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लेख

पैदा होने की असुविधा - अध्याय 1

पैदा होने की असुविधा - अध्याय 1

एमिल सिओरन की पुस्तक 'The Trouble with Being Born' एक गहन दार्शनिक रचना है जिसमें उन्होंने अस्तित्व और जन्म की विडंबनाओं पर विचार किया है। इस पुस्तक में सिओरन ने जीवन की अनिवार्यता और उसके साथ जुड़ी व्यर्थता का विश्लेषण किया है। उनके अनुसार, जन्म लेना एक प्रकार की त्रासदी है, और वे इस बात को विभिन्न आत्म-मननशील और निराशावादी टिप्पणियों के माध्यम से प्रकट करते हैं। इस पुस्तक में दर्शाए गए विचार जीवन के प्रति एक गहरी संवेदनशीलता और अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जिससे यह दर्शन के छात्रों और विचारशील पाठकों के लिए एक महत्वपूर्ण पठन बन जाता है। यह उस पुस्तक का पहला अध्याय है।

एमिल सिओरन
दलितों का असली प्रतिनिधि बनने की लड़ाई में गांधी ने अम्बेडकर को खलनायक कैसे बनाया

दलितों का असली प्रतिनिधि बनने की लड़ाई में गांधी ने अम्बेडकर को खलनायक कैसे बनाया

जब गांधी से अपनी बात नहीं मनवाई गई, तो उन्होंने जेल से अनशन शुरू कर दिया। यह उनके अपने सत्याग्रह के सिद्धांतों के बिल्कुल खिलाफ था – यह तो सीधा ब्लैकमेल था।

अरुंधती रॉय
आतंकवाद: उनका और हमारा

आतंकवाद: उनका और हमारा

एकबाल अहमद आतंकवाद के विषय पर बात करके बताते हैं कि आतंकवाद को किन तरीकों से रोका जा सकता है: दोहरे मापदंडों के अतिरेक से बचें। अगर आप दोहरे मापदंड अपनाते हैं, तो आपको भी दोहरे मापदंडों से ही जवाब मिलेगा। इसका इस्तेमाल मत करें। अपने सहयोगियों के आतंकवाद का समर्थन न करें। उनकी निंदा करें। उनसे लड़ें। उन्हें सज़ा दें। कारणों पर ध्यान दें और उन्हें सुधारने की कोशिश करें। समस्याओं के मूल कारणों को समझें और हल निकालें। सैन्य समाधान से बचें। आतंकवाद एक राजनीतिक समस्या है, और इसका समाधान राजनीतिक होना चाहिए। राजनीतिक समाधान खोजें। सैन्य समाधान समस्याएं बढ़ाते हैं, सुलझाते नहीं। कृपया अंतरराष्ट्रीय क़ानून के ढांचे को मज़बूत करें और उसे सुदृढ़ बनाएं।

एकबाल अहमद
एको और नार्सिसस

एको और नार्सिसस

प्राचीन लोग ये कहानियां समय बिताने के लिए या बच्चों को सबक सिखाने के लिए या आपको यह बताने के लिए नहीं सुनाते थे कि शब्द “एको” कहां से आया। क्या आपको लगता है कि हमने उनके पॉप कल्चर को लेकर उसे अपने साहित्य में बदल दिया? ये कहानियां केस स्टडी की तरह थीं, ध्यान करने के लिए: आप इनमें क्या देखते हैं?

द लास्ट सिकाइअट्रिस्ट
जल पहुंच को आकार देने में जाति की भूमिका भारतीय पर्यावरणीय चर्चा से गायब है

जल पहुंच को आकार देने में जाति की भूमिका भारतीय पर्यावरणीय चर्चा से गायब है

भले ही पर्यावरणविद् और शोधकर्ता ऐसी मीठी-मीठी बातें करते हों कि पानी की पहुंच एक मौलिक मानव अधिकार है, लेकिन वे इस तथ्य को पूरी तरह से नज़रंदाज़ करते हैं कि जाति इस मौलिक अधिकार की वास्तविक प्राप्ति में सबसे महत्वपूर्ण बाधा है।

अभिजीत वाघरे
जातिवाद और प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण

जातिवाद और प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण

प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण की बात आने पर भारत में बवाल उठ जाता है। तर्क छोड़ कर लोग तरह-तरह की भावनात्मक बातें करने लगते हैं। मेरिट या योग्यता को पिटारे से निकाल कर हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाने लगता है। जबकि आरक्षण के विरोधियों के पास डाटा-आधारित सामाजिक या आर्थिक दलीलें नहीं हैं, वे फिर भी ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर अपनी बात मनवाने पर अटल हैं। अगर वाद-विवाद से बाहर निकलकर आरक्षण के बारे में कुछ जानना चाहते हैं, तो इस लेख को पढ़ के जानिए की प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण क्यों जरूरी है। अगर आप कुछ सीख कर इस पहल के समर्थक बनना चाहते हैं तो राहुल सोनपिम्पले द्वारा संस्थापित All India Independent Scheduled Castes Association (AIISCA) से जुड़िये और उनकी जो मदद कर सकें वो करिए। https://aiisca.org

मीरा नंदा
बेनकाब हुआ अल्जीरिया

बेनकाब हुआ अल्जीरिया

बुरके और हिजाब को लेकर आज कल हिंदुस्तान में काफी बवाल चल रहे हैं। यह सब नया नहीं है। औरतों के ऊपर काबू पाने और रखने की राजनीति बहुत पुरानी है। यहां के हिंदुओं के प्रहार के सामने मुसलमान औरतें क्यों नकाब पहनती हैं या उतारती हैं, वह समझने में हमें यह लेख मदद कर सकता है। इस लेख में फ़्रांस के प्रहार के आगे अल्जीरिया की औरतों के बर्ताव को समझाया गया है। नकाब पहनना या उतारना औरतों के लिए इतना जरूरी नहीं है जितना कि वह न करना है जो कि उनके दुश्मन उनसे करवाना चाहते हैं। उसके अलावा, नकाब पहनना या उतरना एक भावुक विकल्प नहीं, बल्कि एक रणनीतिक विकल्प है।

फ्रांत्ज़ फ़ैनोन
हेनरी किसिंजर: नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित एक ‘युद्ध अपराधी’ की कहानी

हेनरी किसिंजर: नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित एक ‘युद्ध अपराधी’ की कहानी

पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने अपने पीछे खूनी नीतियों की एक ऐसी विरासत छोड़ी, जिसे अभी भी अमेरिकी अधिकारी अपना रहे हैं।

अहमद तवैज
गाजा पर इज़राइली हमला: यह नरसंहार है

गाजा पर इज़राइली हमला: यह नरसंहार है

आप और मैं गाजा में जो प्रलय देख रहे हैं, वह भयानक नरसंहार है। इस समय हममें से प्रत्येक को एक विकल्प चुनने की आवश्यकता है। क्या हम तबाही की जगह उपाय चुनेंगे? क्या हम आतंक की जगह मानवता चुनेंगे? क्या हम नरसंहार की जगह युद्धविराम चुनेंगे? क्या हम करियर के बजाय विवेक चुनेंगे?

एंड्रयू मिटरोविका