कश्मीर में 2008 में हुए अमरनाथ भूमि आंदोलन के बाद सात बार सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिए जा चुके मसारत आलम भट्ट को इसी साल जून में जेल से रिहा किया गया। तेज़-तर्रार अंग्रेजी बोलने वाले साइंस ग्रेजुएट भट्ट अब भारत के खिलाफ कश्मीर छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसने केन्द्रीय और राज्य सरकारों की नींद हराम कर रखी है। वर्तमान में अन्डरग्राउन्ड हुए मुस्लिम लीग के लीडर ने इस आंदोलन की शुरुआत साप्ताहिक ‘विरोध कैलेंडर’ जारी करने के साथ की थी। 11 जून 2010 को सुरक्षा बलों द्वारा एक किशोर की हत्या के बाद शुरू हुए हाल ही के विरोध प्रदर्शनों में उन्होंने घाटी में व्यापक हड़ताल का आह्वान किया था। इस विशेष इंटरव्यू में दिलनाज़ बोगा कश्मीर के मोस्ट वांटेड आदमी के साथ कुछ नई-पुरानी बातें करती हैं।
मसारत आलम भट्टजब शिकारी अपना जाल बिछाता है तो उसमें भालू और हिरण, सियार और खरगोश, सभी फंस जाते हैं। तब फिर जब भालू हिरण की गर्दन मरोड़ता है और सियार खरगोश को दबोचता है, तो हम भालू को कोसते हैं और सियार को फटकारते हैं, लेकिन भूल जाते हैं उस जाल को जिसके कारण यह सब कुछ हुआ।
आरिफ़ अयाज़ परेमेरे दोस्तों, हमारी कल्पना उनकी सेना से ज्यादा ताकतवर है। वे बारंबार गलत साबित हुए हैं। हमें आज़ादी की भावना को ज़िंदा रखना होगा। हमारे सामने केवल वही एक विकल्प है, क्योंकि हमें किसी और तरह से जीना नहीं आता।
मोहम्मद जुनैदहर शासक की तरह औरंगज़ेब न तो कोई नैतिक आदर्श थे, न ही महज़ एक खलनायक। एक राजा की तरह उन्होंने भी अपनी प्रजा के प्रति ज़िम्मेदारी को आत्मसात किया था। लेकिन इन सब तथ्यों से इतर, यह भी सच है कि औरंगज़ेब की मृत्यु को तीन सौ साल से ज़्यादा हो चुके हैं। आज उनके ख़िलाफ़ चलाया जा रहा यह अत्यधिक दुश्मनी से भरा अभियान एक अजीब विडंबना को जन्म देता है—वह यह कि यह अभियान खुद उसी विकृत छवि को दोहराता है, जो सत्ता में बैठे लोग औरंगज़ेब को लेकर गढ़ते आए हैं। देश की असली समस्याओं को सुलझाने और देश की सामूहिक ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ने के बजाय, हमारे नेतृत्व का ध्यान इस समय औरंगज़ेब की क़ब्र पर बहस करने और मस्जिदों के नीचे मंदिर खोजने में लगा हुआ है।
आनंद तेलतुंबडेजिस देश ने अति-भारी सैन्य बल के ज़रिये कश्मीर पर अवैध क़ब्ज़ा जमा रखा है, वही देश कश्मीर में आज़ाद चुनाव आयोजित करवाने के बड़े-बड़े दावे करता दिखता है। इस विडंबना के कारण कई अजीबोगरीब घटनाएं होती हैं। एक ऐसी वारदात का ज़िक्र अख़्तर मोहिउद्दीन इस अनोखी कहानी में करते हैं।
अख्तर मोहिउद्दीनएकबाल अहमद आतंकवाद के विषय पर बात करके बताते हैं कि आतंकवाद को किन तरीकों से रोका जा सकता है: दोहरे मापदंडों के अतिरेक से बचें। अगर आप दोहरे मापदंड अपनाते हैं, तो आपको भी दोहरे मापदंडों से ही जवाब मिलेगा। इसका इस्तेमाल मत करें। अपने सहयोगियों के आतंकवाद का समर्थन न करें। उनकी निंदा करें। उनसे लड़ें। उन्हें सज़ा दें। कारणों पर ध्यान दें और उन्हें सुधारने की कोशिश करें। समस्याओं के मूल कारणों को समझें और हल निकालें। सैन्य समाधान से बचें। आतंकवाद एक राजनीतिक समस्या है, और इसका समाधान राजनीतिक होना चाहिए। राजनीतिक समाधान खोजें। सैन्य समाधान समस्याएं बढ़ाते हैं, सुलझाते नहीं। कृपया अंतरराष्ट्रीय क़ानून के ढांचे को मज़बूत करें और उसे सुदृढ़ बनाएं।
एकबाल अहमदकुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जो अच्छे-भले इंसानों को हैवान बनने पर मजबूर कर देती हैं। कश्मीर के अंदर भारतीय राज्य की भूमिका कुछ ऐसी ही परिस्थितियों को बनाने और बनाए रखने की रही है। कश्मीर पर अपना अवैध राज कायम रखने के लिए भारतीय राज्य एक कश्मीरी को दूसरे कश्मीरी से लड़ने पर मजबूर करता है। जबकि कश्मीरी मजबूरी में बुरे काम कर रहे हैं और इसलिए अपनी इंसानियत कहीं न कहीं बचा पा रहे हैं, भारतीय राज्य अपनी इंसानियत अपनी स्वेच्छा से पूरी तरह से खो चुका है।
अख्तर मोहिउद्दीन"अपने लिये जिये तो क्या जिये . . ." इंसान चाहे कहीं भी हों और किसी भी परिस्थिति में हों, वे किसी और के लिए और किसी और के माध्यम से जितने अच्छे से जी सकते हैं, उतने अच्छे से कभी खुद के लिए नहीं जी सकते। आज हम जिनको मानसिक रोग कहते हैं, उन में से अधिकतर इसी बात को न समझ पाने के संकेत हैं। हम क्योंकि ऐसा समझते हैं कि हमें किसी और के लिए नही सिर्फ अपने लिए जीना है, इसलिए हम अपने आप के लिए भी नहीं जी पाते। किसी ने सही ही कहा है, खुद का रास्ता दूसरे से होकर आता है। कुछ इसी तरह की बात इस कहानी में भी बताई गई है। जब हम किसी दुख से निपट नहीं पाते, तो हमें दिमाग को सुन्न करने वाली दवाइयों की नहीं, जीने के कारण की जरूरत होती है, क्योंकि जैसा कि किसी दार्शनिक ने कहा है, अगर इंसान के पास जीने की वजह है, तो वह किन्हीं भी परिस्थितियों को झेल सकता है। और किसी और के लिए जीने से अच्छी जीने की वजह क्या हो सकती है।
आरिफ़ अयाज़ परेआत्म-निर्णय का अधिकार पाने के लिए कश्मीर में किए जा रहे आंदोलन की बुनियाद को सुदृढ़ करने वाली मुख्य राजनीतिक घटनाओं का वृतांत। यह पहला भाग है जिस में हम भारत के कब्ज़े के पहले का इतिहास बता रहे हैं। दूसरे भाग में भारत के कब्ज़े के बाद का इतिहास बताया जाएगा।
मोहम्मद जुनैद