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जेम्स बाल्डविन
जेम्स बाल्डविन

जेम्स बाल्डविन (1924–1987) को बीसवीं सदी के सर्वश्रेष्ठ अमरीकी लेखकों में से एक माना जाता है। उन्होंने अमरीकी समाज की जड़ों में गहरे तक धंस चुके नस्लवाद को अपनी कहानियों, उपन्यासों और लेखों में इतनी स्पष्टता के साथ बयान किया था कि बहुत से लोग उनके लेखन से प्रभावित हुए और आज भी हो रहे हैं। बाल्डविन अपने लेखन के जरिए अमरीका के उस तथाकथित सभ्य समाज को नस्लवाद के उन गड़े मुर्दों का सामना करने के लिए विवश करते थे जिनको भुलाकर लोग आराम की ज़िंदगी गुज़ारना चाहते हैं। बाल्डविन खुद को शांति भंग करने वाले के रूप में देखते थे। उनका मानना था कि अमरीका जैसे नस्लवादी और आत्मसंतुष्ट समाज में चेतना जगाना एक कलाकार का परम कर्तव्य है। वह मानवता की समानता में विश्वास रखते थे और उनका मानना था कि यह गोरों की नैतिक कायरता है जो कालों को इंसान का दर्जा नहीं दे पाती और कालेपन को हीनता, बर्बरता और अराजकता से जोड़ती है। यही कारण है कि बाल्डविन मरते दम तक अपने लेखन के जरिए नस्लवाद के खिलाफ आंदोलनरत रहे।

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मेरे भतीजे के नाम पत्र

अमरीकी काले युवाओं को संबोधित यह ख़त जेम्स बाल्डविन ने पचास साल पहले लिखा था। इस ख़त की प्रासंगिकता अमरीका में आज भी वैसी ही है जैसी कि इसके लिखते समय थी, साथ ही यह ख़त हिंदुस्तान के जातिवादी समाज के लिए भी उतना ही प्रासंगिक है। हिंदुस्तान में भी सैंकड़ों युवाओं को केवल इसलिए मार दिया जाता है कि वे अपनी जाति, पहचान और सामाजिक दर्जे से अलग हटकर कुछ नया करना चाहते हैं। वे बताना चाहते हैं कि समाज ने जो पहचान उन पर थोप दी है, वे उससे कहीं बेहतर है। लेकिन हमारा समाज इस आवाज़ को बस्तियों में ही दबाकर ख़त्म कर देना चाहता है। बिना किसी अपराधबोध के, पूरी निर्दोषता के साथ। ऐसे अपराधी खुद के ऊंची जाति में होने का फायदा उठाते हैं और विभिन्न तरीकों से जातिवाद को बरकरार रखने के लिए सक्रिय रहते हैं। लेकिन अगर आप इनसे कभी जाति की बात करते हैं तो कहते हैं कि ‘बड़े कड़वे’ हो रहे हो। निचली जातियों के प्रतिरोध से ऊंची जाति के लोगों को डर लगता है। उनको डर लगता है कि वे अपनी पहचान खो देंगे। ऊंची जाति का होना उनकी पहचान है, और ज़ाहिर है कि जातिवाद का विनाश होने पर उनकी यह पहचान भी नहीं रहेगी। इसके विपरीत एक जो सवाल पैदा होता है वह यह है कि क्या हर पहचान पवित्र है? क्या हमें ऐसी पहचानों को नहीं ठुकराना चाहिए जो दूसरों के शोषण का आधार बनती हों? यह लेख सिर्फ़ अमरीका के काले युवाओं के लिए ही नहीं, यह हिंदुस्तान के दलित, मुसलमान, आदिवासी और अन्य सभी पिछड़ी जाति के युवाओं के लिए भी है। यह लेख दुनिया के उन सभी युवाओं के लिए है जो अपने-अपने देश और समाज में नस्लवाद और जातिवाद जैसी घिनौनी व्यवस्थाओं और धारणाओं से पीड़ित हैं। ऐसे युवाओं के लिए बाल्डविन के यह शब्द तब तक याद रखने लायक रहेंगे जब तक नस्लवाद और जातिवाद का पूरी तरह से खात्मा नहीं हो जाता: ‘जो भी वे मानते हैं, करते हैं और उसे तुम्हें भोगने पर मजबूर करते हैं, वह तुम्हारी हीनता को बयान नहीं करता, बल्कि उनकी अमानवीयता और डर को उजागर करता है।’

March 05, 2022

अगर कालों की अंग्रेजी एक भाषा नहीं है, तो मुझे बताएं, भाषा क्या है?

जेम्स बाल्डविन के लेखों की विशेषता यह है कि उनकी प्रासंगिकता समय के साथ कम होने के बजाय बढ़ती जाती है। इस लेख में उन्होंने अमरीका में भाषा को लेकर हो रहे विवाद के पीछे छुपी राजनीति को उजागर किया है। गोरों और कालों के बीच विवाद केवल भाषा का नहीं है। यह विवाद स्वाभिमान का भी है। स्वतंत्रता और कालों के हक का भी है, जो नस्लवादी गोरे उन्हें देना नहीं चाहते। इसी तरह हिंदुस्तान में भी चल रहे शुद्ध और अशुद्ध भाषा के विवाद का असली कारण केवल ब्राह्मणवाद है, जो कहता है कि सिर्फ ब्राह्मण का उच्चारण और ब्राह्मण की भाषा ही शुद्ध है। वहीं दलित की भाषा बेकार, क्रूर और भाषा कहलाने लायक भी नहीं है। भाषा के इस शुद्धिकरण के जरिए ब्राह्मण दलित से उसकी पहचान छीनने की कोशिश करता है, उसका स्वाभिमान तोड़ने की कोशिश करता है और उसे अपने पैरों तले कुचलने की भी कोशिश करता है। दूसरी ओर, दलित अपनी भाषा के जरिए अपने लिए ब्राह्मणवाद से मुक्त एक आज़ाद ज़िंदगी गढ़ने की कोशिश करता है।

April 03, 2022