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कहानियाँ

ओह मेरी दादी!

ओह मेरी दादी!

यह कहानी न केवल एक परिवार की फरवरी के तूफानी मौसम में संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि फ़लस्तीन के मुद्दे पर विचार करने वाले व्यापक सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को भी शामिल करती है। कहानी में, पारिवारिक संवादों और मातृक भय के माध्यम से ऐतिहासिक संघर्ष और फ़लस्तीनी संकट की गहराई को उजागर किया गया है, जो व्यक्तिगत जीवन और पारिवारिक बंधनों पर इसके प्रभाव को दर्शाता है।

सुहैर अबू ओक्सा दाऊद
चुनाव: कश्मीरी शैली में

चुनाव: कश्मीरी शैली में

जिस देश ने अति-भारी सैन्य बल के ज़रिये कश्मीर पर अवैध क़ब्ज़ा जमा रखा है, वही देश कश्मीर में आज़ाद चुनाव आयोजित करवाने के बड़े-बड़े दावे करता दिखता है। इस विडंबना के कारण कई अजीबोगरीब घटनाएं होती हैं। एक ऐसी वारदात का ज़िक्र अख़्तर मोहिउद्दीन इस अनोखी कहानी में करते हैं।

अख्तर मोहिउद्दीन
‘द वॉइस इमिटेटर’ से कुछ कहानियां

‘द वॉइस इमिटेटर’ से कुछ कहानियां

यह छोटी-छोटी कुछ पंक्तियों की कहानियां हैं जो मानव दशा के बारे में बहुत कुछ कह जाती हैं।

थॉमस बर्नहार्ड
क़ब्ज़ा कर लिया गया मकान

क़ब्ज़ा कर लिया गया मकान

हिंसा सिर्फ प्रत्यक्ष और उपद्रवी रूपों से नहीं होती। कभी-कभी हिंसा सामान्य तरीके से भी की जाती है, शांति से, भावनाओं के साथ खेल कर, सामने वाले में डर पैदा करके। यह कहानी ऐसी ही हिंसा के बारे में है।

जूलियो कोर्टाज़ार
मैं नहीं बता सकता

मैं नहीं बता सकता

कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जो अच्छे-भले इंसानों को हैवान बनने पर मजबूर कर देती हैं। कश्मीर के अंदर भारतीय राज्य की भूमिका कुछ ऐसी ही परिस्थितियों को बनाने और बनाए रखने की रही है। कश्मीर पर अपना अवैध राज कायम रखने के लिए भारतीय राज्य एक कश्मीरी को दूसरे कश्मीरी से लड़ने पर मजबूर करता है। जबकि कश्मीरी मजबूरी में बुरे काम कर रहे हैं और इसलिए अपनी इंसानियत कहीं न कहीं बचा पा रहे हैं, भारतीय राज्य अपनी इंसानियत अपनी स्वेच्छा से पूरी तरह से खो चुका है।

अख्तर मोहिउद्दीन
सकीना की चूड़ियां

सकीना की चूड़ियां

जब मैं दस साल की थी, मेरी ही उम्र की मेरी एक सहेली थी जिसका नाम सकीना था। जब हम मित्र थे, उस समय मेरे परिवार में छः बेटियां थीं। तब तक मेरे दोनों छोटे भाई पैदा नहीं हुए थे। सकीना सात बड़े और विवाहित बेटों के बाद की एक मात्र बेटी थी। वह हमारे घर के ठीक सामने रहती थी किन्तु उसके पिता बहुत सख़्त थे इसलिए उसे घर से बाहर लम्बे समय तक खेलने की अनुमति नहीं थी। जब वह अपने घर का काम पूरा कर लेती, उसकी मां उसे चुपचाप हमारे पिछवाड़े के अहाते में आने देती। उस समय उसके पिता अपराह्न की झपकी ले रहे होते।

ज़ोहरा सईद
लंगड़ा सोफा

लंगड़ा सोफा

एक दिन मुझ पर स्पष्ट हुआ कि मैं उड़ सकता हूं। मेरे पर नहीं हैं मगर मैं हवा में तैर सकता हूं। एक रोज़ दोपहर से ज़रा पहले मुझे एक सिपाही ने रोका। उस सिपाही की ज़िम्मेदारी थी कि वह बाज़ारों में फिरने वाले मोटे लड़कों को शर्मिंदा करे। मैं मोटा था और मुझे मोटापे पर क़ाबू पाने के लिए बहुत-सी तर्तीब दी गई थीं। पुलिस के कारिंदे पूरे शहर की गलियों में खुंबियों की तरह पाए जाते थे।

अज़हर जर्जीस
लौंडी

लौंडी

यह एक ऐसा टकराव था, जिसका तजुर्बा कोई इन्सान कभी नहीं करना चाहेगा, लेकिन यह एक ऐसा टकराव था, जिससे गुरेज़ भी नहीं किया जा सकता था। उसकी कहानी मुझे ख़ुद उस लौंडी ने नहीं बल्कि दक्षिणी समुंद्री लहरों की भारी और नीरस गरज ने सुनाई थी, जो नौअग्राद के प्राचीन और अंधेरे क़िले की बुनियादों से टकराती हैं। एक रात मेरी हवेली की तन्हाई में मुझ तक यह आवाज़ पहुंची; उसने मुझे मेरी पहली नींद से जगाया और मजबूर किया कि मैं उसकी कहानी सुनूं।

इवो आंड्रिच
वक्त का दरिया

वक्त का दरिया

"पानी और वक़्त जुड़वां भाई हैं, दोनों एक ही कोख से जन्मे हैं।" बहाव चाहे पानी का हो या वक्त का, उसका विरोध करना मुनासिब नही है। वक्त के दरिया के पार हम अपने पूर्वजों से कैसे जुड़े हैं? जुड़े भी हैं कि नही? क्या यह जुड़ाव प्राकृतिक है, या फिर हर चीज की तरह इस जुड़ाव को भी बनाए रखने के लिए सामाजिक शिक्षा की जरूरत है? जुड़ाव चाहे प्राकृतिक हो, उस जुड़ाव का अनुभव ज़रूर सामाजिक है। उस जुड़ाव को चेतना में बनाए रखना हम सब का दायित्व है।

मिया कोउतू