रामबाण

"अपने लिये जिये तो क्या जिये . . ." इंसान चाहे कहीं भी हों और किसी भी परिस्थिति में हों, वे किसी और के लिए और किसी और के माध्यम से जितने अच्छे से जी सकते हैं, उतने अच्छे से कभी खुद के लिए नहीं जी सकते। आज हम जिनको मानसिक रोग कहते हैं, उन में से अधिकतर इसी बात को न समझ पाने के संकेत हैं। हम क्योंकि ऐसा समझते हैं कि हमें किसी और के लिए नही सिर्फ अपने लिए जीना है, इसलिए हम अपने आप के लिए भी नहीं जी पाते। किसी ने सही ही कहा है, खुद का रास्ता दूसरे से होकर आता है। कुछ इसी तरह की बात इस कहानी में भी बताई गई है। जब हम किसी दुख से निपट नहीं पाते, तो हमें दिमाग को सुन्न करने वाली दवाइयों की नहीं, जीने के कारण की जरूरत होती है, क्योंकि जैसा कि किसी दार्शनिक ने कहा है, अगर इंसान के पास जीने की वजह है, तो वह किन्हीं भी परिस्थितियों को झेल सकता है। और किसी और के लिए जीने से अच्छी जीने की वजह क्या हो सकती है।

रामबाण

 

अनुवादक: अक्षत जैन और अंशुल राय 
स्त्रोत: Pulse Media

हर रात जब वह हल्का नीला तरल पदार्थ पानी के गिलास में डालती है तो निसार को शर्मिंदगी या अपमान से ज़्यादा गौरव का एहसास होता है। वह तरल पदार्थ शामक दवा है। पानी का गिलास उसके शौहर के लिए है। यह करके उसको भरोसा मिलता है कि उनके बेटे के खोने से वह अपने पति के मुकाबले बेहतर तरीके से निपट रही है।

उनके इकलौते बेटे की राष्ट्रीय राइफल्स के साथ ‘एनकाउंटर’ में हुई मौत को नौ साल बीत चुके हैं। वह शर्मीला युवा हुआ करता था; वैसा नहीं जिसको आप सशस्त्र क्रांति के साथ आसानी से जोड़ सकें। उसने ‘ट्रेनिंग’ के लिए ‘पार’ सिर्फ इसलिए लगाई थी क्योंकि उसके सभी साथियों ने ऐसा किया था, और वह अकेला पीछे नहीं छूटना चाहता था। अगर उसके पास और भी कोई कारण थे तो वे उसके साथ ही दफन हो गए थे, और एक दिन ज़रूर वे दोबारा जिंदा किए जाएंगे। वापस आने पर वह अपने गुट के लिए ज़्यादा मददगार साबित नहीं हुआ था, क्योंकि उसने कत्ल करने के लिए गोली मारने से इनकार कर दिया था। जब उनसे घात लगाने के प्रति अपना वैचारिक विरोध जताया था तो उसकी आवाज़ बड़ी मुश्किल से सुनाई दी थी। उसने कहा था कि वह सैनिकों से खुले में लड़ना ज़्यादा पसंद करेगा। कमांडरों ने उसे दिन में चंदा इकट्ठा करने का काम दिया और रात में पहरेदारी का।

16 जनवरी 1999 के दिन हमेशा की तरह रात को ताकते हुए वह मोटी कंबल ओढ़े सड़क के किनारे लकड़ी के कुंदे पर बैठा था। उसके कॉमरेड पास के मकान में सो रहे थे। चांद रोशन था और आस-पास के खेतों में बर्फ चमक रही थी। अचानक उसे दूर से ट्रकों के कराहने की आवाज़ आने लगी। उसने अनुमान लगाया कि ट्रक एक किलोमीटर दूर रुक गए हैं और उनके इंजन बंद कर दिए गए हैं। वह उठा और फिर वापस लेट गया। उसकी लाइट मशीन गन अपने स्टैंड पर और उसकी उंगली ट्रिगर पर थी। जब पहले सैनिक का हेलमेट उसकी नज़र के दायरे में आया तो वह इस ख्याल से गोली नहीं चला पाया कि उसे सैनिक को अपना बचाव करने का उचित मौका देना चाहिए। उसने पास के एक विलो वृक्ष पर निशाना साधा और गोली चलाई। सैनिक सतर्क हो गए और उन्होंने अपनी पोजीशन ले ली। आगामी बंदूकों की लड़ाई में तीन सैनिक घायल हुए। युवक मिलिटेंट मारा गया। उसके कॉमरेड गोलियों की आवाज़ सुनकर उठ गए और वहां से पलायन करने में कामयाब रहे।

कमांडर मिलिटेंट से ज़्यादा खुश नहीं थे। उसके पास लाइट मशीन गन थी, मगर वह एक भी सैनिक को मारने में सफल नहीं हुआ। वे जनाज़ा उठाने के दिन और उसके बाद कई बार निसार और उसके पति से मिलने तो गए पर उन्होंने उनके बेटे की बहादुरी के कोई किस्से नहीं सुनाये। बहुत जल्द यह लोकमत बन गया कि युवा मिलिटेंट बुज़दिलों वाली मौत मरा।

यह कहना कि निसार और उसका पति तबाह हो गए थे, ज़ाहिरी बात पर पर्दा डालने जैसा होगा। उनके बेटे ने मिलिटेंट बनने से पहले उनकी राय नहीं मांगी थी; अगर उसने मांगी होती तो वे उसे मिलिटेंट न बनने की सलाह देते; इसलिए नहीं कि वे आज़ादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लेना चाहते थे, बल्कि इसलिए कि उन्हें पता था, जैसा कि माता पिता को ही पता हो सकता है, कि उनका बेटा उस हिंसक कार्य के लिए बहुत विनम्र था। फिर भी वह मिलिटेंट बनने चला गया और शहीद हो गया। उनको विश्वास था कि उनके बेटे ने अपनी ड्यूटी जितना उससे बना उतने अच्छे से निभाई होगी। अब उनको उसकी नम्रता को लेकर ताने सुनने पड़ रहे थे। तो जब मिलिटेंट कमांडर उनके पास तीसरी बार आए तो निसार ने उनसे पूछा कि उसके बेटे की संवेदनशीलता को ख़राब गुण क्यों माना जा रहा है।

‘मौजी,’ एक कमांडर ने जवाब दिया, ‘इसमें कोई दो राय नहीं कि संवेदनशीलता सर्वश्रेष्ठ गुण है। आपको क्यों लगता है कि हमने दूसरों के लिए अपनी ज़िन्दगी त्याग दी है? आपको क्यों लगता है कि अन्याय से हमें दूसरों से ज़्यादा गुस्सा आता है? यहां संवेदनशीलता की बात नहीं है; बात है अपने उस उत्पीड़क पर दया न दिखाने का साहस रखने की जो पावर के नशे में पूरी तरह से चूर हो चुका है।’

कमांडर के जवाब से एक हद तक आश्वस्त होकर निसार और उसके पति ने अपना सिर झुका लिया।

पर यह तो उनके दुःख का बस एक पहलू था। सैनिक उनके घर में जब मन करे तब रात को घुस आते, कभी इस चीज़ को ढूंढने तो कभी उस चीज़ को, और ऐसे सवाल पूछते जिनके अब कोई जवाब नहीं बचे थे। वही पड़ोसी, जो उसके बेटे की कायरता के किस्से सुनते-सुनाते थे और शिकायत करते थे कि एक भी सैनिक को न मार पाने का मतलब था कि उनका बेटा पूरा जोर लगाकर नहीं लड़ा, वे अपने प्रियजनों के मरने का शोक यह ऐलान करके प्रकट करते थे कि वे ‘निर्दोष’ थे, मिलिटेंट नहीं, जिससे वे अनजाने में इस उपधारणा को स्वीकार करते थे कि मिलिटेंट ‘दोषी’ होते हैं

‘मगर दोषी किस चीज़ के?’ निसार उनसे पूछना चाहती थी।

औपनिवेशिक सरकार ट्रूथ एंड रीकनसीलिऐशन (सच और सुलह) की बात करती थी।

‘सुलह किससे?’ निसार का मूक सवाल था, ‘हार से?’

उनके इकलौते बेटे की मृत्यु और उसकी अफवाहों से दूषित शहादत ने उनकी दिमागी हालत छिन्न-भिन्न कर दी थी। मियां-बीवी को सोने में तकलीफ होने लगी। दोनों को बुरे सपने आने लगे। दोनों बहुत ही चिड़चिड़े हो गए और दिन भर में कई बार ऐसी छोटी-छोटी बातों पर उनके झगड़े होने लगे, जैसे चाय में नमक की मात्रा और टीवी के रिमोट कंट्रोल पर अधिकार। उनके रिश्ते में तनाव बहुत ज़्यादा आ गया और वे इस हद तक टूट गए कि दोनों एक दूसरे को ख़ुदकुशी करने की धमकीं देने लगे। बस निसार के पति की बीमार मां के सही वक़्त पर बीच में आने से घर में थोड़ी शांति वापस कायम हुई। मां ने उन्हें मनोचिकित्सक के पास जाने की सलाह दी।

डॉक्टर बहुत ही दयालु और भला आदमी था। उसको देख कर उन्हें अपने बेटे कि याद आई। उसने उन्हें कहा कि चिन्ता करने की कोई बात नहीं है; उनको बस थोड़ी ब्लड प्रेशर की तकलीफ है और कुछ नहीं। उसने समझाया कि समस्या यह थी कि उनकी व्यस्त दिनचर्या और अस्वस्थ जीवन शैली के कारण वे ज़रूरत से कम पानी पी रहे थे। समस्या का हल आसान था। सोने से पहले उन्हें थोड़ा पानी पीना पड़ेगा, जिससे उनका द्रव स्तर ठीक मात्रा में बना रहे और उनकी शारीरिक प्रणालियां बिना किसी दिक्कत के चलती रहें। पति और पत्नी को ऐसे खुश करके डॉक्टर निसार को एक नियमित हार्मोनल जांच के लिए क्लिनिक की लेबोरेटरी में ले गया और उसके पति को बाहर ठहरने के लिए कहा।         

डॉक्टर ने अंदर जाकर निसार को बैठाया और उसे बताया कि उसने निसार के पति के बारे में थोड़ा झूठ बोला था। डॉक्टर ने बताया कि उसके पति को मानसिक रोग हो गया है, ज़्यादा गंभीर कुछ नहीं, मगर फिर भी जिसमें चिकित्सा के हस्तक्षेप की जरूरत है। डॉक्टर ने उसे हल्के नीले तरल पदार्थ से भरी बोतल दी, और उसे निर्देश दिया कि वह हर रात अपने पति के पानी के गिलास में एक चम्मच तरल पदार्थ डाले और सुनिश्चित करे कि उसका पति उस गिलास को पी ले। सवाल करने पर डॉक्टर ने बताया कि दवा की एक खुराक का असर चौबीस घंटे तक रहता है। उसको नर्स और तकनीशियन के हवाले करने और उसके पति को देखने जाने से पहले डॉक्टर ने उसे बताया कि उसको ऐसी साहसी महिला का पुत्र होने का गर्व होता, जिसने अपने इकलौते बच्चे के मरने के दुख को भुलाने का निर्णय इसलिए लिया हो जिससे वह अपने डिप्रेस्ड पति को सहारा दे सके। निसार ने डॉक्टर का माथा चूम लिया।        

डॉक्टर के यहां हुई बातचीत से निसार की ज़िंदगी बदल गई। आने वाले हफ्तों और महीनों में उसने अपने आपको पहले के मुकाबले कहीं ज़्यादा मज़बूत और शांत होता पाया। उसका पति, उसकी सास और उसके पड़ोसी उसकी चाल में आए हल्केपन और चेहरे पर आई फुर्ती को चाहकर भी अनदेखा नहीं कर सकते थे। अपने पति का इलाज करना उसकी ज़िंदगी का नया मिशन बन चुका था। शुरुआत में, सोने से ठीक पहले, वह रसोई में दो गिलास में पानी डालती और उनमें से एक में वह हल्के नीले रंग के तरल पदार्थ का एक ड्रॉप डालती। फिर भरे हुए दोनों गिलास और पानी का जग बेडरूम में ले जाती और दवा वाले गिलास को अपने पति वाली तरफ बिस्तर के पास रख देती। मगर कई बार उसका पति उसी वक्त पानी पीना पसंद नहीं करता और फिर बीच रात को उठ बैठता, पसीने से लथपथ। कभी-कभार तो वह इधर-उधर छुपते हुए घूमता भी पकड़ा जाता, शायद नींद में चलता हुआ। उसने यह समस्या ऐसे हल की कि अब वह पानी का गिलास और जग पहले बेडरूम में रखती और फिर बर्तन धोने जाती, जिससे जब वह वापस आए तो अपने लेटे हुए पति को पानी नहीं पीने के लिए डांट सके।

तो धीरे-धीरे ऐसा हो गया कि निसार आत्मतुष्टि के कोकून में ढलती चली गई। सिर्फ इसलिए नहीं कि उसने एक भारी त्रासदी को इतने अच्छे से संभाला था, इसलिए भी कि उसने अपने पति को बचाने में भी प्रमुख भूमिका निभाई। अगर उसे गुप्त तरीके से शामक दवा डालने में कुछ संदेह हुआ भी तो उसने उस संदेह को उपयोगितावादी तर्क और कॉमन सेन्स के नीचे दफना दिया। उसके पति का स्वास्थ्य उसके भरोसे से कहीं ज़्यादा अहम था, खासकर उन परिस्थितियों में, जिनमें वे रह रहे थे। जब पड़ोसियों ने और परिवार वालों ने उसके पति में आते सकारात्मक बदलाव देखे और उसकी प्रशंसा की तो उसको अपने कार्य के सही होने पर और विश्वास हो गया।

अब चूंकि उसके दिन पहले से बहुत बेहतर हो गए हैं तो हर रात सोने से पहले वह यह सुनिश्चित करती है कि उसका पति अपने पानी के गिलास को पी ले, और वह खुद भी उस गिलास से पानी पीना नहीं भूलती, जिसमें उसके पति ने एक ड्रॉप हल्के नीले रंग का तरल पदार्थ डाला होता है

 

आरिफ़ अयाज़ परे
आरिफ़ अयाज़ परे

आरिफ़ अयाज़ परे दुनिया के प्रमुख पक्षी सुरक्षा विश्लेषक हैं| वे अपने खाली समय में लोगों को देखना पसंद करते हैं| आरिफ़ अयाज़ परे दुनिया के प्रमुख पक्षी सुरक्षा विश्लेषक हैं| वे अपने खाली समय में लोगों को देखना पसंद करते हैं|