पटचित्र: Dreamstime
अनुवादक: चन्दन पाण्डेय
स्त्रोत: blog.aladin.co
(इतालो काल्विनो की कहानी ‘दि ब्लैक शीप’ का हिन्दी अनुवाद। यह कहानी उनके संग्रह ‘नम्बर्स इन द डार्क’ में संकलित है)
किसी ऐसे देश की बात है, जहां सब के सब चोर रहते थे।
रात घिरते ही हर कोई अपने घर से हथौड़ों और मद्धिम जलती लालटेनों के साथ किसी पड़ोसी के घर में चोरी करने निकलता। चोरी के सामान से लदे-फदे, भोर के समय जब वह घर आता तो देखता कि उसका अपना घर भी लूटा जा चुका है।
इस तरह सब सुख-शान्ति से रह रहे थे—पहला दूसरे से चुरा रहा था, दूसरा तीसरे से, तीसरा चौथे से और इसी तरह चलते-चलते उस आखिरी आदमी तक पहुंचा जा सकता था जो पहले से चुराकर इस गोल चक्र को पूरा कर रहा था। इस देश में व्यापार और फ्रॉड में कोई अंतर नहीं था, चाहे आप खरीद रहे हों या बेच रहे हों। इस देश की सरकार आपराधिक संगठन थी जिसे देश की अवाम से चोरी करने के लिए स्थापित किया गया था, जबकि जनता अपना पूरा समय सरकार को चूना लगाने में लगाती थी। इस तरह सबका जीवन कट रहा था, न कोई अमीर था और न ही कोई गरीब।
एक दिन, हमें नहीं मालूम कि कैसे, यूं हुआ कि एक ईमानदार शख्स इस देश में गुजर-बसर करने चला आया। रात में बोरा और लालटेन लेकर चोरी करने के लिए निकलने के बजाय वह घर पर ठहरकर सिगरेट फूंकता और किताबें पढ़ता। जो चोर आते, वे घर में रोशनी देख भीतर ही न जाते।
मगर यह सिलसिला ज्यादा दिन नहीं चल सका। ईमानदार शख्स को बताया गया कि अगर वह बिना कुछ किए-धरे जीना चाहता है तो खुशी से जीए, लेकिन उसको दूसरों के पेट पर लात मारने का कोई हक नहीं है। रात को उसके घर पर रहने का मतलब था कि एक परिवार को भूखे सोने जाना पड़ रहा था।
ऐसे तर्कों के आगे वह ईमानदार शख्स नतमस्तक हो गया। और फिर वह भी रात-रात भर बाहर रहने लगा, लेकिन उससे चोरी न हो पाई। आखिर वह ईमानदार जो था। वह पुल तक जाता और नीचे बहते पानी को सारी रात देखता। जब वह घर लौटता तो पाता कि लूट हो चुकी है।
हफ्ते से भी कम समय में वह आदमी पाई-पाई को मोहताज हो गया। सारा घर इस तरह खाली हुआ कि उसके पास खाने तक के लिए कुछ न बचा। लेकिन इसके लिए वह अपने अलावा किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकता था। असल मुश्किल थी उसकी ईमानदारी: उसके कारण पूरी व्यवस्था चौपट हो गई थी। चूंकि उसने खुद कुछ चुराए बिना अपना सारा असबाब चोरी होने दिया, इसलिए हर सुबह एक न एक शख्स, अपने हिस्से की चोरियां करते हुए घर लौटता और पाता कि उसके घर का सामान अनछुआ ही पडा है—वह सामान जो पिछली रात को ईमानदार आदमी को चुराना था। जल्द ही, जिन लोगों के घर चोरियां नहीं हुई थीं, वे दूसरों से अमीर होने लगे और उनकी चोरी करने की इच्छा खत्म हो गई, जबकि वे लोग जो ईमानदार आदमी के घर चोरी करने गए उन्हें वहां कुछ नहीं मिला, और इसलिए वे गरीब होते गए।
इसी बीच, जो लोग नए-नए अमीर हुए थे, वे रात के वक्त ईमानदार आदमी की तरह पुल तक जाकर उसके नीचे बहते पानी को देखने लगे। इन हरकतों से दुविधा बढ़ती गई, क्योंकि इसके कारण कुछ लोग अमीर होते जा रहे थे और बहुत से लोग गरीब।
ऐसे में, अमीरों को समझ आया कि अगर वे हर रात पुल पर बिताने लगे तो जल्द ही वे भी गरीब हो जाएंगे। फिर उन्होंने सोचा: ‘क्यों न कुछ गरीबों को हमारे लिए चोरी करने के लिए पैसे पर रख लिया जाए?’
कॉन्ट्रैक्ट तैयार किए गए, तनख्वाहें और हिस्से तय किए गए (लेकिन चोर तो वे अब भी थे, इसलिए दोनों ही तरफ बहुत-सी साजिशें रची गईं और डबलपना किया गया)। लेकिन अंत में परिणाम यह निकला कि अमीर और अमीर होते गए, जबकि गरीब और गरीब होते गए।
कुछ रईस तो इस कदर रईस हो गए कि अमीर बने रहने के लिए उन्हें न तो खुद चोरी करने की जरूरत थी और न ही किसी और से चोरी करवाने की। लेकिन अगर वे चोरियां बंद कर देते तो गरीब हो जाते: क्योंकि बाकी के गरीब तो लगातार चोरी कर रहे थे। इसलिए उन्होंने सर्वाधिक गरीबों को अन्य गरीबों से उनकी संपत्ति की रक्षा करने के लिए तन्खवाह देना शुरू कर दिया। इस प्रकार, पुलिस फोर्स का गठन हुआ और जेलख़ाने स्थापित हुए।
इस तरह, उस ईमानदार आदमी के आने के कुछ ही वर्षों में हाल ऐसा हो गया कि लोग लूटने-लुटाने की बातें छोड़, सिर्फ अमीरी और गरीबी की बातें करने लगे। लेकिन अब भी वे सब चोर ही थे।
ईमानदार केवल वही एक था, और वह भी जल्द ही भुखमरी का शिकार हो गया।