क्योंकि हम इतने गरीब हैं

एक बच्चे की नजर से लिखी यह कहानी समाज का ऐसा सच बोलती है जो सबको पता है लेकिन जिसको अमीर लोग नजरंदाज करने पर तुले हैं। बच्चे और उसके परिवार के साथ बुरी चीजें क्यों हो रही हैं? उसके शब्दों में, 'क्योंकि हम इतने गरीब हैं।' अमीर लोग कहेंगे कि वे आलसी हैं, वे मक्कार हैं, वे बेवकूफ हैं, उन्होंने पिछले जन्म में बुरे कर्म किए होंगे, उनके बाप-दादा बेकार लोग रहे होंगे, वगैरह वगैरह। लेकिन मामला सरल है। और उसी सरल मामले को मार्मिकता के साथ इस कहानी में पेश किया गया है।

क्योंकि हम इतने गरीब हैं

पटचित्र: रवी कावड़े 

स्पैनिश से अंग्रेजी में अनुवाद: इलान स्टीवन्स
अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद: अक्षत जैन और अंशुल राय
स्त्रोत: Agni Magazine

 

यहां पर सब कुछ बद से बदतर होता जा रहा है। पिछले हफ्ते आन्ट जसिंता की मृत्यु हो गई। शनिवार को उनको दफनाने के बाद जब हमारा शोक थोड़ा हल्का होने लगा था तो मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। उससे मेरे पिता उखड़ गए। हमारी पूरी जौ की फसल धूप में सूख रही थी और तूफान इतनी जल्दी आ धमका कि हम एक मुट्ठी भर भी अंदर न ला सके। हम छज्जे के नीचे झुंड में खड़े होकर फसल को बारिश से बर्बाद होते देखने के सिवा कुछ न कर सके।

और बस कल ही, मेरी बहन टाचा के जन्म की बारहवीं सालगिरह पर हमको मालूम पड़ा कि जो गाय मेरे पिता ने उसे उसके संत के दिन पर दी थी, वो नदी में बह गई।

नदी तीन दिन पहले बीच रात उठना शुरू हुई थी। मैं गहरी नींद में सोया हुआ था जब नदी की गरज से मेरी नींद खुल गई। मैं बिस्तर से अपनी चादर हाथ में लिए ही कूद पड़ा, जैसे कि मुझे सपना आया हो कि छत गिर रही है। इसके बाद मैं वापस सो गया, क्योंकि मुझे पता था कि सिर्फ नदी की ही आवाज़ है, और वह आवाज़ थी भी ऐसी जिसमें नींद अच्छी आए।

जब मैं उठा तो सुबह का आसमान काले बादलों से भरा हुआ था। ऐसा लगा कि लगातार बारिश हो रही थी। नदी की आवाज़ और भी ऊंची हो गई थी और करीब से आ रही थी। उसकी वैसी सड़ी हुई बू थी, जैसी बाढ़ के पानी की होती है, या जैसी कचरा जलाने से आती है।  

जब तक मैं घर से बाहर निकला, तब तक नदी अपने किनारों के ऊपर निकल चुकी थी और धीरे-धीरे मैन स्ट्रीट की ओर बढ़ रही थी। वह तेजी से उस औरत के घर में जा रही थी, जिसको लोग ‘ला तम्बोरा’ बुलाते हैं। पानी जैसे-जैसे बाड़े में से होकर गेट से चौड़ी नालियों में निकल रहा था, उसके छपछपाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। ला तम्बोरा तीव्रता से अपनी मुर्गियों को सड़क पर फेंकते हुए आगे पीछे हो रही थी, जिससे वह छुपने के लिए कोई ऐसी जगह ढूंढ लें, जहां पर नदी की धारा उन तक न पहुंचे।

दूसरी तरफ मोड़ के पास मेरी आन्ट जसिंता के बाड़े में लगा इमली का पेड़ नदी में बह गया होगा, क्योंकि अब वहां कोई इमली का पेड़ नहीं है। न जाने यह कब हुआ। वो गांव में अकेला इमली का पेड़ था। इसलिए सबको लगता है कि यह कई सालों में सबसे बड़ी बाढ़ आई है।

मेरी बहन और मैं दोपहर को वापस बढ़ते हुए पानी को देखने गए। पानी पहले से ज्यादा गंदा और गाढ़ा था, और वो उस जगह के काफी ऊपर आ गया था, जहां पुल हुआ करता था। हम वहां घंटों रुके रहे, बस देखते हुए, बिना थके या बोर हुए। फिर हम नाले के ऊपर चढ़ कर गए, क्योंकि हमें सुनना था कि लोग क्या कह रहे हैं। नीचे नदी के पास पानी इतनी आवाज़ कर रहा था कि लोगों के मुंह तो खुलते-बंद होते दिख रहे थे मगर एक भी शब्द सुनाई नहीं पड़ रहा था। नाले के ऊपर खड़े होकर लोग नदी को ही देख रहे थे और यह आंकने की कोशिश कर रहे थे कि कितनी तबाही हुई है। वहां ऊपर हमें पता लगा कि नदी ला सेर्पेन्टीना को उठा ले गई है, वह गाय, जो मेरे पिता ने टाचा को उसके जन्मदिन पर दी थी। उसका एक कान सफेद और एक लाल था, और बेहद खूबसूरत आंखें।

मुझे नहीं पता उसने नदी पार करने का निर्णय क्यों लिया, जबकि उसको अवश्य ही पता होगा कि वह वो नदी नहीं थी जिसको वह हर रोज पार करती थी। ला सेर्पेन्टीना इतनी बेवकूफ नहीं थी। वह ज़रूर नींद में चल रही होगी, वरना वह अपने आपको ऐसे बिना किसी कारण डूबने नहीं देती। अधिकतर वक्त मैं ही बाड़े का दरवाज़ा खोलकर उसको बाहर ले जाने के लिए उठाता था। अगर मैं ऐसा न करता तो वह दिन भर आंख बंद करके वहीं खड़ी रहती, वैसे आहें भरते हुए जैसे गाय सोते वक्त भरती है।  

कुछ तो हुआ होगा, जिसके कारण वह सोती रही। शायद वह तब जगी होगी जब पानी उसकी पसलियों पर तेजी से आकर लगने लगा। तब वह डर गई होगी और उसने वापस आने कि कोशिश की होगी, मगर पानी के बहाव से गिरकर उलटी-सीधी बह गई होगी। मुझे लगता है उसने मदद के लिए चीखा होगा। भगवान ही गवाह है, उसकी तेज चीख का।

हम को एक व्यक्ति मिला, जिसने उसको देखा था, जब नदी उसे खींच ले जा रही थी। मैंने उससे पूछा कि क्या गाय के साथ एक छोटा बछड़ा भी था। उसने कहा कि उसको याद नहीं। उसको बस इतना याद था कि उसने धब्बेदार गाय को खुर ऊपर की तरफ किए अपने सामने से गुज़रते हुए देखा था, और फिर वह डूब गई। फिर उसके खुर या सींग कुछ भी नहीं दिखे। नदी में कई सारे पेड़, उनकी शाखाएं और जड़ें बह रहे थे। वह आदमी इन सबको निकालने में व्यस्त था, जिससे वह बाद में इनको जलाने के काम के लिए इस्तेमाल कर सके। इसलिए उसके पास यह देखने के लिए वक्त नहीं था कि नदी में जानवर बह रहे हैं या पेड़।

तो अब हमें यह नहीं पता कि बछड़ा जिंदा था, या वो अपनी मां के पीछे-पीछे नदी में चला गया था। अगर बछड़ा सही में नदी में गया था तो भगवान ही उसको बचाए।

घर पर मुसीबत यह है कि अब जबकि मेरी बहन टाचा के पास कुछ नहीं बचा है, तो उसका क्या होगा। मेरे पिता ने बहुत मेहनत करके ला सेर्पेन्टीना को खरीदा था, जब वह सिर्फ बछड़ी थी, जिससे मेरी बहन के पास थोड़ी पूंजी हो और वह बड़े होकर अपनी दो बड़ी बहनों की तरह वेश्या न बने।    

मेरे पिता के मुताबिक, उन्होंने गलत राह इसलिए चुनी, क्योंकि हम इतने गरीब हैं। बचपन से ही उन्होंने हमारे पिता को उलटे जवाब देना शुरू कर दिया था। और जैसे ही वे बड़ी हुईं वे सबसे बेकार किस्म के मर्दों के साथ घूमने लगीं और उनसे सारी खराब आदतें सीख लीं। वे जल्दी भी सीखती थीं। रात के किसी भी समय उनको मर्दों की सीटी की आवाज समझ में आ जाती थी। वे सुबह तक घर से बाहर रहने लगीं। कभी-कभार जब उन्हें नदी से पानी लाने भेजा जाता तो वे अपना काम भुलाकर बाड़े में चली जातीं। वहां दोनों फर्श पर नंगी मर्दों के नीचे छटपटाती नज़र आतीं।

आखिरकार मेरे पिता ने उन्हें घर से भगा दिया। जितने समय तक हो सका उन्होंने उन दोनों को झेला, मगर फिर उनसे और सहन नहीं हुआ और उन्होंने उनको सड़क पर निकाल फेंका। वे आयुतला या कहीं और चले गईं, मुझे पक्का नहीं पता कहां। मगर मुझे यह पता है कि वे अब वेश्या हैं।

इसलिए मेरे पिता टाचा के बारे में इतने चिंतित हैं। उनको डर है कि जब उसको गाय न होने की गरीबी का एहसास होगा तब टाचा अपनी दोनों बहनों की राह पर चल देगी। गाय ही उसकी पूंजी थी, जो उसको बड़े होते हुए यह आश्वासन देती कि उसका भविष्य सुरक्षित है। गाय के होते हुए वह बार-बार यह नहीं सोचती कि हम कितने गरीब हैं। इसी के बल पर वह सभ्य तरीके से बड़ी होती और एक अच्छे आदमी से शादी करती, जो उसको भरपूर प्यार देता। गाय होती तो कोई भी उससे शादी करने का साहस दिखा पाता, चाहे सिर्फ उसकी खूबसूरत गाय को पाने के लिए ही सही। अब यह मुश्किल होने वाला है।

सिर्फ एक ही उम्मीद है और वो है कि बछड़ा जिंदा हो। शायद वह अपनी मां के पीछे-पीछे नदी में न गया हो, क्योंकि अगर वैसा हुआ तो मेरी बहन टाचा वेश्या बनने के बहुत करीब है, और मेरी मां ऐसा नहीं चाहती।

मेरी मां को नहीं पता कि भगवान ने उसको ऐसी बेटियां देकर क्यों दंडित किया है। उसकी दादी से लेकर उस तक, उसके परिवार में कभी कोई खराब औरत नहीं रही। उन सबकी परवरिश अच्छी हुई थी, वे सब भगवान को मानती थीं, आज्ञाकारी थीं और किसी को परेशान नहीं करती थीं। उनके परिवार के सभी लोग वैसे थे। किसको पता कि उसकी बेटियों ने अपना दुर्व्यवहार कहां से सीखा? उसको तो इसके बारे में कुछ समझ नहीं आता। वह याद करने की कोशिश करती है कि उससे कहां गलती हुई, या उसने क्या पाप किए जो उसने एक के बाद एक वेश्या को जन्म दिया। मगर उसको इसके बारे में भी कुछ समझ नहीं आता। हर बार जब वह उन दोनों के बारे में सोचती हैं तो रोती हैं और कहती हैं, ‘भगवान उनको सलामत रखे।’

मगर मेरे पिता कहते हैं कि उनके बारे में सोचने का कोई फायदा नहीं है, वे बस बुरी हैं और इसके बारे में कुछ नहीं किया जा सकता। चिंता करने का विषय वह बेटी है, जो अभी भी यहां है। टाचा जल्दी बड़ी हो रही है और उसके स्तन उसकी बहनों जैसे दिखने लगे हैं, तेज-तर्रार, ऊंचे और मर्दों को लुभाने वाले।

‘हां,’ मेरे पिता कहते हैं, ‘वह जहां जाएगी लोग उसे घूरेंगे। बस इंतज़ार करो, वह भी अपनी बहनों जैसे बिगड़ जाएगी।’

इसी कारण मेरे पिता खौफ में हैं।

टाचा अब रो रही है, क्योंकि उसको पता है कि नदी ने ला सेर्पेन्टीना को मार दिया है और अब वह वापस नहीं आएगी। वह इधर मेरे पास खड़ी है, अपनी गुलाबी रंग की ड्रेस में। हम दोनों नाले के ऊपर से नदी को देख रहे हैं और वह रोना बंद ही नहीं कर पा रही। उसके चेहरे पर मैले पानी की धारा बहते जा रही है, मानो उसके अंदर समूची नदी ही समा गई हो।

मैं अपना हाथ उसके कंधों पर रखता हूं और उसको सांत्वना देने की कोशिश करता हूं, मगर उसे समझ नहीं आता। वह और ज़ोर से रोने लगती है। उसकी सिसकियों की आवाज नदी जैसी है। अब वह सिर से पैर तक कांप रही है। बाढ़ बढ़ती ही जा रही है। नदी के मैले पानी की फुहार उसके चेहरे पर छींटे उड़ा रही है। उसके दोनों स्तन उसकी सिसकियों के साथ-साथ ऊपर-नीचे हो रहे हैं, जैसे कि वे अचानक फूलना शुरू हो गए हों। वह बर्बादी के और करीब आती जा रही है।       

 

हुआन रूलफ़ो
हुआन रूलफ़ो

हुआन रूलफ़ो (1917–1986) मेक्सिको के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक हैं| उन्होंने अपनी कहानियों में ग्रामीण मेक्सिको को इस तरह दर्शाया है कि वहाँ के लोगों को दुनिया में कहीं भी समझा जा सके| रूलफ़ो ने लिखना किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में नहीं सीखा, बल्कि खुद ही किताबें पढ़ के और अपने आसपास कि दुनिया... हुआन रूलफ़ो (1917–1986) मेक्सिको के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक हैं| उन्होंने अपनी कहानियों में ग्रामीण मेक्सिको को इस तरह दर्शाया है कि वहाँ के लोगों को दुनिया में कहीं भी समझा जा सके| रूलफ़ो ने लिखना किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में नहीं सीखा, बल्कि खुद ही किताबें पढ़ के और अपने आसपास कि दुनिया में दिलचस्पी ले के सीखा| उनका लिखने का स्टाइल इतना नायाब था कि वह बाकी लेखकों और समीक्षकों को पसंद आने के साथ-साथ आम जनता को भी खूब लुभाया| वह पहले उन लेखकों में से थे जो अपनी लिखाई में प्रचलित भाषा का इस्तेमाल इस तरह कर पाए कि उसको समझने के लिए शब्दकोश का इस्तेमाल न करना पड़े| उनको कई लोग तो लैटिन अमेरिका से निकले 'मैजिक रियलिस्म' या 'जादुई यथार्थवाद' साहित्यिक शैली का जन्मदाता भी मानते हैं| जॉर्ज लुइस बोर्गेस और गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ जैसे महान लैटिन अमरीकी लेखकों ने रूलफ़ो की खूब प्रशंसा की है और उनको अपना प्रेरणास्त्रोत भी बताया है| रूलफ़ो के दो काम प्रमुख हैं—एक लघु कहानियों का संग्रह जिसका नाम है ‘द बर्निंग प्लेन एण्ड अदर स्टोरीज़’ और एक उपन्यास जिसका नाम है ‘पेड्रो परामो’|