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कहानी

अब्दुल रहमान की मुस्कुराहट

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March 26, 2022

अब्दुल रहमान की मुस्कुराहट

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पटचित्र: गुसान कनफानी 

अनुवाद: शहादत खान
स्त्रोत: आज पत्रिका, कराची, पाकिस्तान

उसने अपना सिर उठाकर अंधेरे आसमान की तरफ देखा, एक कुफ्रिया गाली उसकी ज़बान से फिसलते-फिसलते बची। काली घटाएं बसालट के टुकड़ों की तरह एक-दूसरे से टकराती, फिर बिखर जाती।

बारिश इतनी तेज हो रही है कि आज रुकने से रही, मतलब आज उसे फिर सोना नसीब नहीं होगा, सारी रात उसे उसी कुदाल पर झुके-झुके काटनी पड़ेगी। वह एक नाकी खोद रहा था ताकि तेज बारिश की वजह से गंदा पानी उसके खेमे की मीखों के पास न इकट्ठा हो, उसकी पीठ न केवल लगातार हो रही बारिश की उस मार की आदी हो चुकी थी बल्कि लुत्फ भी ले रही थी।

उसके नाक के नथनों में कहीं से धुआं आता हुआ महसूस हो रहा था। ओह, वाह! उसकी बीवी ने रोटी पकाने के लिए आग जलाई थी, वह जल्द से जल्द गड्ढा खोद कर खेमे के अंदर जाना चाहता था ताकि अपने हाथ सेंक सके। उसके दोनो हाथ इतने सर्द हो चुके थे कि अंदर जाते ही वह उन्हें आग में घुसेड़ देना चाहता था, हाथ जले चाहे रहे! इतना तो वह बड़ी आसानी से कर सकता था कि जलती हुई लकड़ी का एक टुकड़ा लेकर उसे जल्दी-जल्दी दोनों हाथों पर लगातार रगड़ता रहे। बर्फ बन चुके उसके हाथों को इससे कम में राहत नहीं मिलने वाली! लेकिन वह उस खेमे में दाखिल होने से डरता है, वह उस खौफनाक सवाल का सामना करने से डरता है जो उसकी बीवी के हलक में लंबे समय से कुंडली मारे बैठा था। नहीं! ये ठंडक उस खौफनाक सवाल से कम जानलेवा है। खेमे के अंदर जाते ही उसकी आटा गूंथ रही बीवी की नजरे उसके पूरे वजूद को छलनी कर देगी:

‘कोई काम मिला? खाएंगे क्या? फलां, फलां को काम मिल गया, तुम्हें कैसे नहीं मिला?’

फिर खेमे के एक कोने में भीगी बिल्ली की तरह पड़े हुए अब्दुल रहमान की तरफ इशारा करके खामोशी के साथ अपना सिर हिलाएगी, ये खामोश जुंबिश उसे खून के आंसू रुला देती। हर रात की तरह आज की रात भी उसके पास सिर्फ़ यही जवाब था:

‘क्या तुम चाहती हो कि मैं अपने बेटे अब्दुल रहमान की मुश्किलात को खत्म करने के लिए कहीं जाकर चोरी करुं?’

उसने कराहते हुए अपनी कमर सीधी की। कुछ ही देर में उसे अपनी टूटी हुई कुदाल का सहारा लेना पड़ा। उसकी निगाहें मायूसी की चादर लपेटे हुए खेमे पर जमी हुई थी और वह इंतहाई परेशानी के आलम में सोच रहा था:

‘क्यों न चोरी ही कर ली जाए?’

इंटरनेशनल एड एजेंसी के गोदाम खेमों के पास में ही हैं। अगर उसने चोरी करने की ठान ही ली तो किसी न किसी तरह आटे और चावल की बोरियों तक पहुंच बना ही लेगा। अंदर घुसने के लिए कहीं न कहीं सुराख तो मिलेगा ही, फिर गोदाम में पड़ा माल किसी की हलाल कमाई थोड़े ही है। एक दिन अब्दुल रहमान को स्कूल टीचर ने बताया था कि ये सब माल ऐसे लोगों के पास से आता है जो ‘आदमी को मारकर उसी के जनाजे में शामिल होते हैं’। किसी का क्या बिगड़ जाएगा अगर वह एक बोरी, दो बोरी या दस बोरी आटा चोरी कर ले? क्या हो जाएगा अगर वह कुछ आटा उन लोगों के हाथों बेच दे जो चोरी किए माल का पता सूंघ कर लगा लेते हैं और फिर उसका भाव करने में गैरमामूली होशियारी का प्रदर्शन करते हैं।

उसके मन में लड्डू फूट रहे थे। वह एक नए हौसले के साथ खेमे के चारों ओर गड्ढा खोदने लगा। उसने सोचा क्यों न इस मुहीम का आगाज आज ही से कर दिया जाए? मूसलाधार बारिश हो रही है, इतनी ठंडक है कि चौकीदार खुद अपनी जान की खैर मना रहा होगा, गोदाम की पहरेदारी क्या करेगा? तो क्यों न आज ही शुरुआत कर दी जाए?

‘क्या कर रहे हो, अबू अब्द?’

उसने अपना सिर आवाज की दिशा में उठाया, दूर लाईन से लगे खेमों के बीच अबू समेर उसकी तरफ आता महसूस हुआ।

‘आटा खोद रहा हूँ...’

‘क्या खोद रहे हो?’

“गड्ढा खोद... गड्ढा खोद रहा हूँ...”

अबू समेर का तूफानी कहकहा उसके चारो ओर गूंज गया। फिर वह बड़बड़ाते हुए बोला, ‘लगता है आटे के बारे में सोच रहे हो। आटे का बंटवारा आने वाले महीने की दसवीं तारीख के बाद ही होगा, यानी आज से तकरीबन पंद्रह दिनों के बाद। इसलिए अभी से खयाली पुलाव मत पकाओ, वहां अगर गोदाम से एक दो बोरी उधार लेनी है तो बात अलग है...’

अबू समेर अपने हाथों से गोदामों की तरफ इशारा कर रहा था। उसके मोटे-मोटे होंठों पर एक खबीस मुस्कुराहट तैर रही थी।

अबू अब्द हालात की गंभीरता को समझ चुका था। वह खामोशी के साथ झुका और अपनी टूटी हुई कुदाल लेकर फिर सरगर्मी से काम पर जुट गया।

‘ये सिगरेट लो... लेकिन उस सख्त बारिश में उसका कोई फायदा नहीं है... मैं तो भूल ही गया था कि बारिश हो रही है... मेरा दिमाग भी न, एक दम खऱाब हो चुका है। लगता है उसमें भी आटा भर गया है...’

उसे ऐसा लगने लगा जैसे चिड़चिड़ाहट से उसका दम घुट रहा हो| उसे इस गप्पी अबू समेर से बहुत लंबे समय से नफरत रही है।

‘इस बारिश में बाहर क्यों निकले हो?’

‘मैं... मैं निकला था कि अगर कोई जरूरत हो तो तुम्हारी मदद करुं।’

‘नहीं... शुक्रिया...’

‘ये खोदने खादने का काम ज्यादा देर तक चलेगा क्या?’

‘तकरीबन पूरी रात...’

‘कितनी बार तुमसे कहा है कि गड्ढा दिन में खोदा करो। दिन में तो खेमा छोड़कर पता नहीं कहां चले जाते हो... खातिम सलीमानी की तलाश में जाते हो क्या?’

‘नहीं... काम की तलाश में...’

उसने अपना सिर कुदाल से उठाया और हांफते हुए बोला, ‘जाकर सो क्यों नहीं जाते? मुझे अकेला नहीं छोड़ सकते?”

अबू समेर बहुत आराम के साथ उसके पास आया और अपना हाथ उसके कंधे पर रखकर घुटी-घुटी आवाज में बोला, ‘सुनो, अबु अब्द अगर अभी आटे की बोरी अपने सामने चलते देखना तो किसी को बताना मत!’

‘क्या?’

अबु अब्द का दिल बड़ी तेजी के साथ धड़क रहा था। उसकी आँखें फटी हुई थी। अबु समेर के मुंह से तम्बाकू की बू आ रही थी। वह फुसफुसा रहा था, ‘आटे की बोरियां रात के वक्त निकलती हैं और वहां चली जाती हैं...’

‘कहां?’

‘वहां...’

अबु अब्द ने अबू समेर का इशारा देखने की कोशिश की, लेकिन ये क्या? उसके हाथ तो उसके पहलू के साथ ही लटके हुए थे। अबू समेर ने धीमी आवाज में सरगोशी की, ‘तुम्हें तुम्हारा हिस्सा मिल जाएगा।’

‘क्या कोई सूराख है जिससे तुम लोग अंदर जाते हो?’

अबू समेर ने नहीं में सिर हिलाया। खुशी के मारे उसकी बांछे खिल गई थी। फिर वह राजदाराना अंदाज में बोला, ‘आटे की बोरियां खुद ही निकलती हैं ... चहलकदमी करने के लिए!’

‘पागल हो गए हो...’

‘नहीं... बल्कि तुम बुद्धू हो... सुनो, डायरेक्ट काम की बात करते हैं। हमें गोदाम से आटे की बोरियां निकालकर वहां ले जाना है। चौकीदार हमेशा की तरह सारा मामला संभाल लेगा। बेचने की जिम्मेदारी न मेरी, न तुम्हारी, एजेंसी में गोरा अमेरिकी यह काम कर लेगा... आंखें मत फाड़ो, आपस में रजामंदी हो, तो सब जायज़ है। अमेरिकी माल बेचेगा, मैं अपना हिस्सा लूंगा, चौकीदार अपना... तुम्हारा हिस्सा तुम्हारे हवाले, सब कुछ आपसी रजामंदी व साझेदारी से, क्या कहते हो?’

अबु अब्द को लगा कि मामला एक-दो या दस बोरियां चुराने से कहीं ज्यादा पेचीदा है, कोई गड़बड़ मालूम होती है... उसने सोचा कि इस इंसान के साथ कोई मामला नहीं करना चाहिए... पूरी बस्ती में मशहूर था कि ये एतबार के काबिल नहीं है... लेकिन साथ ही उसके मन के किसी कोने में रंगीन इच्छाओं ने अंगड़ाई ली। एक दिन उसके हाथ में अब्दुल रहमान के लिए नई शर्ट होगी, मुद्दत गुजर गई अपनी बीवी के लिए तोहफा नहीं लाया। उस दिन वह उसके लिए ढेर सारे तोहफे खरीदकर लाएगा। दोनों खुशी के मारे फूले नहीं समाएंगे। कितनी दिलकश होगी उनकी मुस्कुराहट! सिर्फ़ अब्दुल रहमान इस काबिल है कि उस पर निसार हो जाया जाए। लेकिन अगर उसके हाथ नाकामी लगी तो?

उसके बीवी बच्चे की तो दुनिया ही खत्म हो जाएगी... अब्दुल रहमान को जूता पॉलिश का बॉक्स लिए हुए गली-गली भटकना पड़ेगा। उसके नन्हें-मुन्ने हाथ जूता चमकाएंगे और सिर ताब्दारी में हिलता रहेगा, भयानक अंजाम! लेकिन अगर वह कामयाब हो गया तो अब्दुल रहमान एक नए इंसान की शक्ल में जाहिर होगा। उसकी बीवी की आंखों से वह खौफनाक सवाल हमेशा के लिए गायब हो जाएगा। हर बारिश वाली रात में गड्ढा खोदने के लिए वह मजबूर नहीं होगा। उसकी ज़िंदगी की रंगत ही बदल जाएगी।

‘इस मनहूस गड्ढे को खोदना बंद क्यों नहीं कर देते? पौ फूटने से पहले ही काम शुरु हो जाना चाहिए।’

हां, वह यह गड्ढा खोदना बंद क्यों नहीं कर देता। अब्दुल रहमान खेमे के एक कोने में पड़ा सर्दी के मारे कराह रहा है, उसे महसूस हो रहा है कि अब्दुल रहमान की सांसें उसके ठंडे माथे को जला डालेंगी... वह अब्दुल रहमान को उस कमजोरी और खौफ से बचाना चाहता है|

बारिश करीब-करीब बंद हो चुकी है। चांद आसमान में अठखेलियां खेलता आगे बढ़ रहा है...

अबू समेर एक अंधेरे साए की तरह उसके सामने खड़ा है, उसके भारी-भरकम पैर कीचड़ में धंसे हुए हैं। उसने अपनी पुरानी कोट का कॉलर उठाकर अपने कानों पर कर लिया है। वह अब भी खड़ा अबु अब्द के जवाब का इंतजार कर रहा है। ये जो इंसान उसके सामने खड़ा है, उसके पास एक नए और आरामदायक भविष्य की चाबी है। ये मुझसे गोदाम से बोरियां उठवाकर कहीं ले जाना चाहता है, किसी ऐसी जगह जहां कोई गोरा अमेरिकी हर महीने आता है। आटे की बोरियों के पास खड़ा होता है और अपने गोरे हाथ मसल-मसल कर हंसता है, हंसते वक्त उसकी नीली आंखों में वही चमक होती है जो किसी बदनसीब चूहे का शिकार करते वक्त बिल्ली की आंखों में होती है।

‘तुम कब से चौकीदार और अमेरिकी के साथ काम कर रहे हो?’

‘तुम क्या चाहते हो? मेरी जांच-पड़ताल करना चाहते हो या आटे की कीमत लेकर अपनी ख्वाहिश की चीजें खरीदना चाहते हो? सुनो, ये अमेरिकी मेरा दोस्त है। उसे खतरनाक काम पसंद है। वह मुझसे हमेशा कहता है कि प्लानिंग वगैरह के लिए वक्त पहले रखा करो। उसे तय वक्त में देरी बिल्कुल भी पसंद नहीं है... हमें अब काम शुरु करना होगा। जल्दी करो...’

उसके मन में आटे की बोरियों के सामने खड़े उस अमेरिकी की तस्वीर फिर से उभरी। उसकी छोटी-छोटी नीली आंखों में हंसी है और वह मारे खुशी से अपने गोरे हाथ मसल रहा है। उसे सख्त कोफ्त महसूस हुई। उसे लगा कि एक तरफ तो अमेरिकी कहीं आटा बेच रहा था और दूसरी तरफ खेमों में औरतों और बच्चों को बता रहा था कि राशन का बंटवारा होने में देर होगी। उसके अंदर सख्त इंतकाम के जज़्बात पैदा हो गए। वह उस दिन को याद करने लगा जब वह गोदामों से खाली हाथ लौट कर आया था और अपनी बीवी से मुर्दा आवाज़ में कह रहा था कि आटे का बंटवारा दस दिन के लिए टाल दिया गया है। उसकी बीवी के सांवले पड़ चुके थके-थके चेहरे पर दर्दनाक मायूसी के साए लहरा गए थे। वह खामोशी के साथ उसके कंधे से फांसी के फंदे की तरह लटके हुए आटे की खाली बोरी देख रही थी। उसकी नजरें कह रही थी कि उन्हें आटे के बगैर दस दिन गुजारने होंगे। उसके हलक में जैसे नागफनी के लम्बे-लम्बे कांटें फंस गए। लगता है अब्दुल रहमान भी सूरते हाल को समझता था, तभी तो वह खाना मांगने में जिद नहीं करता था...

शरणार्थियों की इस बस्ती में हर किसी की आंखों में यही मायूसी छाई हुई थी, हर बच्चे को रोटी के लिए दस दिन का इंतजार करना पड़ता था। अच्छा, तो खैर यह वजह है। अबु समेर उसके सामने अंधेरे साए की तरह खड़ा है। उसके पांव मिट्टी में धंसे हुए हैं और वह अपनी पेशकश का नतीजा जानने के लिए बेकरार है। यही अबु समेर और वह अमेरिकी उस खयानत के लिए जिम्मेदार हैं। अमेरिकी आटे की बोरियों के सामने खड़ा अपने गोरे हाथ मसल रहा है और उसकी छोटी-छोटी नीली आँखों से हँसी के फव्वारे फूट रहे हैं...

उसे नहीं मालूम कि कैसे उसने कुदाल उठाकर अबु समेर के सिर पर पूरी ताकत के साथ दे मारी। उसे ये भी नहीं मालूम कि कैसे उसकी बीवी उसे घसीट कर अबु समेर की लाश से दूर ले गई। हां, जब उसकी बीवी उसे घसीट कर खेमे के अंदर ले जा रही थी वह चीख-चीखकर कह रहा था कि इस महीने आटे का बंटवारा नहीं टाला जाएगा...

जब उसे होश आया तो वह खेमे के अंदर पड़ा था। उसका जिस्म पानी और कीचड़ से लथपथ था। उसने झट से अपने बेटे अब्दुल रहमान को सीने से लगा लिया और उसके पीले पड़ चुके चेहरे को घूरने लगा।

वह अपने बेटे के चेहरे पर मुस्कुराहट के नक्श देखना चाहता था। वही मुस्कुराहट जो नई शर्ट पाकर नमुदार होती है।

लेकिन वह रोने लगा...

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गुसान कनफानी
गुसान कनफानी

लेखक

8 अप्रैल 1936 में अविभाजित फलस्तीन में गुसान कनफानी का जन्म हुआ था। उनके पिता राष्ट्रीय स्तर के एक वकील थे। उनकी शुरुआती शिक्षा एक मिशनरी स्कूल में हुई। बाद में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान फलस्तीन का विभाजन और इजराइल के उत्थान के कारण उन्होंने अपनी ज़िंदगी बेरुत, लेबनान और कतर जैसे देशों में...

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अक्षत जैन
संपादक

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