2022 से अभी तक हमने 35 से ज़्यादा देशों के लेखकों का अनुवाद किया है। हम अंग्रेजी से हिंदी अनुवादकों का एक समूह हैं। हमसे जुड़ने या हमारी अनुवाद सेवाओं का लाभ उठाने के लिए हमसे संपर्क करें: anuvadsamvad@gmail.com
कहानी

क़ब्ज़ा कर लिया गया मकान

Read More  

May 25, 2024

क़ब्ज़ा कर लिया गया मकान

Listen to this story

Sound Waves

 

अनुवाद: सुशांत सुप्रिय

हमें यह मकान पसंद था क्योंकि पुराना और बड़ा होने के अलावा इसमें हमारे परदादा, दादा, माता-पिता और हमारे समूचे बचपन की स्मृतियां सुरक्षित थीं। वह भी ऐसे समय में जब पुराने मकानों को उनके बनने की लागत वसूलने के लिए अक्सर नीलाम कर दिया जाता था।

इरीन और मैं इस मकान में रहने के आदी हो गए थे। यह पागलपन था क्योंकि बिना एक-दूसरे को तंग किए कम-से-कम आठ लोग मज़े से इस मकान में रह सकते थे। हम दोनों सुबह सात बजे उठ कर मकान की सफ़ाई में जुट जाते थे। ग्यारह बजे इरीन को बचे हुए कमरों की सफ़ाई करता हुआ छोड़ कर मैं रसोई में चला जाता। ठीक बारह बजे हम दोपहर का भोजन करते। इसके बाद कुछ जूठी प्लेटों को धोने के अलावा और कोई काम नहीं बचता। दोपहर का भोजन करते समय हमें इस बड़े, खोखले और शांत मकान से संलाप करना अच्छा लगता था। हमारे लिए यही पर्याप्त था कि हम इस मकान को साफ़-सुथरा रखते थे। कई बार हम यह सोचते कि शायद इस मकान के रख-रखाव की ज़िम्मेदारी की वजह से ही हम दोनों भाई-बहन ने किसी से शादी नहीं की। इरीन ने अकारण ही दो प्रेमियों के विवाह-प्रस्तावों को ठुकरा दिया। मेरी प्रेमिका मारिया एस्थर मुझ पर मरती थी लेकिन हम दोनों की सगाई नहीं हो सकी। अब हम दोनों की उम्र चालीस वर्ष से अधिक हो गई थी और हम दोनों के मन में यह धारणा बैठ गई थी कि हमारे विवाह के बिना इस मकान में हमारे परदादा के वंश का अंत अवश्यंभावी था। किसी दिन यहीं हमारा निधन हो जाएगा। हमारे दूर के अज्ञात-से चचेरे, ममेरे भाई-बहन हमारी मृत्यु के बाद इस मकान के स्वामी बन जाएंगे। संभवतः वे इस मकान को तोड़ देंगे, इसकी ईंटें बेच देंगे और इस भूखंड की बदौलत अमीर हो जाएंगे। या कौन जाने, ज़्यादा देर हो जाने से पहले हम स्वयं ही यह काम कर लें।

इरीन किसी को तंग नहीं करती थी। जब सुबह घर के काम पूरे हो जाते, वह दिन का बाक़ी बचा समय शयन-कक्ष के सोफ़े पर स्वेटर बुनते हुए बिताती। मैं आपको यह नहीं बता सकता कि वह इतनी ज़्यादा देर तक स्वेटर क्यों बुनती रहती थी। मुझे लगता है, जब महिलाओं के पास करने के लिए और कुछ नहीं होता तो वे स्वेटर बुनने का बहाना बनाती हैं। लेकिन इरीन ऐसी नहीं थी। वह ऊन से केवल ज़रूरत की चीज़ें ही बनाती थी—सर्दियों के लिए स्वेटर, मेरे लिए जुराबें, सुबह पहनने वाले ऊनी लबादे, और अपने लिए रात में बिस्तर पर जाते समय पहना जाने वाला कोई ऊनी जैकेट। यदि उसे अपनी बनाई कोई चीज़ पसंद नहीं आती, तो वह उसे वापस उधेड़ देती थी। मुझे उसकी बुनाई की टोकरी में पड़ा उलझे ऊन का ढेर अच्छा लगता था। वह ऊन का ढेर कुछ घंटे तक अपना आकार बनाए रखने की हारी हुई लड़ाई लड़ रहा होता था। शनिवार वाले दिन मैं शहर के मुख्य बाज़ार के इलाक़े में ऊन ख़रीदने के लिए चला जाता। ऊन के मामले में इरीन को मेरी अच्छी पसंद पर भरोसा था। मैं जो रंग पसंद करता था, वे रंग उसे भी अच्छे लगते थे। इसलिए मेरे द्वारा ख़रीदे गए ऊन को कभी लौटाने की नौबत नहीं आई। इन मौक़ों का लाभ उठा कर मैं किताबें बेचने वाली दुकानों के चक्कर भी लगा लिया करता, जहां बिना किसी ख़ास वजह के मैं पूछ लेता कि क्या उनके पास फ़्रांसीसी साहित्य की कोई नई किताब है। 1939 के बाद अर्जेंटीना में ढंग की कोई किताब नहीं आई थी।

लेकिन मैं इसी मकान के बारे में बात करना चाहता हूं। मकान और इरीन के बारे में। मैं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं हूं। मैं सोचता हूं कि यदि इरीन बुनाई नहीं किया करती, तो वह क्या करती। किसी किताब को हम दोबारा पढ़ सकते हैं, लेकिन एक बार जब स्वेटर पूरा बन जाता है तो आप उसी को दोबारा नहीं बुन सकते। ऐसा करना तो अपयश होगा। एक दिन मैंने पाया कि जाली वाली अलमारी के निचले हिस्से में कीड़े मारने वाली दवाई के बीच सफ़ेद, हरे और बैंगनी रंग की कई शालें पड़ी हुई थीं। वहां से कपूर की गंध भी आ रही थी। यह सब किसी दुकान की तरह लग रहा था। मुझमें उससे यह पूछने की हिम्मत नहीं थी कि वह इन सबका क्या करेगी। हमें जीवनयापन करने के लिए नौकरी करने की ज़रूरत नहीं थी। हर महीने खेती-बाड़ी से पर्याप्त रुपया-पैसा आ जाता था। रुपयों की गड्डियां तिजोरी में जमा होती रहती थीं। लेकिन इरीन की रुचि केवल बुनने में थी और वह इस काम में शानदार दक्षता दिखाती थी। दूसरी ओर मैं उसे बुनता हुआ देखकर अपना समय बिताता था। वह पूरी कुशलता से बुनने वाली सलाइयों का प्रयोग करती। टोकरी में पड़ा ऊन का गोला बुनने के क्रम में उछलता रहता। मुझे यह सब बहुत प्यारा लगता।

मैं इस मकान की बनावट के बारे में कैसे बात नहीं करूं? एक कमरा भोजन-कक्ष था। एक और कमरा बैठक था, जिसमें चित्रपट लगे थे। फिर एक पुस्तकालय था। उसके बाद तीन बड़े शयन-कक्ष थे, जिनमें सबसे ज़्यादा ताक और आले थे। ये कमरे रोड्रिगेज़ पेना की ओर खुलते थे। आगे के मकान से इस हिस्से को केवल एक गलियारा अलग करता था, जिसका विशालकाय द्वार बलूत की लकड़ी से बना था। वहीं एक स्नान-कक्ष, रसोई, हमारे शयन-कक्ष और एक और बड़ा कमरा मौजूद थे। आप इस मकान में एक ड्योढ़ी से होकर दाखिल होते थे, जहां तामचीनी के खपड़े लगे हुए थे। यहां पिटवां-लोहे का दरवाज़ा बैठक में खुलता था। आप ड्योढ़ी से होते हुए आते थे और दरवाज़ा खोलकर बैठक में घुसते थे। दोनों ओर हमारे शयन-कक्ष के द्वार स्थित थे। इसके ठीक उलटी ओर स्थित एक गलियारा मकान के पिछले हिस्से की ओर ले जाता था। इस गलियारे में से होकर आगे बढ़ने पर आपको दम लगा कर बलूत की लकड़ी वाला विशाल दरवाज़ा खोलना पड़ता था। तब जाकर मकान का दूसरा हिस्सा नज़र आता था। दरवाज़े से ठीक पहले आप बाईं ओर मुड़कर एक संकरे रास्ते से होकर रसोई और स्नान-कक्ष तक जा सकते थे। यह दरवाज़ा जब खुला होता, तब आप इस मकान के बड़े आकार को देख सकते थे। जब यह दरवाज़ा बंद होता तो आपको यह मकान थोड़ा छोटा लग सकता था, जैसे आज-कल के फ़्लैट बने होते हैं जिनमें चलने-फिरने की जगह कम ही होती है।

इरीन और मैं हमेशा से मकान के इसी हिस्से में रहते थे और बलूत की लकड़ी वाले विशाल द्वार के दूसरी ओर बहुत कम जाते थे। हमारा उधर जाना केवल वहां मौजूद कमरों की सफ़ाई करने के उद्देश्य से ही होता था। मेज़-कुर्सियों पर अविश्वसनीय रूप से बहुत ज़्यादा धूल-मिट्टी इकट्ठी हो जाती थी। हालांकि ब्यूनेस आयरेस एक साफ़-सुथरा शहर है, पर इसका कारण केवल इस शहर की जनसंख्या है। यहां हवा में बेइंतिहा धूल-मिट्टी है। ज़रा-सी हवा चलने की देर होती और यह धूल-मिट्टी चारों ओर हर चीज़ पर नज़र आने लगती। पंखों वाले झाड़न की मदद से इस धूल-मिट्टी को चीज़ों पर से हटाना बड़ी मेहनत का काम होता। धूल के कण हवा में लटके रहते और एक मिनट के बाद वापस मेज़-कुर्सियों और पियानो पर जम जाते।

मेरे ज़हन में उस घटना की याद हमेशा स्पष्ट रहेगी क्योंकि वह घटना बिना किसी उपद्रव के सामान्य रूप से घटी। इरीन अपने शयन-कक्ष में स्वेटर बुन रही थी। उस समय रात के आठ बज रहे थे। अचानक मुझे गरम पानी पीने की इच्छा हुई। मैं गलियारे में से चलता हुआ बलूत की लकड़ी वाले दरवाज़े की ओर गया। वह दरवाज़ा आधा खुला हुआ था। फिर मैं बड़े कमरे में से होता हुआ रसोई की ओर मुड़ गया। तभी मुझे पुस्तकालय या भोजन-कक्ष में से कोई आवाज़ सुनाई दी। हालांकि वह आवाज़ मंद और अस्पष्ट थी, जैसे क़ालीन पर कोई कुर्सी गिर गई हो या वह बातचीत की दबी हुई गूंज हो। उसी समय या पल भर बाद मुझे गलियारे के अंत में भी वैसी ही आवाज़ सुनाई दी—वह गलियारा जो दोनों कमरों की ओर जा रहा था। इससे पहले कि बहुत देर हो जाती, मैंने झपट कर वह दरवाज़ा बंद कर दिया। मैं अपनी देह का पूरा भार उस दरवाज़े पर टिका कर वहां खड़ा रहा। सौभाग्यवश चाबी लगाने वाला हिस्सा दरवाज़े के इसी ओर था। पूरी तरह सुरक्षित महसूस करने के लिए मैंने उस दरवाज़े की बड़ी-सी चटखनी भी लगा दी। फिर मैं रसोई में गया, वहां चूल्हे पर पानी गरम किया और उसे ले कर अपने कमरे में लौट आया। मैंने इरीन को बताया, “मुझे गलियारे के अंत में मौजूद हिस्से को बंद कर देना पड़ा। उन्होंने मकान के पिछले हिस्से पर क़ब्ज़ा कर लिया है।

इरीन के हाथ से छूट कर बुनाई करने वाली सलाइयां नीचे गिर गईं। उसने मेरी ओर थकी हुई गम्भीर आंखों से देखा।

क्या तुम्हें यक़ीन है? उसने पूछा। मैंने हां में सिर हिलाया।

तब तो, अपनी बुनाई की सलाइयां फिर से उठाते हुए वह बोली, “हमें इसी ओर रहना

होगा।

मैं ध्यान से गरम पानी पीता रहा लेकिन इरीन को बुनाई दोबारा शुरू करने में समय लगा। वह एक धूसर स्वेटर बुन रही थी। मुझे वह स्वेटर पसंद था।

पहले कुछ दिन हम परेशान रहे क्योंकि हम दोनों के काम की कई चीज़ें मकान के पिछले हिस्से में छूट गई थीं। उदाहरण के लिए फ़्रांसीसी साहित्य से सम्बन्धित मेरी किताबें पुस्तकालय में ही रह गई थीं। इरीन की चप्पलों की एक जोड़ी जिसका इस्तेमाल वह सर्दियों में करती थी, और उसकी लेखन-सामग्री के कई पन्ने भी उधर ही रह गए थे। मैं उधर छूट गई अपनी चिलम की कमी महसूस करता था और इरीन को भी हेस्पेरेडिन की एक बहुत पुरानी बोतल के उधर छूट जाने का दुख था। पहले कुछ दिनों तक लगातार ऐसा होता रहा कि हम कोई पेटी या दराज़ बंद करते और एक-दूसरे की ओर देख कर कहते, “वह यहां भी नहीं है।

हमें मकान के पिछले हिस्से में छूट गई अपनी एक और चीज़ के बारे में इसी तरह पता चलता।

लेकिन इसके फ़ायदे भी थे। अब कमरों की सफ़ाई करने का काम आसान हो गया था। जब कभी हम देर से जगते—उदाहरण के लिए साढ़े नौ बजे, तब भी ग्यारह बजते-बजते हमारा सारा काम ख़त्म हो जाता और हम बांहें मोड़कर चुपचाप बैठ जाते। अब इरीन ने रसोई में आकर दोपहर का भोजन बनाने में मेरी मदद करने की आदत डाल ली थी। सोच-विचार के बाद हम इस निर्णय पर पहुंचे: मैं दोपहर का भोजन बनाता था जबकि इरीन भी पहले ही रात का खाना बना लेती थी। काम के इस बंटवारे से हम ख़ुश थे क्योंकि शाम में शयन-कक्ष से उठ कर रात का खाना बनाना किसी बोझ से कम नहीं था। अब हम इरीन की मेज़ पर पहले से बना रात का खाना खाते थे।

इरीन को भी बुनने के लिए पहले से अधिक समय मिलता था, जिसकी वजह से वह संतुष्ट थी। अपनी किताबों के अभाव में मैं थोड़ा खोया हुआ महसूस करता था, लेकिन मैं अपनी बहन को तंग न करूं, इसलिए मैंने पिताजी द्वारा एकत्र की गई डाक-टिकटों के संग्रह को नए सिरे से लगाना शुरू कर दिया। इससे थोड़ा समय और बीत जाता था। हम दोनों अपने-अपने काम में अपना मन लगाए रखते। इरीन का शयन-कक्ष अधिक आरामदेह था इसलिए अक्सर हम दोनों वहीं अपना समय बिताते।

हर थोड़े समय के बाद इरीन कहती, “ इस नमूने को देखो। क्या यह तिपतिया घास जैसा नहीं लगता?

कुछ समय बाद मैं इरीन के सामने किसी डाक-टिकट को सरका रहा होता ताकि वह उसकी उत्कृष्टता को सराह सके। हम दोनों अच्छी तरह रह रहे थे और कुछ समय के बाद हमने मकान के एक हिस्से पर हो गए क़ब्ज़े के बारे में सोचना छोड़ दिया। आप सोचे बिना भी जीवित रह सकते हैं।

जब कभी इरीन नींद में बातें करती, मैं उसी समय जग जाता और फिर मुझे नींद नहीं आती। मैं ऐसी किसी आवाज़ का आदी नहीं हो सकता था जो किसी प्रतिमा या किसी तोते के मुंह से आती हुई प्रतीत हो—एक ऐसी आवाज़ जो किसी सपने में से आती हुई लगे, किसी के गले में से नहीं। इरीन बताती थी कि अपनी नींद में मैं सांट से अनाज पीटने जैसी अजीब आवाज़ निकालता था और ओढ़ा हुआ कम्बल अपने ऊपर से उतार कर फेंक देता था। हम दोनों के शयन-कक्षों के बीच में बैठक स्थित थी लेकिन रात में आप उस मकान में सारी आवाज़ें सुन सकते थे। जब हम दोनों में से किसी को भी नींद नहीं आ रही होती तो हम दोनों अपने-अपने कमरों में एक-दूसरे के सांस लेने, खांसने या बत्ती जलाने की आवाज़ें सुन सकते थे।

हमारी रात्रिकालीन बड़बड़ाहटों के अलावा पूरे मकान में निस्तब्धता रहती थी। दिन के समय में मकान में आम तौर पर होने वाली सामान्य आवाज़ें गूंजती थीं—स्वेटर बुनने वाली सलाइयों की आवाज़, डाक-टिकटों के ऐल्बम के पृष्ठों के पलटने की सरसराहट आदि। बलूत की लकड़ी का दरवाज़ा विशालकाय था, यह बात मैं आपको पहले ही बता चुका हूं। रसोई या गुसलखाने में हम ज़ोर-ज़ोर से बातें कर लेते थे या इरीन लोरियां गा लेती थी। ये हिस्से मकान के क़ब्ज़ा कर लिए गए भाग के क़रीब थे। रसोई में वैसे भी आम तौर पर बहुत सारी आवाज़ों का शोर सुना जा सकता है, जैसे थालियों और गिलासों की उठा-पटक की आवाज़ें। यहां अन्य आवाज़ों के लिए फ़ुरसत नहीं होती। रसोई में शायद ही कभी चुप्पी रहती हो, लेकिन जब हम बैठक में या अपने-अपने कमरों में जाते, तब मकान में ख़ामोशी छा जाती। हल्की रोशनी में हम मकान में दबे पांव चलते ताकि हम शांति को भंग करके एक-दूसरे को तंग न करें। मुझे लगता है, इसी वजह से मैं तभी जग जाता था जब इरीन नींद में बोलना शुरू करती।

नतीजे के अलावा यह मामला लगभग एक ही दृश्य के दोहराव जैसा है। उस रात मुझे प्यास लगी थी और सोने जाने से पहले मैंने इरीन से कहा कि मैं रसोई में पानी लेने के लिए जा रहा हूं। तभी शयन-कक्ष के दरवाज़े से मैंने (इरीन स्वेटर बुन रही थी) रसोई में से आती हुई आवाज़ सुनी। यदि वह आवाज़ रसोई में से नहीं आई थी तो गुसलखाने में से आई थी। उस कोण पर गलियारा उस आवाज़ को मंद बना रहा था। वह आवाज़ सुनकर मैं जिस रूखेपन से रुक गया था, उस पर इरीन ने भी ग़ौर किया। वह बिना कुछ बोले चलते हुए मेरी बग़ल में आ कर खड़ी हो गई। हम दोनों उन आवाज़ों को सुनते हुए वहीं खड़े रहे। अब यह स्पष्ट हो गया था कि ये आवाज़ें बलूत के दरवाज़े के हमारी ओर वाले हिस्से से आ रही थीं। यदि ये आवाज़ें रसोई में से नहीं आ रही थीं तो गुसलखाने में से आ रही थीं या फिर हमारे कमरे के साथ वाले बड़े कमरे में से आ रही थीं।

हम एक-दूसरे की ओर देखने के लिए नहीं रुके। मैंने इरीन की बांह पकड़ी और उसे अपने साथ जबरदस्ती पिटवां लोहे के दरवाज़े की ओर दौड़ाया। हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब हम स्पष्ट रूप से अपने पीछे उन आवाज़ों को सुन सकते थे। हालांकि वे आवाज़ें दबी हुई थीं, पर अब वे पहले से तेज़ थीं। मैंने जाली वाला दरवाज़ा बंद किया और हम ड्योढ़ी में रुक गए। यहां कोई आवाज़ नहीं आ रही थी।

उन्होंने मकान के हमारे हिस्से पर भी कब्ज़ा कर लिया है, इरीन ने कहा। उसका स्वेटर बुनने वाला ऊन का गोला उसके हाथ से छूटकर रास्ते में कहीं गिर गया था और ऊन की डोरी दरवाज़े तक जा कर उसके पीछे ग़ायब हो गई थी। जब इरीन ने देखा कि ऊन का गोला दरवाज़े के दूसरी ओर रह गया है तो उसने अपना अधबुना स्वेटर भी वहीं छोड़ दिया।

क्या तुम्हें कुछ भी साथ लेकर आने का समय मिला?  मैंने बिना किसी उम्मीद के पूछा।

नहीं। कुछ भी नहीं।

हमारे पास केवल अपने पहने हुए कपड़े थे। मुझे याद आया कि अपने शयन-कक्ष की अल्मारी में मैंने पंद्रह हज़ार पेसो रखे हुए थे। लेकिन उसे लाने के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी।

मेरी कलाई-घड़ी अब भी मेरे पास थी। मैंने देखा कि उसमें रात के ग्यारह बज रहे थे। मैंने इरीन की कमर में हाथ डाला (मुझे लगा, वह रो रही थी) और इस तरह हम बाहर सड़क पर आ गए। मकान छोड़ते समय मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने मुख्य द्वार को बंद करके उस पर ताला लगा दिया और चाबी उछाल कर नाले में फेंक दी। क़ब्ज़ा कर लिए गए उस मकान में रात के इस पहर चोरी के इरादे से किसी चोर का घुस जाना ठीक नहीं होता।

 

 

सीधे अपने इनबॉक्स में कहानियां और लेख पाने के लिए आज ही सब्सक्राइब करें
जूलियो कोर्टाज़ार
जूलियो कोर्टाज़ार

लेखक

जूलियो कोर्टाज़ार (26 अगस्त, 1914 - 12 फरवरी, 1984) एक अर्जेंटीना के बुद्धिजीवी और अत्यधिक प्रयोगात्मक उपन्यासों और लघु कथाओं के लेखक थे, जिन्हें दक्षिण अमेरिकी जादुई यथार्थवाद के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण लेखकों में से एक माना जाता है।

Profile Picture
अक्षत जैन
संपादक

सुझाव, टिप्पणी या अनुवाद सेवाओं का लाभ उठाने के लिए, संपादक से संपर्क करें।

अभी संपर्क करें