क्रांतिकारियों के जीतने के कुछ संकेत (भाग 1)
क्रांतिकारी युद्ध के बारे में आम लोगों को ही नहीं बल्कि राजनेताओं को भी कई गलतफहमियां होती हैं, उन्हीं गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश करते हुए एकबाल अहमद ने यह लेख लिखा था। अपने इस लेख में वह समझाते हैं कि आखिर क्रांतिकारी युद्ध होता क्या है, वह किन कारणों से लड़ा जाता है और उसकी जीत कैसे होती है। क्रांतिकारी युद्ध का मकसद जनता का औपनिवेशिक सरकार से नैतिक अलगाव कराना होता है। जब यह नैतिक अलगाव इस हद तक हो जाए कि औपनिवेशिक सरकार जनता से डरने लगे और उसका भारी सैन्य बल के बिना एक दिन भी टिकना नामुमकिन हो जाए, तब हम कह सकते हैं कि क्रांतिकारियों की सम्पूर्ण जीत हो गई। इस तरह के युद्ध में क्रांतिकारियों को युद्ध के मैदान नहीं, जनता के दिल जीतने होते हैं। अहमद अमरीकी सरकार और वहां के लोगों को बताते हैं कि कैसे वियतनाम में अमरीका हार चुका है और यह उन्हीं कारणों से हुआ, जिन कारणों से अल्जीरिया में फ़्रांस हारा था। वहां की जनता किसी भी हाल में अमरीका या अमरीकी समर्थक किसी भी सरकार को स्वीकार नहीं करेगी। ऐसा ही आज कश्मीर के बारे में कहा जा सकता है। कश्मीर के क्रांतिकारी आम कश्मीरियों के दिल जीत चुके हैं। कश्मीर की जनता किसी भी हाल में हिंदुस्तान की औपनिवेशिक सरकार को या हिंदुस्तान से समर्थन पाने वाले किसी भी कश्मीरी को स्वीकार नहीं करती। कश्मीरी अब हिंदुस्तान के खिलाफ आखिरी दम तक लड़ने को तैयार हैं। अब या तो हिंदुस्तान को कश्मीर की जनता का पूरी तरह सफाया करना पड़ेगा (यानी जेनसाइड) या फिर कश्मीरी हिंदुस्तान को अपनी ज़मीन से उखाड़ फेकेंगे। यही हाल ब्रह्मपुत्र बेसिन में भी है, जहां की जनता का हिंदुस्तान से पूरी तरह नैतिक अलगाव हो चुका है। झारखंड, छत्तीसगढ़ एवं ओड़िशा के जंगलों में रहने वाले आदिवासियों का भी यही हाल है। अब बात उक्त क्षेत्रों के स्थानीय निवासियों के मत को समझने की है। अगर भारत सरकार कश्मीरियों, बेसिन क्षेत्र के लोगों या फिर झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के मत को स्वीकार नहीं करती तो उसे भी वियतनाम और अफगानिस्तान में हारे अमरीका की तरह हार का स्वाद चखना होगा।
July 02, 2022