पटचित्र: मीर सुहैल
कश्मीरी से अंग्रेजी अनुवाद: सय्यद तफ़ज़्ज़ुल हुसैन
अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद: अक्षत जैन
स्त्रोत: Short stories of Akhtar Mohiuddin
9 मार्च 1958
शाम के चार बजे थे।
दो सरकारी गाड़ियां लाल चौक पहुंची और न्यायालय परिसर वाली गली के बाहर रुकीं।
तकरीबन चार दर्जन लोग कश्मीर अतिरिक्त पुलिस की वर्दी पहनकर उनमें से बाहर निकले।
पाठक को इस बात कि चिंता करने की कोई जरूरत नहीं कि वह बिहार पुलिस के थे या पंजाब पुलिस के, केंद्रीय रिजर्व पुलिस के, मध्य प्रदेश पुलिस के, कश्मीर रिजर्व पुलिस के, स्पेशल पुलिस के या फिर किसी और संवेदनशील पुलिस के। उन दिनों, देशद्रोही तत्वों को सबक सिखाने के लिए हर भारतीय राज्य ने अपने बल कश्मीर भेज रखे थे। फिर कश्मीर के पास खुद के अपने पुलिस बल थे जो छह अलग नाम से जाने जाते थे और छह अलग वर्दियां पहनते थे। इसलिए मैंने सिर्फ इतना बताया कि जो लोग उन गाड़ियों से उतरे थे उन्होंने वर्दी कौन-सी पहनी थी।
लाल चौक पर जो लोग थे—पैदल चलने वाले, साइकिल पर सवार, तांगा वाले—वे सब तेजी से आगे बढ़ने लगे। दुकानदारों ने फटाफट ग्राहकों को निपटाया और फुटपाथ पर बैठे विक्रेताओं ने अपना सामान समेट लिया। वहां पर जो पुलिस वाले पहले से तैनात थे, वे कश्मीर अतिरिक्त पुलिस के कर्मचारियों को उदासीनता से देख रहे थे।
कश्मीर अतिरिक्त पुलिस के मर्दों ने अपने डंडे पकड़े। आधे दर्जन के पास आंसू बम के गोले फेंकने वाली बंदूकें थीं और उनके कंधों पर गोलों के डिब्बे लटके थे। वे भी तैयार हुए। फिर वे सड़क के एक किनारे जाकर पंक्ति बना कर खड़े हो गए। वे लोगों को, दुकानदारों को, और इस्माइल इमारत के कोनों पर बैठी मैनाओं को घूर रहे थे। उनके सांवले चेहरों को देख पक्षी और उत्तेजित हो रहे थे और ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ें निकाल रहे थे, जैसे कि कहना चाह रहे हों, “अरे, इन वर्दियों में जो लोग हैं, वे वो नहीं हैं जो होने का ढोंग कर रहे हैं।” लोगों को उनकी यह चेतावनी समझ में नहीं आई और उन्होंने यह नहीं सोचा कि कश्मीर अतिरिक्त पुलिस की वर्दी में असल में वे केन्द्रीय रिजर्व पुलिस के कर्मचारी थे। अगर उन्हें यह समझ में आ भी जाता, तो भी उन्हें इस ढोंग का कारण नहीं समझ आता। भारतीय शासकों ने यह तरकीब इसलिए अपनाई थी जिससे अगर ख़ुदा-न-ख़्वास्ता कोई न्यूज वाला उन्हें देख कर रिपोर्ट लिख भी दे, तो भी कश्मीरी सरकार की बदनामी होगी। केन्द्रीय सरकार निर्दोष बनी रहेगी। जनता यह जटिल तरकीबें समझने योग्य नहीं थी और वैसे भी उन्होंने वो चेतावनी सुनी ही नहीं जो मैना चिल्ला-चिल्ला कर दे रहीं थीं।
केन्द्रीय रिजर्व पुलिस के मर्द (कश्मीर अतिरिक्त पुलिस की वर्दी में) सड़क के एक किनारे पर खड़े बाजार की शांत स्थिति के साथ मेल नहीं खा रह थे, लेकिन सब को इतना तो समझ आ गया था कि दाल में कुछ काला है। लेकिन कोई सटीक अनुमान नहीं लगा पा रहा था कि क्या चल रहा है और क्या होने वाला है।
तब एकदम से कादिर चान (कश्मीरी में बढ़ई) कहीं से प्रकट हुआ। वह सरकारी बाहुबली था। उसने हाल ही में अपना सिर और चेहरा मुंडवाया था। वह दारू के नशे में चूर था और उसका चेहरा लाल हो रखा था। पुलिस दल का अफसर आगे आया और उसने कादिर चान से हाथ मिलाया। कादिर चान लुढ़कता हुआ आगे बढ़ा और पुलिस के सामने बैठ गया। उसने आधी जली सिगरेट के कुछ कश लिए और फिर एकदम से बची हुई सिगरेट को बिना बुझाए राह चलते आदमी पर फेंक दिया। उस आदमी ने लाल होकर कादिर चान की तरफ गुस्से से देखा लेकिन कुछ कहा नहीं। उसे समझ में आ गया कि कुछ गहरा षड्यन्त्र रचा गया है।
जैसे वो आदमी कुछ कदम आगे बढ़ा, कादिर चान ज़ोर से चिल्लाया, “हरामी! मैं तेरे बाप का नौकर लगता हूं?”
वो आदमी रुका, उसने पीछे मुड़ कर देखा और कहा, “मैंने क्या किया? मैं तो सीधा आगे बढ़ रहा हूं।”
“हरामी! मैंने तेरे ऊपर जलती हुई सिगरेट फेंकी, तूने बदले में कुछ किया क्यों नहीं?” कादिर चान चिल्लाया।
“मुझे गाली क्यों दे रहा है?” आदमी के चेहरे से रंग उड़ चुका था। “कोई तमीज़ है कि नहीं?”
“ज्यादा बोल रहा है,” कादिर चान ने कहा और अचानक से उस आदमी का कॉलर पकड़ कर उसे अपने सर से दे मारा। आदमी को लगी तो नहीं लेकिन नीचे गिरने के कारण उसके कपड़े मैले हो गए। उसने फिर कादिर चान को शांत करने कि कोशिश की लेकिन कादिर चान अड़ा था। उसको छोड़ कर कादिर चान भागता हुआ एक पुलिस वाले के पास गया और उसका डंडा ले के उस आदमी को पीटने लगा।
उनके आस-पास भीड़ इकट्ठा हो गई और क्योंकि बाहर से मुझे कुछ दिख नहीं रहा था, तो मैं भी भीड़ में जुड़ गया। मैंने उस आदमी को जमीन पर गिरे हुए देखा। कादिर चान अपने घुटनों के बल उसकी छाती पर बैठ था और उसे पागल सांड की तरह अपने सर से मारे जा रहा था। आदमी की नाक से तेजी से खून बह रहा था। भीड़ शांति से देख रही थी, कि दो औरतें आगे आईं और उन्होंने कादिर चान को हटा कर उस आदमी को छुड़ाने कि कोशिश की, लेकिन कादिर चान उसे छोड़ने तैयार नहीं था। अब बाकी देखने वाले भी खुद को नहीं रोक पाए। उन्होंने कादिर चान को पकड़कर खींचना शुरू कर दिया। जब कादिर चान ने मना किया, तो एक गुस्सैल आदमी ने ज़ोर से कहा, “उसको मार डालेगा क्या?” फिर उसने अपना फेरन उतारा और कादिर चान को लपेट लिया। बाकी भीड़ भी मदद के लिए आगे बढ़ी और अचानक एक चीख सुनाई दी, “आगे बढ़ो!”
केन्द्रीय रिजर्व पुलिस (कश्मीर अतिरिक्त पुलिस की वर्दी में) फटाफट गति में आई और उसने वहां इकट्ठे सभी लोगों को अपने डंडों से पीटना शुरू कर दिया। पुलिस और भीड़ के बीच मुठभेड़ शुरू हो गई। पुलिस वाले लोगों को डंडों से मार रहे थे लेकिन लोग भी वापस आ कर पुलिस वालों के ऊपर हमला कर रहे थे।
दुकानदारों ने दुकानें बंद कर लीं, साइकिल और तांगा वाले दूर चले गए और मैं भी दौड़ता हुआ उस जगह वापस चला गया जहां से मैं पहले तमाशा देख रहा था। भीड़ पुलिस से तब तक लड़ती रही जब तक आंसू बम के गोले नहीं चले।
भीड़ तितर-बितर हो गई। दुकानदार वापिस दुकानें खोलने लगे। कुछ खरीददार भी लौट आए और केन्द्रीय रिजर्व पुलिस फिर से पंक्ति में खड़ी हो गई। एक अफसर कादिर चान को फिर से सिगरेट दे रहा था। कुछ समय बाद एक जीप आई जिसमें बैठकर कादिर चान वहां से चला गया। केन्द्रीय रिजर्व पुलिस भी अपनी गाड़ियों में बैठ कर वहां से निकल गई।
अगले दिन मैं फिर लाल चौक आया। कुछ देर इधर-उधर भटकने के बाद मैं चाय पीने एक रेस्तरों में गया। बैठते वक्त मेरी आंखें एक अंग्रेजी अखबार की हेडलाइन पर जाकर रुकीं—“कश्मीर में दिन-दहाड़े गुंडागर्दी”। मुझे कल की वारदात याद आई और मैंने अखबार इस उम्मीद से उठाया कि आखिरकार कश्मीरियों की दुर्दशा पर कुछ तो ध्यान आकर्षित हुआ। लेकिन अखबार में छपी पूरी कहानी पढ़कर मेरी आंखें भर आईं। मैं कहानी यहां शब्दशः प्रस्तुत कर रहा हूं:
“चश्मदीद गवाहों का कहना है कि ग़ुलाम कादिर चान नाम के सज्जन व्यक्ति लाल चौक पर शांति से खड़े थे जब उन पर कुछ देशद्रोही तत्वों ने हमला कर दिया। वह गंभीर रूप से घायल हो गए हैं और उन्हें स्थानीय अस्पताल में दाखिल कर दिया गया है। अगर कश्मीर अतिरिक्त पुलिस वहां मौके पर पहुंचकर उपद्रवियों को नहीं भगाती तो कादिर चान शहीद हो सकते थे। हम राज्य सरकार से निवेदन करते हैं कि इन देशद्रोही तत्वों का खात्मा करें, जिससे कि सज्जन, कानून का पालन करने वाले नागरिक शांति और सुरक्षा की ज़िंदगी यापन कर सकें।”
मैंने एक और अंग्रेजी अखबार उठाया और यही खबर उस में भी पाई। चार अंग्रेजी अखबार और सात उर्दू अखबारों में यह खबर हूबहू छपी थी। किसी अखबार के संपादक ने कोई एक वाक्य बदलना भी ठीक नहीं समझा। मुझे बेबसी महसूस होने लगी और मैं अपनी चाय का आनंद नहीं ले पाया।
मैं कोई पत्रकार या रिपोर्टर नहीं हूं। मैं कहानीकार हूं। संवेदनशील व्यक्ति हूं। मैं दूसरों से प्यार करने वाला इंसान हूं, और सतही समझ बनाने की जगह मैं किसी भी व्यक्ति की सबसे अंदरूनी भावनाओं को समझने की कोशिश करता हूं। मेरा मानना है कि हर वो व्यक्ति जिसने अपने जमीर को पूरी तरह न मारा हो, वह सुधरने की शक्ति रखता है। इसलिए मैं बेचैन हो गया और कई लोगों से पूछताछ करने के बाद आखिरकार कादिर चान के घर पहुंचने में सफल हुआ। वह लाल ईंटों का बना छोटा-सा मकान था। मैंने बाहर से आवाज लगाई। कुछ मिनटों की शांति के बाद मुझे दरवाजे पर एक लड़की की आवाज सुनाई दी। “हां जी, कौन है?”
आवाज एक युवती की थी लेकिन आवाज की कंपन से मालूम पड़ता था की वक्ता के मन में डर और शंका भरी है।
“मैं ग़ुलाम कादिर साहब से मिलने आया हूं,” मैंने उस तरफ मुख करके जवाब दिया जहां से मुझे आवाज आती सुनाई दी थी।
एक पल के मौन के बाद उसने कहा, “साहब, आपका नाम क्या है?”
“मेरा नाम अख्तर मोहिउद्दीन है,” मैंने जवाब दिया और फिर आगे जोड़ा, “मैं लेखक हूं। कहानियां लिखता हूं।”
“क्या?”
“मैं लेखक हूं। कहानियां लिखता हूं,” मैंने दोहराया।
बगल वाले घर में किसी ने खिड़की खोली और मुझे ऐसे मापने लगा जैसे कसाई बकरे को मापता है। मैं सीधा खड़ा हुआ, सर पर हाथ घुमाया और जबरन खास कर गला साफ करने की कोशिश की।
वह व्यक्ति ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा। फिर उसने कहा, “कादिर भाई, उसको अंदर आने दो। यह वो बंदा है जो वो,” वह फिर हंसने लगा, “वो चीजें लिखता है।”
दरवाजा खुला, कादिर चान ने मुझे खिड़की से देखा, हंसा और इशारे से अंदर आने कहा।
कादिर चान दूसरे माले पर एक कमरे में था। मैंने ग्राउन्ड फ्लोर पर सीढ़ियों के दायें हाथ पर स्थित कमरे के अंदर चोरी-चोरी नजर डाली। उसमें मुझे चूल्हा और बर्तनों से भरी तार की टोकरी दिखी। एक औरत, जिसका चेहरा मुझे नहीं दिखा, चूल्हे के पास बैठी थी। कोने में चटाई बिछी थी जिसके ऊपर एक युवती दो लड़कियों के साठ बैठी थी। औरत लगभग पैंतीस की थी और मैंने अनुमान लगाया कि वह कादिर चान की पत्नी होगी। उसने मैला फेरन और कान में सस्ते झुमके पहन रखे थे। वह चरखे पर कुछ बुनते हुए मेरी तरफ देख रही थी। एक लड़की लगभग 14 साल की थी और दूसरी उससे छोटी। अपनी मां के पीछे छुपते हुए वे मेरी तरफ डरी हुई नन्ही लोमड़ियों की तरह देख रहे थे। कादिर चान की पत्नी भी किसी चीज से डरी हुई लग रही थी। मैं ऊपर गया और उस कमरे में घुसते हुए जिसमें कादिर चान बैठा था, मैंने उसे सलाम किया। कमरा खाली थी। कादिर चान कोने में एक चटाई पर बैठा था और उसके पैर रज़ाई से ढके थे।
कादिर चान ने भी मुझे सलाम किया और अपनी चटाई पर जगह बनाते हुए कहा, “आइये यहां बैठिए।”
हालांकि, मैं थोड़ा दूर जाकर बैठा।
कादिर चान परखने की कोशिश कर रहा था कि मेरे आने का क्या कारण हो सकता है। आखिरकार, अपनी जांच में असफल हो कर उसने कहा, “साहब, आपने मेरे पास आने की तकलीफ क्यों उठाई?”
“मैं बस आपसे मिलने की खुशी प्राप्त करने आया हूं।”
कादिर चान स्तब्ध था। उसको शक होने लगा और उसने पूछा, “साहब, सब ठीक तो है?”
“बिल्कुल,” मैंने कहा, और फिर आगे जोड़ा, “हम लेखक सनकी होते हैं। मेरे मन में आया कि मुझे आपसे मिलना चाहिए और इसलिए मैं यहां आ गया।”
“क्या बकवास है,” कादिर चान ने सोचा लेकिन मुझे कुछ नहीं कहा। एक आदमी उसके घर बिन बुलाए आ गया और अब बेतुकी बातें कर रहा था। उसने दीवार पर मुट्ठी से खटखटाया तो उसकी पत्नी ऊपर आ गई। दरवाजे के पीछे खड़े हो कर वह कुछ बोलने ही वाली थी कि मैंने अपनेपन के साथ बोला, “अरे अंदर क्यों नहीं आती?”
उसने कुछ जवाब नहीं दिया। कादिर चान भी मेरे अपनेपन को देख कर चकित था, लेकिन मैंने उसकी पत्नी से बात करना जारी रखा, “आइये, आइये, मैं भी पारिवारिक आदमी हूं, मैं आपसे निवेदन करता हूं, अंदर आ जाइए।”
वह अंदर आई और बिना मेरी तरफ देखे उसने अपने पति से पूछा, “आपको क्या चाहिए?”
“मैंने कहा,” कादिर चान ने बिना वापिस संयमित हुए जवाब दिया, “अरे मैंने कहा, कि जरा हमारे मेहमान के लिए चाय ले आओ।”
मैंने उसकी पत्नी को संबोधित करते हुए कहा, “अच्छा, लेकिन कृपया करके बाकरखानी मत लाइएगा, बस सुचवोरो ले आइये, मुझे बाकरखानी पसंद नहीं है, क्योंकि उसमें तेल होता है,” मैंने अपनेपन के साथ कहा, जिससे कादिर चान के मन से शक भगा सकूं।
“साहब हमारे यहां बड़ी स्वादिष्ट बाकरखानी मिलती है,” कादिर चान की पत्नी ने जवाब दिया। यह पहली बार उसने मुझसे बात की थी।
कादिर चान ने अब कहा, “जाओ, ले आओ। बहुत बात करती हो तुम।”
“आप लोग ऐसा करेंगे तो मैं यहां से चला जाऊंगा,” मैंने कहा, “मुझे अपने घर का ही समझिए।”
फिर कादिर चान की पत्नी को, जो कमरे से बाहर निकल रही थी, संबोधित करते हुए मैंने कहा, “बहन, बाकरखानी मत ले आना, मैं सचमुच बीमार पड़ जाऊंगा।”
कादिर चान की पत्नी बिना कुछ बोले नीचे चली गई।
“जान,” कादिर चान ने ज़ोर से आवाज लगाई तो उसकी छोटी बेटी अंदर आई।
“हुक्के में थोड़ा पानी भर लाओ,” कादिर चान ने कहा।
जैसे वह हुक्का लेने अंदर के कमरे में जा रही थी, मैंने उसका दायां हाथ पकड़ा। “बेटी इधर आओ,” मैंने कहा।
उसने शर्म से अपना चेहरा अपने बायें हाथ से छिपा लाया। “मेरी बेटी, मेरे पास आओ। नाम क्या है तुम्हारा?”
वह चुप रही लेकिन कादिर चान ने कहा, “साहब, यह मेरी सबसे चहेती बेटी है। इसका नाम जाना देद है।”
मैंने अपनी जेब से चार आने निकाले और उसके हाथ में थमा दिए।
“नहीं, नहीं, साहब, यह बहुत ज्यादा है,” कादिर चान ने कहा।
“कुछ ज्यादा-वादा नहीं है,” मैंने जवाब दिया, “क्या यह मेरी बेटी नहीं है?”
जाना ने शरमाते-शरमाते अपना हाथ खोला, मेरे से चार आने का सिक्का लिया, फिर जल्दी से अंदर के कमरे में जाकर हुक्का लेकर बाहर भाग गई।
“शैतान कहीं की,” कादिर चान ने हंसते-हंसते मुझे यह बताने के लिए कहा कि वह लाड़ में बिगड़ी बच्ची थी। फिर उसने मेरी तरफ मुड़ते हुए कहा, “इन बेटियों ने मेरा जीवन दुखी कर दिया है।”
“बच्चे बड़ी ज़िम्मेदारियां होती हैं,” मैंने जवाब दिया।
“साहब, मेरे ऊपर कुछ ज्यादा ही बोझ है,” कहते-कहते उसकी आंखें भर आईं। “मैं खुदा से दुआ करता हूं की इन्हें मेरे से दूर ले जाए।”
“ऐसे बात करना भी पाप है,” मैंने यह इस कोशिश में कहा कि उसे पाप के विचार से अवगत करा सकूं। फिर मैंने आगे जोड़ा, “हमारे पैगंबर की भी बेटी थी। बेटियों को पालना-पोसना सुन्नत है।”
“काश मैं उनके लिए कुर्बान हो जाऊं,” कादिर चान ने ऊपर देखते हुए कहा, “लेकिन उनके और मेरे जैसे गरीब पापियों के बीच कैसी तुलना।” कादिर चान ग्लानि से पूर्ण प्रतीत हो रहा था।
“नहीं साहब, वह पूरी कायनात के लिए रहमत हैं। उनकी बरकत बेटियों के माता-पिताओं के साथ है, लेकिन फिर उन्हें भी तो अच्छे कर्म करने चाहिए,” मैंने जवाब दिया।
मैं उसके कवच में आई इस कमजोरी का फायदा उठा रहा था और मेरे प्रयास कामयाब हुए। वह सीधे ही रोने लगा, “हां इंसान के पास अच्छे कर्मों का भंडार होना चाहिए लेकिन मेरे पास एक भी नहीं है।”
“अल्लाह आप पर रहम करे और आपके पापों को बख्शे। क्या आपकी बहुत सारी बेटियां हैं?”
“सिर्फ वही मुझे माफ कर सकते हैं और मेरी नीचता छुपा सकते हैं,” कादिर चान ने ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए कहा और फिर उसका गला इतना भर गया कि वह आगे कुछ बोल ही नहीं पाया।
उसकी बेटी जाना हुक्के के साथ लौटी तो उसने अपनी आंखें पोंछ कर उसके कुछ कश लिए और फिर उसे मेरी तरफ बढ़ते हुए फिर एक बार बोला, “लेकिन साहब, आप यहां क्यों आए हैं?”
“मैंने अखबार में पढ़ा कि आप पर किसी ने हमला किया है और आप घायल हो गए हैं।”
कादिर चान एकदम से सतर्क हुआ और उसने पूछा, “आपने कौन से अखबार में पढ़ा?”
“क्यों, सारे अखबारों में तो था, स्थानीय और भारतीय दोनों।”
मैंने कादिर चान की प्रतिक्रिया जानने के लिए उसके चेहरे को ध्यान से देखा। कादिर चान ने सर झुकाया, अपना माथा पोंछा और कुछ और आंसू गिराते हुए बड़बड़ाया, “सिर्फ खुदा ही जानता है कि मेरी बदनामी के किस्से कितनी दूर तक फैले हैं।”
“मामला क्या है?” मैंने बात आगे बढ़ाने के लिए कहा।
कादिर चान एक पल के लिए चुप रहा और फिर मेरी तरफ विनती भरी नज़रों से देखते हुए बोला, “क्या आपके कोई बच्चे हैं?”
“हां, मेरे तीन बच्चे हैं।”
“क्या आप अपने बच्चों की कसम खाओगे,” कादिर चान ने कहा, और वह सचमुच कांप रहा था, “क्या आप अपने बच्चों की कसम खा कर कह सकते हो कि आप मुझे किसी जाल में फंसाने नहीं आए हो।”
“मैं उनकी कसम खा कर कहता हूं कि मैं आपको किसी जाल में फंसाने नहीं आया हूं। मैं आपको सब साफ-साफ बता देता हूं। लाल चौक में जो कुछ भी हुआ, मैंने वो देखा। और फिर जो अखबार में आया, वो जो असल में हुआ था, उसके एकदम उलट था। सारे अखबारों में शब्द भी बिल्कुल हूबहू थे। मैं लेखक हूं। मैं कहानियां लिखता हूं और मैं इस सब के पीछे की सच्चाई जानना चाहता था। देखिए, आप कोई पागल भेड़िये या भालू नहीं हैं, न ही कोई जिन्न या दरिंदे हैं। आप भी मेरी ही तरह इंसान हैं। आपके दिल में भी दूसरों के लिए प्यार है। क्या मैं सही कह रहा हूं?”
कादिर चान फिर अपने खयालों में खो गया। मैंने फिर उसके जमीर को छेड़ने की कोशिश की।
“क्या मैं गलत कह रहा हूं? क्या आप मेरी ही तरह इंसान नहीं हैं?”
“साहब मैं आपको सब सच बता देता हूं,” उसने जवाब दिया। उसका चेहरा लाल पड़ गया था। “लेकिन किसी और को न बताइएगा,” उसने कहा।
“मैं किसी को नहीं बताऊंगा,” मैंने हंसते-हंसते कहा, जिससे उसकी बेचैनी थोड़ी कम कर सकूं।
“अगर आपने किसी को भी बताया, और मुझे मालूम पड़ा, तो मेरा नाम भी कादिर चान है,” उसने मुझे चेतावनी दी। “जब मेरी ज़िंदगी खतरे में होगी तो मैं आपके बारे में क्या ही सोचूंगा। अगर मेरी नैया डूबी तो मैं आपकी भी साथ में डुबोऊंगा।”
“मैंने आपसे वादा किया है कि मैं किसी को नहीं बताऊंगा,” मैंने हंसते हुए कहा। इस दौरान उसकी पत्नी चाय के साथ आ गई। ट्रे में प्याले, बाकरखानी और सुचवोरो थे। उसने एक प्याले में चाय डाली और मुझे प्याला पकड़ाया। फिर उसने मेरी तरफ बाकरखानी बढ़ाई। मैंने वो नहीं ली, बल्कि ट्रे से एक सुचवोरो उठा लिया। कादिर चान ने भी एक चाय का प्याला लिया और फिर अपनी पत्नी से कहा, “हम लोग कुछ बात कर रहे हैं। तुम नीचे जा सकती हो।”
उसने अपने पति को देख कर नज़रों में ही कहा कि मेरे प्याले में और चाय डालने की जरूरत है। “चिंता मत करो, हम लोग खुद चाय ले लेंगे,” कादिर चान ने कहा। फिर उसकी पत्नी वहां से चली गई।
कादिर चान मेरी तरफ मुड़ा, “अल्लाह कसम, मैं सब सच कह रहा हूं। अगर मेरी बातों में एक तिनका भी झूठ निकले तो मैं अभी कि अभी मर जाऊं।”
मुझे समझ आया कि यह कादिर चान नहीं, बल्कि उसकी रूह बोल रही है। मैं चाय पीते रहा, क्योंकि मेरा उद्देश्य पूरा हो रहा था।
“साहब यह 9 अगस्त को हुआ।[1] आपको याद होगा उस वक्त महंगाई एकदम से कितनी बढ़ गई थी। अमीर लोग भी परेशान थे, गरीबों की दुर्दशा की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती।[2] मेरी अम्मी ने (जो अब जन्नत में हैं) चार साल से स्ट्रोक से लकवाग्रस्त होने के कारण बिस्तर जकड़ा हुआ था। मेरी छोटी-छोटी बेटियां थीं। मैं सरकारी परचून की दुकान पर सुबह से शाम तक कमर तोड़ मजदूरी करके भी कौड़ियां ही इकट्ठी कर पाता था। फिर मेरी अम्मी का इंतकाल हो गया। हाय! क्या अम्मी थी वो! मैं उनसे बहुत प्यार करता था। राम चन्द्र काक[3] के शासन काल में मुझे छोटे-मोटे अपराधों के लिए चार बार जेल हुई थी, लेकिन उनसे मुझे खास फर्क नहीं पड़ा क्योंकि अम्मी मेरे परिवार की देखभाल कर रही थी। उनकी मौत ने मुझे बेहद हताश कर दिया। मैं उनके कफन के लिए कुछ गज कपड़ा भी नहीं खरीद पाया। मैंने अपने आप से कहा, ‘अल्लाह कसम, कश्मीरियों का बहुत ही बुरा वक्त चल रहा है।’ मैंने उन्हें किसी तरह दफनया, लेकिन साहब, मैं आगबबूला हो रहा था। क्या हमने आजादी की लड़ाई ये दिन देखने के लिए लड़ी थी? फिर शेख अब्दुल्लाह गिरफ्तार हो गए (वह जहां पर भी हैं, खुदा उन पर रहम करे)। मैं बेहद हताश था। अल्लाह मुझे माफ करे, मैं खुश हुआ था क्योंकि हमारे साथ जो कुछ भी हो रहा था, उसके लिए मैं उन्हें जिम्मेदार ठहरा रहा था।”
कादिर चान मुझे अपनी कहानी सुना रहा था। वह कभी अपने पापों के लिए माफी मांगता ऊपर की ओर देखता, और कभी शर्मसार होकर नीचे देख कर हंसता। मैंने एक भी शब्द नहीं बोला। मैं ध्यान से सुन रहा था और साथ-ही-साथ उसके चेहरे पर झलकती भावनाओं को सावधानीपूर्वक देख रहा था। उसने अपनी कहानी जारी रखी।
“सुनने में आया कि वह इसलिए गिरफ्तार किए गए थे क्योंकि उन्होंने किसी देश के साथ षड्यन्त्र रचने की कोशिश की थी और उसी कारण से हम लोगों को कश्मीर में अकाल का सामना करना पड़ रहा था। मैं उनसे बहुत गुस्सा था। उस समय बहुत से लोग सड़कों पर उतरकर उनकी रिहाई की मांग कर रहे थे। वे ‘शेर-ए-कश्मीर जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे थे। मैं उनकी बेवकूफी पर और गुस्सा हुआ। एक डंडा लेकर मैं उनसे लड़ने पहुंचा। मेरे घर के आस-पास जमा हुई ज्यादातर भीड़ वहां से निकल गई लेकिन एक आदमी मेरी पकड़ में आ गया और मैंने उसे बेरहमी से पीटा। मैंने शेख पर अपना सारा गुस्सा उसको पीटने में निकाल दिया। हुआ ऐसा कि उसको किसी ऐसी जगह चोट लग गई कि वह वहीं मर गया। काश अल्लाह उसको जन्नत में जगह दे और वह मुझे माफ कर सके।”
कादिर चान रुका और उसने कहा, “साहब, ध्यान रखिएगा, किसी को नहीं बताइएगा।” फिर बिना मेरे जवाब का इंतज़ार किए वह आगे बढ़ा, “वह पता नहीं क्या पाक व्यक्ति था। मुझे यहां यज़ीद या कुह-ए-काफ[4] पर किसी प्यासे कुत्ते की तरह इधर-उधर भागता छोड़ कर अल्लाह जाने वह किस जन्नत में ऐश कर रहा होगा।”
“फिर आगे क्या हुआ?” मैंने पूछा।
“क्या होना था, लोग आए और उसके शव को ले गए। उस दिन एक हजार पांच सौ लोग पुलिस की गोलियों से मारे गए थे लेकिन मैं एक कत्ल के कारण ही डरा हुआ था। पुलिस की तरह मैं कत्ल करने के इरादे से नहीं गया था। यह सब क्रोध के आवेश में किया गया था, जब मुझ पर शैतान का साया था। यह होनी में लिखा था। जैसा भी हो, मैं डरा हुआ था। मेरे दिमाग में एक ही सवाल था, अगर मुझे जेल हो गई तो मेरे छोटे बच्चों का क्या होगा? मुझे अपनी चिंता नहीं थी, अपनी बेटियों की थी। उस दिन मैं घर नहीं गया, बल्कि इधर-उधर भटकता रहा। जब शाम तक कोई मुझे खोजता नहीं आया तो मैं वापस घर चला गया। घर में कुछ खाने को नहीं था। मेरी बेटियां भूख से रो रहीं थीं और उन्हें देख मेरी पत्नी अपने बाल नोच रही थी। हम देर रात तक ऐसे ही बैठे रहे, जब हमें घर के बाहर कुछ कदमों की आवाज आई। उस वक्त चूहे की आवाज से भी हम लोग डर जाते।
आखिरकार, मेरी पत्नी ने बिस्तर लगाया और मेरी बेटियां सो गईं। हम दोनों वैसे ही बैठे रहे। 12 बजे के आस-पास दरवाजे पर हल्के से खटखटाने की आवाज आई। हमने बत्तियां बुझा कर सोने का ढोंग किया। मुझे लगा वे लोग मुझे गिरफ्तार करने आए हैं। दरवाजे पर थोड़ी देर तक खटखटाहट बरकरार रही और फिर किसी ने मेरा नाम पुकारा, ‘कादिर’। ‘ओए कादिरा’। साहब मैंने आवाज़ पहचान ली। वह अम्मा खोसुल की आवाज थी। मेरी पत्नी नहीं चाहती थी कि मैं उसके लिए दरवाजा खोलूं लेकिन मैंने नीचे जाकर दरवाजा खोल दिया। अम्मा खोसुल के साथ एक और व्यक्ति था, रहमान नाम का। शायद आप उसे जानते हों।”
“वही जो अब विधायक है,” मैंने उससे पूछा।
“हां वही।
उन्होंने मुझसे कहा, ‘शाल ओढ़ो और हमारे साथ आओ।’
कहां, मैंने पूछा।
‘रशीद साहब[5] तुमसे मिलन चाहते हैं,’ अम्मा ने जवाब दिया।
‘डरो मत, तुम्हें हमारे संग सफाकदल तक आना है,’ रहमान ने जोड़ा।
मैं बेबस था। मुझे लगा शायद इससे मैं बच जाऊंगा। मैंने शाल ओढ़ी और उनके साथ चल दिया। रात के 12 बजे थे। सेना के सिवा सड़कों पर कोई नहीं था। फौजी हमें रोकते लेकिन फिर बक्शी साहब का नाम सुन के हमें जाने देते। आखिरकार, हम रशीद साहब के घर पहुंचे। अल्लाह और पैगंबर की कसम, मैं पहले कभी वहां नहीं गया था। मैं वहां क्या करने जाता? जैसा भी हो, मैं अंदर घुसा और वहां पर पहले से कुछ आधे दर्जन लोग बैठे थे। अम्मा सोफी, कादिर नाता और कुछ और लोग। जैसे ही मैं अंदर घुसा, रशीद बक्शी ने मेरी ओर गुस्से से देखा और ज़ोर से कहा, ‘अच्छा तो तू है खूनी।‘ ‘साहब, साहब, मैं . . . बात यह है . . .’ ‘चुप हो जा,’ वह चिल्लाए, ‘बकवास! हम कल सुबह ही तुझे जल्लाद को सौंप देंगे। लिखित बयान दे। इसका पूरा बयान लिखो कोई।” कोई पेन और पेपर लाकर लिखने लगा। मैंने सब कुछ सच-सच बताने का फैसला किया। मैंने उनको सब बिल्कुल वैसे ही बताया जैसे कि हुआ था। फिर मैंने लिखित बयान पर अपना अंगूठा लगा दिया।
‘सुबह इसको पुलिस के हवाले कर देना,’ रशीद साहब कहकर बाहर निकल गए।
मैं रोने लगा और अपनी करतूत के लिए खुद को कोसने लगा। मैं पनाह के लिए कहां जा सकता था। आखिरकार, अम्मा सोफी ने कहा, ‘चिंता मत करो। तुम्हें कोई जेल नहीं ले जाएगा। जो लोग तुम्हें जेल ले जाएंगे, उन्हें पहले हमें जेल ले जाना पड़ेगा। जिन एक हजार पांच सौ लोगों को पुलिस ने आज मारा, उन में तुमने बस एक और जोड़ दिया, तुमको चिंता करने की क्या जरूरत है?’
मैं यही सुनना चाहता हूं, मैंने मन ही मन कहा।
अम्मा खोसुल मेरी तरफ मुड़ा, ‘तुम न जाने ऐसे कितने लोगों को मारोगे। बिना बात के चिंता क्यों करते हो? अल्लाह कसम हमें तुम्हारे जैसे और मुजाहिदों की जरूरत है। तुम्हारी करतूत के बारे में सुनकर रशीद साहब बहुत खुश हुए थे। उन्होंने हमें बताया कि वे तुमसे गुस्सा होने का केवल ढोंग कर रहे थे।’
रशीद साहब कमरे में वापस आए और उन्होंने मुझसे कहा, ‘जा मज़े कर, लेकिन अब तू हमारे लिए काम करेगा। हर सुबह तू यहां आएगा और हम तेरे को तेरा दिन का काम बता देंगे। अगर तूने मना किया तो अगले दिन से तू जेल में सड़ेगा।’
साहब, मैंने उनसे कहा, मैं दिन भर दुकान पर मजदूरी करता हूं, मुझे यहां आने का वक्त कैसे मिलेगा?
‘भाड़ में जाए तेरी दुकान,’ रशीद साहब ने गुस्से में कहा, ‘और तू भी।’
‘सुबह जल्दी आ जाना वरना पुलिस घसीटते हुए लेकर आएगी।’
हां साहब, मैंने कहा, और वहां से निकल गया।
उस दिन से मैंने दुकान पर काम छोड़ दिया और रशीद साहब के यहां काम करने लगा। वह मुझे महीने के पचास रुपए देते हैं। मुझे वहां हर सुबह हाज़िरी लगाने जाना होता है।”
“आप काम क्या करते हैं?” मैंने कादिर चान से पूछा।
“वही जो आपने मुझे कल करते देखा।”
“मुझे जिसको भी वे चाहें उसे जा कर पीटना होता है।[6] पहले वह मुझे दारू पिलाते हैं। उसके बाद केन्द्रीय रिजर्व पुलिस के साथ मुझे वहां ले जाया जाता है। मैं जल्लाद से भी बुरा हूं। मैं हमेशा दुआ करता हूं कि कोई मुझे कुत्ते की मौत मारेगा, लेकिन वे लोग कभी ऐसा नहीं होने देते। जैसे ही लोग मुझे मारने आगे आते हैं, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस वाले उन पर डंडों से हमला कर देते हैं और मुझे बचा लेते हैं। मैं आपको कैसे बताऊं कि मुझ पर क्या गुजरती है और मैं अपनी ही नज़रों में कितना गिरा हुआ महसूस करता हूं।”
“आप उनके आदेशों का पालन क्यों करते हैं? उन्हें मना क्यों नहीं कर देते?” मैंने पूछा।
“साहब, वे मुझे जेल भेज देंगे। वे मर्डर का मामला वापस शुरू कर देंगे।” उसने जवाब दिया।
“क्या जेल नहीं जाना इससे बेहतर नहीं है?” मैंने पूछा।
“नहीं साहब, ऐसा कैसे हो सकता है?” उसने जवाब दिया। “अगर मैं मर जाऊंगा, तो अच्छा ही होगा क्योंकि कोई मेरे परिवार पर तरस खा कर उनकी देखभाल कर लेगा। लेकिन अगर मैं जेल गया तो जिन लोगों को मैंने नुकसान पहुंचाया है, वे खुश होंगे और कहेंगे कि इस नीच के साथ वह आखिरकार हो गया जिसके यह लायक था। कोई मेरे परिवार की देखभाल नहीं करेगा और मेरी बेटियां सड़कों पर भीख मांगती फिरेंगी। मेरी एक बेटी की अब शादी की उम्र हो गई है,” यह कहते-कहते वह ज़ोर-ज़ोर से “ज़ेबा, ज़ेबा” पुकारने लगा, और किसी ने नीचे से जवाब दिया, “हां”।
यह वही युवती थी जिसने मुझसे दरवाजे पर आवाज में डर और कंपन के साथ मेरा नाम पूछा था।
“बेटी, यहां आओ,” कादिर चान ने कहा और एक अठारह साल की लड़की अपने फेरन की ढीली आस्तीन से शर्म में अपना चेहरा छिपाते दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई। “साहब, देखिए, मैं अपने सामने जहन्नुम की आग जलते देख सकता हूं।” फिर वह अपनी बेटी से मुखातिब होता हुआ बोला, “आपने मेहमान को सलाम नहीं बोला, क्या यह सही है?”
“जाओ बेटी जाओ,” उसकी बेबसी देख कर मेरी आंखों में आंसू भर आए। “अल्लाह तुम्हारी रक्षा करे,” मैंने उससे कहा।
“मेरी बेटी को सब चीजों का सामना करना पड़ेगा। लोग इसको ताने मारेंगे। मैं इससे ज्यादा क्या कह सकता हूं।”
मैं स्तब्ध था। उठ कर मैं वहां से जाने लगा।
“साहब, जो मैंने आपको बताया वो किसी को पता नहीं चलना चाहिए,” कादिर चान ने मुझे चेतावनी दी। “तब मैं आपका कुछ लिहाज नहीं करूंगा। जब मेरा घर जल रहा होगा, तो मैं किसी और की संपत्ति की क्या ही परवाह कर सकता हूं?”
मैंने अपने जूते पहने और वहां से निकल गया। मैंने सोचने की कोशिश की लेकिन मेरा दिमाग काम ही नहीं कर रहा था। मैं चिल्लाना चाहता था, “ए मेरे लोगों, आजादी के लिए अपनी लड़ाई तेज़ करो। तेज़ करो जिससे कादिर चान आज़ाद हो सके। आग उगलो और लोहे की नसों के साथ कादिर चान को उसकी ग़ुलामी से आज़ाद करो।”
लेकिन मैं किसी को कुछ नहीं बता सकता। उसका यह राज़ किसी को पता नहीं लग सकता। मैं बेबस हूं। पूरी तरह से बेबस!
[1] कश्मीर के प्रधान मंत्री शेख अब्दुल्लाह को 9 अगस्त 1953 को गिरफ्तार किया गया था।
[2] भारत की सरकार ने शेख अब्दुल्लाह को गिरफ्तार करने से पहले आवश्यक वस्तुएं की आपूर्ति रोक दी थी, जिससे राज्य में कमी की स्थिति पैदा करके अब्दुल्लाह को बदनाम कर सके।
[3] कश्मीर के महाराजा का प्रधान मंत्री।
[4] एक काल्पनिक पहाड़ जहां पर पारियां रहती हैं।
[5] रशीद बक्शी कठपुतली सरकार का बाहुबली था।
[6] जिस कठपुतली सरकार को भारत की सरकार ने शेख अब्दुल्लाह की गिरफ़्तारी के बाद शासन थमाया था, वे तरह-तरह के तरीकों से जनता को आतंकित करती थी। मुखबिरों का एक नेटवर्क स्थापित किया गया था और जिस भी व्यक्ति पर सरकार के खिलाफ होने का शक होता था, उसे गिरफ्तार करके दुश्मन एजेंट करार कर दिया जाता था और बुरी तरह से टॉर्चर किया जाता था। कैदियों के मुंह में गरम आलू घुसेड़ने और उन पर ऐसे गरम प्रेस चलाने जैसे वह कपड़े इस्त्री कर रहा हो, ग़ुलाम कादिर गांदरबली नाम का पुलिस अफसर कुख्यात था (शेख अब्दुल्लाह की आतिश ए चिनार देखें)। शेख अब्दुल्लाह के समर्थकों को दिन दहाड़े बेइज्जत करने और पीटने के लिए गुंडे भाड़े पर रखे जाते थे। यह सब भारतीय सरकार की देख रेख में होता था, जिसका प्रधान मंत्री उस वक्त अपने राजनीतिक सिद्धांतों के लिए प्रसिद्ध नेहरू था। हो सकता है सरकार में कुछ छुपे हुए लोग थे जो इतने शक्तिशाली थे कि नेहरू भी उनके सामने बेबस था, और हो सकता है कि हमें कभी उनके बारे में पता भी न चला हो।