाई पड़ रहा है।

ओगा! यहां कोई शौचालय नहीं है...’

‘उकडूं बैठो।’

उसके संक्षिप्त जवाब किसी तरह के संवाद का निमंत्रण नहीं देते। औरत फिर से रोने लगती है, मगर उससे डंडी ले लेती है।

वह अपने आप को तैयार कर नीचे पैर के बल बैठती है और डंडी पर पेशाब की कुछ बूंद दम लगाकर टपकाती है। अनु कोशिश करती है कि वह कपड़े की सरसराहट न सुने। वह अपने हाथों पर ध्यान केंद्रित करती है जिससे औरत को थोड़ा एकांत मिल सके। वह सोचती है कि क्या होगा अगर वह औरत पेट से न निकली तो। और क्या होगा अगर वह पेट से निकली भी तो। वह ऊपर देखती है, कन्डक्टर अपने हाथ में रखे टेस्ट को घूर रहा होता है। क्या वह मुस्कुराता है? क्या वह भौंहें सिकोड़ता है?

‘तुम यहां गर्भवती औरत को लेकर चले आए?’ वह उस आदमी से पूछता है, जो खांसने वाली रोती हुई गर्भवती औरत के बगल में बैठा है। 

‘ओगा! मैं... मैं... नहीं... मैं नहीं जानता था,’ वह मिमियाते हुए बोलता है और औरत की तरफ देखता है। 

‘तुम पेट से हो?’

औरत अपना मुंह खोलती और बंद करती है। उसकी खांसी बंद हो चुकी है। 

‘क्या वह... मेरा अपना है?’ वह पूछता है।  

‘मैं तुम्हें आज रात को बताने ही वाली थी,’ वह आखिरकार हल्के से बोलती है। 

कन्डक्टर उस औरत का सिर कोमलता से थपथपा कर उसे चाकू थमा देता है।

‘मैं तुम्हें जीने का एक मौका दे रहा हूं,’ कन्डक्टर उससे कहता है। 

औरत चाकू को घूरती है, उसका हाथ कांप रहा है। उसका प्रेमी गिड़गिड़ाने लगता है।

‘येटुंडे, मेरी जान। प्लीज....तुम जानती हो ना मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं। उन्होंने मेरे दिमाग को भ्रष्ट करने के लिए मुझे जैज़ संगीत सुनाया,’ वह कन्डक्टर की ओर देखता है, ‘प्लीज...। मैंने वही किया जो तुमने...’ इससे पहले कि वह एक और शब्द कह पाए येटुंडे उसको चाकू मार देती है। 

उसकी यह कार्रवाई लहर की तरह अपना प्रभाव छोड़ती है। पहलवान अपने पास बैठे छोटे बच्चे की गर्दन तोड़ देता है। उसका लाल धागा वापस फर्श पर गिर जाता है। मिलनसार हंसमुख आदमी अपने हाथ से 70 साल की औरत का मुंह दबा देता है और वह फड़फड़ाने लगती है। अनु सोचती है कि क्या मक्खी उड़ गई होगी, या उसने उस औरत के मुंह को ही अपनी कब्र बना लिया होगा। पहलवान रो रहा है। जोसेफ की मां पहले ही मर चुकी है। जोसेफ ने उसे कब मारा? खिड़की के बाहर अनु देख सकती है कि वे लोग थर्ड मेनलैंड ब्रिज के अंतिम हिस्से पर पहुंच चुके हैं। 

दामी और रूथ अभी भी खिड़कियों को पीट रही हैं। बड़े ताज्जुब की बात है कि उनको अभी तक कुछ समझ में नहीं आया है। वह उस वक्त के बारे में सोचती है कि जब वह इन दोनों औरतों से पहली बार मिली थी और कैसे उनकी तकदीरें उन्हें इस पल तक ले आईं, जब उनका खून उसके हाथों होगा। वह अपनी आंखें बंद करती है, फिर खोलती है।  

‘दोस्तों,’ वह हल्के स्वर में कहती है। मगर उसकी आवाज़ में कोई बात है जो उनका चीखना-चिल्लाना बंद कर देती है। उनको विश्वास है कि उसके पास कोई समाधान होगा, और उसके पास है। वह अपनी हथेली खोल उन्हें दो टेबलैट दिखाती है। वे टॉफी भी हो सकती हैं। 

दामी को पहले समझ में आता है। 

‘तुम्हारे पास ये क्यों है?’ 

‘मैं तुम्हें तकलीफ नहीं पहुंचाना चाहती। इससे आसान हो जाएगा। लगभग दर्द रहित।’

एक क्षण के लिए सब शांत होता है। उसका ध्यान अपने दोनों दोस्तों पर केंद्रित है। उसके जीवन के प्रेम, वे औरतें जिन्होंने उसे पहले भी बचाया था और उसे फिर बचाएंगी। 

‘कुतिया,’ दामी की आवाज़ अब धीमी हो गई है। 

‘मुझे... मुझे समझ नहीं आ रहा,’ रूथ बोलती है। 

अनु उनको बताना चाहती है कि मरने का डर वह सब चीजें दिखता है जो इंसान अपनी ज़िंदगी में नहीं कर पाया है। उसके दोस्त अपने मुंह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुए थे। उनके पास सबसे नए फोन हैं। दामी की पिछले साल काम में तीन बार तरक्की हुई और रूथ के प्रेमी ने उसे कुछ महीने साथ बिताने के बाद ही शादी के लिए प्रपोज कर डाला। क्या ज़िंदगी उनकी तरफ मेहरबान नहीं थी? दूसरी तरफ वह दो महीने पहले ही काम से निकाली गई थी, उसकी ज़िंदगी में प्यार भी न के बराबर ही था। इसके अलावा, वह उन दोनों से उम्र में छोटी थी, पूरे एक साल, तो क्या उन लोगों को उसके लिए यह नहीं करना चाहिए? 

रूथ अपने आस-पास के खून-खराबे को देखती है और अनु की हथेली से टेबलैट ले लेती है। उसका हाथ पसीने से तर है। दामी रोने लगती है। 

‘हम इससे बच के निकल सकते हैं,’ मगर वह इस हम में अनु को नहीं गिन रही, वह रूथ से बात कर रही है। उन्होंने हमेशा उसे नजरंदाज किया है। 

रूथ बैठती है और टेबलैट को अपने मुंह में डाल अपनी आंखें बंद कर लेती है। उसके होंठ शांतिपूर्वक एवं जल्दी-जल्दी हिल रहे हैं। दामी अपने आप को अपने पूरे कद तक ऊपर उठाती है, जितना भी वह उस तंग डैनफों में उठा सकती है।

‘मैं इतनी आसानी से नहीं मरने वाली,’ वह अनु को धक्का देती है और टेबलैट उसके हाथ से गिर कर दूर लुढ़क जाती है।

दामी अनु के बाल खींचती है और उसको दांत से काटती है। अनु की पीठ सीट के किनारे पर ज़ोर से टकराती है। दामी अपनी ज़िंदगी के लिए लड़ रही है और ये काफी दर्दनाक है। वह अच्छा लड़ती है, मगर अनु के पास चाकू है। 

सब खत्म हो जाने पर अनु फर्श पर बैठ कर रोने लगती है। उसे तुरंत मालूम नहीं पड़ता कि डैनफ़ो अपनी मंजिल पर आकर रुक गई है। मगर जैसे ही उसे एहसास होता है कि वे लोग अपनी मंजिल पर पहुंच चुके हैं, वह यह देखने के लिए अपनी आस्तीन ऊपर करती है कि उसके बाज़ू पर बने आदिवासी निशान हैं कि नहीं। उनको वहां नहीं होना चाहिए। मगर, वे वहां हैं और दिन के जैसे साफ दिख रहे हैं। 

वह कन्डक्टर के पास सरकते हुए पहुंचती है और उसकी पतलून पकड़ लेती है। 

‘तुमने कहा था ये करने के बाद मैं आज़ाद हो जाऊंगी!’

वह उसे लात मार कर बाहर निकाल फेंकता है। 

जिस आदमी ने उसे दोस्ती का प्रस्ताव दिया था, वह हंसता है, ‘अगले महीने फिर मिलते हैं।’  

 

शब्दकोश 

डैनफ़ो (Danfo): एक पीली मिनी बस जो यात्रियों को भाड़े पर उठाती है। ये लागोस, नाइजीरिया की अनौपचारिक परिवहन प्रणाली का हिस्सा है।

घाना मस्ट गो बैग (Ghana Must Go bag): शाब्दिक अर्थ: घाना जाना होगा। 1983 में एक प्रेसिडेंशियल ऑर्डर के तहत बहुत सारे घाना के लोगों को अवैध प्रवासी घोषित करके नाइजीरिया से निकाला जा रहा था। विस्थापित होते वक्त ये लोग जिस सस्ते नायलॉन के बैग में अपना समान ले जा रहे थे, उसको उपनाम मिला ‘घाना मस्ट गो’। आज भी नाइजीरिया, घाना और दक्षिण अफ्रीका में कुछ जगहों पर उस तरह के बैग को ऐसे ही बुलाया जाता है। 

सुया (Suya): पश्चिम अफ्रीका में पाए जाने वाले गाय, भेड़ या चिकन के गोश्त के कबाब।

गेल (Gele): दक्षिण और पश्चिम अफ्रीका के कई इलाकों में सिर पर पहने जाने वाला औरतों का स्कार्फ या दुपट्टा| 

ओगा (Oga): नाइजीरिया में मिश्रित अंग्रेजी में सर, मालिक या बॉस के लिए शब्द। 

 

 (इस कहानी को एडिट करने में शहादत खान और रोमी अरोरा ने मदद की है)

 

ओयिनकन ब्रेथवेट
ओयिनकन ब्रेथवेट

ओयिनकन ब्रेथवेट नाइजीरिया की उभरती हुई युवा लेखिका हैं। उन्होंने एक उपन्यास लिखा है, माइ सिस्टर द सीरीअल किलर, जिसका अनुवाद तीस से भी अधिक भाषाओं में हो रहा है। ओयिनकन ब्रेथवेट नाइजीरिया की उभरती हुई युवा लेखिका हैं। उन्होंने एक उपन्यास लिखा है, माइ सिस्टर द सीरीअल किलर, जिसका अनुवाद तीस से भी अधिक भाषाओं में हो रहा है।