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अनुवादक: डॉ. ऋतु शर्मा नंदन पांडेय
हॉलैंड की याद
जब हॉलैंड की याद आती है
मैं देखता हूँ वहाँ की नदीयाँ
कभी न ख़त्म होने वाले
मैदानों से होती हुई ढलानों
में जाती हुई।
अनगिनत आकाश तक
ऊँचे ऊँचे पेड़ों
के बीच से आती ठंडी हवा के झोंके
और विशाल और खूबसूरत
लहरलहाते खेत, पेड़ों के
झुंड, गाँव एक दूसरे से
गले मिलती ऊँची ऊँची मीनारें
चर्च के ऊपर घूमते चक्र।
ज़मीन को छूता आकाश
धूसर होते हुए रंगीन धुँध में
धीरे-धीरे डूबता सूरज
चारों ओर से पानी की कल कल
करती आवाज़ जिसे आप
सदियों तक यूँ ही सुन सकते है।
***
पचास की उम्र के बाद
पचास की उम्र के बाद
पत्तों का गिरना सही है
यह जानना अच्छा होता है
मज़बूत वृक्ष तब भी सीधे
खड़े रहते हैं।
बसंत में आने वाले तुफानों
से गिरते पत्तों को हमारे जीवन के
उतार-चढ़ाव की तरह
जैसे कई सालों बाद मेरे मन में
इच्छा रहेगी एक ऐसे घर में रहने की
जिसके पास एक नदी बहती हो।
शिकार करना, नाव चलाना
वृद्ध होते हुए भी अंदर से
मज़बूत रह कर इस पार से उस पार जाना
अपने जीवन भर की कहानी के
विषय में सोचते हुए,
पानी लहरों को पार करना
बहती हवा और मौसम से परिपक्व होते
हमारे अंदर की आग हमारे
रोने और हँसने से भी
आसानी से बाहर नहीं आ सकेगी
लेकिन हमारे अन्दर एक शांतिपूर्ण अग्नि
हमारी हड्डियों और मांसपेशियों में छिपे रहेगी
अनंत देश में भटकती हुई
हम और मज़बूत और और ज़्यादा शांत बनेंगे
मौसमों के प्रवाह में समाहित
अंतरिक्ष और बदलते मौसम से
गहरे जुडे होने के बाद भी ...
और फिर ????
और फिर हम रात में आग के पास
बैठेंगे और मैं आपको एक पुस्तक पढ़ कर सुनाऊँगा।