अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर और हनोई के पोलित ब्यूरो के सदस्य ले डक थो, 13 जून, 1973 को वार्ता के बाद पेरिस में गिफ़-सुर-यवेटे में एक उपनगरीय घर के बाहर प्रेस कान्फ्रन्स में [File: Michel Lipchitz/AP]
अनुवादक: शहादत
स्त्रोत: Al Jazeera
स्पेनिश में एक मशहूर कहावत है, “नो हे माल क्यू ड्यूरे 100 एनोस, नी कुएरपो क्यू लो रेसिस्टा”। इसका मतलब है “कोई ऐसी बुराई नहीं है, जो 100 साल तक बनी रहे, न ही कोई ऐसा शरीर है, जो इसे सहन कर सके।” अपने 100वे जन्मदिन के छह महीने बाद 29 नवंबर को आखिरकार ऊपरवाले से मिलने से पहले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और राज्य सचिव हेनरी किसिंजर शायद इस कहावत को गलत ठहरने की कोशिश कर रहे थे।
उनके निधन के बाद दुनिया भर के मीडिया आउटलेट्स में श्रद्धांजलि और प्रशंसापत्रों की बाढ़ आ गई, कुछ ने उन्हें “विवादास्पद” कहा, वहीं कुछ ने उनकी विरासत की प्रशंसा की।
किसिंजर के अत्याचारों पर पर्दा डालने की इन कोशिशों के बीच हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह वास्तव में कौन था।
येल यूनिवर्सिटी के इतिहासकार ग्रेग ग्रैंडिन की पुस्तक ‘Kissinger’s Shadow’ (किसिंजर की परछाई) के अनुसार, यह वह व्यक्ति है, जो 1969 और 1977 के बीच अपने आठ वर्षों के कार्यकाल के दौरान तीन से चार मिलियन लोगों की हत्याओं के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार था। उसने जिन खूनी नीतियों को बढ़ावा दिया, उन्होंने बाद के वर्षों में अमेरिका के कभी न खत्म होने वाले युद्धों का मार्ग प्रशस्त किया।
किसिंजर को दुनिया भर में सोवियत संघ और कम्युनिस्ट प्रभाव को नियंत्रित करने के संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रयासों के वास्तुकार के रूप में देखा गया। अपने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसने आधुनिक इतिहास के कुछ सबसे क्रूर बमबारी अभियानों पर जोर देते हुए “बॉम्स ऑवर डिप्लोमैसी” दृष्टिकोण पेश किया।
यह दृष्टिकोण पहली बार वियतनाम युद्ध के दौरान लागू किया गया, जब अमेरिका कम्युनिस्टों को सत्ता संभालने से रोकने की कोशिश कर रहा था। किसिंजर उस समय राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में कार्यरत था। उसने न केवल वियतनाम बल्कि पड़ोसी कंबोडिया, जहां कंबोडियाई और वियतनामी गुरिल्ला दोनों सक्रिय थे, पर कार्पेट बॉम्बिंग के लिए दबाव डाला।
1969 में सैन्य हमले को गुप्त रूप से मंजूरी दे दी गई और कांग्रेस को सूचित किए बिना इसे आगे बढ़ा दिया गया। पेंटागन की अवर्गीकृत रिपोर्टों में यह पाया गया कि किसिंजर ने व्यक्तिगत रूप से 3,875 हवाई हमलों को मंजूरी दी थी, जिसमें अभियान के पहले वर्ष के भीतर कंबोडिया में लगभग 540,000 टन बम गिराए गए। आज भी निर्दोष वियतनामी और कंबोडियाई लोग बचे हुए अमेरिकी गोला-बारूद के विस्फोट से मारे जा रहे हैं।
कहने की जरूरत नहीं कि कार्पेट बमबारी ने कम्युनिस्टों को रोका तो बिल्कुल नहीं, बल्कि इससे वियतनामी और कंबोडियाई कम्युनिस्टों को सत्ता हासिल करने में मदद ही मिली। कंबोडिया में खमेर रूज देश के गृहयुद्ध में विजयी हुए और उन्होंने अनगिनत अत्याचार किए, जिसमें 1.5 से 20 लाख लोगों का नरसंहार भी शामिल है। जैसा कि टीवी शेफ एंथनी बॉर्डन ने कहा है, “अगर एक बार आप कंबोडिया चले जाएं तो आप हेनरी किसिंजर को अपने हाथों से पीट-पीट कर मार डालने की इच्छा करना कभी बंद नहीं करेंगे।”
दक्षिण पूर्व एशिया में युद्ध में उनकी भूमिका के लिए एक अजीबो-गरीब वारदात में किसिंजर को 1973 में प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह एक ऐसा युद्ध था जिसमें किसिंजर ने गुप्त रूप से निक्सन को अमेरिकी प्रशासन और हनोई के बीच शांति वार्ता में अड़चन डालने में मदद की थी। यह एक ऐसा युद्ध था जिसमें किसिंजर को केवल इस बात का अफ़सोस था कि उसने अमेरिका की जीत सुनिश्चित करने के लिए अधिक क्रूर बल का प्रयोग नहीं किया।
शांति पुरस्कार किसिंजर की क्रूरता के पीड़ितों के चेहरे पर एक तमाचा था और इस बात की एक और पुष्टि थी कि पश्चिम अपने स्वयं के युद्ध अपराधियों को कटघरे में खड़ा करने से इनकार करता है।
किसिंजर के अपराध वियतनाम और कंबोडिया से भी आगे तक फैले हुए हैं। दक्षिण एशिया में सोवियत-झुकाव वाले भारत के कारण अमेरिकी सहयोगी पाकिस्तान के पतन के बारे में चिंतित होकर किसिंजर ने इस्लामाबाद को ऐसे समय पर समर्थन दिया जब पाकिस्तानी सेनाएं 1970 के दशक की शुरुआत में पूर्वी पाकिस्तान की बंगाली आबादी के खिलाफ नरसंहार कर रही थीं। अत्याचारों के बारे में अमेरिकी राजनयिकों से कई चेतावनियां मिलने के बावजूद, किसिंजर ने पाकिस्तान हथियार भेजना जारी रखा।
1975 में किसिंजर ने कम्युनिस्ट-झुकाव वाली फ्रेटिलिन सरकार को गिराने के लिए ईस्ट तिमोर पर इंडोनेशियाई आक्रमण को भी हरी झंडी दी। हो रहे नरसंहार को, जिसके परिणामस्वरूप 200,000 से अधिक लोग मारे गए, मंजूरी देते हुए किसिंजर ने सुहार्तो को सलाह दी थी, “यह महत्वपूर्ण है कि आप जो भी करें, वह जल्दी से कामयाब हो।” यह अनुमान लगाया गया है कि 1999 तक कायम रहे इंडोनेशियाई कब्जे में प्रशांत द्वीप की आबादी का पांचवां हिस्सा मारा गया।
पूरे लैटिन अमेरिका में दक्षिणपंथी ताकतें और तख्तापलट की साजिश रचने वाले भी किसिंजर के समर्थन पर भरोसा कर सकते थे। 1973 में चिली के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति साल्वाडोर अलेंदे को अमेरिका और उसके राज्य सचिव के पूर्ण समर्थन के साथ तख्तापलट करके उखाड़ फेंका गया था। तीन साल बाद सेना द्वारा अर्जेंटीना के राष्ट्रपति इसाबेल पेरोन को उखाड़ फेंकने और सैन्य शासन स्थापित करने के बाद किसिंजर ने भयावह मानवाधिकारों के हनन को भी हरी झंडी दे दी।
2016 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अर्जेंटीना में “गंदे युद्ध” में अमेरिका की भूमिका पर खेद व्यक्त किया था। लेकिन इस प्रतीकात्मक माफ़ी के दो महीने के भीतर ही उनके प्रशासन ने इन नीतियों के मुख्य वास्तुकार को “प्रतिष्ठित पब्लिक सर्विस” पुरस्कार दिया।
मध्य पूर्व में शांति को तबाह करने में भी किसिंजर की प्रमुख भूमिका रही। उसने न केवल इज़राइल और अरब देशों के बीच मास्को से आए समझौते के प्रस्तावों को विफल कर दिया, बल्कि वाशिंगटन की ओर से आए प्रस्तावों को भी कमजोर कर दिया।
इज़राइल का कट्टर समर्थक होने के बावजूद, किसिंजर ने यहूदी जीवन के प्रति चौंकाने वाली उपेक्षा दिखाई। निक्सन के साथ बातचीत में उसे यह कहते हुए रिकॉर्ड किया गया: “सोवियत संघ से यहूदियों का प्रवासन अमेरिकी विदेश नीति का उद्देश्य नहीं है . . . और अगर वे सोवियत संघ में यहूदियों को गैस चैंबर में डालते हैं तो यह अमेरिकी चिंता का विषय नहीं है। यह ज्यादा से ज्यादा एक मानवीय चिंता है।”
राज्य सचिव के रूप में पद छोड़ने के बाद भी किसिंजर ने अपनी किताबों, इंटरव्यू, लेखों और अमेरिकी अधिकारियों को दी गई सलाहों में दुनिया भर में मौत और विनाश पर ज़ोर देना बंद नहीं किया।
एक इराकी के रूप में मुझे इराक युद्ध पर बुश प्रशासन के निर्णय लेने में उनकी आपराधिक भूमिका विशेष रूप से परेशान करने वाली लगती है। कंबोडिया और वियतनाम में बमबारी अभियान शानदार ढंग से विफल होने के बावजूद, बुश ने इराकी नागरिकों पर बमबारी करने का फैसला करते हुए अपनी “हैरानी करने और डराने वाली” रणनीति शुरू करते हुए किसिंजर पर भरोसा किया।
2006 में राष्ट्रपति को दी गई किसिंजर की सलाह सामान्य थी, “जीत ही सार्थक तरीके से बाहर निकलने की एकमात्र रणनीति है।” इसलिए बुश ने अमेरिकी सेना की संख्या में वृद्धि का सहारा लिया, जिसके कारण आम नागरिकों के मरने की संख्या में तीव्र वृद्धि हुई। बगदाद में मेरे अपने परिवार के लोगों के घरों पर अमेरिकी सैनिकों ने छापा मारा था और उनमें से कई को पड़ोसी जॉर्डन और अन्य जगहों पर भागना पड़ा था।
यहां तक कि कनेक्टिकट में अपने घर पर आखिरी दिनों में शांतिपूर्वक (अपने कई पीड़ितों के विपरीत) रहते हुए भी किसिंजर खुद को युद्ध को बढ़ावा देने से नहीं रोक सका। इज़राइल में 7 अक्टूबर के हमले के बाद ‘पोलिटिको’ को इंटरव्यू देते हुए किसिंजर ने गाजा पर क्रूर इज़राइली युद्ध के लिए पूर्ण समर्थन की घोषणा करते हुए कहा, “आप उन लोगों को रियायतें नहीं दे सकते, जिन्होंने अपने कार्यों से घोषणा की और यह ज़ाहिर किया कि वे शांति कायम नहीं कर सकते।”
किसिंजर अपने पीछे जो विरासत छोड़ गया है, वह सचमुच भयावह है। उस व्यक्ति ने इस विश्वास को मजबूत करने के लिए अमेरिकी राजनीति और नीति-निर्माण को आकार दिया कि खूनी और हिंसक शाही नीतियां फल देती हैं, कि लाखों लोगों की जान की कीमत पर “राष्ट्रीय हित” की रक्षा करना ठीक है। आज—जैसा कि हम गाजा में देख रहे हैं—अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि कार्पेट बमबारी और नागरिक आबादी की सामूहिक हत्या से वांछित राजनीतिक परिणाम मिल सकते हैं।
यदि किसिंजर को कभी न्याय का सामना नहीं करना पड़ा तो क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि इजरायली अधिकारियों को भी कभी जिम्मेदार ठहराया जाएगा?
दरअसल, उसके जीवन और मृत्यु की असली त्रासदी यह है कि उसने साबित कर दिया कि शक्तिशाली लोग लाखों लोगों की हत्या करके भी बच सकते हैं और उनका शांतिपूर्वक गुजर जाने के बाद भी जश्न मनाया जा सकता है।