अनुवादक: अक्षत जैन
मक्खियों का देवता
मक्खियों ने अपने भगवान की परिकल्पना की। वह भी मक्खी ही था। मक्खियों का देवता मक्खी था। वह कभी हरा, कभी काला, कभी सुनहरा, कभी गुलाबी, कभी सफेद और कभी बैंगनी होता। वह अकल्पनीय मक्खी था। वह एक सुंदर मक्खी, राक्षसी मक्खी, भयानक मक्खी, परोपकारी मक्खी, प्रतिशोधी मक्खी, न्यायोचित मक्खी और जवान मक्खी था। मगर इतने प्रकार का होने के बाद भी वह हमेशा मक्खी ही होता। कुछ जब उसका आकार बढ़ाकर बताते तो उसकी तुलना सांड से की जाती। वहीं कुछ उसे इतना छोटा समझते कि आप उसे देख भी न पाएं। कई धर्मों में उसके पंख नहीं थे (‘वो उड़ता तो है,’ वे तर्क देते, ‘मगर उसे पंखों की जरूरत नहीं है।’) और कई धर्मों में उसके अनगिनत पंख थे। अगर यहां माना जाता कि उसके एंटीना सींग की तरह हैं तो वहां माना जाता कि उसकी इतनी आंखें हैं कि उसका पूरा सिर उन्हीं से भरा होता है। कुछ के हिसाब से वह पूरे वक्त भिनभिनाता रहता है, तो कुछ के मुताबिक वह मूक है, मगर फिर भी संवाद कर सकता है। मगर सभी के हिसाब से जब मक्खियों की मृत्यु होती है तो वह उन्हें ऊपर जन्नत में ले जाता है। जन्नत एक सड़ता हुआ बदबूदार गोश्त का टुकड़ा है, जिसे मरी हुई मक्खियों की आत्माएं अनंत काल तक कुतर सकती हैं, फिर भी वह कभी खत्म नहीं होगा; क्योंकि स्वर्गीय कचरे का यह ढेर अच्छी मक्खियों के खाने के लिए बार-बार पुनर्जन्म लेता रहता है। मगर अच्छी मक्खियों के साथ बुरी मक्खियां भी हैं, और उनके लिए जहन्नुम है। दंडित मक्खियों के लिए जहन्नुम ऐसी जगह है, जहां कोई मलमूत्र नहीं है, कोई कूड़ा-कर्कट या बदबू नहीं है। वहां पर किसी भी प्रकार का कुछ भी खाद्य पदार्थ नहीं है; वह एक ऐसी जगह है, जो सफाई से चमक रही है और सफेद रोशनी से रोशन हो रही है; दूसरे शब्दों में कहें तो वह एक ईश्वरहीन जगह है।
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कयामत
लगभग 32वीं सदी के अंत तक मानवजाति विलुप्त हो गई। यह कुछ ऐसे हुआ: मशीनें इतनी आगे बढ़ गईं कि इंसानों को कुछ करने की जरूरत ही न थी . . . न खाने की न सोने की, न बोलने की न पढ़ने की, न लिखने की न सोचने की। उनको सिर्फ एक बटन दबाने की देर थी और मशीनें उनके लिए सब कर देतीं। धीरे-धीरे चीजें गायब होने लगीं . . . मेज, कुर्सी, गुलाब, नुसरत साहब की कव्वालियां, प्राचीन वस्तुओं की दुकानें, हिमाचल के सेब, मुग़लों के मकबरे, कबीर के सारे दोहे, शतरंज, दूरबीन, ताज महल, क्रिकेट के स्टेडियम, सांची के स्तूप, नालंदा के खंडहर, गाड़ियां, चावल, खजुराहो के मंदिर, बोधी वृक्ष इत्यादि। सब कुछ ख़त्म हो गया। सिर्फ मशीनें बचीं। फिर अगस्त में लोगों ने देखा कि वे भी गायब होने लगे . . . जबकि मशीनों की तादाद तेजी से बढ़ती गई। लोगों की संख्या आधी होने में और मशीनों की संख्या दोगुनी होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। आखिरकार मशीनों ने सारी जगह हड़प ली। बिना उनसे टकराये एक कदम चलना भी नामुमकिन हो गया। फिर अंत में इंसानों को खत्म कर दिया गया, क्योंकि वे मशीनों के तार काटना भूल गए, तो हम अभी भी चालू हैं।
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चीन का सम्राट
चीन के सम्राट की अपने विशाल बिस्तर पर लेटे-लेटे मृत्यु हो गई। बहुत समय तक शाही महल की गहराई में पड़ा सम्राट का शव किसी को नहीं दिखा। सब सम्राट के शाही आदेशों का पालन करने में इतने व्यस्त थे कि किसी को भनक भी नहीं पड़ी कि सम्राट की मृत्यु हो चुकी है। सम्राट की मृत्यु का सिर्फ़ एक ही आदमी को पता था, और वह था प्रधानमंत्री, जो सिंहासन पर बैठकर राज करने के लिए बहुत उत्सुक था। उसने सम्राट की मृत्यु के बारे में किसी को नहीं बताया और उनके मृत शरीर को ढंक दिया। वह साल साम्राज्य के लिए बहुत कुशल रहा। फिर एक दिन प्रधानमंत्री ने जनता के सामने सम्राट का अवशेष प्रस्तुत किया।
‘क्या आप सब देख सकते हैं?’ उसने जनता से पूछा, ‘पूरे एक साल तक एक मुर्दा आदमी इस सिंहासन पर बैठा रहा। मगर वास्तव में शासन मैं चला रहा था। इसका मतलब है कि मैं सम्राट बनने के योग्य हूं।’
प्रधानमंत्री के खुलासे से प्रसन्न होकर जनता ने उसे सिंहासन पर बैठा दिया। फिर उसे भी मार दिया, ताकि उसका शासन भी पिछले सम्राट जितना ही अच्छा हो और साम्राज्य आगे भी समृद्ध होता रहे।