इज़राइल-फलस्तीन संघर्ष के बारे में कितना जानते हैं आप? एक ऐतिहासिक विवरण

पिछली आधी सदी से ज्यादा समय से चला आ रहे इजराइल-फलस्तीन संघर्ष में अब तक हजारों लोग मारे जा चुके हैं और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं। मगर अभी तक इस संघर्ष का कोई समाधान होता नज़र नहीं आ रहा है। हालांकि अतीत में विश्व शक्तियों ने कई बार इस संघर्ष के समाधान के रूप में द्वि-राष्ट्र सिद्धांत (इजराइल के समकक्ष एक फलस्तीन राष्ट्र का निर्माण) पर अमल करने का आह्वान किया है, मगर यह योजना कभी भी परवान नहीं चढ़ सकी। इसकी वजह या तो विश्व शक्तियों में इस सिद्धांत पर अमल करने की प्रतिबद्धता में कमी रही है, या फिर मध्य-पूर्व पर उनकी पकड़ कमज़ोर हो जाने का डर रहा है। वैसा अगर देखा जाए तो इस संघर्ष का भविष्य इसके अतीत में निहित है। जिसके बारे में हम इस लेख में जानेंगे।

इज़राइल-फलस्तीन संघर्ष के बारे में कितना जानते हैं आप? एक ऐतिहासिक विवरण

1948 में इज़राइल राज्य के निर्माण के लगभग पांच महीने बाद गलील के एक गाँव से भागते समय फ़िलिस्तीनी अपनी संपत्ति अपने सिर पर ले जा रहे हैं।

स्त्रोत: Al Jazeera 
अनुवादक: शहादत 

इज़राइल-फलस्तीन संघर्ष ने हजारों लोगों की जान ले ली है और लाखों लोग विस्थापित हो गए हैं। अगर अतीत में पीछे मुड़कर देखा जाए तो इस पूरे विवाद की जड़ें एक सदी से भी अधिक समय पहले ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा किए गए औपनिवेशिक कृत्य में निहित है।

शनिवार को सशस्त्र फलस्तीन समूह हमास द्वारा अभूतपूर्व हमले के बाद इजराइल द्वारा गाजा पट्टी पर युद्ध की घोषणा के साथ दुनिया की निगाहें एक बार फिर इस तथ्य पर केंद्रित हो गई हैं कि आगे क्या हो सकता है

हमास के लड़ाकों द्वारा दक्षिणी इज़राइल के कई शहरों पर किए गए हमले में 1200 से अधिक इज़राइली मारे गए हैं। इस हमले के जवाब में इजराइल द्वारा गाजा पट्टी पर शुरू की गई बमबारी में अभी तक 1000 से ज्यादा फलस्तीनी मारे गये हैं और पांच हज़ार से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं। इसके साथ ही इज़राइली फ़ौज ने ज़मीनी हमले की तैयारी के लिए गाजा सीमा पर सैनिकों को तैनात करना शुरू कर दिया है। बीते सोमवार को इज़राइली फ़ौज ने गाजा पट्टी की ‘संपूर्ण नाकाबंदी’ की घोषणा की थी। इसके साथ ही इज़राइली सरकार ने पहले से ही चारों ओर से घिरे इस इलाके में भोजन, ईंधन, बिजली और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पर पूरी तरह रोक लगा दी है, जो अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत युद्ध अपराध के बराबर है।

लेकिन आने वाले दि नों और हफ्तों में जो भी घटित होगा उसका बीज इतिहास में पाया जा सकता है।

दशकों से पश्चिमी मीडिया आउटलेट्स, स्कॉलर्स, आर्मी एक्सपर्ट्स और वैश्विक नेताओं ने बताया है कि इजरायल-फलस्तीन संघर्ष इतना जटिल है कि उसको हल करना लगभग नामुमकिन है।

दुनिया के सबसे लंबे समय से चल रहे संघर्षों में से एक इस संघर्ष को समझने के लिए यहां तिथिवार एक सरल और आसान विवरण दिया जा रहा है:

बाल्फोर घोषणा क्या थी?

  • 100 से अधिक साल पहले 2 नवंबर 1917 को ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश सचिव आर्थर बालफोर ने ब्रिटिश यहूदी समुदाय के प्रमुख लियोनेल वाल्टर रोथ्सचाइल्ड को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा था।
  • पत्र छोटा था—केवल 67 शब्दलेकिन इस पत्र में बयान किए तथ्यों का फलस्तीन पर एक भूकंपीय प्रभाव पड़ा, जिसका कंपन आज तक महसूस किया जाता है।
  • इस पत्र ने ब्रिटिश सरकार कोफलस्तीन में यहूदी लोगों के लिए उनके ख़ुद के राष्ट्र की स्थापनाऔरइस उद्देश्य की उपलब्धिको सुविधाजनक बनाने के लिए प्रतिबद्ध किया। इस पत्र को बाल्फोर घोषणा के नाम से जाना जाता है।
  • संक्षेप में एक यूरोपीय शक्ति ने ज़ायोनी आंदोलन को एक ऐसा देश देने का वादा किया, जहां अरब मूल के फ़िलिस्तीनियों की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी रहती थी।
  • 1923 में एक ब्रिटिश जनादेश लाया गया, जो 1948 तक चला। इस अवधि के दौरान, अंग्रेजों ने बड़े पैमाने पर यहूदी आप्रवासन की सुविधा दीइनमें बहुत से यहूदी यूरोप में नाज़ीवाद के डर से भाग रहे थेऔर उन्हें विरोध और हिंसा का भी सामना करना पड़ रहा था। वहीं फलस्तीनी अपने देश की बदलती जनसांख्यिकी और ब्रिटिश द्वारा उनकी भूमि को जब्त करके यहूदी सेट्लर को सौंपे जाने से चिंतित थे।

1930 के दशक के दौरान क्या हुआ था?

  • बढ़ते तनाव के कारण अंततः अरब विद्रोह हुआ, जो 1936 से 1939 तक चला।
  • अप्रैल 1936 में नवगठित अरब राष्ट्रीय समिति ने फ़लस्तीनियों से ब्रिटिश उपनिवेशवाद और बढ़ते यहूदी आप्रवासन के विरोध में एक आम हड़ताल शुरू करने, कर भुगतान रोकने और यहूदी उत्पादों का बहिष्कार करने का आह्वान किया।
  • छह महीने की हड़ताल को अंग्रेजों ने बेरहमी से दबा दिया। ब्रिटिश अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी अभियान चलाया और विरोध तोड़ने के लिए सजा के तौर पर सैकड़ों फ़लस्तीनियों के घर तोड़ गिराए फलस्तीनियों के खिलाफ़ इज़राइल आज भी यही तरकीबें इस्तेमाल कर रहा है।
  • विद्रोह का दूसरा चरण 1937 के अंत में शुरू हुआ और इसका नेतृत्व फलस्तीन किसान प्रतिरोध आंदोलन ने किया, जिसने ब्रिटिश सेनाओं और उपनिवेशवाद को निशाना बनाया।
  • 1939 की दूसरी छमाही तक ब्रिटेन ने फलस्तीन में 30,000 सैनिक तैनात कर दिए। गांवों पर हवाई बमबारी की गई, कर्फ्यू लगाया गया, घरों को ध्वस्त कर दिया गया, सैकड़ों लोगों को प्रशासनिक हिरासत में लिया गया और व्यापक रूप से हत्याएं की गईं।
  • साथ ही अंग्रेजों ने फलस्तनियों की ज़मीन पर कब्ज़ा करके बसने वाले यहूदी समुदाय का सहयोग किया और सशस्त्र समूहों और ब्रिटिश नेतृत्व वाले यहूदी लड़ाकों केआतंकवाद विरोधी बलका गठन किया, जिसे स्पेशल नाइट स्क्वाड नाम दिया गया।
  • राज्य के बनने के पूर्व, ‘यिशुव’ नाम के यहूदी निवासी समुदाय  द्वारा हथियारों को गुप्त रूप से आयात किया गया और यहूदी अर्धसैनिक हगनाह का विस्तार करने के लिए हथियार कारखानों की स्थापना की गई। यही हगनाह बाद में इजराइली सेना का केंद्र बन गया।
  • विद्रोह के उन तीन वर्षों में 5,000 फलस्तीन मारे गए, 15,000 से 20,000 घायल हुए और 5,600 को जेल में डाल दिया गया।

 

संयुक्त राष्ट्र पार्टिशन प्लान क्या था?

  • 1947 तक फलस्तीन में यहूदी आबादी 33 प्रतिशत हो गई, लेकिन उनके पास केवल 6 प्रतिशत भूमि थी।
  • संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 181 को अपनाया, जिसमें फलस्तीन को अरब राष्ट्र और यहूदी राष्ट्र में विभाजित करने का आह्वान किया गया।
  • फ़िलिस्तीनियों ने इस योजना को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि इसमें फलस्तीन का लगभग 56 प्रतिशत हिस्सा यहूदी राज्य को दिया गया था, जिसमें अधिकांश उपजाऊ तटीय क्षेत्र भी शामिल थे।
  • उस समय फ़लस्तीनियों के पास ऐतिहासिक फलस्तीन का 94 प्रतिशत हिस्सा था और इसमें 67 प्रतिशत आबादी उनकी थी।

 

1948 का नकबा, अर्थात् फलस्तीन का जातीय सफाया

  • 14 मई 1948 को ब्रिटिश जनादेश समाप्त होने से पहले ही यहूदी अर्धसैनिक बल जन्म लेते यहूदी राष्ट्र की सीमाओं का विस्तार करने के लिए फलस्तीन शहरों और गांवों को नष्ट करने के लिए सैन्य अभियान शुरू कर चुके थे।
  • अप्रैल 1948 में यरूशलम के बाहरी इलाके में डेर यासीन गांव में 100 से अधिक फलस्तीन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की हत्या कर दी गई।
  • इसने बाकी ऑपरेशन्स के लिए भी माहौल तैयार कर दिया। इसके बाद 1947 से 1949 तक 500 से अधिक फलस्तीनी गांवों, कस्बों और शहरों को नष्ट कर दिया गया। इस हादसे को फलस्तीनी नकबा कहते हैं, जिसका अरबी में अर्थ है तबाही
  • इन ऑपरेशन्स में अनुमानतः 15,000 फलस्तीन मारे गए, जिनमें दर्जनों नरसंहार भी शामिल है।
  • यहूदी आंदोलन ने ऐतिहासिक फलस्तीन के 78 प्रतिशत हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया। शेष 22 प्रतिशत को वेस्ट बैंक (जिस पर अब इजराइल ने कब्ज़ा कर लिया है) और चारो ओर से घिरे गाजा पट्टी में विभाजित किया गया।
  • अनुमानतः 750,000 फलस्तीनियों को ज़बरदस्ती उनके घरों से बाहर निकाल दिया गया।
  • आज उनके वंशज पूरे फलस्तीन और पड़ोसी देशों लेबनान, सीरिया, जॉर्डन और मिस्र में 58 गंदे शिविरों में साठ लाख शरणार्थियों के रूप में रहते हैं।
  • 15 मई 1948 को इजराइल ने अपनी स्थापना की घोषणा की।
  • अगले दिन पहला अरब-इजराइल युद्ध शुरू हुआ और जनवरी 1949 में इज़राइल और मिस्र, लेबनान, जॉर्डन और सीरिया के बीच युद्धविराम के बाद लड़ाई समाप्त हो गई।
  • दिसंबर 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव 194 पारित किया, जिसमें फलस्तीन शरणार्थियों के वापसी के अधिकार की मांग की गई।

 

नकबा के बाद के वर्ष

  • कम से कम 150,000 फलस्तीन नव-निर्मित इज़राइल राज्य में रहे और अंततः उन्हें इज़राइली नागरिकता दिए जाने से पहले 20 वर्षों तक कड़े नियंत्रण वाले सैन्य कब्जे में रखा गया।
  • मिस्र ने गाजा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया और 1950 में जॉर्डन ने वेस्ट बैंक पर अपना प्रशासनिक शासन शुरू कर दिया।
  • 1964 में फलस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) का गठन किया गया। इसके एक साल बाद राजनीतिक दलफतहकी स्थापना की गई।

नक्सा, या छह दिवसीय युद्ध और उपनिवेशण

  • 5 जून 1967 को अरब सेनाओं के गठबंधन के खिलाफ छह दिवसीय युद्ध के दौरान इज़राइल ने गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक, पूर्वी येरुशलम, सीरियाई गोलान हाइट्स और मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप सहित ऐतिहासिक फलस्तीन के बाकी हिस्सों पर भी कब्जा कर लिया।
  • कुछ फ़लस्तीनियों के लिए यह दूसरी बार जबरन विस्थापन या नक्सा का कारण बना, जिसका अरबी में अर्थ होता हैझटका
  • दिसंबर 1967 में फलस्तीन की मुक्ति के लिए मार्क्सवादी-लेनिनवादी पॉपुलर फ्रंट का गठन किया गया। अगले दशक में वामपंथी समूहों द्वारा हमलों और विमान अपहरणों की एक श्रृंखला ने फलस्तीनियों की दुर्दशा की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया।
  • कब्ज़ा किए गए वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में इज़राइल ने अपना निर्माण कार्य शुरू कर दिया। इसके तहत दो-स्तरीय प्रणाली बनाई गई, जिसमें बसने वालों यहूदियों को इजरायली नागरिक होने के सभी अधिकार और विशेषाधिकार दिए गए, जबकि फलस्तीनियों को एक सैन्य कब्जे के तहत रहना था, जो उनके खिलाफ भेदभाव करता और किसी भी प्रकार की राजनीतिक या नागरिक अभिव्यक्ति पर रोक लगाता था।

 

पहला इंतिफ़ादा 1987-1993

  • पहला फलस्तीनी इंतिफ़ादा दिसंबर 1987 में गाजा पट्टी में भड़का था, जब एक इज़रायली ट्रक और फलस्तीन श्रमिकों को ले जा रही दो वैनों की टक्कर में चार फलस्तीनी श्रमिक मारे गए।
  • युवा फलस्तीनियों द्वारा इजरायली सेना के टैंकों और सैनिकों पर पथराव के साथ विरोध प्रदर्शन तेजी से वेस्ट बैंक में भी फैल गया।
  • इसी विरोध-प्रदर्शन से हमास आंदोलन की शुरुआत भी हुई, जो मुस्लिम ब्रदरहुड की एक शाखा थी। यह इजरायली कब्जे के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध में सक्रिय थे।
  • इज़रायली सेना की कठोर प्रतिक्रिया को तत्कालीन रक्षा मंत्री यित्ज़ाक रॉबिन द्वारा समर्थित ‘हड्डी तोड़ोपॉलिसी द्वारा समझा जा सकता है। इस पॉलिसी में हत्याएं, यूनिवर्सिटीज को बंद करना, एक्टिविस्ट्स को निर्वासित करना और फलस्तीनियों के घरों को तबाह करना शामिल था।
  • इंतिफादा मुख्य रूप से युवा लोगों द्वारा किया गया था और विद्रोह के एकीकृत राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा निर्देशित किया गया था। यह फलस्तीन राजनीतिक गुटों का एक गठबंधन था, जो इजरायल के कब्जे को समाप्त करने और फलस्तीन की आज़ादी को हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध था।
  • 1988 में अरब लीग ने पीएलओ को फलस्तीन लोगों के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी।
  • इंतिफ़ादा की विशेषता लोकप्रिय लामबंदी, बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन, सविनय अवज्ञा, सुसंगठित हड़तालें और सांप्रदायिक सहकारी समितियां थीं।
  • इज़रायली मानवाधिकार संगठन बीत्सेलम के अनुसार, इंतिफ़ादा के दौरान इज़रायली सेना द्वारा 1,070 फलस्तीनी मारे गए, जिनमें 237 बच्चे भी शामिल थे। इसके अलावा, 175,000 से अधिक फलस्तीनियों को गिरफ्तार किया गया।
  • इंतिफादा ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस संघर्ष का समाधान खोजने के लिए भी प्रेरित किया।

ओस्लो समझौते के वर्ष और फलस्तीनी प्राधिकरण

  • यह इंतिफादा 1993 में ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर करने और फलस्तीनी प्राधिकरण (पीए) के गठन के साथ समाप्त हुआ। इसके तहत एक अंतरिम सरकार स्थापित की गई, जिसे कब्जे वाले वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में सीमित स्व-शासन का अधिकार दिया गया।
  • पीएलओ ने द्वि-राष्ट्र समाधान के आधार पर इज़राइल को मान्यता दी और ऐसे समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिन्होंने प्रभावी रूप से इज़राइल को वेस्ट बैंक की 60 प्रतिशत जमीन और क्षेत्र के अधिकांश भूमि और जल संसाधनों पर नियंत्रण दे दिया।
  • पीए को पूर्वी येरुशलम में अपनी राजधानी के साथ वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में स्वतंत्र राज्य चलाने वाली पहली निर्वाचित फलस्तीन सरकार के लिए रास्ता बनाना था, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ।
  • पीए के आलोचक इसे इजरायली कब्जे के एक भ्रष्ट दलाल के रूप में देखते हैं, जो इजरायल के खिलाफ असहमति और राजनीतिक सक्रियता पर रोक लगाने में इजरायली सेना का सहयोग करती है।
  • 1995 में इज़राइल ने गाजा पट्टी के चारों ओर एक इलेक्ट्रॉनिक बाड़ और कंक्रीट की दीवार बनाई, जिससे विभाजित फलस्तीनी क्षेत्रों के बीच संपर्क बाधित हो गया।

 

दूसरा इंतिफादा

  • दूसरा इंतिफादा 28 सितंबर 2000 को शुरू हुआ, जब विपक्षी पार्टी लिकुड के नेता एरियल शेरोन ने यरूशलम के पुराने शहर और उसके आसपास हजारों सुरक्षा बलों को तैनात करते हुए अल-अक्सा मस्जिद परिसर का भड़काने वाला दौरा किया।
  • फलस्तीनी प्रदर्शनकारियों और इज़रायली बलों के बीच दो दिनों में हुई झड़पों में पांच फलस्तीनी मारे गए और 200 घायल हो गए।
  • इस घटना ने व्यापक सशस्त्र विद्रोह को जन्म दिया। इंतिफादा के दौरान इजराइल ने फलस्तीन अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे को अभूतपूर्व नुकसान पहुंचाया।
  • इज़राइल ने फलस्तीन प्राधिकरण द्वारा शासित क्षेत्रों पर फिर से कब्जा कर लिया और दोनों क्षेत्रों को विभाजित करने वाली दीवार और बड़े पैमाने पर कॉलोनियों के निर्माण को शुरू कर दिया, जिसने फलस्तीनियों की आजीविका और समुदायों को नष्ट कर दिया।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत फलस्तीन की ज़मीन पर बसाई गईं यहूदी कॉलोनियों अवैध हैं, लेकिन इन सालों में सैकड़ों हजारों यहूदी सेट्लर कब्ज़ा की गई फलस्तीन ज़मीन पर बनी कॉलोनियों में रहने चले गए। फ़लस्तीनियों के लिए जगह कम होती जा रही है, क्योंकि केवल बसने वाले यहूदियों के इस्तेमाल के लिए खुली सड़कें और इमारतें कब्जे वाले वेस्ट बैंक को काट रहे हैं। इससे फलस्तीन शहरों और कस्बों कोबंटुस्टानमें तब्दील होने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिन्हें देश के पूर्व रंगभेदी शासन ने काले दक्षिण अफ्रीकियों को अलग रखने के लिए बनाया था।
  • जिस समय ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, पूर्वी येरुशलम सहित वेस्ट बैंक में 110,000 यहूदी निवासी रहते थे। आज फ़लस्तीनियों से छीनी गई 100,000 हेक्टेयर (390 वर्ग मील) से अधिक ज़मीन पर रहने वाले यहूदियों की संख्या 700,000 से अधिक हो गई है।

 

फलस्तीन का विभाजन और गाजा की नाकाबंदी

  • पीएलओ नेता यासिर अराफात की 2004 में मृत्यु हो गई। इसके एक साल बाद दूसरा इंतिफादा समाप्त हो गया, गाजा पट्टी में इजरायली बस्तियों को नष्ट कर दिया गया और इजरायली सैनिकों और 9,000 निवासियों ने एन्क्लेव छोड़ दिया।
  • एक साल बाद फ़लस्तीनियों ने पहली बार आम चुनाव में मतदान किया।
  • हमास ने बहुमत हासिल किया। हालांकि, फतह-हमास के बीच गृह युद्ध छिड़ गया, जो महीनों तक चला। इस गृह-युद्ध के परिणामस्वरूप सैकड़ों फलस्तीनियों की मौत हुई।
  • हमास ने फतह को गाजा पट्टी से निष्कासित कर दिया और फलस्तीन प्राधिकरण की मुख्य पार्टी फतह ने वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण फिर से शुरू कर दिया।
  • जून 2007 में इज़राइल ने हमास परआतंकवादका आरोप लगाते हुए गाजा पट्टी पर ज़मीन, वायु और नौसैनिक नाकाबंदी कर दी।

 

गाजा पट्टी के खिलाफ युद्ध

  • इज़राइल ने गाजा के खिलाफ़ चार लंबे सैन्य हमले किए हैं: 2008, 2012, 2014 और 2021 में। इन सैन्य अभियानों में सैंकड़ों बच्चों सहित हजारों फलस्तीन मारे गए और हजारों घर, स्कूल, घर और अपार्टमेंट नष्ट हो गए।
  • पुनर्निर्माण लगभग असंभव हो गया है, क्योंकि घेराबंदी स्टील और सीमेंट जैसी निर्माण सामग्री को गाजा तक पहुंचने से रोकती है।
  • 2008 के हमले में इज़राइली सेना द्वारा चारों ओर से घिरी गाजा पट्टी के निर्दोष और निहत्थे लोगों के खिलाफ़ फॉस्फोरस गैस जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित हथियार का उपयोग किया गया था।
  • 2014 में 50 दिनों लंबे सैन्य अभियान के दौरान इज़राइली सेना ने 2,100 से अधिक फिलिस्तीनियों को मार डाला, जिनमें 1,462 नागरिक और करीब 500 बच्चे शामिल थे।
  • इजरायलियों द्वाराऑपरेशन प्रोटेक्टिव एजनाम दिए गए इस हमले के दौरान, लगभग 11,000 फलस्तीनी घायल हुए, 20,000 घर नष्ट हुए और पांच लाख लोग विस्थापित हुए।

अल जज़ीरा स्टाफ
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अल जज़ीरा कतर राज्य का अंतर्राष्ट्रीय समाचार टेलीविजन नेटवर्क है। यह दोहा में स्थित है और अल जज़ीरा मीडिया नेटवर्क द्वारा संचालित है। अल जज़ीरा कतर राज्य का अंतर्राष्ट्रीय समाचार टेलीविजन नेटवर्क है। यह दोहा में स्थित है और अल जज़ीरा मीडिया नेटवर्क द्वारा संचालित है।