तुम्हारा आदमी

धरातल पर यह कहानी एक ऐसे शख़्स के बारे में है जो लगातार अपने प्रेम संबंधों में नाकामयाबी झेलता है; जो अपने आप में सुधार लाने की जगह किसी और को अपनी असफलता का दोषी ठहरता है| लेकिन, अगर हम कहानी को थोड़ा और परखें तो यह सम्पूर्ण इज़राइली समाज के बारे में भी हो सकती है जो अपनी विफलताओं का दोषी फिलिस्तीनियों को ठहरता है| कहानी को देखने के यह दोनों दृष्टिकोण वहाँ जा कर मिलते हैं जहां मुख्य किरदार अपने दोषी के साथ वैसा ही करता है जैसा कि इज़राइली फिलिस्तीनियों के साथ करते हैं, और जैसा कि उसने खुद भी अतीत में फौज का सदस्य रहते हुए फिलिस्तीनियों के साथ किया है| यह कहानी हमें ये दिखाती है कि इंसान की मानसिकता अपने समाज से कितनी ज़्यादा प्रभावित होती है|

तुम्हारा आदमी
तुम्हारा आदमी

पटचित्र: रवि कावड़े

अंग्रेजी से अनुवाद हिन्दी में: अक्षत जैन और अंशुल राय 
स्त्रोत: Bomb Magazine
औडियो: अमीत कुमार

जब अचानक एबीगेल ने मुझसे कहा कि वह ब्रेकअप चाहती है, मैं हैरान रह गया। घर के सामने टैक्सी के रुकते ही वह तेजी से उतरी और बोली कि ऊपर आने की जरूरत नहीं है। अब वह इस बारे में बात नहीं करना चाहती है और ना ही भविष्य में कोई रिश्ता रखना। यहां तक कि नए साल और बर्थडे में भी कोई कार्ड या बधाई संदेश नहीं। यह कह कर उसने कार का दरवाज़ा इतनी जोर से बंद किया कि ड्राईवर भी चौंक पड़ा। मैं कार की पिछली सीट पर भौचक बैठा इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं था। पूरी शाम बहुत अच्छी बीती थी, हमने एक फ़िल्म देखी थी जो बोर थी मगर उसके बाद हमने एन्जॉय किया था, फिर ऐसा क्या हुआ कि 6 महीने का रिश्ता कुछ ही पलों में खत्म। उसकी यह भाषणबाज़ी और दरवाज़े को यूँ भड़ाक से बन्द करना मुझे परेशान कर रहा था। मैं सदमे में था। ‘तो अब क्या?’ शीशे में से मुझे घूरता हुआ ड्राईवर बोला, ‘तुम्हें तुम्हारे घर ले चलूँ? अगर तुम्हारा कोई घर हो तो। मतलब, तुम्हारे माँ-बाप के घर? किसी दोस्त के? किसी सस्ते से मसाज पार्लर में चलोगे? अब तुम ही मालिक हो, राजा हो।’ मुझे कुछ पता नहीं था कि मैं अपने साथ क्या करने वाला था। मैं बस इतना जानता था कि मेरे साथ न्याय नहीं हुआ था। रॉनित और मेरे ब्रेकअप के बाद मैंने कसम खाई थी कि अब किसी को इतने करीब नहीं आने दूंगा जो मुझे इस तरह चोट पहुँचाए लेकिन फिर एबीगेल मेरी जिंदगी में आयी। सब कुछ ठीक चल रहा था पर अचानक यह . . . इसका हकदार मैं बिल्कुल नहीं था। ‘सही कह रहे हो, ड्राइवर बड़बड़ाया। उसने चाबी घुमा कर इंजन बंद किया और अपनी सीट पीछे झुका कर अधलेटा हो गया। ‘गाड़ी क्यों चलाई जाये जब यहीं इतना आराम है। और मैं, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता| मीटर तो कैसे भी दौड़ ही रहा है।’ तभी कार में बज रहे रेडियो पर एक आवाज़ गूंजी ‘नौ मसादा स्ट्रीट| कौन है? और वह पता—मैंने पहले कहीं सुन रखा था, मेरी याददाश्त में वह ऐसे चिपक गया था जैसे किसी ने कील मार कर ठोक दिया हो|

जब रॉनित ने रिश्ता तोड़ा था तब भी परिस्थितियाँ ऐसी ही थीं, इसी तरह हम टैक्सी में बैठे थे। वह टैक्सी उसे एयरपोर्ट ले जा रही थी| उसने कहा था कि हमारे बीच सब ख़त्म हो चुका है, और यक़ीनन, मेरी उससे दोबारा कभी मुलाक़ात नहीं हुई| उस वक्त भी मुझे ऐसे ही छोड़ा गया था, टैक्सी की पिछली सीट पर अकेले। उस वक़्त भी ड्राइवर बड़-बड़ कर रहा था मगर मैंने उसका एक शब्द नहीं सुना| लेकिन रेडियो पर सुनाई पड़ने वाला वह खिझाऊ पता मुझे बहुत अच्छे से याद है। ‘नौ, मसादा स्ट्रीट। किसका कॉल? और अब फिर . . . शायद यह सिर्फ एक संयोग था, मगर मैंने टैक्सी वाले को बोला कि वह मुझे वहाँ ले चले, मुझे उस ठिकाने के बारे में पता लगाना ही था। जब हम उस जगह पर पहुँचे तो एक टैक्सी वहाँ से रवाना हो रही थी| टैक्सी की पिछली सीट पर एक छोटे सिर की छाया थी जैसे कोई बच्चा हो। मैंने ड्राइवर को पैसे पकड़ाए और टैक्सी से निकल गया|

वह एक निजी मकान था। मैंने बाहर का गेट खोला और घर के दरवाज़े की ओर बढ़ने लगा। दरवाज़े पर पहुँच कर मैंने घंटी बजायी जो कि बेवकूफ़ी की बात थी क्योंकि मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि मैं क्या करता या क्या जवाब देता अगर किसी ने सही में दरवाज़ा खोल दिया होता। रात के उस समय मेरे वहाँ मौजूद होने का कोई वाजिब कारण भी नहीं था, लेकिन मैं इतना झुँझलाया हुआ था की मैंने तनिक भी परवाह ना की| दोबारा घंटी दबायी, इस बार अधिक देर तक, और फिर धड़ाम से दरवाज़े पर लात मारी जैसे हम फौज में करते थे डोर-टू-डोर सर्च के दौरान, कोई दरवाज़ा खोलने नहीं आया। मेरे दिमाग में एबीगेल और रॉनित के खयाल अन्य सभी टूटे रिश्तों के साथ सिमटने लगे, और उन सभी का एक ढ़ेर सा बन गया| ये घर, जहाँ किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला, मेरी खीज को और बढ़ा रहा था। मैं घर के इर्द-गिर्द मंडराने लगा, किसी खिड़की की तलाश में जिससे कि अंदर झाँक सकूँ। उस घर में खिड़कियाँ ही नहीं थी, था तो बस एक पिछला दरवाज़ा, ज़्यादातर काँच का बना हुआ। मैंने अंदर देखने कि कोशिश की—वहाँ घुप्प अँधेरा था। मैं कोशिश करता रहा लेकिन मेरी आँखें उस अँधेरे को भेद ही नहीं पा रहीं थी। मैं जितनी ज़्यादा कोशिश करता, सब कुछ उतना ही धुँधला होता जाता। सच मेरा दिमाग फिर गया था| अचानक ऐसा लगा कि मैं अपने आप को कुछ दूरी से देख रहा हूँ, झुकते हुए, पत्थर उठाते हुए, उसको अपनी स्वेटर में बाँधते और उससे काँच फोड़ते हुए|

अरे यह कहानी हमारी कभी थी ही नहीं,
ये कहानी तो उस आदमी की थी

सावधानी बरतते हुए कि कहीं काँच ना लगे, मैंने अंदर हाथ डाला और दरवाज़ा खोला। अंदर घुसते ही इधर-उधर टटोल कर स्विच ढूंढा| जब लाइट जली तो वह पीली और एकदम धीमी थी। उस बड़े से कमरे के लिए सिर्फ एक बल्ब था। वह एक विशालकाय कमरा था, कोई फर्नीचर नहीं, एकदम खाली, सिवाय एक दीवार के जिस पर कुछ औरतों की तस्वीरें टंगी थी| बहुतों पर फ्रेम चढ़े हुए थे एवं कई केवल मास्किंग टेप के सहारे दीवार पर चिपकायी गईं थी। मैं उन सब चेहरों को जानता था: डालिआ, मेरी फौज के समय की प्रेमिका; दानिएल, जिसके साथ स्कूल के समय मेरा चक्कर था; स्टेफनी, एक पर्यटक जो यहाँ रुक गयी थी; और रॉनित। वे सब वहाँ थी, और फिर बाएं हाथ के कोने की तरफ, एबीगेल की एक फोटो, नाज़ुक सोने के फ्रेम में, मुस्कुराते हुए। मैंने लाइट बंद कर दी और वहीं एक कोने में ढह गया| मैं सिर से पैर तक कांप रहा था। मेरा उससे कोई वास्ता नहीं था जो यहाँ रह रहा था और ना ही मैं जानता था कि वह मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहा था, या वह हमेशा कैसे चीज़ें तबाह कर देता था| मगर एकाएक सभी चीज़ों के तार जुड़ने लगे, रिश्तों में दरार पड़ना, सारी प्रेमिकाओं का मुँह मोड़ लेना—दानिएल, एबीगेल, रॉनित। अरे यह कहानी हमारी कभी थी ही नहीं, ये कहानी तो उस आदमी की थी|

मुझे नहीं पता कितना वक्त गुज़रा होगा उसके घर लौटने तक। मैंने पहले टैक्सी के जाने की आवाज़ सुनी, फिर सामने के दरवाज़े में चाबी फँसाने की आवाज़, फिर लाइट जल गयी और वह नज़र में आया, बिल्कुल मेरे सामने खड़ा होकर मुस्कुराता हुआ, कुत्ते का पिल्ला, बस मेरी तरफ देखते रहा और मुस्कुराता रहा। वह कद में छोटा था, किसी बच्चे जैसा, बड़ी आँखें, उन पर कोई पलकें नहीं, और हाथ में एक रंगीन प्लास्टिक स्कूल बैग थामे हुए। जब मैं कोने से उठा तो वह अजीब तरह से हंसा, जैसे किसी ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया हो, फिर उसने मुझसे पूछा कि मैं वहाँ कैसे पहुँचा| ‘तो वह भी छोड़ गई? मेरे और करीब जाने पर वह बोला, ‘फिक्र की कोई बात नहीं, और भी आएंगी।’ मैंने, उत्तर देने की बजाए, बड़ा सा पत्थर उसके माथे पर दे मारा| वह गिर पड़ा लेकिन मैं नहीं रुका। नहीं मुझे कोई दूसरी नहीं चाहिए, मुझे बस एबीगेल चाहिए, और मैं चाहता हूँ वह आदमी हँसना बंद करे। उस पूरे समय जब पत्थर से मैं उसके सिर पर वार कर रहा था, वह सिसकी भरते हुए सिर्फ एक ही बात दोहराता रहा ‘यह तुम क्या कर रहे हो, यह तुम क्या कर रहे हो, यह तुम क्या कर रहे हो, मैं तुम्हारा आदमी हूँ, तुम्हारा आदमी, और फिर वह शांत हो गया। जब सब ख़त्म हुआ तो मैं उल्टी करने लगा| उल्टी से मुझे हल्कापन महसूस हुआ, जैसे फ़ौज में लंबे सफर के दौरान जब स्ट्रेचर उठाने की बारी किसी और की आती है तो कितना हल्का लगता है, इतना कि जिसकी कभी कल्पना भी न की हो। सारा गुस्सा, अपराधबोध एवं डर कि मैं पकड़ा जाऊंगा, सब कुछ गायब हो गया|

घर के पीछे, थोड़ी ही दूरी पर घने पेड़ थे, मैं उसको वहीं फेंक आया। पत्थर और स्वेटर, जो खून में सने हुए थे, उन्हें मैंने घर के बाड़े में गाड़ दिया। कुछ हफ़्तों तक मैं उसे अख़बारों में ढूँढता रहा, समाचारों में और लापता लोगों की सूची में भी, पर वहाँ कुछ नहीं था। एबीगेल ने मेरे किसी मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया, किसी से सुनने में आया कि उन्होंने उसे शहर में किसी लम्बे, पोनीटेल वाले मर्द के साथ देखा था। मैं टूट गया लेकिन मुझे पता था कि मैं इस बारे में कुछ कर नहीं सकता, वास्तव में हमारे बीच सब कुछ ख़त्म हो गया था। कुछ समय बाद मेरी मुलाकात मिआ से हुई| मैं उसके साथ घूमने फिरने लगा। सब कुछ बढ़िया और समझदारी के साथ चल रहा था। मिआ के साथ शुरू से ही मैं अपने आप को खुले तौर पर व्यक्त कर पा रहा था, जैसा कि मैं अक्सर लड़कियों के साथ नहीं कर पाता हूँ। मैंने अपने बारे में सोचना छोड़ दिया था। रात में कभी-कभार मुझे उस बौने के सपने आते, कि कैसे मैंने पेड़ों के बीच उसके शरीर को ठिकाने लगाया था, और मैं घबराकर उठ बैठता, लेकिन फिर मुझे खुद को याद दिलाना पड़ता कि डरने का कोई कारण नहीं है, वह अब हमारे बीच नहीं है, और फिर मैं मिआ को थामकर वापस सोने चला जाता|

मिआ और मेरा रिश्ता भी टैक्सी में ही खत्म हुआ। मिआ ने मुझसे कहा कि मेरे अंदर कोई भावनाएं नहीं हैं और मैं संवेदनहीन हूँ| यह इसलिए कि जब कभी वह मानसिक वेदनाओं से गुज़र रही होती तो मैं बेखबर रहता और यह समझता कि वह खुश है क्योंकि मैं खुश हूँ| उसने कहा कि हमारे बीच कुछ समय से दिक्कतें चल रही थी, लेकिन मैंने उस पर कभी गौर तक नहीं किया। और फिर वह रोने लगी| मैंने उसे अपनी बाँहों में भरने कि कोशिश की लेकिन उसने अपने आप को दूर खींच लिया और कहने लगी कि अगर मैंने उससे प्यार किया है तो मैं उसे शांति से जाने दूँगा। मुझे समझ नहीं आया कि मैं उसके पीछे जाकर उसे मनाना जारी रखूँ या नहीं। उसी समय टैक्सी के रेडियो पर घोषणा हुई: ‘चार एडलर रोड’। मैंने ड्राइवर को वहाँ ले जाने के लिए कहा। जब हम पहुँचे तो पहले से एक टैक्सी वहाँ खड़ी हुई थी। उसके अंदर घुसे एक युगल लड़का-लड़की, लगभग मेरे हमउम्र, शायद थोड़े जवान। उनके ड्राइवर ने कुछ कहा और वे दोनों हँसने लगे। मैं आगे बढ़ता गया, नौ मसादा स्ट्रीट की ओर। मैंने पेड़ों के बीच उसके शव को ढूंढने की कोशिश की, मगर वहाँ कुछ नहीं था। मुझे मिली तो सिर्फ एक ज़ंग लगी रॉड| मैंने उसे उठाया और घर की तरफ बढ़ने लगा|

यह तुम क्या कर रहे हो, 
मैं तुम्हारा आदमी हूँ, तुम्हारा आदमी!

घर बिल्कुल उसी स्थिति में था, अँधेरा, पिछले दरवाज़े का काँच टूटा हुआ। मैंने दरवाज़ा खोलने के लिए हाथ अंदर घुसाया, सावधानी से कि कटे नहीं। मुझे लाइट का स्विच झट से मिल गया। अभी भी सब कुछ उतना ही खाली था, सिवाय दीवार पर टंगी तस्वीरों, बौने के भद्दे स्कूलबैग और फर्श पर एक गहरे चिपचिपे धब्बे के। मैंने तस्वीरों का मुआयना किया। वे सब वहीं थीं, बिल्कुल उसी क्रम में। अब मैंने बैग खोला और उसके अंदर झाँका। बैग में कुछ पैसे थे, एक इस्तेमाल की हुई बस की टिकट, चश्मे की डब्बी, और मिआ की एक तस्वीर, जिसमें मिआ के बालों में चोटी बँधी थी और वह अकेली नज़र आ रही थी। तभी अचानक मुझे समझ आया कि बौना मरने से पहले क्या कह रहा था, आगे और भी लड़कियाँ आने के विषय में। मैंने उस बौने की तस्वीर तैयार करने कि कोशिश की—उस रात को जब मेरा और एबीगेल का रिश्ता खत्म हुआ था, वह कहाँ-कहाँ गया होगा, किस तरह फोटो के साथ लौटा होगा और भगवान जाने कैसे उसने ये सुनिश्चित किया होगा कि मेरी मिआ से मुलाकात हो। मगर मैंने इस बार भी सब मिट्टी में मिला दिया। और अब ज़रूरी नहीं कि आगे और भी लड़कियाँ आएंगी| क्योंकि मेरा आदमी मर चुका था। मैंने खुद उसे मारा था|

 

(इस कहानी को एडिट करने में रोमी अरोरा ने मदद की है)

एटगार केरेट
एटगार केरेट

एटगार केरेट (1967 - ) इज़राइली लेखक हैं जो अपनी लघु कहानियों, ग्राफिक उपन्यास, और फ़िल्म और टी.वी. के लिए किए गए पटकथा लेखन के लिए जाने जाते हैं | उन्हें फ्रान्ज़ काफ्का की कहानियां बहुत पसंद हैं और वही कहानियां उनकी प्रेरणास्त्रोत भी हैं। फिलिस्तीन पर इज़राइल के कब्ज़े के बारे में वे सीधे सीधे नहीं... एटगार केरेट (1967 - ) इज़राइली लेखक हैं जो अपनी लघु कहानियों, ग्राफिक उपन्यास, और फ़िल्म और टी.वी. के लिए किए गए पटकथा लेखन के लिए जाने जाते हैं | उन्हें फ्रान्ज़ काफ्का की कहानियां बहुत पसंद हैं और वही कहानियां उनकी प्रेरणास्त्रोत भी हैं। फिलिस्तीन पर इज़राइल के कब्ज़े के बारे में वे सीधे सीधे नहीं लिखते लेकिन उस कब्ज़े से जो लोगों पर मानसिक प्रभाव पड़ रहा है, उसको वे बहुत ही मार्मिक तरीके से पेश करते हैं | यही नहीं, वे दुनिया में कभी भी और कहीं भी इंसान होने की दशा को बखूबी समझते हैं और व्यक्त करते हैं | इनकी कहानियां रोज़मर्रा की साधारण ज़िन्दगी को दिलचस्प बना देती हैं और हमे अपने आस पास की दुनिया को नए नज़रिए से देखने पर मजबूर करती हैं | ये सरल चलती भाषा में लिखते हैं जो आम आदमी के समझ आ सके और इसलिए इनकी कहानियां विभिन्न देशों में लाखों लोग पढ़ते हैं | वैसे तो ये अपनी मातृभाषा हि‍ब्रू में लिखते हैं, मगर इनकी कहानियां इतनी लोकप्रिय हैं कि वे अब तक 42 भाषाओँ में अनुवादित हो चुकी हैं|


फोटो: यानाई येखईएल