New York Black Panther Party March is a photograph by Everett
अनुवाद: मज़ाहिर हुसैन
स्त्रोत: Anarchist Library
हमें यह समझना होगा कि अराजकतावादियों के विद्रोह और कालों की क्रांति या काली बस्तियों से निकले आजादी के आंदोलन में फर्क है।
यह समाज आर्थिक वर्गीकरण पर आधारित है; और हमेशा से ही रहा है। आर्थिक रूप से बंटा हुआ यह प्रतिक्रियावादी समाज व्यक्तिगत रूप से लोगों की ज़िंदगियां, उनके पेशे, आत्माभिव्यक्ति, परिवर्तनशीलता और रचनात्मक होकर खुद से काम चुनने की आज़ादी को प्रतिबंधित करता है।
आर्थिक आधार पर बंटा हुआ समाज इन सारी चीजों में बाधा डालता है। यह केवल निम्न वर्ग के लोगों की ही नहीं बल्कि शासक वर्ग के लोगों की भी हक़ीक़त है। यह वर्ग अपने लोगों की व्यक्तिगत आज़ादी को भी प्रतिबंधित करता है।
अमरीकी समाज सिर्फ़ आर्थिक आधार पर ही वर्गीकृत नहीं है, यहां जाति व्यवस्था भी मौजूद है, जिसमें कालों को सबसे निम्न जाति में होने का दर्जा हासिल है। उनके पास आर्थिक वर्गीकरण में ऊपर बढ़ने का कोई साधन नहीं है। उनके पास ऐसा कोई विशेषाधिकार नहीं है जिससे वे शासन व्यवस्था का हिस्सा बन सकें।
उच्च वर्ग में, लोग हमेशा अपने आपको इन प्रतिबंधों से मुक्त कराने की कोशिश करते हैं—बाहर से लगाए गए बनावटी प्रतिबंध: जैसे कोई पदानुक्रम जिसको राज्य या सरकारी शासन का नाम दिया जाता है।
शासक वर्ग के लोग आपत्ति दर्ज कर रहे हैं (विरोध कर रहे हैं?) क्योंकि उन्हें पता लग गया है कि वे पूरी तरह से प्रशासकों और छल-साधन करने वालों की चपेट में हैं। इसके कारण अमरीका में बहुत ही विचित्र घटनाक्रम देखने को मिल रहा है। बहुत से विरोध करते गोरे छात्र और अराजकतावादी इस शासक वर्ग के वंशज हैं। यह जरूर है कि उनमें से अधिकतर लोग अपने आपको मध्यम वर्ग से जुड़ा हुआ पाते हैं, और कुछ उच्च वर्ग से भी आते हैं। उन्हें अपने ऊपर लगने वाले प्रतिबंधों का आभास है, और अब वह उन्हीं चीजों को पाने के प्रयास में जुटे हैं जिनको पाने के प्रयास में सभी जुटे होते हैं—आत्मा, अभिव्यक्ति और परिवर्तनशीलता की आज़ादी। वे यह सब पुरानी मान्यताओं द्वारा बनाई गई कृत्रिम बाधाओं के बिना पाना चाहते हैं।
अमरीका की जाति व्यवस्था में कैद काले और अश्वेत लोग सामुदायिक रूप से शोषित किए जाते हैं। उच्च वर्ग के वंशजों के लिए सवाल व्यक्तिगत आज़ादी का है लेकिन हमारे लिए ऐसा नहीं है। हम अभी उस मुकाम तक नहीं पहुंचे जहां हम अपने आप को व्यक्तिगत रूप से आज़ाद कराने की कोशिश करें, क्योंकि हमारे ऊपर वर्चस्व और हमारा शोषण सामुदायिक रूप से हो रहा है।
इस देश में रहने वालों का एक बहुत बड़ा हिस्सा युवा पीढ़ी से है। युवा पीढ़ी अपनी आपत्तियों को ज़ाहिर तो कर रहा है, लेकिन सामुदायिक रूप से नहीं, क्योंकि समुदाय के रुप में वे थोड़े-बहुत तो आज़ाद हैं ही। उनकी समस्या सामुदायिक है ही नहीं, क्योंकि वे व्यवस्था में आसानी से सम्मिलित हो सकते हैं। सम्भाव्यतः, उनके पास ऐसा करने की शक्ति पहले से है: वे शिक्षित हैं, “देश का भविष्य” हैं, इत्यादि। शासक वर्ग के साथ सम्मिलित होकर वे एक हद तक समाज में आसानी से वर्चस्व हासिल कर सकते हैं।
लेकिन उन्हें ज्ञात होता है कि शासनकर्ताओं के बीच अभी भी कुछ प्राचीन मूल्य हैं जो व्यक्तिवाद को मान्यता नहीं देते। वे अपने आप को वशीभूत पाते हैं। वे किसी भी आर्थिक वर्ग में क्यों ना हों, इस आर्थिक आधार पर वर्गीकृत समाज में वे अपने आप को वशीभूत ही पाते हैं। परिणामस्वरूप, उनकी लड़ाई व्यक्तिगत आज़ादी की बन जाती है।
इससे एक और समस्या उजागर होती है। वे एक ऐसी बाहरी शक्ति से शासित हैं जिसका व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की आज़ादी से कोई लेना-देना नहीं। वे इससे छुटकारा पाना चाहते हैं, इन परिस्थितियों का उलट-फेर करना चाहते हैं, लेकिन उनको किसी भी प्रकार की व्यवस्था या अनुशासित अग्रणी समूह बनाने की जरूरत महसूस नहीं होती। उन्हें लगता है कि अगर वे अनुशासित समूह बनाएंगे तो बस पुरानी व्यवस्था को बदल कर नए प्रतिबंध लगा देंगे। उनको इस बात का डर है कि वे ऐसी व्यवस्था बना देंगे जो लोगों का निर्देशन करेगी और इस कारण व्यक्तिगत आज़ादी पर अंकुश लगेगा।
लेकिन वे एक चीज़ नहीं समझते, या ऐसा मालूम पड़ता है कि नहीं समझते—जब तक सैन्य-व्यावसायिक व्यवस्था अस्तित्व में है, तब तक व्यक्तिगत शोषण की यह व्यवस्था चलती रहेगी। व्यक्तिगत स्तर पर लोग चाहे आज़ादी पा भी लें, वे फिर भी खतरे में रहेंगे। यह खतरा इसलिए बना रहेगा, क्योंकि किसी भी क्षण निम्न वर्ग के लोगों के अनुशासित समूह द्वारा उनसे उनकी व्यक्तिगत आज़ादी छीनी जा सकती है।
क्यूबा में क्रांति इसलिए मुमकिन हो पाई क्योंकि वहां अनुशासित अग्रणी समूह था, और वहां के लोग इस बात से वाकिफ थे कि राज्य का उन्मूलन तब तक नहीं होगा जब तक संरचनात्मक और दार्शनिक रूप से साम्राज्यवाद का पूरी तरह पतन नहीं हो जाता। तब तक संपत्तिजीवियों के विचार भी नहीं बदलेंगे। एक बार साम्राज्यवाद मिट जाये तो लोग साम्यवादी राज्य व्यवस्था का उत्थान कर सकते हैं, और ऐसी व्यवस्था के आने से राज्य और देशीय विभाजन भी खत्म हो जाएगा।
इस देश के अराजकतावादियों को लगता है कि अगर वे केवल अपने आप को व्यक्तिगत रूप से अभिव्यक्त करते रहेंगे और शासक वर्ग के प्रतिबंधों को नेतृत्व और अनुशासन के अभाव में अनदेखा करते रहेंगे, तो वे शासक वर्ग की अनुशासित, व्यवस्थित, प्रतिक्रियावादी राज्य व्यवस्था के खिलाफ इस अभाव में भी विरोध कर आत्मा की शांति और आज़ादी का अनुभव करते रहेंगे। उनको इस बात का अंदेशा बिलकुल भी नहीं है कि जब तक साम्राज्यवाद रहेगा तब तक उनका शोषण जारी रहेगा। आप ऐसी व्यवस्था का विरोध तब तक नहीं कर सकते जब तक आप खुद उसी तरह से अपने आप को संगठित न कर लें जैसे कि शासक वर्ग करता है।
मैं समझ सकता हूं कि अराजकतावादियों को सीधे राज्य से गैर-राज्य व्यवस्था तक क्यों जाना है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से यह बात बिलकुल गलत है। जहां तक मेरा सवाल है, हाल ही में फ़्रांस में हुई क्रांति इसलिए विफल रही क्योंकि वहां के लाक्षणिक तौर पर असंगठित अराजकतावादियों के पास ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था जिस पर जनता भरोसा कर सके और जो डी गॉल और उसकी सरकार का स्थान ले सके। जनता का विश्वास कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य प्रगतिशील पार्टियों से उठ चुका था। वे लोगों की राजनीतिक आकांक्षाएं नहीं समझ पाए और इसलिए उन्होंने जनता का सम्मान खो दिया, और जनता ने नेतृत्व के लिए छात्रों और अराजकतावादियों की तरफ रुख किया।
लेकिन अराजकतावादी ऐसा कोई भी संरचनात्मक कार्यक्रम सामने नहीं रख पाए जिससे डी गॉल की सरकार को प्रतिस्थापित किया जा सके। तो जनता को मजबूरन डी गॉल की तरफ अपना रुख करना पड़ा। इसमें जनता की कोई गलती नहीं थी। गलती कोहन-बेनडिट और अन्य अराजकतावादियों की थी जिनको लगा कि राज्य व्यवस्था से सीधा गैर-राज्य व्यवस्था तक जाना संभव है।
अब हम वापस उत्तरी अमरीका की तरफ रुख करते हैं। हम रैडिकल छात्रों के साथ खड़े हो सकते हैं। हम उन्हें संगठन बनाने और पैना हथियार तैयार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
ऐसा करने के लिए उन्हें अनुशासित होने की आवश्यकता है, और उन्हें कम से कम व्यवस्था का दार्शनिक तोड़ तो सोचना ही होगा। इसका मतलब यह नहीं कि केवल इससे इंसान व्यक्तिगत तौर पर आज़ाद हो जाएंगे। इंसान व्यक्तिगत तौर पर तब तक आज़ाद नहीं हो सकता जब तक राज्य अस्तित्व में है। मेरा ऐसा मानना है—और यह बात मैं बार-बार दोहराना नहीं चाहता—कि इस व्यवस्था को बदलना अराजकतावादियों के लिए अभी मुमकिन नहीं है।
जहां तक कालों का सवाल है, हम व्यक्तिगत आज़ादी को हासिल करने और अभिव्यक्ति की आज़ादी पाने के प्रयास पर नहीं अटके हैं, क्योंकि हम व्यक्तिगत तौर पर नहीं बल्कि सामूहिक तौर पर व्यवस्था के खिलाफ हैं। हमारी उन्नति या हमारी स्वतंत्रता पहले हमारे समूह को आज़ाद करने पर आधारित है। कम से कम एक हद तक सामूहिक तौर से आज़ाद होने पर। अपनी स्वतंत्रता जीतने के बाद हमारे लोग व्यक्तिगत तौर पर आज़ाद नहीं होंगे। मेरा ऐसा मानना है कि आगे चल कर काले खुद कालों द्वारा संगठित और व्यवस्थित की गई लीडरशिप के खिलाफ विरोध करेंगे। वे संगठन की खामियों को देख पाएंगे, जो उन्हें व्यक्तिगत तौर पर सीमित करेंगी, जो उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी में बाधा डालेंगी। लेकिन यह सब सिर्फ़ सामूहिक तौर पर स्वतंत्र होने के बाद ही हो सकता है।
यही वह चीज़ है जिसके कारण हमारा समूह गोरे अराजकतावादियों से भिन्न हैं—इसके अलावा कि वे अपने समूह को पहले से ही स्वतंत्र समझते हैं। और अब वे व्यक्तिगत आज़ादी की लड़ाई में लग गए हैं। यह बहुत बड़ा फर्क है। हम अपनी व्यक्तिगत आज़ादी की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, हम अपने समूह की आज़ादी के लिए संघर्षरत हैं। आने वाले समय में ऐसा विरोध भी हो सकता है जहां काले कहेंगे, “देखो, सख्त अनुशासन के कारण हमारी लीडरशिप हमारी आज़ादी पर प्रतिबंध लगा रही है। अब जब सामूहिक रूप से हमने अपनी स्वतंत्रता हासिल कर ली है, तो हम अपनी व्यक्तिगत आज़ादी की लड़ाई भी लड़ सकते हैं, जिसका किसी भी तरह के अनुशासित ग्रुप या राज्य व्यवस्था से कोई लेना देना नहीं होगा।” और इस तरह समूह भंग कर दिया जाएगा, और समूहों का भंग होना भी ज़रूरी है।
लेकिन अभी हमें अनुशासन और संगठन पर ज़ोर देना होगा, हम ऐसे किसी भी नशे के पदार्थों को इस्तेमाल करने पर ज़ोर नहीं दे रहे जिनका मकसद केवल व्यक्तिगत मानसिक विस्तार से हो। हम लोगों के समूह के लिए स्वतंत्रता जीतने की कोशिश कर रहे हैं, और इसी कारण हमारा संघर्ष गोरों के संघर्ष से थोड़ा भिन्न है।
अब हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि दोनों में क्या समानता है। इनकी समानता इस चीज़ में है कि दोनों ही आज़ादी पाने का संघर्ष कर रहे हैं। वे आज़ाद नहीं हो सकते—गोरे अराजकतावादी तब तक आज़ाद नहीं हो सकते—जब तक हम आज़ाद नहीं हो जाते और इसलिए हमारी लड़ाई वास्तव में उनकी भी लड़ाई है। यह साम्राज्यवादी और संपत्तिजीवियों द्वारा संचालित नौकरशाह पूंजीवादी व्यवस्था उन्हें व्यक्तिगत आज़ादी तब तक नहीं देगी जब तक वे रंग और नस्ल के आधार पर एक पूरे समूह का शोषण करते रहेंगे। उनको कैसे लग सकता है कि उन्हें व्यक्तिगत आज़ादी मिल जाएगी जब साम्राज्यवादी पूरी की पूरी कौमों को शोषित कर रहे हैं। जब तक हम सामूहिक रूप से स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते, तब तक गोरे व्यक्तिगत रूप से आज़ादी हासिल नहीं कर पाएंगे। तो यह हमारी लड़ाई को एक बनाता है, और हमें इस बात को परिप्रेक्ष्य में रख कर हमेशा समानताओं और असमानताओं को देखते रहना होगा।
दोनों लड़ाइयों में बहुत गहरा फर्क है और कुछ एक जैसा भी है। दोनों ही आज़ादी की ओर संघर्षरत हैं और दोनों ही अपने लोगों की स्वतंत्रता भी चाहते हैं, केवल एक समूह लड़ाई में दूसरे से ज़्यादा आगे है। अराजकतावादी पायदान पर ऊपर के स्थान पर हैं, लेकिन केवल सैद्धांतिक रूप से। जहां तक वास्तविक परिस्थितियों की बात है, उन्हें उस पायदान पर नहीं होना चाहिए। उनको साम्राज्यवादी व्यवस्था को अनुशासित समूहों द्वारा मिटाये जाने की ज़रूरत को समझना चाहिए और संगठन बनाने की ओर कार्य करने चाहिए, जैसे हम कर रहे हैं।