औगस्टो मौन्टेरोसो की तीन कहानियां

औगस्टो मौन्टेरोसो बहुत छोटी कहानियां लिखते थे लेकिन उन में बात बहुत बड़ी कर जाते थे। उनकी कहानियां हसायजनक हैं लेकिन उनमें बात गंभीर। यहां प्रस्तुत तीन कहानियां भी कुछ ऐसी ही हैं। पहली कहानी हमें दिखलाती है कि हमारा समाज उनके साथ क्या करता है जो बाकी सब से अलग होते हैं। दूसरी कहानी में उस भावना को दर्शाया गया है जिसके चलते हम दूसरों की सराहना पाने के लिए अपना पूरा जीवन त्याग कर देते हैं। और आखिरी कहानी है हमारे घमंड की जिसके चलते हम दूसरों को नीचा समझते हैं लेकिन अंत में खुद ही नुकसान खाते हैं। इन कहानियां को पढ़ कर हंसे भी और आत्मचिंतन भी करें, क्योंकि इन में दर्शाये लक्षण कहीं न कहीं आप के अंदर भी होंगे।

औगस्टो मौन्टेरोसो की तीन कहानियां

 

अनुवादक: अक्षत जैन 

 

काला भेड़

बहुत साल पहले दूर देश में एक काला भेड़ रहता था।

उसे गोली मार दी गई।

एक सदी बाद पश्चातापी झुंड ने उसकी विशाल प्रतिमा बनाई, जिसने उनके पार्क की शोभा बढ़ाई।

फिर ऐसा हुआ कि तब से जब भी काले भेड़ प्रकट हुए उन्हें फौरन मार दिया गया, जिससे आने वाली पीढ़ियों के आम भेड़ मूर्तिकला का अभ्यास कर सकें।

 

वह मेंढक, जो असली मेंढक बनना चाहती थी

एक मेंढक थी, जो असली मेंढक बनना चाहती थी। वह हर दिन इसी संघर्ष में जुटी रहती। पहले उसने आईना खरीदा, जिसमें वह अपनी लालायित प्रामाणिकता को देखने की आशा में घंटों ख़ुद को तकती रहती। उसकी मनोदशा और दिन के समय के मुताबिक, कभी उसे लगता कि वह उसे मिल गई है और कभी लगता कि नहीं मिली है। कुछ समय में वह इस मिलने और न मिलने के क्रम से थक गई और उसने आइने को अपनी पेटी में रखकर बंद कर दिया।

आखिर में उसे ख्याल आया कि वह अपने मूल्य के बारे में सिर्फ़ दूसरों के मत से ही निश्चित हो सकती है। इसके लिए उसने अपने बाल संवारने शुरू किए। अच्छे कपड़े पहनने या उतारने (जब उसके पास और कोई विकल्प नहीं रहा) शुरू किए। जिससे वह यह देख सके कि दूसरे उसे स्वीकार कर रहे हैं कि नहीं। साथ ही यह पहचान पा रहे हैं कि वह असली मेंढक है या नहीं।

एक दिन उसको एहसास हुआ कि लोगों को उसके बारे में सबसे प्रशंसनीय उसका शरीर लगता है। खासकर उसके पैर। तो उसने कूदना और उठक-बैठक करना शुरू कर दिया, जिससे उसके पैर बेहतर हो सकें। इससे उसे ऐसा भी लगा कि सब उसकी वाह-वाही कर रहे हैं।

इस तरह वह अपने आपको और ज़्यादा ज़ोर लगाने पर मजबूर करती गई। इस प्रक्रिया में वह किसी भी हद तक जाने को तैयार थी, जिससे दूसरे उसको असली मेंढक समझें। यहां तक कि उसने उन्हें अपनी जांघें भी काटने दीं, जिससे दूसरे उनको खा सकें। और जब दूसरे उन्हें खा रहे थे, वह फिर भी उनके कड़वे शब्द सुन पा रही थी, ‘क्या उम्दा मेंढक है। एकदम चिकन जैसा स्वाद!’

 

सूर्यग्रहण

जब ब्रदर बार्टोलोमे अर्राज़ोला को लगा कि वह रास्ता भटक चुका है, उसने यह मान लिया कि अब उसे कुछ नहीं बचा सकता। ग्वाटेमाला के शक्तिशाली कठोरचित्त जंगल ने उसे निगल लिया था। अपने तलरूप के अज्ञान के चलते वह मौत के इंतज़ार में शांतिपूर्वक बैठ गया। वह वहीं मरना चाहता था, आशाहीन और अकेला। उसके विचार दूर स्पेन पर टिके हुए थे। खास कर कॉन्वेंट ऑफ़ लॉस अब्रोजोस पर, जहां एक बार चार्ल्स पंचम ने अपनी ऊंचाई से नीचे की ओर उसके स्तर तक आने का एहसान करके उससे कहा था कि वह उसके धार्मिक उत्साह से भरे मोचन के काम पर भरोसा करते हैं। जब वह उठा तो उसने अपने आपको इंडियंस के समूह से घिरा पाया। वे आवेगहीन चेहरे लिए वेदी पर उसकी बली चढ़ाने वाले थे। वह वेदी बार्टोलोमे को उस बिस्तर की तरह दिखी, जहां पर वह आखिरकार अपने डर, अपने भाग्य और अपने आप से आराम पा सकेगा। देश में तीन साल रहने से उसको वहां की मूल भाषाओं का चलता ज्ञान प्राप्त हो गया था। उसने कुछ बोलने का प्रयत्न किया। उसने कुछ शब्द कहे, जो समझे भी गए। तब उसके भीतर एक विचार उत्पन्न हुआ, जो उसे अपने कौशल, अपनी विस्तारित शिक्षा और अरस्तू के गहरे ज्ञान के योग्य लगा। उसको याद आया कि उस दिन पूर्ण सूर्य ग्रहण होना था। उसने अपनी अंतरात्मा की गहराई से निर्णय लिया कि वह उस ज्ञान का प्रयोग अपने उत्पीड़कों को चकमा देकर अपनी ज़िंदगी बचाने के लिए करेगा।

‘अगर तुमने मुझे मारा,’ उसने कहा, ‘तो मैं उस ऊंचे सूरज को अंधकार में डाल सकता हूं।’

इंडियन उसे घूरने लगे और बार्टोलोमे को उनकी आंखों में शंका की झलक दिखी। उसने उन लोगों को एक दूसरे से सलाह मशवरा करते देखा और वह आराम से इंतज़ार करने लगा। हालांकि, ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उसके अंदर उन इंडियंस के प्रति अवमानना की भावना नहीं थी।

दो घंटे बाद ब्रदर बार्टोलोमे अर्राज़ोला का दिल बलिदान के लिए चुने गए पत्थर पर अपना जुनूनी खून फुहार रहा था। वह पत्थर सूर्यग्रहण की अपारदर्शी रोशनी में चमक रहा था। एक इंडियन धीरे-धीरे, एक-एक करके, बिना स्वर डगमगाए सूर्य और चंद्र ग्रहण की तारीखों की अनंत सूची का पाठ कर रहा था। मायन समुदाय के खगोलविदों ने पूर्वानुमान करके ये सूची पंजीकृत कर रखी थी। हैरानी की बात तो यह थी कि उन्होंने यह सब अरस्तू की बहुमूल्य मदद के बिना ही कर लिया था।  

 

औगस्टो मौन्टेरोसो
औगस्टो मौन्टेरोसो

औगस्टो मौन्टेरोसो (1921-2003) होंडुरन लेखक थे जिन्होंने ग्वाटेमालन राष्ट्रीयता स्वीकार की। उनको उनकी हास्यजनक और व्यंगपूर्ण लघु कहानियों के लिए जाना जाता है। वे बीसवीं सदी में लैटिन अमेरिका के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं और उन्होंने कई अवॉर्ड भी जीते हैं। औगस्टो मौन्टेरोसो (1921-2003) होंडुरन लेखक थे जिन्होंने ग्वाटेमालन राष्ट्रीयता स्वीकार की। उनको उनकी हास्यजनक और व्यंगपूर्ण लघु कहानियों के लिए जाना जाता है। वे बीसवीं सदी में लैटिन अमेरिका के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं और उन्होंने कई अवॉर्ड भी जीते हैं।