अगर कालों की अंग्रेजी एक भाषा नहीं है, तो मुझे बताएं, भाषा क्या है?

जेम्स बाल्डविन के लेखों की विशेषता यह है कि उनकी प्रासंगिकता समय के साथ कम होने के बजाय बढ़ती जाती है। इस लेख में उन्होंने अमरीका में भाषा को लेकर हो रहे विवाद के पीछे छुपी राजनीति को उजागर किया है। गोरों और कालों के बीच विवाद केवल भाषा का नहीं है। यह विवाद स्वाभिमान का भी है। स्वतंत्रता और कालों के हक का भी है, जो नस्लवादी गोरे उन्हें देना नहीं चाहते। इसी तरह हिंदुस्तान में भी चल रहे शुद्ध और अशुद्ध भाषा के विवाद का असली कारण केवल ब्राह्मणवाद है, जो कहता है कि सिर्फ ब्राह्मण का उच्चारण और ब्राह्मण की भाषा ही शुद्ध है। वहीं दलित की भाषा बेकार, क्रूर और भाषा कहलाने लायक भी नहीं है। भाषा के इस शुद्धिकरण के जरिए ब्राह्मण दलित से उसकी पहचान छीनने की कोशिश करता है, उसका स्वाभिमान तोड़ने की कोशिश करता है और उसे अपने पैरों तले कुचलने की भी कोशिश करता है। दूसरी ओर, दलित अपनी भाषा के जरिए अपने लिए ब्राह्मणवाद से मुक्त एक आज़ाद ज़िंदगी गढ़ने की कोशिश करता है।

अगर कालों की अंग्रेजी एक भाषा नहीं है, तो मुझे बताएं, भाषा क्या है?

पटचित्र: Mali Skotheim

अनुवाद: अक्षत जैन और अंशुल राय
स्त्रोत: The New York Times

29 जुलाई 1979

कालों की अंग्रेजी के उपयोग, ओहदे या यथार्थता पर हो रहा विवाद अमरीकी इतिहास की बुनियाद से जुड़ा हुआ है। इस विवाद का उन सवालों से कोई लेना-देना नहीं है, जो इससे जुड़े लोगों को लगता है कि वे उठा रहे हैं। इस विवाद का स्वयं भाषा से भी कोई लेना-देना नहीं है। असल विवाद तो भाषा की भूमिका  का है। यह सब मानते हैं कि भाषा बोलने वाले के चरित्र को दर्शाती है। मगर कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भाषा दूसरों को परिभाषित करने के लिए है—लेकिन इस बार वे दूसरे उस भाषा से परिभाषित होने से इनकार कर रहे हैं जिसने उनके अस्तित्व को कभी पहचाना ही नहीं।    

लोग भाषा को इसलिए ईजाद करते हैं ताकि वे अपनी परिस्थितियों का लेखा-जोखा करते हुए उन्हें काबू में कर सकें, या फिर इसलिए ताकि वे अपनी वास्तविकता व्यक्त कर सकें और अपने आप को डूबने से बचा सकें (जो अपनी वास्तविकता को व्यक्त नहीं कर पाते, वे डूब जाते हैं)। पेरिस में रहने वाला फ्रेंच व्यक्ति सूक्ष्म और महत्वपूर्ण रूप से मार्सिले में रहने वाले व्यक्ति से भिन्न भाषा बोलता है; दोनों की बोली क्यूबेक में रहने वाले व्यक्ति के जैसी नहीं है; और इन सबको बड़ी कठिनाई होगी गुआदेलूप या मार्टीनिक में रहने वालों की बोली को समझने में; और अभी तक तो हम सेनेगल में रहने वाले तक भी नहीं पहुंचे। यद्यपि इन सभी जगहों पर रहने वालों की ‘समान’ भाषा फ्रेंच है। लेकिन हर किसी ने इस ‘समान’ भाषा के लिए अलग-अलग कीमत चुकाई है, और चुका रहे हैं। वे इस भाषा में न तो एक-सी बातें कह रहे हैं और न ही कह सकते हैं। उन सबकी वास्तविकताएं अलग हैं। इस कारण उन वास्तविकताओं के वर्णन भी अलग हैं और उनको नियंत्रित करने के तरीके भी।

सभी भाषाओं को और सभी इंसानों को, जो चीज़ जोड़ती है, वह है ज़िंदगी का सामना करने की इच्छाशक्ति, जिससे वे मौत को चकमा दे सकें। इस इच्छाशक्ति की एक कीमत भी है, और वह कीमत है अपनी सांसारिक पहचान को स्वीकारना एवं उसे हासिल करना। उदाहरण के तौर पर, हालांकि यह स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता (और यह राजनीतिक मुद्दा बनने की क्षमता रखता है), दक्षिण फ़्रांस अभी भी अपनी प्राचीन और सुरीली प्रावेंसल बोलने पर अडिग है। इसके साथ ही वे अपनी चहेती प्रावेंसल को मात्र एक ‘उपभाषा’ परिभाषित होता देखने के लिए भी तैयार नहीं है। वेल्स और बास्क देशों में तनाव काफी हद तक इसलिए है क्योंकि बास्क और वेल्स के लोग अपनी भाषाओं का विनाश किसी कीमत पर नहीं होने देंगे। यही अवधारणा आयरलैंड में भी आग भड़का रही है, क्योंकि अंग्रेजों के हाथों किए गए अपमानों में से एक अपमान अंग्रेजों के द्वारा उनकी भाषा का किया गया तिरस्कार भी है।

अब यह स्पष्ट है कि भाषा एक राजनीतिक उपकरण, साधन और शक्ति का सबूत भी है। यह पहचान के प्रति सबसे महत्वपूर्ण एवं जीवंत कड़ी है। यह निजी पहचान को उजागर करती है और व्यक्ति को सामुदायिक पहचान से जोड़ती या तोड़ती है। ऐसी जगह और वक्त रहे हैं, और आज भी हैं, जहां किसी भाषा में बोलना सिर्फ खतरनाक ही नहीं बल्कि घातक भी हो सकता है। या फिर व्यक्ति एक ही भाषा को इस प्रकार बोल सकता है कि उसके लहजे से उसके पूर्वज मालूम पड़ जाएं, या फिर (वह आशा कर सकता है) उनकी पहचान छुप जाए। यह बात फ़्रांस में सही बैठती है और इंग्लैंड में तो पूर्णतः सच है ही। उस छोटे से गीले द्वीप पर उच्चारण का लहजा इस रेंज में है कि अंग्रेजों को तो एक-दूसरे की बोली समझ आती है, लेकिन बाहर वाले उनकी बोली कतई नहीं समझ पाते। इंग्लैंड में अपना मुंह खोलने का मतलब है अपने घरेलू मसले बाजार में लाना। मुंह खोलते ही आपके माता-पिता कौन हैं, आपका यौवन कैसा था, आप किस स्कूल में गए, आपकी तनख़्वाह क्या है, आपका आत्मसम्मान किस स्तर पर है और आपका भविष्य क्या होने वाला है, आप खुद ही ये सब बयान कर देते हैं।

अगर यूनाइटेड स्टेट्स में कभी काले लोग नहीं होते तो मुझे नहीं पता कि गोरे अमरीकी किस तरह से बात करते, मगर वे वैसे तो न करते जैसे अब करते हैं। उदाहरण के तौर पर, जैज़ (Jazz) एक बहुत ही विशिष्ट यौन संबंधित शब्द है, जैसे कि मुझे जैज़ दो बेबी (jazz me baby), मगर गोरों ने उसको विशुद्ध करके उसे ‘जैज़ ऐज’ (Jazz Age) में तब्दील कर दिया। सॉक इट टू मी (Sock it to me), जिसका मतलब भी लगभग जैज़  के समान ही है, नथानिएल हौथोर्न के वंशजों ने बिना किसी हिचकिचाहट या संकोच के अपना लिया; साथ ही लेट इट ऑल हैंग आउट (Let it all hang out) एवं राइट ऑन! (Right on!) भी। बीट टू हिज़ सॉक्स (Beat to his socks), जो एक समय में कालों की सम्पूर्ण और आशाहीन गरीबी का परिचायक हुआ करता था, ‘बीट जनरेशन’ (Beat generation) नाम की चीज़ में तब्दील कर दिया गया। एक ऐसी चीज़ जिसमें तनावग्रस्त मध्यम वर्गीय गोरे गरीबी की नकल कर रहे थे, डाउन (down) होने की कोशिश कर रहे थे, सतही तौर पर हमारे जैसे दिखने-बोलने की कोशिश कर रहे थे, अपनी पूरी जान लगा रहे थे फंकी (funky) होने के लिए, जो हम कालों ने कभी सपने में भी करने का नहीं सोचा थाक्योंकि हम फंकी थे, हमें फंक (funk) को स्टाइल स्टेटमेंट बनाने की जरूरत नहीं थी|  

ऐसा तो नहीं हो सकता कि चित भी मेरी और पट भी मेरी। कालों ने एक ऐसी भाषा बनाई है जो हमारे राष्ट्र में सच्चाई से वाकिफ होने का इकलौता ज़रिया है। एक ऐसी भाषा जिसके बिना हमारा राष्ट्र और भी ज़्यादा गया-गुज़रा (whipped) होता। अब इसके लिए सजा का प्रावधान करने में बहुत देर हो गई है, कालों को इस काम के लिए अब दंडित नहीं किया जा सकता।

मेरा कहना है कि वर्तमान कलह की मुख्य बुनियाद अमरीकी इतिहास से जुड़ी हुई है, और यह सच है। कालों की अंग्रेजी दूसरे देशों से यहां आए कालों की देन है। काले यूनाइटेड स्टेट्स में एक-दूसरे के साथ जंजीरों में बंधकर आए थे, मगर वे अलग-अलग कबीलों से थे। वे एक-दूसरे की भाषा नहीं जानते थे। अगर दुनिया के इतिहास के उस कड़वे समय पर दो काले लोग एक-दूसरे से बात करने के काबिल होते तो गुलामी की प्रथा इतने समय तक टिक ही नहीं पाती। समय के साथ गुलाम को अपने मालिक की आंख और बंदूक की निगरानी में कांगो स्क्वायर और बाइबल दी गई। इन परिस्थितियों में गुलामों ने काले चर्च की स्थापना करना शुरू कर दिया। इस अभूतपूर्व ईश्वरीय तंबू के नीचे कालों की अंग्रेजी विकसित होने लगी। यह मात्र यूरोपियन शैली के उदाहरण की तरह विदेशी ज़बान को अंगीकार करना नहीं था बल्कि यह तो प्राचीन तत्वों के रूपांतरण से नई भाषा बनाने की गतिविधि थी: एक भाषा का उद्गम उसकी क्रूर आवश्यकता से होता है, और उस भाषा के नियम यह देख कर बांधे जाते हैं कि उस भाषा से क्या कहने की कोशिश की जा रही है।

एक वक्त था जब इस जगह पर मेरे भाई, मेरी माँ, मेरे बाप या मेरी बहन को मुझे यह बतलाने की जरूरत थी कि, उदाहरण के लिए, मेरे पीछे एक गोरा खड़ा है जिससे मुझे खतरा है। यह बात उन्हें मुझे बड़ी रफ्तार से एक ऐसी भाषा में बतानी पड़ती थी जो गोरे को किसी हाल में समझ न आ सके, और जो उसे असल में आज तक भी समझ में नहीं आ सकती। गोरा समझने का जोखिम नहीं उठा सकता। कालों की भाषा की समझ गोरे को खुद के बारे में हद से ज्यादा उजागर कर देगी, और उस शीशे को चकनाचूर कर देगी जिसके सामने वह इतने लंबे समय से अवरुद्ध खड़ा है।  

अब अगर यह जुनून, कुशलता, (टोनी मॉरिसन की भाषा में) ‘सरासर बुद्धिमानी’, ज़ोरदार संगीत, इतिहास से अनजान और तिरस्कृत इन लोगों को इनकी मौजूदा परिस्थितियों तक लाना—जिसमें इन्होंने अपने लिए एक जगह बनाई है, जो चाहे तकलीफों से भरी हो लेकिन फिर भी उनकी अपनी है और उनसे छीनी नहीं जा सकती—अगर यह बेजोड़ सफर नहीं दिखलाता कि कालों की अंग्रेजी एक भाषा है तो मैं जानने के लिए उत्सुक हूं कि भाषा की कौन सी परिभाषा पर भरोसा किया जा सकता है।

पश्चिमी दुनिया के बीचों-बीच बसी और एक बेहद द्वेषपूर्ण आबादी से घिरी हुई यह कौम अब तक सब सहन करते हुए जिस भाषा का इस्तेमाल करके सिर्फ़ ज़िंदा ही नहीं है, आगे भी बढ़ रही है, उस भाषा को तिरस्कार से ‘उपभाषा’ नहीं कहा जा सकता। यह एकदम सही है कि हम काले लोग समस्याओं से घिरे हुए हैं, लेकिन हम हारे नहीं है। हम अपनी बात को रखने में अक्षम नहीं हैं, क्योंकि हम झूठ पर टिकी हुई नैतिकता की रक्षा के लिए बाध्य नहीं हैं।

क्रूर सच्चाई तो यह है कि अधिकतम तादाद में गोरे अमरीकियों ने कालों को शिक्षा देने में कोई रुचि नहीं दिखाई, खासकर तब तक जब तक कि इससे उनका खुद का कोई फायदा न हो रहा हो। यह काले बच्चे की भाषा नहीं है जिस पर सवाल उठाए जा रहे हैं, यह भाषा नहीं है जिसे घृणित किया जाता है। ये तो उस बच्चे के अनुभव हैं जिससे गोरे घृणा करते हैं, जिस पर गोरे सवाल उठाते हैं। बच्चे को ऐसा कोई व्यक्ति नहीं पढ़ा सकता जो उससे घृणा करता हो। बच्चा भी मूर्ख बनने का जोखिम नहीं उठा सकता। बच्चे को कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं पढ़ा सकता जिसकी मांग मूल तौर पर यह हो कि बच्चा अपने अनुभवों को नकार दे। साथ ही वह सब नकार दे जो उसे जीने का सहारा दे रहा है। इसके विपरीत एक ऐसे जाल में फंसकर रह जाए जिसमें वह न तो काला रहे और न कभी गोरा बन पाए। कालों ने इस तरह अपने ढेरों बच्चे खोए हैं।

आखिरकार, सब कहने-सुनने के बाद एक ऐसे देश में जिसके मानक इतने कुटिल हों, जिसमें इतने सारे ऐरे-गैरे मुजरिमों को हीरो का दर्जा दिया गया हो, ऐसा देश जो इस सवाल का सामना करने के लिए तैयार न हो कि इतने सारे अश्वेत लोग जेलों में क्यों हैं, या ड्रग्स के शिकार क्यों बन रहे हैं, या सड़कों पर बिना किसी भविष्य के क्यों खड़े हैं- ऐसा बिल्कुल हो सकता है कि दोनों बच्चा और बूढ़ा इस नतीजे पर पहुंचे कि उन्हें ऐसे देश के लोगों से कुछ नहीं सीखना, जो खुद इतना कम सीख पाएं हैं।

 

शब्दकोश

कांगो स्क्वायर: 19वीं सदी अमरीका में एक ऐसी खुली जगह जहां आज़ाद और गुलाम दोनों तरह के काले लोग जमा हुआ करते थे।   

 

(इस लेख को एडिट करने में शहादत खान ने मदद की है)

जेम्स बाल्डविन
जेम्स बाल्डविन

जेम्स बाल्डविन (1924–1987) को बीसवीं सदी के सर्वश्रेष्ठ अमरीकी लेखकों में से एक माना जाता है। उन्होंने अमरीकी समाज की जड़ों में गहरे तक धंस चुके नस्लवाद को अपनी कहानियों, उपन्यासों और लेखों में इतनी स्पष्टता के साथ बयान किया था कि बहुत से लोग उनके लेखन से प्रभावित हुए और आज भी हो रहे हैं। बाल्डविन... जेम्स बाल्डविन (1924–1987) को बीसवीं सदी के सर्वश्रेष्ठ अमरीकी लेखकों में से एक माना जाता है। उन्होंने अमरीकी समाज की जड़ों में गहरे तक धंस चुके नस्लवाद को अपनी कहानियों, उपन्यासों और लेखों में इतनी स्पष्टता के साथ बयान किया था कि बहुत से लोग उनके लेखन से प्रभावित हुए और आज भी हो रहे हैं। बाल्डविन अपने लेखन के जरिए अमरीका के उस तथाकथित सभ्य समाज को नस्लवाद के उन गड़े मुर्दों का सामना करने के लिए विवश करते थे जिनको भुलाकर लोग आराम की ज़िंदगी गुज़ारना चाहते हैं। बाल्डविन खुद को शांति भंग करने वाले के रूप में देखते थे। उनका मानना था कि अमरीका जैसे नस्लवादी और आत्मसंतुष्ट समाज में चेतना जगाना एक कलाकार का परम कर्तव्य है। वह मानवता की समानता में विश्वास रखते थे और उनका मानना था कि यह गोरों की नैतिक कायरता है जो कालों को इंसान का दर्जा नहीं दे पाती और कालेपन को हीनता, बर्बरता और अराजकता से जोड़ती है। यही कारण है कि बाल्डविन मरते दम तक अपने लेखन के जरिए नस्लवाद के खिलाफ आंदोलनरत रहे।