दवाई

चीन के महान लेखक लू शुन की कहानी ‘दवाई’ उनकी प्रसिद्ध कहानियों में से एक है। इस कहानी में लू शुन ऐसी चीज़ों की ओर संकेत करते हैं जो हमें पता तो रहती हैं, पर हम उन्हें अकसर आम-ज़िंदगी की भगदड़ में भूल जाते हैं। कैसे अमीर लोग अंधविश्वास की आड़ में ग़रीबों को एक-दूसरे से लड़ाकर खुद राज करते हैं। एक क्रांतिकारी ग़रीब योद्धा का ख़ून एक अशिक्षित ग़रीब परिवार के टीबी से पीड़ित बच्चे को पिलाया जाता है। आखिर जो क्रांतिकारी योद्धा ग़रीबों के हक के लिए लड़ रहा है, उसी का खून उन ग़रीबों को पिलाया जाए तो उन दोनों में अमीरों के खिलाफ संघर्ष करने का सामंजस्य बने भी तो कैसे? पढ़िए इस कहानी में।

दवाई

पटचित्र: रवि कावड़े

अनुवाद बेहुआ से अंग्रेजी में: यांग शिनयी और ग्लेडिस यांग
अनुवाद अंग्रेजी से हिन्दी में: अक्षत जैन और अंशुल राय
स्त्रोत: Marxists Internet Archive

(1)

पतझड़ ऋतु। चांद के ढलने और सूरज के निकलने के बीच का वह समय जब आसमान गहरे नीले रंग की चादर-सा नज़र आता है, जब निशाचरों के सिवा सब सोए हुए होते हैं।

अचानक बूढ़ा चुंआन अपने बिस्तर में उठ बैठा, माचिस की तिली रगड़ी और ग्रीस से पुती पुरानी तेल की डिबरी को जलाया। उसकी भूतिया रौशनी चाय-घर के दोनों कमरों पर पड़ने लगी।  

‘क्या आप अभी जा रहे हैं पापा?’ बूढ़ी औरत की आवाज़ में किसी ने प्रश्न किया। अंदर के छोटे कमरे से खांसी की सुरसुराहट सुनाई दी। 

‘हूं।’                                                                                         

कपड़े पहनते हुए बूढ़ा चुंआन सब सुन रहा था। फिर उसने अपने हाथों को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘दो मुझे’। 

तकिए के नीचे कुछ देर टटोलने के बाद बूढ़े चुंआन की बीवी ने चांदी के सिक्कों से भरी एक पोटली निकाली और उसे थमा दी। बूढ़े चुंआन ने थोड़ी घबराहट से उस पोटली को अपनी जेब में डाला। जेब पर दो बार थपकी दी, फिर कागज़ की लालटेन जलाई और तेल की डिबरी को बुझाकर अंदर के कमरे में चला गया। इस बीच सरसराहट-सी सुनाई पड़ी और फिर से खांसी का एक दौरा। जब सब शांत हो गया तो बूढ़े चुंआन ने आहिस्ते से पुकारा, ‘बेटा!... तुम मत उठना!... तुम्हारी मां दुकान का ख्याल रख लेगी।’

कोई जवाब न मिलने पर बूढ़े चुंआन ने सोचा कि उसका बेटा फिर से गहरी नींद सो गया है और वह बाहर गली में निकल गया। अंधेरे में डामर की सड़क के सिवा कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था। लालटेन की रौशनी उसके बढ़ते क़दमों पर पड़ रही थी। उसकी यहां-वहां घूमते आवारा कुत्तों से भेंट हुई, पर इनमें से कोई भी उस पर भौंका नहीं। घर के अंदर की तुलना में बाहर सर्दी कहीं ज्यादा थी, फिर भी बूढ़े चुंआन में एक फुर्ती-सी आ गई, जैसे वह फिर से जवान हो गया हो। उसे कोई चमत्कारी जीवनदायिनी शक्ति मिल गई हो। वह अब लंबे डग भरने लगा। सड़क अब और स्पष्ट दिखाई देने लगी थी, और आसमान कहीं ज्यादा चमकदार।

अपनी धुन में चलता जा रहा बूढ़ा चुंआन सामने कुछ दूरी पर बने चौराहे को देखकर ठिठक गया। वह कुछ कदम पीछे आया और एक दुकान के बंद दरवाज़े के सामने, उसके छज्जे की ओट में खड़ा हो गया। थोड़ी देर में ही उसे कंपकंपी आने लगी।  

‘ओह, एक बुड्ढा है।’

‘काफी खुश नज़र आ रहा है...’

बूढ़े चुंआन ने फिर गति दिखाई और आंखें खोलने पर अपने सामने से कुछ आदमियों को गुज़रते देखा। उनमें से एक अपनी गर्दन पीछे घुमाकर बूढ़े चुंआन को घूरते जा रहा था। बूढ़ा चुंआन उसे स्पष्ट तौर पर देख तो नहीं सका, लेकिन उस आदमी की आंखें हवस भरी रौशनी से चमकती मालूम हो रही थी, जैसे कोई अकाल पीड़ित खाने को देख रहा हो। बूढ़े चुंआन की नज़र अपनी लालटेन पर गई। लालटेन बुझ चुकी थी। उसने अपनी जेब पर थपकी दी- वह सख्त-सी पोटली अभी भी वहीं पर थी। उसने अपने चारों तरफ नज़र दौड़ाई और पाया कि ढेर सारे अजीबो-गरीब लोग, दो या तीन के समूह में भटकती आत्माओं की तरह इधर-उधर घूम रहे हैं। काफी देर तक उन्हें देखते रहने पर उसने उन लोगों में और कुछ भी अजीब नहीं पाया।

अचानक उसे कुछ फौजी घूमते दिखे। उनकी वर्दी के आगे-पीछे बने बड़े-बड़े सफ़ेद गोले दूर से भी साफ़ दिखाई दे रहे थे। जब वे पास आए तो उसे उन गोलों के गहरे लाल बॉर्डर भी दिखाई देने लगे। अगले ही पल एक भीड़ सब कुछ रौंदती हुई तेज़ी से उसके सामने से गुज़री। उसके बाद, जो लोग छोटे-छोटे समूहों में पहले आए थे, वे एक-दूसरे में मिलकर आगे बढ़ने लगे। चौराहे के ठीक सामने पहुंचकर वे रुक गए और अर्ध-गोला बनाकर खड़े हो गए।

बूढ़े चुंआन ने उस दिशा में देखा, लेकिन उसे केवल लोगों की पीठ नज़र आ रही थी। उनकी गर्दनें आगे की तरफ जितनी तन सकती थीं, वे उन्हें उतना ताने खड़े थे। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कई सारी बतखों को एक साथ बांधकर कोई अदृश्य हाथ उठाए हुए हो। एक पल के लिए सब शांत रहा; फिर एक आवाज़ सुनाई दी। वह आवाज़ वहां मौजूद हर चीज़ को अपने प्रभाव में लेती चली गई। वे गड़गड़ाहट के साथ एक-दूसरे को धकेलते हुए पीछे की तरफ बढ़ने लगे। बूढ़े चुंआन को लगभग कुचलते हुए वे लोग आगे निकल गए। 

‘सुन! पैसा दे, मैं तुझे माल देता हूं,’ काले रंग की पोशाक पहना एक आदमी बूढ़े चुंआन के सामने खड़ा था। उसकी आंखें खंजर जैसी थीं, जिन्हें देख बूढ़े चुंआन का क़द सिकुड़कर आधा हो गया। उस आदमी ने अपना लंबा-सा हाथ बूढ़े चुंआन की तरफ बढ़ाया। वहीं उसके दूसरे हाथ में भांप में सिकी हुई ब्रेड का बंडल था, जिससे गहरे लाल रंग की बूंदें टपक रही थीं। 

हड़बड़ाहट में बूढ़े चुंआन ने सिक्कों से भरी पोटली को टटोला और कांपते हाथों से आगे बढ़ाया। हालांकि बदले में उस आदमी के हाथ से वह सामान लेने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। वह आदमी अपना धैर्य खो बैठा और चिल्लाते हुए बोला,

‘डर क्या रहा है? लेता क्यों नहीं?’

इसके बाद भी जब बूढ़े चुंआन की हिचकिचाहट दूर नहीं हुई तो काली पोशाक पहने आदमी ने उसकी लालटेन छीनी और लालटेन के कागज़ को फाड़कर ब्रेड को उसमें लपेट दिया। कागज़ लिपटी ब्रेड बूढ़े चुंआन के हाथ में थमाते हुए उसने चांदी के सिक्कों से भरी पोटली छीन ली। उसने लापरवाह नज़रों से चांदी को परखा। फिर वह पीछे मुड़कर बुदबुदाया, ‘पागल बूढ़ा,’ और वहां से निकल गया।

‘ये किसकी बीमारी के लिए है?’ बूढ़े चुंआन को लगा कि किसी ने उससे सवाल पूछा है, मगर उसने जवाब में कुछ नहीं कहा। उसका पूरा ध्यान उस पैकेट पर था, जो वह इतनी हिफाज़त से लेकर जा रहा था जैसे वह पैकेट किसी सदियों पुरानी ज़ायदाद का इकलौता वारिस हो। उसे किसी और चीज़ की परवाह नहीं थी। वह फिलहाल इस नई ज़िन्दगी को अपने घर में बोने जा रहा था ताकि इससे वह खुशियों की फसल काट सके। सूरज अब पूरी तरह उग आया था और उसके घर की ओर जाते हुए चौड़े हाइवे को रौशन कर रहा था। उसके पीछे चौराहे पर लटक रहे एक पुराने तख्ते पर धुंधले पड़ गए सुनहरे अक्षरों में लिखा था- प्राचीन इमारत।

 

(2)

जब बूढ़ा चुंआन घर पहुंचा तो दुकान की सफाई हो चुकी थी और क़तार में सजी सभी मेज चमक रहीं थी; मगर अभी तक कोई ग्राहक नहीं आया था। सिर्फ़ बूढ़े चुंआन का बेटा दीवार से लगी टेबल पर बैठा कुछ खा रहा था। उसके माथे पर पसीने की बूंदें झलक रहीं थी। धारीदार पुराना जैकेट जैसे उसकी रीढ़ की हड्डी पर लिपटा हुआ था और दोनों कंधों की हड्डियां बाहर की तरफ इस तरह निकलीं हुई थीं जैसे वे अंग्रेजी का ‘V’ अक्षर बना रहीं हो। यह देखकर बूढ़े चुंआन के माथे पर फिर शिकन की रेखाएं उभर आईं। उसकी बीवी रसोई से हड़बड़ाहट में निकली। उसकी आंखें उम्मीद से चमक रही थीं और होंठ कंपकंपा रहे थे।

‘ले आए?’

‘हां,’ बूढ़े चुंआन ने जवाब दिया।

वे दोनों साथ में रसोई के अंदर गए और कुछ देर तक आपस में सलाह-मशवरा करते रहे। फिर वह बूढ़ी औरत बाहर निकली और जल्द ही कमल के सूखे हुए पत्तों को लेकर लौटी, जिन्हें उसने टेबल पर बिछा दिया। बूढ़े चुंआन ने गहरे लाल धब्बों वाली ब्रेड को लालटेन के पेपर से निकाला और कमल के पत्तों के ऊपर रख दिया। छोटे चुंआन ने अपना खाना ख़त्म कर लिया था, मगर उसकी मां ने उससे जल्दी में कहा, ‘वहीं बैठे रहो छोटे चूंआन! यहां मत आना।’

आग को ठीक करते हुए बूढ़े चुंआन ने कमल के पत्तों पर रखी ब्रेड को लालटेन के पेपर के साथ ही चूल्हे में डाल दिया। एक लाल-काली सी लपट चूल्हे में उठने लगी और दुकान एक अजीब सी गंध से भर गई।

‘अच्छी खुशबू आ रही है! क्या खाया जा रहा है?’ एक कुबड़े ने दुकान में दाखिल होते हुए कहा।

यह कुबड़ा उन लोगों में से था जो अपना सारा वक़्त चाय की दुकानों में बिताते हैं। सुबह सबसे पहले पहुंचते हैं और रात को सबके बाद निकलते हैं। अभी वह लड़खड़ाता हुआ सड़क के पास वाली कोने की टेबल पर जाकर बैठ गया। लेकिन किसी ने उसके सवाल का जवाब नहीं दिया।

‘मुरमुरे का दलिया खा रहे हो?’ उसने फिर पूछा।

इस बार भी कोई जवाब नहीं। बूढ़ा चुंआन तेज़ी से उसके लिए चाय बनाने चला गया।

‘इधर आओ छोटे चुंआन!’ उसकी मां ने छोटे चुंआन को अंदर के कमरे में बुलाया। उसने एक स्टूल बीच में रखा और बच्चे को उस पर बैठा दिया। फिर उसके लिए एक प्लेट में कोई गोल काली चीज़ रख कर लाई और कोमलता से कहा,

‘इसे खा लो... फिर तुम ठीक हो जाओगे।’

छोटे चुंआन ने काली चीज़ को उठाया और उसे गौर से देखा। उसे अजीब सा महसूस हो रहा था, जैसे वह अपने हाथों में अपनी ज़िन्दगी पकड़े हुए हो। उसने ध्यान से ब्रेड को तोड़ा। जली हुई बाहरी पपड़ी हटने पर सफ़ेद धुएं की धार निकली। निकलते ही धुएं की वह धार बिखर गई, और पीछे छूट गए सफ़ेद ब्रेड के दो टुकड़े। पलक झपकते ही सब कुछ खा लिया गया और स्वाद भुला दिया गया। बची तो केवल खाली प्लेट। उसके मां-बाप उसके दोनों ओर खड़े थे। उनकी आंखें जैसे छोटे चुंआन में कुछ उड़ेल रहीं थीं और उससे कुछ निकाल भी रहीं थीं। उसके छोटे से दिल की धड़कन तेज़ हो गई और अपने हाथों को अपनी छाती पर रखकर वह फिर से खांसने लगा।

‘जा के सो जाओ, फिर तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे,’ उसकी मां ने कहा।

आज्ञापूर्वक छोटा चुंआन खांसते-खांसते सो गया। उसकी मां ने उसकी सांसों की गति के सामान्य होने तक इंतज़ार किया। फिर उसे ढेर सारी चकती लगी एक पुरानी चादर से आहिस्ते से ढक दिया। 

 

(3)

दुकान लोगों से भरी हुई थी और बूढ़ा चुंआन तांबे की एक केतली में लगातार एक के बाद एक ग्राहकों के लिए चाय बना रहा था। उसकी आंखों के नीचे काले घेरे थे।

‘क्या तुम्हारी तबीयत खराब है बूढ़े चूंआन?... क्या तुम्हारे साथ कोई गड़बड़ है?’ अधपकी दाढ़ी वाले एक आदमी ने पूछा।

‘कुछ नहीं,’ बूढ़े चुंआन ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।

‘कुछ नहीं?... नहीं, तुम्हारी हंसी देखकर लगता है तुम्हारे साथ कुछ गलत नहीं...’ अधपकी दाढ़ी वाले आदमी ने अपनी भूल सुधारते हुए कहा।

‘बस बूढ़ा चुंआन व्यस्त बहुत ज़्यादा है,’ कुबड़ा बोला, ‘अगर उसका बेटा...’ इससे पहले कि वह अपनी बात ख़त्म कर पाता एक भारी जबड़े वाला आदमी दुकान में घुसा। उसने गहरे भूरे रंग की शर्ट पहन रखी थी, जिसके बटन खुले थे। वह शर्ट बड़ी ही लापरवाही से एक चौड़े गहरे भूरे रंग के कमरबंद से बंधी थी। दुकान के अंदर घुसते ही वह बूढ़े चूंआन को देखते हुए चिल्लाया, ‘क्या उसने खा लिया? सेहत में कुछ सुधार आया? किस्मत तेरे साथ है बूढ़े चुंआन। और क्या किस्मत है! अगर मैंने हालातों के बारे में इतना जल्दी नहीं सुना होता तो...’

एक हाथ में केतली पकड़े हुए और दूसरे हाथ को आदर की मुद्रा में सीधा रखते हुए बूढ़ा चुंआन मुस्कुराहट के साथ उस व्यक्ति को सुन रहा था। असल में वहां उपस्थित हर कोई उसे आदरपूर्वक सुन रहा था। बूढ़े चुंआन की बूढ़ी औरत, जिसकी आंखों के नीचे भी काले घेरे उभर आए थे, एक प्याला लिए मुस्कुराते हुए बाहर आई। इस प्याले में चाय की पत्तियां और एक ओलिव था, जिनके ऊपर बूढ़े चूंआन ने गरम पानी डाला और उसे नवागंतुक को दे दिया।

‘यह शर्तिया इलाज है! दूसरी चीजों की तरह नहीं!’ भारी जबड़े वाले ने घोषणा करते हुए कहा, ‘ज़रा सोचो तो गरमा-गरम लाया गया और गरमा-गरम ही खाया गया!’

‘हां बिल्कुल, और हम अंकल कैंग की मदद के बिना यह प्रबंध कतई न कर पाते,’ बूढ़ी औरत ने उसका गर्मजोशी से शुक्रिया अदा किया।

‘यह एक शर्तिया इलाज है! अगर इसे ऐसे गरमा-गरम खाया जाए तो इस तरह इंसान के खून में डुबी हुई ब्रेड किसी भी तरह के क्षय रोग को ठीक कर सकती है!’

‘क्षय रोग’ शब्द सुनकर बूढ़ी औरत थोड़ा घबरा गई। उसकी आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया। लेकिन अगले ही पल वह अपने चेहरे पर एक ज़बरदस्ती की मुस्कान ले आई और कुछ बहाना बनाकर वहां से चली गई। इस दौरान भूरे कपड़ों वाला आदमी जाहिल की तरह ऊंची आवाज़ में तब तक बात करता रहा जब तक की अंदर के कमरे में सो रहे बच्चे ने उठकर खांसना नहीं शुरू कर दिया।

‘तो छोटे चूंआन के लिए किस्मत ने तुम्हारा साथ दिया! उसकी बीमारी ज़रूर जड़ से ठीक हो जाएगी। कोई आश्चर्य नहीं कि बूढ़ा चुंआन इसीलिए मुस्कराता रहता है,’ जब वह यह सब बोल रहा था तो एक अधपकी दाढ़ी वाला आदमी उसके करीब आया और उससे धीमे स्वर में पूछा,

‘मिस्टर कैंग, मैंने सुना है जिस मुजरिम को आज मौत के घाट उतारा गया वह ज़िआ परिवार से था। कौन था वह? और उसको क्यों मारा गया?’

‘कौन? विधवा ज़िआ का बेटा, और कौन! वह नीच लौंडा।’

यह देखकर कि सब उसकी बातों को इतने ध्यान से सुन रहे हैं, कैंग का उत्साह बढ़ गया। उसका जबड़ा हिलने लगा और वह जितनी ऊंची आवाज़ में बात कर सकता था करने लगा।

‘उस दुष्ट को जीना ही नहीं था, वह ज़िंदा रहना ही नहीं चाहता था! इस बार मुझे कुछ नहीं मिला। यहां तक कि उसके बदन से जो कपड़े उतारे गए वे भी जेलर को मिले। हमारा बूढ़ा चुंआन सबसे किस्मत वाला था। उसके बाद तीसरे अंकल ज़िआ। उन्होंने पूरा इनाम हड़प लिया- चांदी के पच्चीस सिक्के- और उनको एक फूटी कौड़ी खर्च नहीं करनी पड़ी।’

छोटा चुंआन अंदर वाले कमरे से धीरे से बाहर निकला। वह दोनों हाथों से अपनी छाती पकड़े हुए था और लगातार खांसे जा रहा था। वह रसोई में गया। एक कटोरे में ठंडे चावल डाले, उनमें गरम पानी मिलाया और बैठकर खाने लगा। उसकी मां, जो उसके इर्द-गिर्द चक्कर काट रही थी, उससे धीरे से बोली,

‘बेटा, क्या तुम बेहतर महसूस कर रहे हो? अभी भी पहले जितनी ही भूख लग रही है?’

‘शर्तिया इलाज!’ कैंग ने बच्चे पर नज़र डाली और फिर आस-पास बैठे लोगों की तरफ मुड़ गया, ‘तीसरे अंकल ज़िआ सचमुच बहुत चालाक हैं। अगर वे खबरी नहीं बने होते तो उनका परिवार भी आज मारा जाता और उनकी सारी ज़ायदाद जब्त कर ली जाती। मगर उसकी जगह? चांदी! वह नीच लौंडा एक नम्बर का उचक्का था! उसने तो जेलर को भी विद्रोह के लिए भड़काने की कोशिश की!’

‘नहीं यार! क्या घटिया सोच है!’ पीछे की तरफ बैठे एक युवक ने आक्रोश जताते हुए कहा।

‘पता है, जब जेलर उसके बारे में जानकारी लेने गया तो वह उससे बातचीत करने लगा। उसने कहा कि महान चिंग साम्राज्य हमारा है।1 ज़रा सोचो तो यह क्या कोई समझदारी की बात है? जेलर को पता था कि उसके घर पर सिर्फ़ उसकी बूढ़ी मां है, मगर उसने यह कभी नहीं सोचा था कि वह इतना ग़रीब होगा। जेलर उससे कुछ न निकाल सका; उसको पहले से ही गुस्सा आ रहा था। ऊपर से उस बेवकूफ लड़के ने “बाघ के सर में खरोंच मार दी”, तो जेलर ने भी उसे कुछ थप्पड़ जड़ डाले।’

‘जेलर अच्छा बॉक्सर है, थप्पड़ों से तो ज़बरदस्त चोट लगी होगी!’ कोने में बैठा कुबड़ा उत्साह के साथ बोला।

‘उस बेकार इंसान को पिटने का कोई डर नहीं था। उसने यहां तक कहा कि उसे कितना बुरा महसूस हो रहा है।’

‘ऐसे नीच को मारने में बुरा क्या महसूस करना,’ अधपकी दाढ़ी वाला आदमी बोला। 

कैंग ने उसकी ओर घमंड से देखा और तिरस्कार के साथ कहा, ‘तुम गलत समझ रहे हो। उसने जिस तरह से यह कहा था, उसका मतलब था कि उसे जेलर के लिए बुरा महसूस हो रहा है।’

यह सुनकर सुनने वालों की आंखें उलझन से भर गईं। किसी ने कुछ नहीं कहा। छोटे चुंआन ने अपने चावल ख़त्म कर लिए थे। वह पसीने से लथपथ हो चुका था और उसका माथा गरम हो रहा था। 

‘जेलर के लिए बुरा लगा—पागलपन! वह पक्का पागल रहा होगा!’ अधपकी दाढ़ी वाले आदमी ने ज़ोर लगाकर कहा, जैसे उसको अभी-अभी कोई नई रौशनी दिखी हो।

‘हां, वह पक्का पागल होगा!’ युवक ने उसके सुर में सुर मिलाते हुए कहा।

एक बार फिर ग्राहक उत्साह दिखाने लगे और बातचीत शुरू हो गई। इस सब शोर के बीच बच्चे को फिर से तेज़ खांसी उठने लगी। कैंग उसके पास गया और उसके कंधे को थपथपाते हुए बोला,

‘यह एक शर्तिया इलाज है! ऐसे मत खांसो, छोटे चुंआन! यह एक शर्तिया इलाज है!’

‘पागल!’ कुबड़ा अपना सिर हिलाते हुए बोला।

 

(4)

ूलतः पश्चिमी दरवाज़े के बाहर शहर की दीवार से सटी ज़मीन सार्वजनिक थी। ज़मीन के बीच से गुज़रता टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता एक प्राकृतिक सीमा बन चुका था। यह रास्ता शॉर्टकट ढूंढने वाले लोगों के पदचिन्हों से निर्मित हुआ था। रास्ते के बायीं ओर मृत्यु के घाट उतारे गए अपराधियों को दफन किया जाता था या फिर उन्हें जिनकी मृत्यु जेल में उपेक्षा के कारण हुई हो। दायीं ओर अन्य गरीबों की कब्रें थीं। दोनों तरफ के कतारबद्ध कब्रों के टीलों को देखकर ऐसा लगता था मानो किसी अमीर आदमी के जन्मदिन के अवसर पर थाल में मालपुए सजाए गए हो।

उस साल चिंग-मिंग त्यौहार के दौरान उम्मीद से ज़्यादा सर्दी थी। विलो वृक्ष की खिलती लताएं बस अनाज के दानों जितनी ही बड़ी हो पाई थीं। सूर्योदय के थोड़े ही समय बाद बूढ़े चुंआन की बीवी चार बर्तन और चावल का एक कटोरा लाई और रास्ते के दायीं तरफ बनी एक नई कब्र के सामने बैठकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। पेपर के पैसे जलाने के बाद वह ज़मीन पर बदहवास होकर बैठ गई, मानो उसे किसी चीज़ का इंतज़ार हो; लेकिन किस चीज़ का? यह उसे खुद भी नहीं पता था। हवा के झोंके उसके छोटे बालों को उड़ा रहे थे, जो पिछले वर्ष की तुलना में कहीं ज़्यादा सफ़ेद हो चले थे। 

फटे पुराने कपड़ों में अधपके बालों वाली एक दूसरी औरत उस रास्ते से आई। हाथ में पुरानी लाल रंग की गोल टोकरी लिए, जिसमें से कागज़ के पैसों की एक माला लटक रही थी, वह रुक-रुक कर चल रही थी। जब उसने देखा कि बूढ़े चुंआन की बीवी ज़मीन पर बैठी उसे ताके जा रही है तो उसे कुछ संकोच हुआ और शर्म की लालिमा उसके पीले चेहरे पर फैल गई। मगर उसने हिम्मत जुटाई और बायीं ओर बनी एक कब्र के सामने पहुंचकर अपनी टोकरी रख दी।

वह कब्र छोटे चुंआन की कब्र के ठीक सामने थी, बस रास्ते के दूसरी ओर। बूढ़े चुंआन की बीवी ने देखा कि उस औरत ने चावल का एक कटोरा और चार बर्तन निकाले, फिर खड़े होकर कागज़ के पैसे जलाते हुए ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। उसने सोचा, ‘ज़रूर उस कब्र में उसका भी बेटा ही होगा।’ बूढ़ी औरत ने इधर-उधर लड़खड़ाते हुए कदम रखे। खालीपन लिए निगाहों से आस-पास देखा और अचानक ही कांपते हुए थोड़ा पीछे की तरफ लुढ़की, जैसे होश में न हो।

इस डर से कि दुःख से वह औरत बदहवास न हो जाए, बूढ़े चुंआन की बीवी तेजी से उठी और रास्ते के दूसरी तरफ चली गई। उसने धीमी आवाज़ में कहा, ‘दुखी मत हो, चलो घर चलें।’

उस औरत ने हां में सिर हिलाया, मगर फिर भी वह एक ओर घूरती हुई बड़बड़ाई, ‘देखो! यह क्या है?’

बूढ़े चुंआन की बीवी ने उस तरफ देखा जहां वह औरत इशारा कर रही थी। उसने पाया कि सामने वाली कब्र अब तक घांस से ढकी नहीं थी। मिट्टी के बदसूरत धब्बे अभी भी दिख रहे थे। पर जब उसने ध्यान से देखा तो कब्र के ऊपर रखी लाल और सफ़ेद पुष्पमाला देखकर वह हैरान हो गई।

दोनों औरतों की नज़रें कमज़ोर हो चली थीं मगर वे उन लाल और सफेद फूलों को साफ़ देख पा रहीं थीं। फूल ज़्यादा नहीं थे और ताजा भी नहीं, मगर उन्हें एक गोल चक्र में बड़े ही करीने से रखा गया था। छोटे चुंआन की मां ने अपनी नज़र घुमाई और अपने बेटे की कब्र को देखा- अन्य कब्रों की तरह उसके बेटे की कब्र पर भी कुछ मुरझाए हुए फूल रखे थे, जो ठण्ड से सिकुड़ चुके थे। एकाएक उसे हर चीज़ की व्यर्थता का अहसास हुआ और उसकी पुष्पमाला संबंधित जिज्ञासा मर गई। 

इस दौरान वह बूढ़ी औरत कब्र के और नज़दीक जाकर ध्यानपूर्वक उसे देखने लगी। ‘इनकी जड़ें नहीं हैं,’ उसने खुद से कहा, ‘ये यहां नहीं उगे। यहां और कौन आया होगा? बच्चे यहां खेलने नहीं आते और हमारे भी कोई रिश्तेदार यहां कभी नहीं आए। क्या हुआ होगा?’

वह अचरज में पड़ी रही कि अचानक उसकी आंखों से आंसू लुढ़कने लगे और वह चिल्लाते हुए रोकर कहने लगी,

‘बेटा! लोगों ने तुम्हारे साथ गलत किया है, और यह तुम भूलोगे नहीं। क्या तुम्हारा दुख अभी भी इतना गहरा है कि तुमने यह चमत्कार आज मुझे जताने के लिए किया है?’

उसने चारों तरफ देखा, लेकिन वह केवल एक नजदीकी नंगे पेड़ की पत्तियों रहित डाली पर बैठे एक कौआ को ही देख पाई।

‘मुझे पता है,’ वह बोलती गई, ‘उन्होंने तुम्हारा क़त्ल किया है। मगर वह दिन आएगा जब सभी के पापों का हिसाब होगा। यही कायनात की रीत है। अपनी आंखें शांति से मूंद लो... अगर तुम सच में यहां हो और मुझे सुन सकते हो तो मुझे संकेत देने के लिए उस कौए को अपनी कब्र की ओर उड़ाओ।’

हवा बहुत पहले बंद हो चुकी थी और सूखी घास ताम्बे के तारों की तरह सीधी खड़ी थी। थरथराती हुई एक हल्की-सी आवाज़ आई और फिर एकाएक गायब हो गई। चारों तरफ मौत जैसा सन्नाटा था। दोनों औरतें सूखी घास में खड़ी, ऊपर बैठे कौए को देख रहीं थी; और वह कौआ पेड़ की सख्त टहनी पर अपना सिर अंदर घुसाए लोहे की मूर्ति की तरह स्थिर बैठा था।

समय बीता। दूसरे लोग भी, जवान और बूढ़े, कब्रों को देखने आने लगे। 

बूढ़े चुंआन की बीवी को एहसास हुआ कि जैसे उसके माथे से कोई बोझ उतर गया हो। वापस जाने की आतुरता के साथ उसने दूसरी औरत से कहा,

‘चलो वापस चलते हैं।’

बूढ़ी औरत ने एक आह भरी और उदास होकर चावल एवं बर्तन उठाने लगी। एक पल की हिचकिचाहट के बाद वह चलते हुए अपने आपसे बड़बड़ाई, ‘इस सबका क्या मतलब है?’

वे कोई तीस कदम ही चले होंगे कि उनको अपने पीछे से एक ज़ोरदार ‘कौं’ की आवाज़ सुनाई दी। वे दोनों उस आवाज़ से चौंककर पीछे मुड़ीं तो उन्होंने देखा कि कौए ने अपने पंखों को फैलाया, खुद को उड़ने के लिए तैयार किया और तीर की तरह उड़ते हुए दूर क्षितिज की ओर चला गया।


[i] इससे लू शुन बताना चाह रहे हैं कि जो युवक मारा गया था, वह चीन की 1911 में हुई गणतंत्रवादी क्रांति में एक क्रांतिकारी था। इस क्रांति में चीन के लोकतान्त्रिक क्रांतिकारियों ने चिंग साम्राज्य को गिराया था। उस युवक की इस तरह मौत होने का मतलब यह है कि सत्ता उन क्रांतिकारियों के हाथ से छिन चुकी थी और उन्हें अब देशद्रोही घोषित करके चुन-चुन कर मारा जा रहा था। 

 

(इस कहानी को एडिट करने में नित्यानंद राय और शहादत खान ने मदद की है)

 

लू शुन
लू शुन

लू शुन (1881–1936) बीसवीं सदी के चीन के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख लेखक माने जाते है। उन्होंने कलम सिर्फ़ इसलिए नहीं पकड़ा कि वह अपनी लिखने की कला का प्रदर्शन कर सकें; बल्कि उनका कलम उठाने का उद्देश्य जनता में पढ़ने-लिखने की रुचि को बढ़ावा देना था। उनका विश्वास था कि पढ़ने-लिखने से ही चीन का रूढ़ीवादी... लू शुन (1881–1936) बीसवीं सदी के चीन के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख लेखक माने जाते है। उन्होंने कलम सिर्फ़ इसलिए नहीं पकड़ा कि वह अपनी लिखने की कला का प्रदर्शन कर सकें; बल्कि उनका कलम उठाने का उद्देश्य जनता में पढ़ने-लिखने की रुचि को बढ़ावा देना था। उनका विश्वास था कि पढ़ने-लिखने से ही चीन का रूढ़ीवादी समाज जागरूक हो सकता है और आधुनिकता की ओर मजबूत कदम बढ़ा सकता है। लू शुन ने जीवन भर उत्पीड़कों के ख़िलाफ़ संघर्ष किया और अगली पीढ़ी के युवाओं को लड़ने और लिखने के लिए प्रेरित किया।



फोटो: Natata