शहर में उगी खुमियां

दुनिया में कई प्रकार की चीजें हैं जो हमें अच्छी लगती हैं। जब वह हमें दिखती हैं, तो हम खुश हो जाते हैं। फिर हम डर से भर जाते हैं कि कहीं वे चीजें हम से कोई और छीन न ले और यह डर हमें दूसरों के प्रति संदेह से भर देता है। हमारी लाख कोशिशों के बावजूद, जब दूसरे उस चीज तक पहुंच ही जाते हैं, तो हम उनके प्रति अपने द्वेष को भुला कर ऐसा प्रतीत करने लगते हैं कि असल में हमेशा से हम वह चीज उनके साथ साझा ही करना चाहते थे। मगर मज़े के बात तो यह है कि आखिर में वह चीज, जिसके लिए हमने इतना सब कुछ किया और सहा, आखिरकार मिलने पर हमारे लिए बुरी ही साबित होती है। बस इसी पूरी अद्भुत मानवीय प्रक्रिया की यह छोटी सी कहानी है।

शहर में उगी खुमियां

पटचित्र: Rania Adamczyk

अनुवादक: चन्दन पाण्डेय

शहर की ओर दूर से आती हवा अपने साथ तरह-तरह के तोहफे ले आती है, जिनके बारे में कुछ संवेदनशील लोग ही सचेत हो पाते हैं, जैसे नजले से पीड़ित व्यक्ति, जो दूर देश के फूलों से उड़कर आए परागकण के प्रभाव से छींक पड़ता है। 

एक दिन शहर की सड़क से सटी फुलवारी में हवा अपने साथ बीज उड़ाकर ले आई और वहां खुमियां उग आईं। हरेक सुबह ट्राम पकड़ने वाले मार्कोवेल्दो नामक कामगार के सिवा किसी ओर की उन खुमियों पर नज़र नहीं पड़ी

दरअसल, मार्कोवेल्दो की आंखें शहरी जीवन के अनुकूल नहीं हो पाईं थीं: विज्ञापन तख्तियां, यातायात की रंगीन बत्तियां, दुकानें, नियोन प्रकाश की रंगीनियां या फिर पोस्टर चाहें जितनी सावधानी से ध्यानाकर्षण हेतु बनाए गए हों, उसकी निगाह इस तरफ उठने के बजाय रेगिस्तान की रेत पर जम रही होती। इसके उलट, जिन स्थितियों को निहारने में उससे कभी कोई चूक नहीं हुई, वे मजेदार थीं। डाल पर पीले होते पत्ते, टाइल्स पर पड़ा कोई पंख, घोड़ों की पीठ पर बैठी कोई मक्खी, तख्तों में कीड़ों द्वारा बनाया गया कोई छेद या फिर सड़क पर कुचली हुई अंजीर की ऐसी कोई छाल न थी, जिसे देखकर मार्कोवेल्दो सोच में न पड़ता हो। वह मौसम के मामूली परिवर्तनों, हृदय की लालसा और अपने अस्तित्व के विषाद पर भी ध्यान देने में सक्षम था। 

इसी तरह एक सुबह जब वह ट्राम का इंतजार कर रहा था, जो उसे उस कंपनी तक ले जाती थी जहां वह अप्रशिक्षित मजदूर के तौर पर काम करता था, उसने स्टॉप के नजदीक सड़क किनारे वृक्षों के पास की पपड़ियाई एवं ऊसर धरती पर कुछ अजीबो-गरीब देखा। पेड़ की जड़ो के पास कुछ उभार दिखे, जो जहां-तहां खुले हुए थे और उभारों के भीतर से गोलाकार वस्तु झांक रही थी। 

फीते कसने के बहाने झुककर उसने गौर से देखा, वे खुमियां थीं। शहर के बीचोबीच उगती हुई सचमुच की खुमियां! मार्कोवेल्दो को अपने इर्द-गिर्द की धूसर और उदास दुनिया अचानक छिपे खजानों के कारण उदार दिखने लगी; उसे लगा कि ब्रेड राशन, परिवार भत्ता, आपातकालीन निधि, और दिहाड़ी के मिलने वाले पैसों के परे जिन्दगी से अब भी कोई आशा रखी जा सकती है। 

उस दिन काम पर वह सामान्य से ज्यादा ही खोया-खोया-सा था। लगातार यही सोचता रहा, इधर वह सन्दूकों और बक्सों को उतारने-चढ़ाने में लगा है, उधर धरती के अन्धेरे में शांत खुमियां, जो सिर्फ उसकी जानकारी में हैं, अपनी गदबद मांसलता को पका रही होंगी, भूमिगत द्रव को अपने भीतर जमा कर रही होंगी। उसने अपने आप से कहा, ‘किसी एक रात की बारिश में ही ये खुमियां तैयार हो जाएंगी।’ और वह इस खोज के बारे में अपनी पत्नी और बच्चों को बताने के लिए बेताब था। 

दिन के अपर्याप्त भोजन के दौरान उसने घोषणा की, ‘मैं बता दूं कि एक हफ्ते के भीतर ही भीतर हम खुमियां खा रहे होंगे। चौचक, मस्त, भूनी हुई खुमियां! ये मेरा वादा है!’ 

छोटे बच्चों को, जो ये भी नहीं जानते थे कि खुमियां क्या होती हैं, उसने हुलस कर असंख्य प्रजातियों के सौन्दर्य, उनकी मनोरम महक तथा उनके पकाये जाने की विधि के बारे में बताया। इस तरह उसने अपनी पत्नी को भी चर्चा में शामिल कर लिया, जो अब तक अन्यमनस्क दिख रही थी। 

'ये खुमियां वैसे मिलेंगी कहां?' बच्चों ने प्रश्न किया। 'हमें बताइये कि ये कहां उगती हैं?' 

मर्कोवेल्दो के उत्साह पर इस प्रश्न से उपजे संशयी ख्याल ने घड़ों पानी डाल दिया: अगर मैं इन्हें जगह बता दूं तो ये उपद्र्वी बच्चे अपने दल के साथ जाकर खुमियों की तलाश करेंगे, बात आस-पड़ोस तक फैलेगी और आखिरकार वे खुमियां पड़ोस की कड़ाही में तली जाएंगी। इस तरह जिस खोज ने उसे तात्कालिक तौर पर सार्वभौमिक प्रेम से भर दिया था, अब उसे अविश्वसनीय भय और ईर्ष्य़ा से भर दिया। 

‘खुमियां कहां हैं यह सिर्फ मैं जानता हूं', उसने अपने बच्चों से कहा, 'अगर खबरदार अगर तुमने किसी और को उनके बारे में बताया तो।’ 

अगली सुबह ट्राम स्टॉप पहुंचने तक मार्कोवेल्दो आशंकित था। वह झांकने के लिए ज़मीन तक झुका और यह देखकर उसे राहत हुई कि खुमियां ज्यादा तो नहीं पर यकीनन थोड़ा बढ़ी हैं। अब भी वे लगभग पूरी तरह मिट्टी से ढंकी हुई हैं। 

झुके ही झुके उसने महसूस किया कि उसके पीछे कोई खड़ा है। एक झटके में खड़े होते हुए उसने उदासीन दिखने की कोशिश की। अपने झाड़ू पर झुककर मार्कोवेल्दो को देखता हुआ वह झाड़ू लगाने वाला था। 

झाड़ू लगाने वाला छरहरा और चश्मिश नौजवान था और उसके झाड़ू वाले अधिकार क्षेत्र में खुमियों वाली जगह भी आती थी। उसका नाम अमादिगि था। मार्कोवेल्दो से शुरु से ही नापसन्द करता था। शायद चश्में की वजह से, जिसकी मदद से अमादिगि सड़क के कोने-अंतरों से प्रकृति के सूक्ष्मतम अंशों को ढूंढकर अपने झाड़ू से बुहार देता था। 

यह शनिवार की बात है। एक आंख झाड़ू लगाने वाले के झाड़ू पर तथा दूसरी आंख खुमियों पर गड़ाए और खुमियां पकने में लगने वाले समय' की गणना करते हुए मार्कोवेल्दो ने आधे दिन की छुट्टी, फुलवारी के इर्दगिर्द घूमते हुए बिताई। 

उस रात बारिश हुई। उन किसानों की तरह, जो महीनों के सूखे के बाद बारिश की शुरुआती बूंदों से जगते हैं और खुशी से उछलने लगते हैं, मार्कोवेल्दो भी बिस्तर पर बैठ गया और अपने बीबी-बच्चों को आवाज़ लगाते हुए कहने लगा, 'बारिश हो रही है। बारिश हो रही है,' और बाहर से आती सोन्धी गन्ध को अपने भीतर महसूस करता रहा। 

रविवार की किरण फूटते ही उधार की टोकरी लेकर वह बच्चों के साथ हांफते-हूंफते फुलवारी तक पहुंचा। वहां खुमियां मौजूद थीं। सीधी तनी हुई सोख्ते-सी खुमियों की छतरियां ज़मीन पर फैली हुई थीं।  खुश होकर वे उन्हें साग की तरह खोटने लगे। 

'पापा देखो, उस आदमी को कितनी सारी मिली हैं', मिशेलिनो ने कहा और उसके पिता ने उड़ती निगाह से अपने पास खड़े अमादिगि को देखा, जिसके हाथ में खुमियों से भरी भारी टोकरी थी। 

'अच्छा तो तुम भी इन्हें जमा कर रहे हो?', झाड़ू लगाने वाले ने कहा, 'तो क्या ये सचमुच खाने लायक हैं? कुछ मैने भी चुन रखे हैं, पर निश्चिंत नहीं था। सड़क से थोड़ी दूर ढेर सारी उगी हुई हैं और इनसे भी बड़ी हैं... अब मैं समझा, मैं चलूं। अपने नात-गोतिया को भी बता दूं, जो अब तक इसी बहस में उलझे हैं कि इन्हें तोड़ना चाहिए या नहीं,' और वह हड़बड़ाहट में वहां से हट गया। 

मार्कोवेल्दो अवाक रह गया। इससे भी बड़ी खुमियां मौजूद हैं, जिन्हें दूसरे लोग ले जा रहे हैं और अब उन्हें पाने की कोई गुंजाईश नहीं! एक क्षण के लिए वह गुस्से और उत्तेजना से पागल-सा हो गया, परंतु जैसा कि कभी-कभी होता है, उसकी निजी महत्वाकांक्षाओं का पतन दरियादिली को जन्म देता है।

उस समय चूंकि मौसम में नमी और अनिश्चितता बरकरार थी, इसलिए तमाम लोग अपनी बांहों में छतरियाँ दाबे ट्राम का इंतजार कर रहे थे।बन्धुओं क्या आप आज की रात भुनी हुई खुमियां नहीं खाना चाहेंगे', मार्कोवेल्दो ने स्टॉप की भीड़ को आवाज़ लगाते हुए कहा, 'सड़क किनारे खुमियां उगी हुई हैं! ढेर सारी खुमियां! मेरे साथ आइये,' और वह लोगों की भीड़ लिए अमादिगि के पीछे चल पड़ा। 

सबने भरपूर खुमियां बटोरी, और टोकरी न होने की स्थिति में सबने अपनी छतरियां खोल लीं। किसी ने सुझाया, 'सभी साथ मिलकर बड़े भोज का आयोजन करते तो गजब होता।' लेकिन लोगों ने अपने हिस्से की खुमियां बटोरी और घर की ओर निकल लिए। 

वैसे, जल्द ही वे सब एक-दूसरे से मिले वास्तव में उसी शाम अस्पताल के एक ही वार्ड में, जहां मामूली उपचार से उनके शरीर में जहर फैलने से रोक दिया गया। मामला इसलिए गम्भीर नहीं हुआ, क्योंकि इतने सारे लोगों द्वारा खाई गई खुमियों की मात्रा बेहद कम थी। 

मार्कोवेल्दो तथा अमादिगि की चारपाई आजू-बाजू ही थी; दोनों एक-दूसरे को घूर रहे थे। 

 

इतालो काल्विनो
इतालो काल्विनो

इतालवी लेखक और पत्रकार इतालो काल्विनो का जन्म 15 अक्टूबर, 1923 को हुआ था। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में हमारे यानी मनुष्य के पूर्वज पर लिखी गई उनकी उपन्यास त्रयी (1952-1959), कहानी संग्रह 'कॉस्मिकोमिक्स' (1965) और उपन्यास 'इनविजिबल सिटीज' (1972) और 'इफ ऑन ए विंटर्स नाईट ए ट्रैवलर' (1979) शामिल हैं।... इतालवी लेखक और पत्रकार इतालो काल्विनो का जन्म 15 अक्टूबर, 1923 को हुआ था। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में हमारे यानी मनुष्य के पूर्वज पर लिखी गई उनकी उपन्यास त्रयी (1952-1959), कहानी संग्रह 'कॉस्मिकोमिक्स' (1965) और उपन्यास 'इनविजिबल सिटीज' (1972) और 'इफ ऑन ए विंटर्स नाईट ए ट्रैवलर' (1979) शामिल हैं। उनके काम को इटली के साथ-साथ ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी काफी सराहा और पसंद किया गया। अपनी मृत्यु तक वह अपने समय के सबसे अधिक अनुवादित समकालीन इतालवी लेखक थे। 19 सितंबर, 1985 को इतेलो केल्विनो की मृत्यु हुई। उनको टस्कनी में कैस्टिग्लिओन डेला पेस्काया के बगीचे के कब्रिस्तान में दफनाया गया।