उजाड़

'वैधानिक गल्प' और 'कीर्तिगान' जैसी उपन्यास-त्रयी के लेखक चंदन पांडेय अनुवादक भी हैं। उन्होंने अनुवाद क्षेत्र में कलम चलाते हुए मौजूदा सदी के कई पश्चिमी देशों के लेखकों की कहानियों का अनुवाद किया है। उन्हीं कहानियों में से एक प्रसिद्ध इराकी लेखक हसन ब्लासिम की 'उजाड़' कहानी भी है। 'उजाड़' एक ऐसे देश की कहानी है, जिसे तथाकथित लोकतंत्र और मानवाधिकारवादी पश्चिमी देशों ने पहले 'रासायनिक हथियार' रखने के 'झूठे' आरोप में तबाह किया है और फिर कथित लोकतंत्र की 'मृगमीचिरिका' में उलझा उसके रहे-सहे परों को भी कतर दिया। एक देश जब अपने ही लोगों के हाथों तबाही और विध्वंस का गवाह बनता है, तो उसकी क्या हालत होती है, यही इस कहानी में बयान किया है।

उजाड़

पटचित्र: मोहम्मद तमिमी की "Untitled"

अरबी से अनुवाद अंग्रेजी में: जोनाथन राइट 
अंग्रेजी से अनुवाद हिन्दी में: चंदन पांडेय 
स्तोत्र: LitHub

"आप यहां प्रतीक्षा करें। हम आपसे बाद में संपर्क करेंगे। गांव की सीमा से आगे न जाइएगा।"

वह कोई उजड़ा हुआ गांव लग रहा था, जबकि अभी भी जहां-तहां बकरियां घूम रही थीं। मुझे नहीं पता कि मुझे कब तक इंतजार करना होगा। समय काटने के लिए मैं परित्यक्त घरों के भीतर-बाहर घूमता रहा। मैं बेतरह थकान महसूस कर रहा था, लेकिन मुझे यकीन नहीं था कि मेरे नए जीवन में नींद के लिए कोई जगह है भी या नहीं। एक घर की छत पर जाकर आस-पड़ोस को देखा। आस-पास के शहरों से युद्ध का धुंआ उठ रहा था और सेना के दो हेलीकॉप्टर आसमान के ऊपरी सिरे से लगकर उड़ रहे थे। कपास के खेतों ने गांव को चारों तरफ से घेर रखा था। मुझे पहले कभी कपास के फूल देखने का मौका नहीं मिला था। हो सकता है कि उन्हें वृत्तचित्रों और अन्य फिल्मों में देखा हो; मुझे ठीक से याद नहीं। मैंने अपना जीवन एक बेकरी में काम करते हुए, फिर एक टैक्सी ड्राइवर के रूप में और आख़िर में एक कैदखाने के प्रहरी के रूप में बिताया है। जब क्रांति की जंग छिड़ी  तब मैं प्रतिरोध में शामिल हो गया। मैं अपनी आखिरी सांस तक लड़ता रहा। कपास के फूल बर्फ के टुकड़े की तरह दिखते हैं, लेकिन उन्हें कृत्रिम होना पड़ता है वरना सूरज की भीषण किरणें उन सभी को पिघला चुकी होतीं।

मैंने देखा कि एक लड़की दूसरे घर की छत पर बैठी है। शर्तिया वह मुझे नहीं देख सकती थी। वह लकड़ी की एक छोटी-सी बेंच पर बैठी थी और अपने लंबे बालों में हरे रंग की कंघी कर रही थी। उसकी त्वचा धूप से जल गई थी। नीचे के आंगन से एक महिला ने पुकारा। उसने कहा, "धूप में रहो जहां हो, वहां से हटना नहीं है।"

लड़की ने एक लंबी आह भरते हुए अपने हाथों से अपना चेहरा ढंक लिया।

महिला की आंखें सूजी हुई थीं। उसे देखकर लग रहा था कि उसे कुछ देर सो लेना चाहिए। देहात की सी दिखने वाली वह महिला तीस-पैंतीस की दुनिया देखी उम्र में पूर्णतः स्वस्थ लग रही थी। मैं भागते-लड़खड़ाते हुए उसके पीछे-पीछे घर के भीतर गया और उसके सामने भेड़ के ऊन से ढंकी कुर्सी पर बैठ गया। वह टीवी पर समाचार देख रही थी। अभी भी शासकीय बलों और क्रांतिकारी सैनिकों के बीच लड़ाई चल रही थी। नरसंहार, बलात्कार, आगजनी और लोगों को उनके घरों से बाहर निकालने के दृश्य सरेआम थे। कुछ ने तो मरे हुओं के कलेजे भी खा लिए थे।

मैं सोचने लगा कि उस स्त्री और लड़की को यहां से चले जाने से क्या रोके हुए है। अधिकांश लोग पड़ोसी देशों में शरण लेने के लिए भाग खड़े हुए थे। कुत्ते इस तरह भौंक रहे थे मानों पागल हो गए हों। मैंने बाहर जाकर देखा तो बीस से अधिक घर के सामने बंधे हुए थे। महिला वापस आंगन में गई और फिर से लड़की को पुकारा, "सावसान, नीचे आओ। रसोई में चावल और सूप है।"

सावसान ने रेलिंग से झांककर स्त्री को घर से निकलते देखा। वह रस्सी ले जा रही थी। मैंने उसका पीछा किया। जैसे-जैसे सेना शहर के नजदीक आती जा रही थी, तोपों की आवाज़ हम तक पहुंचनी शुरू हो गई थी। महिला एक छोड़े गए घर के पशुओं वाले बाड़े में गई। वहां एक ही जानवर था, डरा हुआ कुत्ता, जो पागलों की तरह बाड़े के इर्द-गिर्द घूम रहा था। महिला ने अपनी जेब से मुर्गे का ठंडा गोश्त निकाला और कुत्ते के सामने फेंक दिया। कुत्ते ने उसे लपक लिया। महिला ने कुत्ते के सिर पर हाथ फेरा, उसके गले में रस्सी बांध दी और उसे बाड़े से बाहर ले आई।

मैं वापस लड़की के पास गया। उसने बेचैनी से निजात पाने के लिए आंगन में नल के नीचे अपना सिर रखा, उसके बाद वह सेब के पेड़ की छाया में बैठ गई और रोने लगी। महिला ने दूसरे कुत्तों के साथ उस कुत्ते को भी बांध दिया और खामोशी से गांव के चारों ओर देखा। मैं सेब के पेड़ की शाखाओं के नीचे बैठ गया और सोचने लगा कि काश! मेरे लोग सीमा पार करने में मेरी मदद करने के लिए वापस आएं। मुझे उम्मीद थी कि वे बहुत ज़्यादा समय नहीं लेंगे। मैंने पक्षियों, सेबों और लड़की के गीले बालों को देखा – जीवन के सबूत के रूप में इन्हीं कुछ चीजों के बीच मैं चौंतीस वर्षों से जी रहा था। समय ज्यादा नहीं है और मुझे पछतावा भी नहीं था। मैं बहादुर था इसलिए मेरा नाम आने वाली पीढ़ियों की यादों में गूंजेगा।

महिला वापस आंगन में गई और सावसान को कुछ खाने को कहा। लड़की चिल्लाई, और पक्षी उस शोर में उड़ गए। रोते हुए और अपने गालों पर थप्पड़ मारते हुए लड़की ने कहा कि वह नहीं खाएगी, और यह कि वह जलती धूप से मरने के बजाय भूख से मरना पसंद करेगी। उसने कहा "तुम एक क्रूर, पागल मां हो! मैं बस मरना चाहती हूं, ताकि यह सब खत्म हो।”

महिला सावसान के पास गई और उसका हाथ पकड़ लिया, लेकिन फिर रोते हुए बैठ गई। बैठने के लिए उसने पेड़ के तने का सहारा लिया। सावसान ने अपना सिर अपनी मां की गोद में रखा और सिसकने लगी। दुबली-पतली और सुंदर-सी वह लड़की लगभग पंद्रह के उम्र की थी और उसकी आंखों में एक अजीब चमकगई थी, जैसे वह किसी अज्ञात संसार में गोता लगाने वाली हो। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है।

एक सेल फोन बजा। महिला ने फोन करने वाले से पति की तलाश करने की गुहार लगाई। मैं उस जगह पर जाना चाहता था, जहां कॉल करने वाला था और यह पता लगाना चाहता था कि वह कौन था। घूमना-फिरना आसान था, लेकिन उन्होंने मुझे गांव की सीमा से आगे नहीं जाने के लिए कहा था। मैं नियम नहीं तोड़ सकता था

दिन और सप्ताह नीरस रूप से बीतते रहे। मेरे पास अपना दिल लगाए रखने के लिए सावसान और उसकी मां के अलावा कुछ और नहीं था। मां सावसान को छत पर धूप में रहने के लिए विवश करती और अक्सर अपने पति को खोजने की कोशिश करने के लिए फोन करती। राजकीय फौज किसी भी समय गांव में धावा बोल सकती थीं, लेकिन युद्ध और जीवन ने अब मुझे भयभीत करना छोड़ दिया था। मैं आज़ाद था और आगे सिर्फ एक ही कदम और लेना बाकी रह गया था।

मुझे अंतत: यह समझ में आने लगा कि सावसान और उसकी मां के बीच क्या चल रहा है। महिला अपने पति की वजह से गांव में पीछे रह गई थी। अन्य ग्रामीणों के बाहर जाने से कुछ दिन पहले उसके पति ने उसे फोन किया और उससे कहा कि वह उसका इंतजार करे। उसने कहा कि वह भागने वाला था। वह पास के एक शहर में विपक्षी ताकतों से लड़ रहा था, लेकिन फिर वह लापता हो गया। उसने उसके फोन का जवाब देना बंद कर दिया। सावसान की मां अपने पति के बिना दूसरे शहर जाने से बहुत डरती थी। उस गांव में, जहां वह हमेशा से रही थी, उसका भरा-पूरा जीवन बिखर गया था, और वह महिला अब एक दुस्वप्न को जी रही थी। उसने सुना था कि सत्ता के सिपाही अत्याचार कर रहे थे। लोग उन्हें "भूत" बुला रहे थे और कह रहे थे कि उन्होंने महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार किया, और उसमें भी वे गोरे रंग वाली लड़कियां ज़्यादा पसंद कर रहे थे। इसलिए मां ने सावसान को सूरज की नाकाबिले बर्दाश्त गर्मी में रखने का फैसला किया। उसने उसे अंत तक घंटों धूप में बैठने के लिए मजबूर किया। हो सकता है कि वे उसकी बेटी को अकेला छोड़ दें, यदि उसकी त्वचा जौ की जली हुई रोटी के रंग की हो जाए। महिला ने दूसरी सावधानियां भी बरतीं। उसके पास एक पिस्तौल थी और उसने गांव के सभी कुत्तों को अपने घर के सामने इस उम्मीद में इकट्ठा कर लिया था कि वे जो भी पास आने की सोचेगा उसको डरा देंगे। सावसान अपनी मां की तरह डरी हुई थी। कई बार उसने भागने के बारे में सोचा, लेकिन उसे पता नहीं था कि वह कहां जा सकती है।

एक रात मैं लकड़ी की पुरानी बेंच पर लेटा हुआ था। वह महिला पास के कालीन पर बैठी समाचार देख रही थी और सावसान की झुलसी हुई चमड़ी को सहला रही थी। वह अपनी बेटी के चेहरे पर कोल्ड कंप्रेस लगा रही थी और खूब पानी पीने को कह रही थी। लड़की की तबीयत खराब थी। बिजली चली गई तो उसने एक लालटेन जलाई और फिर बाहर आंगन में फोन करने चली गई। सावसान ने टीवी स्टैंड से एक मोटी किताब उठाई। घर में केवल दो किताबें थीं- कुरान और पुरानियों कहानियों की एक किताब। जब वह दस साल की थी तब सावसान के पिता ने उसे कहानियों की यह किताब खरीदी थी। उदास और परेशान मां वापस आकर सावसान के पास बैठ गई।

"सुनो, मां," सावसान ने कहा, "मैं आपको यह कहानी पढ़कर सुनाती हूं: 'शमम्शुद्दीन एक अत्याचारी राजा था, जो अपनी अय्याशियों में डूबा हुआ था और अपनी प्रजा की चिंताओं से बेखबर था। उसके पास एक हाथी था, जिसे वह बहुत प्यार करता था। वह किसी को भी इसे परेशान नहीं करने देता या इसके रास्ते में खड़ा नहीं होने देता। हाथी अपने रास्ते में सब कुछ तोड़ते हुए सड़कों और बाजारों में घूमता रहता। इसने नगरवासियों को बहुत नुकसान पहुंचाया, लेकिन वे अपने राजा को नाराज करने के डर से कुछ नहीं कर सकते थे। एक दिन नगरवासी इकट्ठे हुए और उन्होंने राजा से हाथी की गतिविधियों को प्रतिबंधित करने या उसे निर्वासन में भेजने के लिए कहने का फैसला किया। सभी ने महल में प्रवेश किया, लेकिन वे भय और आतंक से जकड़े हुए थे और जैसे ही अपने सैनिकों और रक्षकों से घिरा हुआ शमम्शुद्दीन आया तो  वे सभी पीछे हट गए। अगर पहरेदारों ने उनके पीछे के फाटकों को बंद नहीं किया होता तो वे सभी भाग जाते। एक लंबी चुप्पी के बाद एक बुजुर्ग शेख ने बोलने का फैसला किया, "महामहिम," उन्होंने कहा, "हाथी ..." फिर वह रुक गया, यह सोचकर कि उसे जो कहना है, दूसरे उसे पूरा कर देंगे, लेकिन उसने खुद को अकेला पाया। शमम्शुद्दीन ने गुस्से से कहा, "मेरे कीमती हाथी को क्या हो गया है? बोल!"

“शेख ने अपनी दुर्दशा से बाहर निकलने का रास्ता सोचने की कोशिश की। डर से कांपते हुए उन्होंने कहा, "हाथी को अकेलापन महसूस हो रहा है, महामहिम। क्या तुम्हें उसके साथ रहने के लिए एक और हाथी नहीं लेना चाहिए?”

शमम्शुद्दीन हंसा और बोला, "आप सही कह रहे हैं, बुद्धिमान," उसने कहा, "मंत्रियों, एक और हाथी लाओ!"

"राजा को एक और हाथी मिल गया और नगरवासी पहले से भी बदतर स्थिति में रहने लगे, इसलिए उन्होंने एक बार फिर राजा के पास जाकर शिकायत करने का फैसला किया। और पहली बार की तरह उन्होंने शमम्शुद्दीन को एक और हाथी लाने के लिए कहा।

"'लोग बार-बार महल का दौरा करते रहे और हर बार राजा ने एक और हाथी का आदेश दिया। आखिरकार शहर हाथियों से भर गया और लोग एक-एक करके बाहर निकल गए। हर कोई जो छोड़ गया, उसने दूसरों पर कायरता का आरोप लगाया। आख़िर में शहर में कोई भी नहीं बचा, जहां अब राजा के हाथियों का खुला राज हो चुका था।'

"आप कहानी के बारे में क्या सोचती हैं, मां?"

"मुझे नहीं पत मेरी बेटी, मुझे नहीं पता," उसने जवाब दिया, "हमारे पास केवल अल्लाह है।"

सावसान किताब पढ़ती रही। उसकी मां रसोई में चली गई और कुछ रोटी और खूबानी जैम लेकर वापस गई। तभी हमें गोलियों की आवाज सुनाई दी। महिला ने लालटेन की लौ बुझा दी। मैं बाहर भागा, जहां मैंने पांच विपक्षी लड़ाकों को एक पायलट का पीछा करते हुए देखा। ऐसा लग रहा था कि उन्होंने उसके हेलीकॉप्टर को मार गिराया है और वहां पहुंच गए हैं, जहां वह पैराशूट से उतरा था। पायलट के पास केवल एक पिस्तौल थी; दूसरों के पास कलाश्निकोव थे और वे एक पिकअप में उसका पीछा कर रहे थे। पायलट ने तीन गोलियां चलाईं और सावसान के घर के पीछे भाग गया। मैं वापस अंदर चला गया। घबराकर सावसान की मां ने अलमारी से पिस्तौल निकाली और अपनी बेटी के पास बैठ गई। पायलट एक घर में जा घुसा, वहां सेनानियों ने उसे घेर लिया और आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। उसके पास कोई विकल्प नहीं था: उसके पास गोला-बारूद खत्म हो गया था। वह सिर पर हाथ रखकर बाहर आया। लोगों ने उसे घेर लिया और उसे तब तक लात मारी जब तक वह जमीन पर गिर नहीं गया। फिर उन्होंने उसे उठने को कहा। उनमें से एक ने उस पर चाकू से वार किया और फिर अन्य लोगों ने छुरा घोंप दिया। पायलट अपने ही खून के कुंड में गिर गया। एक अन्य व्यक्ति पिकअप से पेट्रोल लेकर आया और पायलट के ऊपर डालकर उसको आग लगी। उसके दूसरे साथी ने सेल फोन निकाला और पायलट के जलाते हुए शरीर की तस्वीरें लेना शुरू कर दिया।

सब चिल्लाए, “अल्लाहु अकबर!” फिर वे अपने वाहन में वापस चले गए और जश्न में अपनी राइफलें खिड़कियों से बाहर निकाल कर गोलियां दागनी शुरू कर दीं।

वे सावसान की मां के घर के पास से गुज़रे और जब कुत्तों को बंधा हुआ देखा तब वे फिर से उत्तेजित हो गए। वे ट्रक से नीचे उतरे और कुत्तों पर गोलियों की बौछार कर दी। सावसान की मां ने सोचा कि वे "भूत" हैं और वे घर में तूफान लाने वाले हैं। उसने सावसान के सिर में एक गोली चलाई और फिर पिस्तौल अपने ही मुंह में डाल ली। कलाश्निकोव की आवाज और कुत्तों के भौंकने की वजह से बंदूकधारियों को घर के अंदर गोली चलने की आवाज नहीं सुनाई दी।

जब आखिरी कुत्ता मर गया तो सन्नाटा छा गया। युवकों ने पिकअप को गांव से बाहर निकाल दिया। घर के अंदर मां घुटनों के बल दोनों हाथों से पिस्टल पकड़े हुए थी। उसने सावसान की ओर मुड़ने की हिम्मत नहीं की, जिसकी काली त्वचा पर खून के बड़े धब्बे थे।

भोर होने तक महिला वहीं रही, जहां वह थी। मैंने कुछ समय मरे हुए कुत्तों को देखने में बिताया। एक कुत्ता अभी भी उखड़ी हुई सांस ले रहा था। मैंने कल्पना की कि इसकी आत्मा भाग रही है और मेरे इंतजार में शामिल हो रही है। सावसान की मां ने घर का मुख्य दरवाजा खोला। उसके हाथ में पिस्टल थी और वह लक्ष्यहीन होकर आगे बढ़ गई। वह एक कपास के खेत में गई और विस्मय में चलती रही। मैं उसका पीछा करना चाहता था और यह पता लगाना चाहता था कि क्या वह खुद को गोली मारने जा रही है, लेकिन वह गांव की सीमाओं से परे उगते सूरज की ओर चली गई।

उसके बाद गांव में बहुत कुछ हुआ। राजकीय बलों ने गांव पर धावा बोल दिया और भीषण लड़ाई के बाद विपक्षी बलों ने नियंत्रण हासिल कर लिया। अंतर्राष्ट्रीय मानवीय संगठन सबूत की तलाश में आए। दोनों पक्षों द्वारा किए गए अपराधों पर डेटा एकत्र करते रहे, जैसे रेफरी गोल गिनते हैं।

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मैं अल्लाह के बंदों, मुजाहिद्दीनों के साथ लड़ रहा था। मैं एक स्नाइपर था। डेढ़ साल तक मैंने राज्य के सैनिकों का सफाया किया। आख़िर में उन्होंने एक विमान से मेरे छिपने की जगह पर बम गिरा दिया। उन्होंने मेरे क्षत-विक्षत शरीर को खींचकर लात मारी और उस पर पेशाब किया। मुझे इस बात की परवाह नहीं थी कि मेरी लाश के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। मैं युद्ध में मारे जाने से प्रसन्न था। मैं स्पष्ट विवेक के साथ अल्लाह से मिलूंगा। जैसे ही मैं अपने शरीर से मुक्त हुआ, कुछ पूर्व साथी दफनाने की प्रक्रिया की व्यवस्था करने के अधिकार के साथ पहुंचे। वे मुझे इस गांव में ले आए। उन्होंने मुझे यह कहते हुए अकेला छोड़ दिया, “यहां रुको। हम आपको उस पार जन्नत में ले जाएंगे। इस गांव की सीमा से आगे मत जाओ।" मुझे नहीं पता कि मेरे ये साथी भी इंतजार कर रहे थे या नहीं।

काफी समय हो गया था। और मैं अभी भी इंतजार कर रहा था। मैं सुनसान गांव में घूमता रहा। मैंने ग्रामीणों के कपड़े, उनके बर्तन और धूपदान, बच्चों के खिलौने और उनके मृत पालतू जानवरों की हड्डियों को देखा। कपास के खेत भी सूख गए थे। मुझे मनहूसियत महसूस होती थी, लेकिन फिर उसी मनहूसियत ने मुझे दिखाया कि मेरे पास वास्तव में क्या शक्तियां हैं। मैं शाखाओं पर और घरों की छतों पर पक्षियों के साथ घूमने लगा। जब पत्ते पेड़ों से गिरे तो मैं उन पर टूट पड़ा। मैं हवा के साथ खेलता था और कीड़ों के साथ रेंगता था। मैं बिना किसी चिंता, भूख या भय के कुछ भी कर सकता था। अकेलापन मुझे अब और परेशान नहीं करता था। मेरे पिछले जीवन की यादें धुंधली पड़ने लगी थीं। एक सुबह, जब मैं सावसान की मां के घर में सेब के पेड़ पर बैठा था, मेरे मन में एक विचार आया, जिसने मेरे प्रतीक्षा के विचार को एक घातक आघात पहुंचाया: कहीं ये उजड़ा हुआ, परित्यक्त गांव ही तो जन्नत नहीं है?

हसन ब्लासिम
हसन ब्लासिम

हसन ब्लासिम इराक़ी लेखक और फ़िल्म डायरेक्टर हैं। वह फिनलैंड में रहते हैं। वह 1973 में बग़दाद में पैदा हुए और अरबी भाषा में लिखते हैं। कुर्दों के इलाक़े में फ़िल्म The Wounded Camera बनाते हुए सियासी उत्पीड़न का शिकार हुए और 2004 में उन्हें फ़िनलैंड में राजनीतिक शरण लेनी पड़ी। उनके चार कहानी संग्रह... हसन ब्लासिम इराक़ी लेखक और फ़िल्म डायरेक्टर हैं। वह फिनलैंड में रहते हैं। वह 1973 में बग़दाद में पैदा हुए और अरबी भाषा में लिखते हैं। कुर्दों के इलाक़े में फ़िल्म The Wounded Camera बनाते हुए सियासी उत्पीड़न का शिकार हुए और 2004 में उन्हें फ़िनलैंड में राजनीतिक शरण लेनी पड़ी। उनके चार कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। वह अरबी भाषा के पहले लेखक हैं जिन्हें अपने संग्रह ’इराक़ी मसीह’ पर 2014 के Independent Foreign Fiction Prize से नवाज़ा गया। प्रस्तुत कहानी उनके संग्रह ‘लाश की नुमाइश और इराक़ की दूसरी कहानियां’ में शामिल है। इस संग्रह को इराक़ युद्ध पर इराक़ी दृष्टिकोण से प्रस्तुत पहला और अहम साहित्यिक प्रयास माना गया है। यह अनुवाद ‘जोनाथन राइट’ के अंग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित है।