कैसा लगता है जब किसी दूर देश की भीड़ आपके देश का प्रतिनिधित्व करने वाले सैनिक को गोली मार देती है

सियाचिन पर ठिठुरते जवानों के बारे में सोच कर आपको बुरा लगता है क्या? अगर हां तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन सवाल ये है कि आपको अपने ही शहर या गांव के किसी बेघर गरीब को ठिठुरते हुए देख कर बुरा क्यों नहीं लगता? उसको कैसे आप इत्ती आसानी से नजरंदाज कर देते हैं? ऐसे ही कुछ सवाल इस कहानी में उठाए गए हैं।

कैसा लगता है जब किसी दूर देश की भीड़ आपके देश का प्रतिनिधित्व करने वाले सैनिक को गोली मार देती है

पटचित्र: Encyclopedia Britannica

अनुवादक: चन्दन पाण्डेय 
स्त्रोत: The Guardian 

उस आदमी को अचानक बड़ी घबराहट हुई। वह एक साथ चिंतित और व्यग्र हो उठा। ये भावनाएं उसके तईं अजनबी थीं। वह लगभग एक साल से इनसे जूझ रहा था। कभी वह खुद को अपने घर के इर्द-गिर्द यूं ही घूमते पाता, बगैर यह जाने कि उसके भीतर पनपे इस तनाव की वजह क्या है।

आकाश साफ होता, सूरज ऊपर तना हुआ, सब बढ़िया, फिर भी वह किसी अनजानी हड़बड़ी का शिकार लगता। वह कोई किताब पढ़ने के लिए बैठता और तुरंत ही उठ खड़ा होता। उसे ऐसा लगता कि जैसे उसे कोई जरूरी फोन करना है। मगर फोन तक पहुंचकर उसे ख्याल आता कि फोन तो उसे करना ही नहीं था, लेकिन खिड़की के बाहर कुछ ऐसी चीज थी, जिसकी उसे देख-रेख करनी थी।

उसके अहाते में कोई ऐसी चीज थी, जिसकी उसे मरम्मत करनी थी। उसे गाड़ी से कहीं जाना था, उसे फटाफट दौड़ लगाकर वापस आना था। सुबह के अख़बार में उसने वह तस्वीर देख ली थी। उसने ट्रक के नीचे पड़े सैनिक के शव की तस्वीर देखी थी। उसकी वर्दी भूरे रंग की थी। वह पीठ के बल पड़ा था, उसके जूते की नोक ऊपर की ओर थी और दोपहर की धूप में वे लगभग सफेद दिख रहे थे।

इस बीच यह आदमी अपने घर पर गर्म मौजे-दास्ताने पहने, आराम से बैठकर चिकने भारी ग्लास में संतरे का जूस पी रहा था और मृत सैनिक की रंगीन फोटोग्राफ देख रहा था। वह ध्यान से तस्वीर का अध्ययन कर रहा था। उसे एहसास हुआ कि असल में वह खून को तलाश रहा था—सैनिक को गोली कहां लगी थी? खून तो कहीं नज़र नहीं आ रहा था।

उसने पन्ना पलटा, लेकिन तुरंत ही वह उसी पन्ने पर यह देखने के लिए लौट आया कि क्या मृत सैनिक की इस तस्वीर के फ्रेम में उस सुदूर देश के भी निवासी हैं? ना, वे लोग नहीं थे। वह उठ खड़ा हुआ। उसने दूर के कारखाने से उठते धुएं की तरंग को क्षितिज में सरकते और मिल जाते देखा। यह आदमी खुद को इस तरह बिखरा हुआ क्यों पा रहा था? इस तरह लुटा-पिटा क्यों पा रहा था? उसे लग रहा था कि जैसे उसे ही किसी ने मारा हो और उसका बलात्कार किया हो। अगर कोई सैनिक उसके अपने ही देश में मार दिया जाए, धराशायी कर दिया जाए, तब तो इस आदमी को इतना दु:ख नहीं होगा या उसके अंदर ऐसी दिशाहीन घृणा नहीं उपजेगी।

ये एहसासात उसे तब तो नहीं होते थे, जब वह किसी बाप द्वारा अपने ही बच्चों के मर्डर के बारे में सुनता था, या रेलगाड़ियों के भिड़ने के बारे में सुनता था जिसमें बहुत से लोग ने जान गंवाई हो, या फिर बूढ़े युगल के बारे में सुनता था जिन्हें बांधकर बेरहमी से मार दिया गया हो। लेकिन अब दुनिया के दूसरे कोने में अपनी गाड़ी से खींच लिया गया यह सैनिक, उसका रक्त-विहीन मृत शव, जो ट्रक के नीचे धूल में पड़ा है—यह सब इस आदमी को इतना व्याकुल क्यों कर रहा है, उसको इतना निजी क्यों लग रहा है?

आज के दिन उसे करने को बहुत सारे काम है, पर वह उनमें से कोई काम नहीं करेगा।

 

 

डेव एगर्स
डेव एगर्स

डेव एगर्स अमरीकी लेखक, संपादक और प्रकाशक हैं। उनकी पहली किताब, ए हार्टब्रेकिंग वर्क ऑफ स्टैगरिंग जीन्यस 2000 में बेस्टसेलर बनी। वे मानवाधिकार गैर-सरकारी संगठन वॉयस ऑफ विटनेस (गवाहों की आवाज) के सह-संस्थापक हैं। वह टिमोथी मकस्वीनीज़ कॉर्टर्ली जर्नल नाम की साहित्यिक पत्रिका के भी संस्थापक हैं। डेव एगर्स अमरीकी लेखक, संपादक और प्रकाशक हैं। उनकी पहली किताब, ए हार्टब्रेकिंग वर्क ऑफ स्टैगरिंग जीन्यस 2000 में बेस्टसेलर बनी। वे मानवाधिकार गैर-सरकारी संगठन वॉयस ऑफ विटनेस (गवाहों की आवाज) के सह-संस्थापक हैं। वह टिमोथी मकस्वीनीज़ कॉर्टर्ली जर्नल नाम की साहित्यिक पत्रिका के भी संस्थापक हैं।