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अनुवाद: अंकुल बड़ौनियाँ
स्त्रोत: Huffpost
जब से सोशल मीडिया प्रचलन में आया है, तब से यह पहली बार हुआ कि जाति मुख्यधारा की चर्चा का केंद्र बिंदु बन गई। हमारे समाज की जाति-व्यवस्था, भेदभाव और विशेषाधिकारों के बारे में फेसबुक, ट्विटर, कोरा, रेडिट और इन्स्टाग्राम जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर भी चर्चाएं हो रही हैं। यह बहुत ही तकलीफ़देह है कि जाति आधारित अन्याय की तरफ हमारा ध्यान खींचने के लिए रोहित वेमुला जैसे होनहार नौजवान छात्र को आत्महत्या करनी पड़ी। फिर भी, इसके बारे में बात करना बहुत दिनों से बकाया था। तो, अगर आप गैर-दलित हैं और इन मुद्दों को गहराई से समझना चाहते हैं तो थोडा ठहरकर पढ़िए, क्योंकि यह लेख जाति को लेकर आपके सभी पूर्वाग्रहों को खत्म कर देगा-
1. पूर्वाग्रहों का पुष्टिकरण करने की अपनी प्रवृत्ति से अवगत रहिए
अगर आपने खुद कभी जाति आधारित भेदभाव अनुभव नहीं किया है तो आप ऐसा अनुमान लगा सकते हैं कि ऐसा कुछ है ही नहीं क्योंकि यह आपका खुद का जिया हुआ अनुभव नहीं है। पर करोड़ों दलितों के लिए यह उनकी रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा है। तो “जाति बीते ज़माने की बात है” या “अब इतनी बड़ी बात नहीं ” कहने से पहले उनको और उनके द्वारा भोगे गए भेदभाव की कहानियों को सुनिए।
2. इतिहास समझिए
जिन जाति आधारित उत्पीड़नों पर चर्चा हो रही है, उनकी प्रकृति और जड़ के बारे में खुद को शिक्षित करने की कोशिश करें, क्योंकि हमारी स्कूली किताबें हमें पर्याप्त जानकारी नहीं देतीं। खुद सोचिए कि आरक्षण और कोटा जैसी चीजों को देने की जरूरत ही क्यों पड़ी? सवाल कीजिये कि क्यों कुछ जातियों के नाम आज भी गाली की तरह इस्तेमाल किए जाते हैं; सोचिए कि उन जाति के लोगों की मनोदशा पर इससे क्या प्रभाव पड़ता होगा? अंबेडकर की किताब जाति का उन्मूलन और हाल ही में प्रकाशित किताब Hatred in the Belly सीखने के लिए अच्छी शुरुआत हो सकती है। आप dalitdiscrimination.tumblr.com भी देख सकते हैं।
3. अपने विशेषाधिकारों को समझे
जाति सरंचना अकेले हवा में नहीं तैरती। अगर किसी का उत्पीड़न हो रहा है तो सहज बात है कि किसी दूसरे को उससे फायदा भी मिल रहा होगा। और अगर आप गैर-दलित समुदाय से हैं तो आपका ‘वह दूसरा’ होने की संभावना ज्यादा है। आपके पूर्वजों को शिक्षा और संपत्ति में बिना रोक-टोक आगे बढ़ने का जहां फायदा मिला, वहीं दलितों को बड़ी क्रूरता से इन सब चीजों से वंचित रखा गया। यह अपने आप में विशेषाधिकार है, जिसका आप ऐतिहासिक रूप से आनंद उठाते आ रहे हैं। यह विशेषाधिकार आपके स्वयं के कुछ करने या न करने से गायब नहीं हो जाएगा। आप जन्मजात विशेषाधिकार लेकर पैदा हुए हैं, जैसे हम दलित उत्पीड़न लेकर। और जहां आप इसके अस्तित्व को दरकिनार नहीं कर सकते, वहां आप इसका वजूद जरूर स्वीकार कर सकते हैं।
4. सब अपने बारे में न बनाएं
कोई आपके ऊपर निजी तौर पर इल्जाम नहीं लगा रहा। अगर आप जाति आधारित मानसिकता से ग्रसित नहीं हैं, और न ही उसके आधार पर कोई पूर्वाग्रह रखते हैं और जाति आधारित संरचना में अपनी खुद की मिली भगत से वाकिफ हैं तो आप अपवाद हैं, नियम नहीं। “सभी ऊंची जाति वाले एक से नहीं होते” (#NotAllUpperCastes) कहना दलितों के खिलाफ भेदभाव के मुख्य मुद्दे से बेकार में भटकना है। अगर एक गाड़ी किसी व्यक्ति को टक्कर मार देती है और आप उसी घायल व्यक्ति से कहते हैं कि सारे ड्राईवर इस तरह से टक्कर नहीं मारते तो आप एक व्यक्ति को मरने दे रहे है, क्योंकि आप खुद को “पीड़ित” सिद्ध करने में लगे हुए हैं।
5. लहजा सिखाने की जिम्मेदारी न लें
दलित पहचान, जो कि बहुत समय से शर्म के साथ जुड़ी थी, अब धीरे-धीरे गर्व के साथ जोड़ी जाने लगी है। और इस व्यवस्था को पलटने के लिए इस गर्व का जोर-शोर से ढिंढोरा पीटा जाएगा। हमारा दलित गौरव आपको आघात पहुंचाने के लिए नहीं, बल्कि हमको याद दिलाते रहने के लिए है कि इसको बार-बार महसूस किया जाए। फिर से कहने की जरूरत है कि यह आपके बारे में नहीं है।
6. स्वीकार कीजिए कि आप जाति-विहीन नहीं हैं
यह कहना कि आप जाति नहीं देख सकते, यह कहने के समान है कि आपको वह गर्म फूलों वाला बिस्तर नहीं दिखा, जिस पर आप आजीवन चलते आए हैं, जबकि दूसरों को नंगे पांव जलते कोयले पर चलने के लिए मजबूर किया गया। आप और आपके पूर्वजों को पढ़ने-लिखने से नहीं रोका गया, अपने उपनाम (जाति) के कारण विश्वविद्यालयों से नहीं निकाला गया, और न ही केवल जीवित होने के कारण शर्मिंदा किया गया। करोड़ों दलितों के साथ यह पहले भी होता था और आज भी होता है। जहां आप खुद को आसानी से जाति-विहीन मान लेते हैं, वहीं बाकी बहुत से लोगों को सिर्फ उस पहचान के चलते प्रताड़ित किया जाता है, जिसे छोड़ने का उनके पास कोई विकल्प भी नहीं है। पूर्वाग्रह उनको नतमस्तक होने पर मजबूर कर देते हैं, जो कि आपके साथ नहीं होता। आपकी जाति का अस्तित्व है, जिस प्रकार हमारी जाति का है। उसके अस्तित्व को स्वीकार न करना, उसे गायब नहीं कर देगा।
7. मान लीजिए की आप “दयालु” नहीं बन रहे
अपने विशेषाधिकारों को समझकर और दलितों के साथ हो रहे चौतरफा उत्पीड़न को पहचान कर, आप किसी पर एहसान नहीं कर रहे हैं। खास कर जाति के मसलों पर चल रहे विवाद पर तो बिल्कुल भी नहीं। एक सामाजिक राष्ट्रवादी नागरिक होने के नाते यह आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप अपना इतिहास जाने और समझें। सिर्फ आप इस सम्बन्ध में बात करना चाहते हैं तो इसके लिए दलित समाज को आपका कृतज्ञ होना पड़ेगा, यह उम्मीद न रखें। ऐसा सोचना कि इस जटिल चर्चा को समझकर आप हमारे ऊपर कोई एहसान कर रहे हैं और इस बिना पर अपने आपको अच्छा व्यक्ति मान लेना, अपने आप में जातिवाद है। हम आपकी दया के नहीं, आपसे समानता के बर्ताव के हकदार हैं।
आप ऐसी असमान जगह पर बैठे हैं जहां से किसी व्यक्ति के ऊपर दया बरसा सकते हैं, यह भी आपके विशेषाधिकार का उदाहरण है।
8. आपको “खलनायक” नहीं बनाया जा रहा
बातचीत के दौरान जब ऊंची जाति के विशेषाधिकारों की ओर इशारा किया जाता है तो यह शिकायत न कीजिए, “मैं अपने जन्म को जिम्मेदार नहीं ठहराऊंगा।” आपके जन्म को जिम्मेदार ठहराना किसी का मकसद नहीं है। मकसद बस आपको यह याद दिलाना है कि आप कितने “भाग्यशाली” हैं, जो हम में से बहुत से नहीं हैं। वर्तमान बातचीत विशेषाधिकारों और पूर्वाग्रहों पर हमला करने के लिए है, व्यक्ति विशेष पर नहीं।
9. खुद से पूछिए की आप इतना गुस्सा क्यों हैं
अगर आप तार्किक बातों के सामने खुद को आक्रोशित पाते हैं तो अब समय आ गया है कि आप खुद से पूछें कि ऐसा क्यों है? क्या ऐसा इसीलिए है कि जिसको आप जन्मजात अपने से नीचा मानते थे, वह अब आप से बराबरी से बात कर रहा है? पूर्वाग्रह ऐसा ही होता है।
हालांकि, अगर आप सार्थक बहस नहीं चाहते तो यह सब आप पर लागू नहीं होता। लेकिन फिर आपकी कोई सुन भी कहां रहा है।