वियतनाम की आज़ादी की घोषणा

19 मई के दिन यकीनन दुनिया भर में बहुत सी घटनाएं घटित हुई होंगी, जिनमें से कुछ मामूली और कुछ याद करने लायक होंगी। इन्हीं यादगार घटनाओं में से एक घटना महान कम्युनिस्ट नेता और वियतनाम के प्रथम राष्ट्रपति हो ची मिन्ह का जन्म भी है। हो ची मिन्ह के नेतृत्व में वियतनाम ने पहले फ्रांस और फिर जापान से आज़ादी हासिल की और अपने देश में कम्युनिस्ट शासन की नींव रखी। देश के स्वतंत्रता के मौके पर 'वियतनाम की आज़ादी की घोषणा' नाम से हो ची मिन्ह ने एक संक्षिप्त भाषण दिया। इस भाषण को पढ़ कर आशा की उम्मीद जागती है कि शक्तिशाली उपनिवेशी सरकारों को दुनिया भर में कहीं भी हराया जा सकता है, उनसे स्वतंत्रता हासिल की जा सकती है और अपने हिसाब से शासन करते हुए समृद्धि की सीढ़ियों पर चढ़ा जा सकता है। यह घोषणापत्र उन लोगों के लिए ब्रह्म वाक्य की तरह काम करता है जिन पर आज भी दुनिया के तथाकथित शक्तिशाली और विशाल देशों ने कब्जा कर रखा है। कब्जाधारी इन देशों में दुनिया का सबसे बड़ा तथाकथित लोकतांत्रिक देश हिंदुस्तान भी शामिल है, जिसने कश्मीर और ब्रह्मपुत्र बेसिन के देशों पर वहां के लोगों की इच्छा के खिलाफ शासन करने का फैसला किया हुआ है। एक मुल्क का किसी भी सभ्य समाज, कौम या समुदाय पर उनकी इच्छा के विपरीत शासन करने को जायज नहीं ठहराया जा सकता। भले शासक वर्ग खुद को कितना ही लोकतांत्रिक घोषित क्यों न कर ले। इस लेख में पढ़ा जा सकता है कि अगर आप किसी देश या समुदाय पर उसकी इच्छा के खिलाफ शासन करते हैं तो आखिर में आपको पराजय और विनाश के सिवा कुछ नहीं मिलता।

वियतनाम की आज़ादी की घोषणा

अनुवादक: शहादत खान
स्त्रोत: Marxists Internet Archive 

"सभी मनुष्यों को समान बनाया गया है। उन्हें उनके निर्माता द्वारा कुछ अपरिहार्य अधिकार दिए गए हैं, जिन में जीवन, स्वतंत्रता और खुशी की खोज जैसे अधिकार शामिल हैं," यह अमर कथन सन् 1776 में संयुक्त राज्य अमेरिका की स्वतंत्रता के घोषणा पत्र में लिखा गया था। व्यापक तौर से इस कथन का अर्थ है: पृथ्वी पर सभी लोग जन्म से समान हैं, सभी लोगों को जीने का एवं खुश और स्वतंत्र रहने का अधिकार है।

मनुष्य और नागरिक के अधिकारों पर 1791 में हुई फ्रांसीसी क्रांति की घोषणा में यह भी कहा गया: "सभी मनुष्य स्वतंत्र और समान अधिकारों के साथ पैदा होते हैं। उन्हें हमेशा स्वतंत्र रहना चाहिए और समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए।"

यह सब निर्विवाद सत्य हैं। फिर भी 80 से अधिक वर्षों से फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मानकों का दुरुपयोग करते हुए हमारी पितृभूमि का उल्लंघन किया और हमारे साथी-नागरिकों पर अत्याचार किया।

उन्होंने मानवता और न्याय के आदर्शों के विपरीत काम किया। राजनीति के क्षेत्र में उन्होंने हमारे लोगों को हर लोकतांत्रिक स्वतंत्रता से वंचित किया। उन्होंने अमानवीय कानूनों को लागू किया; उन्होंने हमारी राष्ट्रीय एकता को नष्ट करने और हमारे लोगों को एकजुट होने से रोकने के लिए वियतनाम के उत्तर, केंद्र और दक्षिण में तीन अलग-अलग राजनीतिक शासन स्थापित किए। उन्होंने स्कूलों से ज्यादा जेलें बनाई।

उन्होंने हमारे देशभक्तों को बेरहमी से मार डाला। उन्होंने हमारे विद्रोह को खून की नदियों में डुबो दिया। उन्होंने जनमत के फैलाव पर बाधाएं लगा दी; उन्होंने हमारे लोगों को अंधकार और रूढ़िवाद में धकेलने की साजिश कीहमारे लोगों को कमजोर करने के लिए उन्होंने हमें अफीम और शराब का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उन्होंने हमारी रीढ़ की हड्डी को तोड़ दिया, हमारे लोगों को गरीब बना दिया और हमारी जमीन को तबाह कर दिया। उन्होंने हमारे चावल के खेतों, हमारी खानों, हमारे जंगलों और हमारे कच्चे माल को लूट लिया है।

उन्होंने बैंक नोट जारी करने और निर्यात-व्यापार पर अपना एकाधिकार जमा लिया। उन्होंने कई अनुचित करों को लागू किया और हमारे लोगों को, विशेष रूप से हमारे किसानों को, अत्यधिक गरीबी की स्थिति में धकेल दिया। उन्होंने हमारे राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग की समृद्धि में बाधा डाली; उन्होंने हमारे मज़दूरों का बेरहमी से शोषण किया।

1940 की शरद ऋतु में जब जापानी फासीवादियों ने मित्र राष्ट्रों के खिलाफ अपनी लड़ाई में नए ठिकाने स्थापित करने के लिए इंडोचीन के क्षेत्र का उल्लंघन किया तो फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों ने घुटने टेक दिए और हमारे देश को उन्हें सौंप दिया। इस प्रकार, उस तिथि से हमारे लोग फ्रांसीसी और जापानियों के दोहरे जुए के अधीन थे। उनके कष्ट और बढ़ते गए। इसका परिणाम यह हुआ कि पिछले साल के अंत से इस साल की शुरुआत तक क्वांग ट्री प्रांत से लेकर वियतनाम के उत्तर तक हमारे बीस लाख से अधिक साथी-नागरिक भूख से मर गए। 9 मार्च को फ्रांसीसी सैनिकों को जैपनीज़ द्वारा निरस्त्र कर दिया गया। फ्रांसीसी उपनिवेशवादी भाग गए या उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया, जिससे यह मालूम पड़ा कि न केवल वे हमारी "रक्षा" करने में असमर्थ थे, बल्कि पांच साल की अवधि में उन्होंने दो बार हमारे देश को जापानियों को बेच दिया था। नौ मार्च से पहले कई मौकों पर वियतनाम लीग ने फ़्रांस के लोगों से आग्रह किया था कि जापान के खिलाफ युद्ध में उनके साथ जुड़ जाएं

इस प्रस्ताव पर सहमत होने के बजाय फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों ने वियतनाम के लोगों के खिलाफ अपनी आतंकवादी गतिविधियों को इतना बढ़ा दिया कि भागने से पहले उन्होंने येन बे और काओ बैंग में हिरासत में लिए गए हमारे राजनीतिक कैदियों को बड़ी संख्या में मार डाला। इस सब के बावजूद, हमारे साथी-नागरिकों ने हमेशा फ्रांसीसी के प्रति एक सहिष्णु और मानवीय दृष्टिकोण प्रकट किया है।

मार्च 1945 में जापान के नियंत्रण लेने के बाद भी वियतनाम लीग ने कई फ्रांसीसी लोगों को सीमा पार करने में मदद की। उनमें से कुछ को जापानी जेलों से बचाया और फ्रांसीसी जीवन और संपत्ति की रक्षा की। 1940 की शरद ऋतु से हमारा देश वास्तव में फ्रांसीसी उपनिवेश नहीं रह गया था, यह जापानी अधिकार बन गया था। जापानियों द्वारा मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण करने के बाद हमारा हर नागरिक हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता को पुनः प्राप्त करने और वियतनाम के लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना के लिए उठ खड़ा हुआ

सच तो यह है कि हमने अपनी आजादी जापानियों से छीनी है, फ्रांसीसियों से नहीं। फ़्रांसीसी भाग गए, जापानी हार गए और सम्राट बो डाइ सत्ता से ओझल हो गए। हमारे लोगों ने उन जंजीरों को तोड़ दिया जो लगभग एक सदी से उन्हें बांधे हुए थीं और पितृभूमि के लिए स्वतंत्रता प्राप्त की। साथ ही साथ हमारे लोगों ने उस राजशाही शासन को भी उखाड़ फेंका जिसने दर्जनों शताब्दियों से हम पर शासन किया।

उसके स्थान पर वर्तमान लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की गई है। इन कारणों से हम अनंतिम सरकार के सदस्य पूरे वियतनामी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हुए घोषणा करते हैं कि अब से हम फ्रांस के साथ औपनिवेशिक चरित्र के सभी संबंधों को तोड़ते हैं; हम उन सभी अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को निरस्त करते हैं जिन्हें फ़्रांस ने अब तक वियतनाम की ओर से स्वीकार किया है और हम उन सभी विशेष अधिकारों को समाप्त करते हैं जिन्हें फ़्रांस ने हमारी पितृभूमि में अवैध रूप से प्राप्त किया था।

एक समान उद्देश्य से अनुप्राणित संपूर्ण वियतनामी लोग अपने देश को फिर से जीतने के लिए फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों के किसी भी प्रयास के खिलाफ अंत तक लड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। हमें विश्वास है कि जिन मित्र राष्ट्रों ने तेहरान और सैन फ्रांसिस्को में आत्मनिर्णय और राष्ट्रों की समानता के सिद्धांतों को स्वीकार किया है, वे वियतनाम की स्वतंत्रता को स्वीकार करने से इनकार नहीं करेंगे।

जिन लोगों ने 80 से अधिक वर्षों से फ्रांसीसी वर्चस्व का साहसपूर्वक विरोध किया है, जो लोग इन अंतिम वर्षों में फासीवादियों के खिलाफ मित्र राष्ट्रों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़े हैं, ऐसे लोगों को स्वतंत्र होना चाहिए।

इन कारणों से हम वियतनाम लोकतांत्रिक गणराज्य की अनंतिम सरकार के सदस्य दुनिया के सामने यह घोषणा करते हैं कि वियतनाम को एक स्वतंत्र देश होने का अधिकार है और वास्तव में ऐसा पहले से ही है। सभी वियतनामी लोग अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने जीवन और संपत्ति का बलिदान करने के लिए अपनी सारी शारीरिक और मानसिक शक्ति जुटाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।

* नोट- वियतनाम के लोकतांत्रिक गणराज्य का नाम बदलकर वियतनाम का समाजवादी गणराज्य कर दिया गया है।

हो ची मिन्ह
हो ची मिन्ह

हो ची मिन्ह का वास्तविक नाम गुयेन तात थान (1890-1969) था| वे वियतनामी कम्युनिस्ट नेता और फ्रांसीसी औपनिवेशिक शासन के खिलाफ वियतनामी संघर्ष के प्रमुख व्यक्तित्व थे। हो का जन्म 19 मई 1890 को अन्नाम (मध्य वियतनाम) के किमिलियन गांव में हुआ था। वह एक अधिकारी के बेटे थे, जिन्होंने अपने देश में फ्रांसीसी... हो ची मिन्ह का वास्तविक नाम गुयेन तात थान (1890-1969) था| वे वियतनामी कम्युनिस्ट नेता और फ्रांसीसी औपनिवेशिक शासन के खिलाफ वियतनामी संघर्ष के प्रमुख व्यक्तित्व थे। हो का जन्म 19 मई 1890 को अन्नाम (मध्य वियतनाम) के किमिलियन गांव में हुआ था। वह एक अधिकारी के बेटे थे, जिन्होंने अपने देश में फ्रांसीसी शासन के विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। हो ने ह्यू में स्कूल में पढ़ाई की और फिर कुछ समय के लिए फ़ान थियेट के एक निजी स्कूल में पढ़ाया। 1911 में उन्हें फ्रांसीसी स्टीमशिप लाइनर पर रसोइया के रूप में नियुक्त किया गया। इसके बाद उन्होने लंदन और पेरिस में भी काम किया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद छद्म नाम गुयेन ऐ क्वोक (गुयेन द पैट्रियट) का उपयोग करते हुए हो वियतनाम स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियों में लग गए। वह फ्रांसीसी कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक समूह में से एक थे। उन्हें प्रशिक्षण के लिए मास्को बुलाया गया और 1924 के अंत में उन्हें कैंटन, चीन भेजा गया। वहां उन्होंने वियतनामी निर्वासितों को इक्ट्ठा कर उनके बीच क्रांतिकारी आंदोलन को सूत्रापात किया। जब स्थानीय अधिकारियों ने कम्युनिस्ट गतिविधियों पर नकेल कसी तो उन्हें चीन छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन वह 1930 में इंडोचाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (ICP) को फिर स्थापित करने के लिए लौट आए। वह कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में हांगकांग में रहे। जून 1931 में हो को ब्रिटिश पुलिस ने वहां गिरफ्तार कर लिया और 1933 में अपनी रिहाई तक जेल में रहे। फिर वह सोवियत संघ वापस लौट गए। वहां कई सालों तक वह तपेदिक की बीमारी से जूझते हुए इलाज कराते रहे। 1938 में वे चीन लौट आए और चीनी कम्युनिस्ट सशस्त्र बलों के सलाहकार के रूप में कार्य किया। 1941 में जब जापान ने वियतनाम पर कब्जा कर लिया तो उन्होंने आईसीपी नेताओं के साथ फिर से संपर्क साधा और नए कम्युनिस्ट-प्रभुत्व वाले स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में मदद की। इसे वियतमिन्ह के नाम से जाना जाता है, जिसने जापानियों से लड़ाई लड़ी। अगस्त 1945 में जब जापान ने आत्मसमर्पण किया तो वियतमिन्ह ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और हनोई में वियतनाम लोकतांत्रिक गणराज्य (DRV) की घोषणा की। हो ची मिन्ह, जिन्हें अब उनके अंतिम और सबसे प्रसिद्ध छद्म नाम (जिसका अर्थ है "ज्ञानवर्धक") से जाना जाता है, राष्ट्रपति बने। फ्रांसीसी अपने औपनिवेशों को स्वतंत्रता देने के लिए तैयार नहीं थे। वे 1946 के अंत तक वियतमान के स्वतंत्रता आंदोलन को पूरी ताकत से कुचलते रहे। आठ वर्षों के लिए वियतनाम के पहाड़ों और चावल के खेतों में वियतमिन्ह गुरिल्लाओं ने फ्रांसीसी सैनिकों से लड़ाई लड़ी। अंत में उन्हें 1954 में दीन बिएन फु की निर्णायक लड़ाई में हराया। हालांकि, हो अपनी संपूर्ण जीत से वंचित रहे। बाद में जिनेवा में हुई बातचीत ने देश को विभाजित कर दिया। हो और उनके समूह को केवल उत्तर वियतनाम सौंपा गया। हो के प्रतिनिधित्व में डीआरवी अब उत्तरी वियतनाम में कम्युनिस्ट समाज के निर्माण में जुट गई। हालांकि, 1960 के दशक की शुरुआत में दक्षिण में संघर्ष फिर से शुरू हो गया, जहां कम्युनिस्ट के नेतृत्व वाले गुरिल्लाओं ने साइगॉन में यू.एस.ए. समर्थित शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया। खराब स्वास्थ्य होने के कारण हो अब महज औपचारिक भूमिका तक सीमित रह गए थे। दो सितंबर, 1969 को हनोई में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। उनके सम्मान में 1975 में दक्षिण की कम्युनिस्ट विजय के बाद साइगॉन का नाम बदलकर हो ची मिन्ह सिटी कर दिया गया। हो ची मिन्ह न केवल वियतनामी साम्यवाद के संस्थापक थे, वे क्रांति और स्वतंत्रता के लिए वियतनाम के संघर्ष की आत्मा थे। न केवल वियतनाम के भीतर बल्कि अन्य जगहों पर भी उनकी सादगी, अखंडता और दृढ़ संकल्प के लिए व्यापक रूप से प्रशंसा की गई।