लाश की नुमाइश

जंग के दौरान समाज में ऐसा बहुत कुछ पनपता है जो आम तौर पर निकल कर बाहर नहीं आ पाता। लोगों की मानसिकता हिंसात्मक हो चलती है और कला का भी मतलब बदल जाता है। ऐसे में जो लोग मानवता में विश्वास रख भी पाते हैं, वे अपने आप को उन से नहीं बचा पाते जो मानवता में विश्वास खो कर मौत के कलाकार बन चुके हैं। ऐसा ही कुछ हाल इराक में भी हुआ, जो इस कहानी में आप पढ़ सकते हैं।

लाश की नुमाइश

पटचित्र: Psycho Pass

अरबी से अनुवाद अंग्रेजी में: जोनाथन राइट 
अंग्रेजी से अनुवाद हिन्दी में: अर्जुमंद आरा 
 

अपना खंजर निकालने से पहले वह बोला, “अपने असामी (क्लाइंट) की फ़ाइल पढ़ने के बाद तुमको एक संक्षिप्त नोट लिखकर बताना होगा कि अपने पहले असामी का किस तरह कत्ल करोगे और शहर में उसकी लाश की नुमाइश किस तरह करोगे। लेकिन इसका यह मतलब हरगिज़ न होगा कि जो प्रस्ताव तुम अपने नोट में भेजोगे वह स्वीकार लिया जाएगा। हमारा कोई स्पैशलिस्ट प्रस्तावित प्रणाली का जायज़ा लेगा और वह उसे या तो मंज़ूरी देगा या फिर कोई और तरीक़ा पेश करेगा। काम के तमाम चरणों में यही कार्य-प्रणाली तमाम पेशेवरों पर लागू होती है। जब तुम्हारा प्रशिक्षण पूरा हो जाएगा और आज़माइश हो चुकेगी, उसके बाद भी यही कार्य-पद्धति रहेगी। इन तमाम चरणों के दौरान तुम्हें पूरी तनख़्वाह मिलती रहेगी। मैं फ़िलहाल इस सारे विवरण में पड़ना नहीं चाहता। मैं उसके बारे में तुमको धीरे-धीरे बताता रहूंगा। जब असामी की फ़ाइल तुम्हें मिल जाएगी तो उसके बाद तुम पहले की तरह कोई सवाल ज़बानी नहीं पूछ सकोगे। तुम्हें अपने सारे सवाल लिख कर पूछने होंगे। तुम्हारे सारे सवाल, प्रस्ताव और तहरीरें तुम्हारी निजी फ़ाइल में सुरक्षित कर दी जाएंगी। काम के सम्बन्ध में तुम मुझे कोई ईमेल हरगिज़ नहीं भेजोगे, न ही टेलीफ़ोन करोगे। अपने सवाल एक विशेष फ़ार्म पर लिख कर दोगे जो मैं तुम्हें बाद में दूँगा। अहम बात यह है कि अब तुम अपना वक़्त असामी की फ़ाइल ध्यान से और सब्र के साथ पढ़ने में लगाओगे।

“मैं तुम्हें यक़ीन दिलाता हूं कि अगर तुम अपने पहले असाइनमेंट में नाकाम भी हुए तो हम तुम्हारे साथ समझौता ख़त्म नहीं करेंगे। अगर तुम नाकाम रहे तो उसी तनख़्वाह पर तुम्हारा तबादला दूसरे विभाग में कर दिया जाएगा। लेकिन ज़रूरी है कि एक बार फिर मैं तुम्हें याद दिला दूं कि पहली तनख़्वाह मिलने के बाद अगर मुलाज़मत (नौकरी) छोड़ने के बारे में सोचोगे तो यह हमें मंज़ूर नहीं होगा, और तुम कामयाब न हो सकोगे। इसकी शर्तें बहुत सख़्त हैं, और मान लो मैनेजमेंट तुमसे संपर्क तोड़ने को तैयार भी हुआ तो तुम्हें बहुत सी आज़माइशों से गुज़रना पड़ेगा, जो काफ़ी लम्बे समय तक जारी रह सकती हैं। हमारे आरकाइव्ज़ में इन स्वयं-सेवकों और एजेंटों की फाइलें सुरक्षित हैं जिन्होंने अपनी मर्ज़ी से समझौता ख़त्म करने का फ़ैसला किया। अगर तुम भी ऐसा करने का सोच रहे हो तो हम तुम्हें दूसरों के अनुभवों की चंद मिसालों से परिचित कराएंगे। मुझे यक़ीन है कि तुम अपना काम मेहनत से करोगे और इससे खुश भी होगे। तुम देखोगे कि तुम्हारी पूरी ज़िंदगी किस तरह बदल जाएगी।

“यह तुम्हारा पहला तोहफ़ा है; लेकिन इसको अभी न खोलना। यह तुम्हारी पूरी तनख़्वाह है। जहां तक शिकार-ख़ौर जानवरों की ज़िंदगियों पर डॉक्यूमेंटरियों का सम्बन्ध है, तुम उन्हें ख़रीद सकते हो और हम इसका ख़र्चा बाद में अदा कर देंगे। शिकार की हड्डियों की तस्वीरों पर विशेष ध्यान देना।

“हमेशा याद रखना अज़ीज़ दोस्त कि हम कोई आतंकवादी नहीं हैं जिनका मक़सद हर मुमकिन हद तक ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का शिकार करना होता है ताकि इससे दूसरे लोग ख़ौफ़ज़दा हो जाएं, और न ही हम कोई जुनूनी क़ातिल हैं जो पैसे के लिए काम करते हैं। हमें किसी तरह के चरमपंथी इस्लामी गिरोहों या ऐसी इंटेलीजेन्स एजेंसियों से भी कोई वास्ता नहीं, जो किसी बेहूदा हुकूमत या ऐसी ही किसी बुद्धिहीन सोच के लिए काम करते हैं।

“मुझे मालूम है कि अब कुछ सवाल तुम्हारे ज़हन में कुलबुला रहे हैं, लेकिन तुम्हें क्रमश: पता चल जाएगा कि दुनिया का निर्माण कई स्तरों से मिलकर हुआ है, और यह बात किसी के लिए भी व्यवहारिक रूप में असंभव है कि वह इन सारे स्तरों और सारी परतों तक आसानी से पहुंच सके। मत भूलो कि संस्था में एक ऊंचा पद तुम्हारी प्रतीक्षा में है, अगर तुम ऐसी कल्पना रखते हो जो ताज़ा, उत्तेजक और आकर्षक हो।

“हर वह शख़्स जिसे तुम ख़त्म करोगे, एक आर्ट का नमूना है, जो तुम्हारे हाथ के फ़ाइनल टच की प्रतीक्षा में है ताकि इस मुल्क के मलबे के बीच तुम किसी अनमोल हीरे की तरह जगमगा सको। लोगों के नज़ारे के लिए लाश की नुमाइश उस रचनात्मकता की पराकाष्ठा है जिसकी हम तलाश में हैं और जिसके अध्ययन की और जिससे फ़ायदा उठाने की हम कोशिश कर रहे हैं। निजी तौर पर, मैं ऐसे एजेंटों को बर्दाश्त नहीं कर सकता जिनके पास कल्पना-शक्ति नहीं है। मिसाल के तौर पर, हमारे पास एक एजेंट है जिसका खु़फ़िया नाम ‘पिशाची ख़ंजर’ है। मेरी ख्वाहिश है कि उसका इंचार्ज उससे जितनी जल्दी मुमकिन हो, छुटकारा पा ले। उस आदमी का ख़याल है कि असामी के शरीर के अंगों को काट कर उन्हें ग़रीब मोहल्लों के बिजली के तारों पर लटका देना रचनात्मकता और मौलिकता की पराकाष्ठा है। यह शख़्स किसी घमंडी अहमक़ (मूर्ख) से ज़्यादा कुछ नहीं। मुझे उसकी क्लासिकी कार्य-शैली से नफ़रत है। हालांकि वह नई क्लासिकता की बात करता है। यह मंदबुद्धि आदमी महज़ इतना करता है कि अपनी असामी के शरीर के अंगों में रंग भरता है - दिल गहरा नीला, आंतें हरी, जिगर और फ़ोते पीले - और फिर उन्हें नज़र न आने वाले धागों पर लटका देता है। यह काम वह सादगी की नियमावली को समझने की कोशिश किए बग़ैर किया करता है।

“जब कि मैं थोड़ा सा ब्यौरा दे रहा हूं, देख सकता हूं कि तुम्हारी आंखों में बेचैनी का भाव है। शांत हो जाओ, गहरी सांस लो, अपनी अनदेखी रूह के संगीत को सुकून और धैर्य के साथ सुनो। अब मैं कुछ और नुक्तों की वज़ाहत कर दूं ताकि कुछ ग़लत शंकाएं, जो तुम्हारे दिल में हो सकती हैं, दूर हो जाएं। चलो, तुम्हारे साथ थोड़ा-सा वक़्त ज़ाया करता हूं। जो कुछ मैं तुम्हें बताने जा रहा हूं वह केवल मेरी निजी धारणा हो सकती है, और ग्रुप के किसी दूसरे सदस्य की राय इससे ख़ासी भिन्न हो सकती है।

“मुझे संक्षिप्त, सादा और आकर्षक बिम्ब पसंद हैं। मसलन एजेंट ‘बहरे’ को ही लो। वह शांत स्वभाव का है और उसकी नज़र निहायत तेज़ और स्पष्ट है। मेरी नज़र में उसकी सबसे बेहतरीन कृति वह औरत थी जो अपने बच्चे को दूध पिला रही थी। सर्दियों की एक सुबह, बारिश में पैदल चलने वालों और गाड़ी वालों का एक हुजूम उस औरत को देखने के लिए जमा हो गया था। वह नग्न थी और मोटी, और उसका बच्चा भी नंगा था, जो उसके बाएं स्तन से दूध पी रहा था। उसने औरत को एक भीड़-भाड़ वाली सड़क के बीच की पट्टी पर लगे खजूर के एक सूखे पेड़ के नीचे बिठाया था। औरत या बच्चे के जिस्म पर कहीं भी किसी ज़ख्म या गोली का निशान तक न था। औरत और उसका बच्चा ज़िंदगी से उतने ही भरपूर लग रहे थे जैसे पारदर्शी स्वच्छ पानी का स्रोत। यही वह जीनियस है, जिसका इस शताब्दी में नितांत अभाव है। तुमने उस औरत के भारी-भरकम स्तन देखे होंगे, और उसका बच्चा किस क़दर दुबला था, जैसे हड्डियों के किसी ढेर पर बच्चों की त्वचा पर चमकदार सफ़ेद रंग पोत दिया गया हो। कोई इस बात का अंदाज़ा नहीं लगा सकता था कि मां और बच्चा किस तरह मारे गए होंगे। अधिकतर लोगों को लगा होगा कि उसने कोई ऐसा रहस्यमय ज़हर इस्तेमाल किया है जिसका अभी वर्गीकरण तक नहीं हुआ। लेकिन तुम्हें चाहिए कि हमारी लायब्रेरी के आरकाइव्ज़ में जाकर इस सटीक और काव्यात्मक रिपोर्ट का अध्ययन करो जो बहरे ने इस असाधारण कलाकृति के बारे में लिखी थी। ग्रुप में वह अब एक अहम ओहदे पर नियुक्त है। बल्कि वह इससे भी कहीं ज़्यादा का हक़दार है।

“तुम्हें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि यह मुल़्क इस सदी के दुर्लभ और असाधारण मौक़े उपलब्ध करा रहा है। मुमकिन है हम यहां ज़्यादा दिन तक काम न कर सकें। जैसे ही परिस्थितियों में ठहराव आएगा, हमें किसी और देश का रुख़ करना पड़ेगा। फ़िक्र न करो, बहुत से उम्मीदवार हैं। सुनो, अतीत में हमने तुम जैसे नए विद्यार्थियों को क्लासिकी पाठों का प्रशिक्षण दिया है, लेकिन अब हालात बहुत बदल गए हैं। अब हमने निर्देशों के बजाय जमहूरियत पर, और परिकल्पना की सहजता पर भरोसा करना शुरू कर दिया है। प्रोफ़ेशनल ढंग सीखने से पहले, हम जो कुछ करते थे उसको समझने के लिए मैंने लम्बे समय तक अध्ययन किया और बहुत-सी उबाऊ किताबें पढ़ीं। हम ऐसे शोध-कार्यों का अध्ययन करते थे जिनमें अमन की बात की गई थी, ऐसे शोध-कार्य जो दरअसल घृणा के पात्र कौशल के साथ लिखे गए थे। हर बात का तर्क पेश करने के लिए उनमें बहुत-सी कच्ची-पक्की और ग़ैर-ज़रूरी अवधारणाएं थीं। उनमें से एक यह थी कि फ़ार्मेसी में सारी दवाएं, मामूली-सा पुराना टूथपेस्ट तक भी, किस तरह चूहों और दूसरे प्राणियों पर लेबोरेट्री टेस्ट करके तैयार किए जाते थे, इसलिए इस भूमंडल पर शांति की स्थापना तब तक मुमकिन नहीं जब तक कि लेबोरेट्री में इंसानों की क़ुर्बानी न दी जाए। इस क़िस्म के प्राचीन ढंग के पाठ उबाऊ और निराशाजनक हैं। तुम्हारी पीढ़ी बहुत ख़ुश-क़िस्मत है कि उसे सुनहरे मौक़ों का यह दौर नसीब हुआ। आइसक्रीम चूसती हुई कोई फ़िल्म एक्ट्रेस दर्जनों ऐसी तस्वीरों और ख़बरों का केंद्र बन सकती है जो इस चीख़-पुकार और नृत्य की चक्की बराबर दुनिया के किसी ऐसे सुदूर गांव तक पहुंचे जो अकाल की तबाही झेल रहा हो। यह कम से कम उस शय को पाने में तो कामयाब है जिसे मैं ‘दुनिया की निरर्थकता और मर्म की विविधता की खोज का न्याय’ कहता हूं। इसी का एक पहलू यह है कि शहर के केंद्र में लाश की नुमाइश मौलिक रचनाशीलता के साथ की जाए!

“शायद मैंने तुमसे कुछ ज़्यादा ही बातें कह दी हैं, लेकिन यह भी साफ़-साफ़ बता दूं कि मैं तुम्हारे लिए चिंतित हूं, क्योंकि तुम या तो निरे अहमक़ हो या फिर जीनियस, और इस क़िस्म के एजेंट मेरी जिज्ञासा को हवा देते हैं। अगर तुम जीनियस हो तो बड़ी उम्दा बात है। मैं अब भी जीनियस में आस्था रखता हूं। हालांकि ग्रुप के अधिकतर सदस्य तजुरबे और अभ्यास की बात किया करते हैं। और अगर तुम अहमक़ हो, तो जाने से पहले तुमको एक अहमक़ के बारे में एक छोटी-सी और मुफ़ीद कहानी सुनाता चलूं, जिसने अपने अहमक़पन से हमारे मामलों का कबाड़ा करने की कोशिश की थी। मुझे उसका उपनाम ‘कील’ तक पसंद न था। जब कमेटी ने यह प्रस्ताव मंज़ूर कर लिया कि ‘कील’ किसी तरीक़े से अपने असामी का क़त्ल करेगा और उसकी लाश की नुमाइश एक बड़े रेस्तोरां में करेगा, तो हम उसके परिणामों का इंतज़ार करने लगे। लेकिन यह शख़्स अपना काम अंजाम देने में बेहद सुस्ती बरत रहा था। मैंने उससे कई बार मुलाक़ात की और पूछा कि आख़िर देरी का कारण क्या है। वह कहता था कि वह अपने से पहले वालों की कार्य-प्रणाली दोहराना नहीं चाहता और उसकी इच्छा है कि हमारे काम में मौलिकता की एक लंबी छलांग लगाए। लेकिन सच्चाई इसके विपरीत थी। ‘कील’ ऐसा बुज़दिल आदमी था जो मानवतावाद की अप्रचलित पुरानी भावनाओं से ग्रसित था, और किसी भी रोगी की तरह उसने भी दूसरों को क़त्ल करने की प्रासंगिकता पर सवाल उठाना और इस पर अचंभित होना शुरू कर दिया था कि क्या सचमुच कोई ऐसा विधाता है जो हमारे तमाम कार्यों पर नज़र रखता है; और बस यही उसके पाताललोक की तरफ़ सफ़र की शुरूआत बन गई, क्योंकि हर बच्चा जो इस दुनिया में पैदा होता है, नेक या बुरा हो उठने की साधारण-सी संभावना से दोचार होता है, जैसा कि इस अहमक़ दुनिया में मज़हबी तालीम के मदरसों के ज़रिए किए गए वर्गीकरण से ज़ाहिर है। लेकिन हमारे लिए यह बिल्कुल भिन्न मामला है। हर बच्चा जो पैदा होता है, वह डूबते हुए जहाज़ पर महज़ एक और बोझ है। ख़ैर, मैं तुम्हें बता दूं कि ‘कील’ के साथ क्या हुआ। उसका एक रिश्तेदार था जो शहर के केन्द्रीय अस्पताल में गार्ड था, और ‘कील’ सोच रहा था कि किसी को लाश में बदलने के बजाए अस्पताल के मुर्दाघर से कोई लाश चुन ले। ऐसा करना बिल्कुल मुश्किल न था कि वह अपने रिश्तेदार को इस काम के लिए अपने वेतन में से आधी रक़म दे दे जो उसे ग्रुप की ओर से मिलता था। दहश्तगर्दी की अहमक़ाना कार्यवाहियों के परिणामस्वरुप मुर्दा घर लाशों से भरा पड़ा था। ऐसे मुर्दे जो कार बम धमाकों में चीथड़ों में बदल गए थे, धार्मिक झगड़ों में कुछ के सर शरीर जुदा कर दिए गए थे, कुछ फूली हुई लाशें जो दरिया की तह से बरामद हुई थीं, और कुछ लाशें उन अहमक़ों की थीं जो व्यक्तिगत कारणों से क़त्ल कर दिए गए थे और फ़नकारी (रचनात्मकता) से उनका कोई सम्बन्ध न था। उस रात ‘कील’ ख़ुफ़िया तौर पर मुर्दाघर में दाख़िल हुआ और अवामी नुमाइश के लिए मुनासिब मुर्दा ढूंढने लगा। ‘कील’ बच्चों की लाशें देख रहा था, क्योंकि अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में उसने जो प्रस्ताव रखा था उसके अनुसार उसे पांच साल के बच्चे को क़त्ल करना था।

“मुर्दाघर में उन स्कूली बच्चों की लाशें रखी थीं जो बम धमाकों में मारे गए थे, या बाज़ार के बम धमाकों में ख़त्म हो गए थे, या घरों पर हवाई बमबारी के नतीजे में टुकड़े-टुकड़े हो गए थे। कील ने अंतत: एक लाश का चुनाव किया जिसका सर, धार्मिक गुटबंदी के कारण, उसके सारे परिजनों के साथ काट दिया गया था। यह लाश बिल्कुल साफ़-सुथरी थी और उसकी गर्दन इतनी सफ़ाई से उतारी गई थी जैसे काग़ज़ के दो टुकड़े कर दिए गए हों। कील का ख़याल था कि इस लाश की नुमाइश वह एक रेस्तोरां में करेगा और साथ में उसके घर वालों की आंखें एक मेज़ पर, ख़ून के प्यालों में रखकर सूप की तरह सजाएगा। शायद यह एक ख़ूबसूरत कल्पना थी, लेकिन इससे बड़ी बात यह थी कि ये सारा काम धोखे और दग़ा पर आधारित था। अगर उसने बच्चे की गर्दन अपने हाथों से काटी होती तो यह एक प्रमाणिक यथार्थ की कलाकृति होता, लेकिन उसको मुर्दाघर से चुराना और इस कुरूप ढंग से पेश आना एक साथ शर्मनाक और बुज़दिली का काम था। बहरहाल, वह यह नहीं समझ सका कि आज की दुनिया केवल किसी एक सुरंग और राहदारी से नहीं बल्कि दूसरे रास्तों से भी आपस में सम्बद्ध है।

“इससे पहले कि कील बेचारी अवाम को धोखा दे, लाशों की सज्जा करने वाले एक पेशेवर मोर्टिशियन ने उसे बरवक़्त जा पकड़ा। मोर्टिशियन की उम्र साठ बरस से ऊपर थी, और वह काफी विशालकाय था। जब से मुल्क में विकृत लाशों की तादाद बढ़ गई थी, मुर्दाघर में उसका कारोबार ज़ोर-शोर से चल पड़ा था। लोग उसे अपने उन बच्चों और दूसरे रिश्तेदारों की लाशों को जोड़ कर सही-सालिम करने के लिए बुलाते थे जिनके बम धमाकों और क़त्लो-ग़ारत के कारण चीथड़े उड़ जाते थे। बच्चों की लाशों को उनकी पिछली हालत में लाने के एवज़ में वह उसे अच्छा पैसा देते थे। यह मोर्टिशियन सचमुच एक उम्दा कलाकार था। वह अपना काम निहायत धैर्य और दिलजोई से करता था। उस रात वह कील को मुर्दाघर में बराबर के एक कमरे में ले गया और कमरा बंद कर लिया। उसने कील को ऐसी दवा का इंजेक्शन लगाया जिससे बेहोश हुए बिना उसका शरीर शिथिल हो गया। उसने कील को मुर्दाघर की मेज़ पर लिटा दिया, उसके हाथ और पैर मेज़ के साथ बांध दिए और मुंह में कपड़ा ठूंस दिया। जब तक वह अपने काम की मेज़ तैयार करता रहा, बच्चों का एक सुन्दर गीत अपनी औरतों जैसी अजीब आवाज़ में गुनगुनाता रहा। यह गीत एक ऐसे बच्चे के बारे में था जो ख़ून के एक छोटे से पोखर में मेंढक का शिकार कर रहा था। बीच-बीच में वह कील के बालों को नर्मी से थपथपाता था और उसके कान में सरगोशी करता था: ओह, मेरे अज़ीज़, ओह मेरे रफ़ीक़! मौत से भी ज़्यादा अजीब एक और बात है - उस दुनिया को देखना जो तुमको देख रही हो; हरकत किए बिना, कुछ भी सोचे बिना, बल्कि उद्देश्यहीन; जैसे तुम और दुनिया एक अंधकार में एकत्रित हो गए हों, ख़ामोशी और तनहाई की मानिंद। और मौत से थोड़ी-सी ज़्यादा अजीब एक और बात है: किसी मर्द और औरत का बिस्तर में खेलना, और फिर तुम्हारा, सिर्फ़ तुम्हारा कामोत्कर्ष पर पहुंचना, तुम जो कि अपनी दास्तान-ए-ज़िंदगी हमेशा ही ग़लत ढंग से लिखते रहे हो।

“मोर्टिशियन ने अपना काम सुबह होते-होते मुकम्मल कर लिया।

“न्याय मंत्रालय के सदर दरवाज़े के सामने एक चबूतरा बना था, वैसा ही चबूतरा जिन पर शहर की मूर्तियां लगाई जाती हैं, लेकिन यह गोश्त के क़ीमे और हड्डियों से तामीर किया गया था। चबूतरे के ऊपर कांसे का एक स्तम्भ था, और इस सुतून पर कील की खाल लटकी हुई थी। इसको बड़ी महारत के साथ गोश्त से पूरा का पूरा जुदा किया गया था, और वह हवा में विजय-पताका की तरह लहरा रही थी। चबूतरे के सामने वाले हिस्से में कील की दाहिनी आंख को देखा जा सकता था, जिसे उसके गोश्त के क़ीमे में सजा दिया गया था। इस आंख में वैसा ही नीरवता का भाव था जैसा इस वक़्त तुम्हारी आंखों में है। क्या तुम जानते हो कि यह मोर्टिशियन कौन था? यह शख़्स संस्था के सबसे अहम विभाग का इंचार्ज है। यह शख़्स सत्य और रचनात्मकता विभाग का इंचार्ज है।”

तब उसने ख़ंजर मेरे पेट में उतार दिया और बोला: “तुम लरज़ रहे हो।”

***

अनुवादक 

अर्जुमंद आरा दिल्ली यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग में प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में उच्च शिक्षा प्राप्त की और छात्र-जीवन से ही प्रगतिशील लेखक संघ से वाबस्ता हो गईं. उर्दू आलोचना और अनुवाद के क्षेत्र में काम करती हैं. अनुवाद के लिए दिल्ली उर्दू अकादमी ने 2013 का तर्जुमा इनाम प्रदान किया.

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ताहर बिन जल्लून (मराकश) का उपन्यास दिस ब्लाइंडिंग अब्सेंस ऑफ़ लाइट/ये बसारत-कुश अँधेरे, 2020; हसन ब्लासिम (इराक़) ‘लाश की नुमाइश और दीगर इराक़ी कहानियां’, 2019; धर्मवीर भारती (सूरज का सातवाँ घोड़ा), 2019; अरुंधति राय (द मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैप्पीनेस/बेपनाह शादमानी की मम्लिकत), 2018; विभूति नारायण राय (हाशिमपुरा: 22 मई), 2018; अतीक़ रहीमी (अफ़ग़ान) के तीन उपन्यास ‘संगे- सबूर’, ‘ख़ाकिस्तर-ओ-ख़ाक’ और ‘ख़ाब और खौफ़ की हज़ार भूल-भुलय्यां’; तय्यब सालिह (सूडान) का उपन्यास सीज़न ऑफ़ माइग्रेशन टू द नार्थ / शुमाल की जानिब हिजरत का मौसम, 2017; दिव्या माथुर (ज़हर मोहरा और दूसरी कहानियां), 2016; गार्गी चक्रवर्ती  (पी सी जोशी : एक सवानेह), 2014; राल्फ़ रसल की आत्मकथा (फ़ाइंडिंग्स,कीपिंग्स और लोसेज़, गैन्ज़/ 'जुइंदा याबिन्दा' (2005) और 'कुछ खोया, कुछ पाया' (2013); मुशीरुल हसन (द नेहरुज़: पर्सनल हिस्ट्रीज़/नेहरू ख़ानदान की सवानेही तारीख़), 2011;  इत्यादि. हिन्दी में मजाज़ की  प्रतिनिधि शायरी, 2011; और मीराल तहावी (मिस्र) का उपन्यास 'ख़ेमा', 2004 में प्रकाशित. पाकिस्तान की शायरा सारा शगुफ़्ता के दो काव्य संग्रह आँखें और नींद का रंग को हिंदी में रूपांतरित किया, जो 2022 में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं.


 

हसन ब्लासिम
हसन ब्लासिम

हसन ब्लासिम इराक़ी लेखक और फ़िल्म डायरेक्टर हैं। वह फिनलैंड में रहते हैं। वह 1973 में बग़दाद में पैदा हुए और अरबी भाषा में लिखते हैं। कुर्दों के इलाक़े में फ़िल्म The Wounded Camera बनाते हुए सियासी उत्पीड़न का शिकार हुए और 2004 में उन्हें फ़िनलैंड में राजनीतिक शरण लेनी पड़ी। उनके चार कहानी संग्रह... हसन ब्लासिम इराक़ी लेखक और फ़िल्म डायरेक्टर हैं। वह फिनलैंड में रहते हैं। वह 1973 में बग़दाद में पैदा हुए और अरबी भाषा में लिखते हैं। कुर्दों के इलाक़े में फ़िल्म The Wounded Camera बनाते हुए सियासी उत्पीड़न का शिकार हुए और 2004 में उन्हें फ़िनलैंड में राजनीतिक शरण लेनी पड़ी। उनके चार कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। वह अरबी भाषा के पहले लेखक हैं जिन्हें अपने संग्रह ’इराक़ी मसीह’ पर 2014 के Independent Foreign Fiction Prize से नवाज़ा गया। प्रस्तुत कहानी उनके संग्रह ‘लाश की नुमाइश और इराक़ की दूसरी कहानियां’ में शामिल है। इस संग्रह को इराक़ युद्ध पर इराक़ी दृष्टिकोण से प्रस्तुत पहला और अहम साहित्यिक प्रयास माना गया है। यह अनुवाद ‘जोनाथन राइट’ के अंग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित है।