अनुवादक: शाहीना तबस्सुम, दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में उर्दू की प्रोफेसर हैं।
सबसे पहले मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर और प्रभु पुत्र ईसा की स्तुति करती हूं, जिसने मुझे मुर्दों में से जगाया और अब दोबारा कयामत के दिन तक सुलाने वाला है। मैं अपने किए हुए और न किए हुए पापों को स्वीकार करती हूं, क्षमा-याचना करती हूं- पाक परवरदिगार, तू खूब जानता है, मुझे ज्ञात न था कि यह कौन-सी शताब्दी है, कौन-सा वर्ष, कौन-सा महीना और दिन? मैं अपने खुले ताबूत में सोई पड़ी थी, जब तेरे किसी फ़रिश्ते का चमकदार पर मेरी हड्डियों से टकराया, मैं उठ बैठी। मेरी खोपड़ी पैरों में पड़ी थी। नीचे हाथ बढ़ाकर उसे उठाया। उसकी धूल झाड़ी और गर्दन में फिट किया। घुप्प अंधेरा था। खोपड़ी गलत फिट हुई थी और मुझे आगे की बजाए पीछे दिखाई देने लगा। बड़ी मुश्किल से उसे ठीक से लगाया। हे प्रभु! करुणा-निधान, मैं स्वीकार करती हूं कि उस क्षण मेरी कामना यह थी कि आईने में देखूं कैसी लगती हूं। चारों तरफ नज़र डाली। उस अंधियारे पुराने तलघर में सात-आठ पत्थर के ताबूत हड्डियों और खोपड़ियों से ऊपर तक भरे हुए दीवारों से लगे रखे थे। मुझे बहुत डर लगा। मैं अपने ताबूत के किनारे बैठी ईश्वर-भय से कांप रही थी कि अचानक खिड़की में रोशनी हुई और वह फ़रिश्ता फिर प्रगट हुआ, कहने लगा- “मैं अपनी तस्बीह यहां भूल गया। तुम कौन है?”
“सेंट फ्लोरा साबीना ऑफ जॉर्जिया...”
“ख़ुदा की बरकत हो तुम पर,” उसने जवाब दिया और तस्बीह ढूंढ़ने में जुट गया।
आकाशगंगा के तारों से बनी वह तस्बीह मुझे एक ताबूत के पीछे पड़ी नज़र आई। मैंने तुरंत कहा, “ज्योति फैलाने वाले प्यारे फ़रिश्ते, अगर वह माला ढूंढ़ दूं तो मुझे क्या दोगे?”
वह बहुत परेशान और व्याकुल दिखाई देता था। कम उम्र फ़रिश्ता था। कहने लगा, “मुझे सेंट पीटर के दफ़्तर में एक-एक दाने का हिसाब देना पड़ता है। मैं एक भुलक्कड़ फ़रिश्ता हूं। इसी भुलक्कड़पन के कारण मुझे सत्तर हज़ार बरस तक एक ‘ट्रेनी’ फ़रिश्ता रहना पड़ा। अब जाकर मुझे अपना यह हाला प्रदान किया गया है,” उसने गर्व और हर्ष से अपने ज्योतिमंडल की और इशारा किया, “लेकिन अब मैंने अपनी तस्बीह गंवा दी।”
“क्या दोगे?”
“क्या चाहती हो?”
“मैं युवावस्था में मरी थी। उन्नीस बरस की थी जब मेरे बाप ने मुझे सीरिया के एक कॉन्वेन्ट में बंद कर दिया। अपने पच्चीस बरस मैंने मठ में क़ैद रहकर गुजारे। मैं ज़रा दुनिया देखना चाहती हूं और अच्छे कपड़े पहनने की अभिलाषी हूं।”
“मैं तुमको गोश्त-पोस्त और खून प्रदान करने की सामर्थ्य नहीं रखता। ऐसा सिर्फ़ कयामत के दिन होगा। केवल एक साल तक जीवधारी रहने की अनुमति दिलवा सकता हूं। तस्बीह लाओ।”
“प्यारे मेहरबान फ़रिश्ते। मेरा सूखा पंजर एक साल तक इस अजनबी दुनिया में अकेला किस तरह और कहां मारा-मारा फिरेगा। किसी रोचक मुर्दे को मेरे साहचर्य के लिए ज़िंदा कर दो।”
“रोचक मुर्दा कैसा होता है?”
“मेरा मतलब है...,”
“अच्छा पहले तस्बीह लाओ।”
“नहीं, पहले एक और मुर्दा ज़िंदा करो।” कहो, “कुमबाइज्ने ईसा।” (ईसा की आज्ञा से जीवित हो जाओ।)
“जब तुम स्वयं एक संत-महात्मा स्त्री हो तो क्यों नहीं एक चमत्कार दिखातीं?” उसने झुंझलाकर कहा।
“मैं ऐसा नहीं कर सकती। इसका एक टेक्नीकल कारण है। कहो- कुम...”
फ़रिश्ता घुटने के बल बैठकर दुआ में व्यस्त हो गया।
सहसा मेरे पहलू के ताबूत में खड़खड़ाह शुरू हो गई और दूसरा कंकाल उठ बैठा। फ़रिश्ते ने मुझसे कहा, “सिर्फ़ सालभर के लिए। अगले साल यही महीना, यही दिन और यही वक़्त साढ़े ग्यारह बजे रात- इसको भी अच्छी तरह समझा देना। मुझे देर हो रही है। ख़ुदा हाफ़िज़...”
मैंने तस्बीह उठाकर उसे दी और वह फुर्र-से गायब हो गया।
भूमिगत हड़वाड़ में अब फिर अंधेरा था। लेकिन मैं भयभीत नहीं थी। दूसरे ढांचे ने ताबूत में बैठे-बैठे दायां पंजा इस तरह बढ़ाकर सिरहाने कुछ टटोला मानो आदत अनुसार जागने के बाद शमा जालकर किताब उठाना चाहता हो। मैंने जल्दी-से उसे संबोधित किया और पूरी कहानी उसे सुनाई और अपना बताया, “सेंट फ्लोरा सबीना ऑफ जॉर्जिया।”
“फादर ग्रैगॉरी ओरबेलियानी ऑफ जॉर्जिया।”
“ख़ुदा की बरकत हो तुम पर पवित्र पिता।”
“आप सेंट हैं...?” फादर ग्रैगॉरी घबराकर ताबूत से निकला और मेरे सामने घुटने टेकने चाहे, लेकिन लड़खड़ाकर गिर गया। उसके घुटनों की चपनियां बेहद पुरानी हो चुकी थीं। मैंने ख़ुदा से दुआ मांगी कि ऐ दो जहां के मालिक, अगर और उचित पंजर बना दे। ...फादर ग्रैगॉरी फौरन उठ खड़ा हुआ। खिड़की में से ठंडी हवा अंदर आकर हमारी हड्डियों को काटे डाल रही थी।
उसने कहा, “बहुत सर्दी है। पहले अलाव का इंतजाम किया जाए।”
“अगर कहीं से चकमक मिल जाए,” मैं बोली।
उसने खिड़की से बाहर झांका जहां पाइन के झुंड सांय-सांय कर रहे थे।
“फादर, इधर आ जाओ, नहीं तो जुकाम हो जाएगा,” मैंने चिंतित होकर कहा।
वह आकर अपने ताबूत के किनारे पर बैठ गया। मैं खिड़की बंद करने के लिए उठी। खिड़की का एक पट टूटकर गिर चुका था। दूसरे पट की तरफ़ हाथ बढ़ाने के लिए बाहर झांका। पहाड़ी के ठीक नीचे चौड़ा दरिया बह रहा था, जो कफ़काज पहाड़ी क्षेत्र से निकलकर ब्लैक-सी अथवा काले सागर में गिरता था। मुझे याद आ गया कि मैं इस पहाड़ी वाली खानकाह में कई वर्ष रह चुकी थी। फिर इस दरिया पर एक शानदार चारमंज़िला सफ़ेद रंग का जगमगाता महल प्रकट हुआ और एक भयानक आवाज़... सूरे-इसराफील (वह बिगुल, जो इसराफील फरिश्ता कयामत के दिन मुर्दों को उठाने के लिए बजाएगा।)... मैं तुरंत सिजदे में गिर गई और बहुत अफ़सोस हुआ कि दुनिया में सालभर रहने की भी छूट न मिली। दोबारा सूरे इसराफील... तीसरी बार... तब फादर ग्रैगॉरी खिड़की में आया और बाहर झांककर मुझसे कहा,
“पवित्र महिला... यह एक स्टीम-शिप है और अपना सायरन बजाता है। उठो।”
मैं खड़ी हो गई और बाहर झांका। नीचे दरिया के किनारे खेमे नज़र आए, जिनमें जगह-जगह अलाव जल रहे थे और वाद्ययंत्र बजाए जा रहे थे और हंसी-ठहाको का शोर। ऐ ख़ुदा, मेरा जी चाहा कि मैं भी जाकर इस कार्यक्रम में शामिल हो जाऊं, तब फादर की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया जो कह रहा था, “आओ! बाहर चलकर आग ढूंढें।”
हम दोनों टटोलते-टटलोते उस तलघर से निकलकर एक सुरंग में पहुंचे, जिसकी सीढ़ियां ऊपर बाग में खुलती थीं। दरवाज़े पर झाड़ियां और घास उगी हुई थी। डेजी की क्यारियां लहलहा रही थीं। हम एक-दूसरे का हाथ थामे, दुरंटे की झाड़ियां फलांगते बाग में आए, जिसके सामने एक बड़ा चर्च खड़ा था और ओक और पाइन के झुरमुट। एक पेड़ के नीचे काग़ज़ी प्लेटें, ग्लास और नैपकिन पड़े नज़र आए। मैं लकड़ियां चुनने लगी। फादर ने इस काठ-कबाड़ को इकट्ठा किया। एक डिबिया मिली। इसमें तीलियां-सी थीं। फादर ने एक तीली डिबिया पर रगड़ी। आग पैदा हुई। फादर ने कहा, “यह माचिस है। कोई पिकनिक मनाने वाली टोली यहां छोड़ गई। ख़ुदा हमारे साथ है।”
हमने अलाव जलाकर तापना शुरू किया। या ख़ुदा, मैं चुगली नहीं खाती मगर वली शमऊन की कसम, उस क्षण मैंने देखा कि फादर ग्रैगॉरी के नथुनों से धुआं निकल रहा है। मैं बहुत घबराई। धुएं के गोले के पीछे एक छोटा-सा अंगारा उसके मुंह में रौशन था, या इलाही! मुझे अच्छी तरह मालूम है कि धुआं और आग की लपटे केवल शैतानों के मुंह से निकलती हैं। मैंने तुरंत तेरी सलीब का निशान बनाया और सोचा कि निस्संदेह कोई दुष्ट आत्मा इसके पंजर में आ घुसी है या भुलक्कड़ फरिश्ते की गलती है, जिसने किसी पवित्र आत्मा के बजाए किसी भूत को जगा दिया है।
अचानक फादर हंसने लगा और बोला, “डरो मत। यह सिगरेट कहलाती है, जो पर्यटक यहां पिकनिक के लिए आए थे, माचिस के साथ एक पैकेट सिगरेट भी यहां भूल गए। मुझे अभी पत्तों में पड़ा मिला।”
मैंने कहा, “तुम्हें किस तरह मालूम हुआ कि यह चीज़ सिगरेट कहलाती है और इसे जलाकर मुंह से धुआं उगलते हैं? यह स्पष्ट रूप से पिशाचवृत्ति का शैतानी काम है।”
फादर ने नर्मी से समझाया, “बीबी फ्लोरा- अमरीकन वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक ऐसे आले का अविष्कार किया है जिसे रात को सिर पर फिट करके इंसान सो जाता है और सोते में उस आले के जरिए विभिन्न विद्याएं अपने दिमाग़ में बिठा लेता है। क्या तुम उस सर्वशक्तिमान ख़ुदा की कुदरत पर शक कर सकती हो जिसने साढ़े तेरह सौ बरस की लंबी नींद के बीच इस मुर्दाघर में मुझे आज तक की विभिन्न विद्याओं और आधुनिक भाषाओं और दूसरे मामलों से परिचित करा दिया। एक हद तक तुम ख़ुद बहुत-सी बातों से परिचित हो चुकी हो, इसका अनुभव तुम्हें इस एक वर्ष में स्वयं हो जाएगा। बल्कि अभी-अभी इसी क्षण हुआ जाता है। जरा कान लगाकर सुनो।”
नीचे घाटी में जो साज बज रहे थे। मैं तुरंत समझ गई कि वह गिटार है, बेलालिका... अकर्डियन और सेक्सोफोन कहलाते हैं और ये नवयुवक रूसी और जॉर्जियन भाषाओं के गीत गा रहे थे। फिर हवा के रेले के साथ घाटी की आवाज़ें हमारे कानों में पहुंचीं। नीचे खेमों में एक नौजवान गिटार बजाते-बजाते एक लकड़ी से कह रहा था, “निताशा! देखो ऊपर भी अलाव जल रहा है। कुछ लोग वहां पहले से कैंपिंग कर रहे हैं।”
फिर हवा का रुख बदल गया और वे आवाज़ें मद्धिम पड़ गईं।
तब फादर ने कहा, “पवित्र महिला...”
“अगर तुम मुझे इस नाम से संबोधित न करो तो अच्छा होगा। इसका कारण अभी बता दूंगी।”
“क्या कारण है? अच्छा ठीक है। हम दोनों को सालभर इकट्ठे रहना है। उचित यही है कि अपना-अपना हाल एक-दूसरे को निस्संकोच बता दिया जाए ताकि आगे किसी गलती की संभावना न रहे। मैं ग्रैंड ड्यूक ऑफ तिफ़्लिस का बेटा तुम्हारी सेवा में हाजिर हूं।”
“ख़ुदाया! मैं वन-अपमैनशिप न करना चाहती थी लेकिन आख़िरकार मजबूर होकर बतलाना पड़ा कि मेरे फादर ईरान के लिए बाजेंतियम के राजदूत हैं।”
“थे...”- उसने याद दिलाया- “कुस्तुंतुनिया से उत्तरी गिर्जिस्तान के इस दूर-दराज पहाड़ पर तुम कैसे आ पहुंची...?”
“हम जब बासफोरस से चले,” मैंने कहना शुरू किया, “समंदर शांत था और हवा अनुकूल...”
“लेकिन बासफोरस से ईरान जाने के लिए काले सागर का रुख क्यों? तुम्हारे जहाज का कप्तान पागल था?” फादर ग्रैगॉरी ने सिगरेट की कश लगाकर मेरी बात काटी।
“नहीं, सुनो तो, अच्छा शुरू से बताती हूं। तुम्हें तो मालूम होगा, हम बाजेंतेनी कितने शानदार लोग थे। कुस्तुंतुनिया सरकारी तौर पर ‘दूसरा रोम’ कहलाता था। जस्टिनीन ने सांता सोफिया चर्चा के निर्माण के बाद कहा था... ख़ुदावंद... मैं तेरे बादशाह सुलेमान से बाज़ी ले गया... जस्टिनीनथ्योसोडियस और आर्केडियस के युग की कला-विद्याएं, ओलंपिक खेल... और हमारी अद्वितीय कला...”
“थ्योडोरा को गोल कर गई...” फादर ने चोट की।
“वह भी थी... एक कैलोपैट्रा, एक थ्योडोरा- इन दोनों ने हिम्मत दिखाई तो तुम मर्दों के गले से आज तक न उतरी। ख़ैर, जब सासनियों ने जोर पकड़ा और हमारे प्रदेश शाम पर कब्ज़ा करके यरुशलम से प्रभु यीशु की असली सलीब उठाकर तेसफून ले गए, हमारा हर्कल उनसे लड़-भिड़ उसे यरुशलम ले आया... जब अरबों ने यरुशलम पर विजय प्राप्त की तो वह सलीब हमारा हर्कल कुस्तुंतूनिया ले गया।”
“तिब्लिसी में मैंने भी अपने पिता के साथ अरब लश्कर का मुकाबला किया था मगर नाकाम। वे दुनिया की नई विश्वव्यापी शक्ति थे... जैसे आजकल रूस और अमरीका...” फादर ओरबेलियानी ने खुश्क स्वर में कहा।
“हम बाजेंतेनी साजिशों के बहुत शौकीन थे। हमारे दरबार में षड्यंत्र, राजनीतिक हत्याएं, शहजादियों की प्रेम-लीलाएं, शहजादों के स्कैंडल सारी दुनिया में मशहूर थे। आम दस्तूर यह था कि हमारे बादशाह को उनकी रानियां या बेटे ज़हर देकर मार डालते थे। चर्च का हुकूमत पर गहरा दबाव था, मगर पादरी लोग खुद आपस में धार्मिक मामलों में बाल की खाल निकालकर सबका वक्त बरबाद कर रहे थे। मेरे पिता स्टीफन होनोरियन राज्य के महत्वपूर्ण मंत्री थे। मेरी मां आयरीना मारिया मलिका की खास लेडी-इन-वेटिंग थीं। बड़ा भाई एलेक्जेंडर सिल्वेरियस शाही दस्ते का आला अफ़सर। हम लोग ठाठ से रहते थे। सारा कुनबा दरबारी षड्यंत्रों में व्यस्त। बड़े मज़े से गुजरती थी। थियेटर, ओलंपकि खेल, ग्लैडियेटर्स के मुकाबले। हमारे पड़ोसी सर्जियस बेलागियस अब्बा के गहरे दोस्त थे। सालोनिका में उनके अंगूर के बाग थे। काले-सागर में अपने व्यापारिक जहाज चलते थे। उनके लड़के थ्योडोरक गैलासिस से मेरी शादी होने वाली थी। वह बहुत खूबसूरत और बुद्धिमान था। उसने एक दिन मुझसे कहा- मैं बाजेंतियम की ऊंची सोसायटी और उसकी अत्यधिक भ्रष्ट ज़िंदगी में शामिल नहीं होना चाहता। शादी के बाद मेरे साथ सालोनिका चलकर रहो। आराम से अपने बाग में बैठकर मैं दर्शन पढ़ा करूंगा। तुम बरबत बजाना और कढ़ाई करना। लेकिन फादर, मैं उस हाई-लाइफ की बेहद शौकीन थी। रोज शाम को मां-बाप के साथ दरबारी उत्सवों में जाती। नृत्य करती। एक-से-एक बढ़िया पोशाकें पहनती। उस वक़्त मेरी उम्र सिर्फ़ सोलह साल थी। ग्लैडियेटर्स के तमाशों पर मैं जितनी मोहित थी, थ्योडोरक उनसे उतना ही नफ़रत करने वाला। कहता, ‘हम लोग इसाई हो गए मगर रोमनों के इन बेरहम बहशियाना खेल-तमाशों का शौक नहीं गया।’ स्वयं ग्लैडियेटर्स के दर्शक दो गुटों में बंटे हुए थे, जो कि हरे वस्त्रधारी और नीले वस्त्रधारी कहलाते थे और एक-दूसरे से लड़ते-मरते रहते थे। मेरे तीनों भाई हरे वस्त्रधारी गुट में थे।
हमारी शादी सेंट सूफ़िया के गिरजाघर में बड़ी धूमधाम से होने वाली थी। शहंशाह मेरा गॉडफादर था। महीनों पहले मेरे कपड़े सिले जा रहे थे। बेहतरीन जेवर तैयार किए गए थे। शादी से कुछ दिन पहले थ्योडोरक के पिता ने यह ख़ुशख़बरी सुनाई कि शहंशाह ने शादी के तोहफे के तौर पर थ्योडोरक को अपना चेंबरलेन नियुक्त किया है। यह सुनते ही थ्योडोरक घबराया हुआ मेरे पास आया। मैं अपने कमरे में बैठी दहेज की एक टैपेस्ट्री में आख़िरी टांके लगा रही थी। उसने कहा, ‘गजब हो गया। मैं और शहंशाह का चेंबरलेन? मैं रात ही को बंदरगाह जाकर गॉल (फ्रांस) रवाना होने का प्रबंध करता हूं। शादी के तुरंत बाद मेरे साथ चुपके से निकल चलना’ ...फादर... उस वक़्त मुझे मालूम न था कि थ्योडोरक उन नौजवानों में से था, जिन्हें ‘एग्नोस्टिक’ और ‘विद्रोही’ कहा जाता है।
फादर, मैं मां-बाप और भाइयों की लाड़ली तथा बहुत जिद्दी लड़की थी। मैंने कहा, ‘वहशियों के देश जाती है मेरी जूती। मैं तो यहीं रहूंगी और तुम्हें भी यहीं रहना होगा।’ उसने कहा, ‘सुनो! मुझे तुम्हारे शहंशाह, उसके ख़ानदान, लाट, पादरी, सारी बाजेंतेनी हुकूमत से नफ़रत है। मैं, और उस दरबार की नौकरी करूं? असंभव।’ हम दोनों में काफी तक़रार हुई। वह बड़बड़ाता हुआ बाग की दीवार कूदकर अपने घर चला गया।
फादर, अब ख़ालिस बाजनेंतीनी परंपरा के अनुसार मेरी मां की एक सेविका रेशमी पर्दे के पीछे छुपी यह सारा संवाद सुन रही थी। वह बुलगारी सेविका भी वास्तव में हुकूमत की जासूस थी। उसने जाकर सारा क़िस्सा बादशाह से कह दिया। दूसरे दिन थ्योडोरक को गिरफ़्तार करने की विशेष आज्ञा मेरे भाई एलेक्जेंडर सिल्वेरियस ही को दी गई। साथ ही यह भी कि थ्योडोरक को शराब में ज़हर मिला कर पिला दिया जाए। मेरा भाई शाही हुक्म मानने के लिए तैयार हो गया। नहीं तो उसको भी क़त्ल कर दिया जाता। तब मैं उसी रात लबादा ओढ़ ख़ंजर और अशर्फियों की थैली लबादे में छुपा, थ्योडोरक के मकान पर पहुंची। उसके बाग की दीवार के ठीक नीचे समंदर था और हम लोग प्रायः यहीं मिला करते थे। थ्योडोरक को इस हुक्म का पता नहीं था। वह ख़ुश-ख़ुश गुलाब की क्यारी फलांगता दीवार पर आया। मैंने उसे इस अशुभ समाचर से अवगत किया। वह भौंचक रह गया। मैंने कहा, ‘मैं अपनी मूर्खता और गलती पर लज्जित हूं। अब साथ चलने को तैयार हूं। आओ फौरन भाग चलें नहीं तो सुबह होते ही मेरा भाई तुम्हें गिरफ़्तार कर लेगा।’ जानते हो थ्योडोरक ने क्या कहा? वह दीवार पर से कूदकर समुद्र के रुख खड़ा हो गया। बाजू फैलाए और बोला, ‘ऐ दौलत की गुलाम लोभी बाजेंतेनी रईसज़ादी... इस चाल से मुझे अभी पकड़वाने आई हो...? ख़ुदा हाफ़िज़।’ और पानी में कूद गया।
मैं हक्की-बक्की खड़ी रह गई। उस वक़्त मैं कमउम्र और कमअक्ल थी। मुझे सहसा अहसास हुआ कि एक विकृत, दुराचारग्रस्त समाज में एक वक़्त ऐसा आता है जब इंसान का इंसान पर से विश्वास पूर्ण रूप से उठ जाता है। मैं थ्योडोरक के साथ अपनी जान पर खेलकर भागने के लिए तैयार थी। हम लोग बुल्गेरिया जा सकते थे। कार्पेथियन पहाड़ों में छुप सकते थे। कहीं भी जा सकते थे, लेकिन उसने मुझ पर भी शक़ किया... और अकेला चला गया... बाद में सुना गया कि वह फ्रांस पहुंचा। वहां से बर्तानिया। वह मुझे छोड़कर भाग निकला। ख़ुदा करे उसे बर्तानवी जंगली खा गए हों...” मैंने आंसू पोंछे।
फादर ग्रैगॉरी ने नरमी से पूछा, “बीबी फ्लोरा साबीना। बर्तानवी अर्धसभ्य है। आदमख़ोर नहीं। फिर क्या हुआ?”
“ख़ुदा का शुक्र है कि पिता पर बादशाह का प्रकोप नहीं पड़ा। लेकिन बाद में हुक्म मिला कि जल्दी-से-जल्दी कुस्तुंतुनिया से रवाना होकर तेसफून में बाजेंतीनी दूतावास का चार्ज लें। यह भी एक तरह की सजा थीं, क्योंकि बादशाह जानता था कि मदाइन पर शीघ्र ही अरबों के कारण आफ़त आने वाली है। उसमें हम सब मारे जाएंगे। अतः कुछ दिनों बाद हमारे परिवार ने जहाज पर सवार होकर मेडीटेरेनियन सागर की ओर कूच किया। समुद्र शांत था और हवा अनुकूल थी।
जहाज़ ने अंताकिया के किनारे लंगर डाला। हम लोग बंदरगाह की संगमरमर की सीढ़ियां चढ़े। शहर के म्यूजियम में मिस्र की मलिका का संगमरमर का पोट्रेट देखा, जो एक रोमन मूर्तिकार ने कैलोपैट्रा को अपने सामने बिठाकर बनाया था। सच कहती हूं फादर, कैलोपेट्रा बिल्कुल हसीन नहीं थी। न जाने उसे इतनी अधिक ख़ूबसूरत के रूप में क्यों मशहूर कर दिया गया है? ख़ासी मोटी, भद्दी नाक, ऊपर का होंठ मोटा, नीचे का पतला, मर्दाना कठोर चेहरा, उसे उत्कृष्ट और अच्छी सूरत ज़रूर कह सकते हैं, परी चेहरा कदापि नहीं... हम लोग अंताकिया से साइप्रस और वहां से एडीसा और निसीबस होकर मदाइन पहुंचे- दजला के किनारे, जहां पिताजी ने कुछ दिन बादशाही महल में ईरान के बादशाह के सामने दूतकर्म संबंधी पत्र पेश किए। वह बदाशहा था तो साइरस और दारा का उत्ताराधिकारी मगर अब तक ये लोग भी हमारी तरह बहुत डेकेडेंट हो चुके थे। यहां भी कुस्तुंतुनिया की तरह दरबारी षड्यंत्रों और राजवंश में एक-दूसरे के क़त्ल-ख़ून का बाज़ार गरम था और भोग-विलास का बाहुल्य था। शाही महल में रोज समारोह होते थे।
तेसफून में एक रोमन जनरल मुझ पर मोहित हुआ। लेकिन वह रोमन कैथोलिक था और हम लोग ग्रीक ऑर्थोडोक्स। अब्बा उससे मेरी शादी के लिए राजी न हुए जबकि मैं तैयार थी। कुस्तुंतुनिया में मैंने सुना था कि ईरान और तूरान के घुंघराली दाढ़ियों वाले क्रोधातुर अग्निपूजक अपनी औरतों को पर्दे में कैद रखते हैं और बहुत जंगली लोग हैं। मगर वे हम बाजेंतीनियों से बढ़-चढ़कर सभ्य, सुशील और रसानुभवी निकले और हमारी तरह सुंदर भी। और वह अग्नि-मंदिर के मुख्य पुरोहित का बेटा... दस्तूरजादा मनोचहर पीरोज...” मैं कुछ याद करके उदास हो गई।
फादर ग्रैगॉरी ने कन्फेशन सुनने वाले स्वर में कहा, “बीबी, कहे जाओ। सुन रहा हूं।”
“फादर, मनोचहर- सच में मनोचहर था यानी ख़ूबसूरत। उसने मेरे नाम का अनुवाद अपनी फ़ारसी भाषा में गुलबानो किया था। वह मुझसे कहता, ‘गुलबानो- गुलचेहरे- गुंचे- गुल बदन- पैगंबरे मेहर आबाद की क़सम- तुमने मुझसे शादी न की तो मैं दजला में कूदकर जान दे दूंगा। चलो हम लोग पवित्र अग्नि की गवाही में चुपके से विवाह कर लें।’ मैं राज़ी हो गई। उस शाम हम दजला के किनारे एक कुंज में बैठे यह स्कीम बना रहे थे। दुर्भाग्य से शायद यहां एक सासानी जासूस झाड़ियों में छुपा बैठा था। बजरे पर सवार होकर शाम को जब मैं अपने मकान पहुंची मुझे तुरंत अपने कमरे में बंद कर दिया गया। मैं कभी कमबख़्त थ्योडोरक को याद करके रोती, कभी रोमन जनरल लुसीलेस अरर्गेटीस को और कभी दस्तूरजादा मनोचहर पीरोज को। तीसरे रोज़ सुबह, मां लाल आंखें लिए कमरे में आई और कहा, ‘बेटी, यात्रा के लिए तैयार हो जाओ।’ मैं समझी शायद बाजेंतियम वापस जाते हैं। तुरंत गुलाब जल से मुंह धोया। स्नानगृह में जाकर नहाई। कपड़े बदले। बाहर आई। लेकिन मुझे देखकर सब घर वाले बिल्कुल ख़ामोश। बुल्गेरियन गुलाम और कनीजें भी चुप। कुछ पता न चला कहां जा रहे हैं। शायद मुझे समंदर में डुबाने को लिए जाते हों। अब्बा अपनी कठोरता के लिए शहर में मशहूर थे। मैं थर-थर कांपती दरवाज़े से निकली। मां मुझसे लिपट कर खूब रोई। मगर वह भी ख़ामोश। कनीजों ने मुझे कजावे में सवार कराया। ऊंटनी हिल-डुलकर उठी। मैं समझी भूकंप आ गया। चलने लगी- डर लगा कि अब गिरी, अब गिरी। अब्बा और दोनों भाई दोनों घोड़ों पर सवार हुए। नौकरों ने वह लकड़ी का संदूक, जिसमें मेरे दहेज का साममान और सोने-चांदी के बर्तन कुस्तुंतुनिया से साथ आए थे, सवारी के जानवरों पर लादे। मां दरवाज़े पर खड़ी रोती रही। कारवां चलना शुरू हुआ। तेसफून से निकलकर शाम (सीरिया) की ओर चले। दमिश्क पहुंचे। रास्ते में जहां-जहां आराम के लिए ठहरे, अब्बा और भाई चुप। मुझे अब अच्छी तरह अनुभव हो चुका था कि एक अग्निपूजक से इश्क की सजा अब्बा के पास मौत से कम तो कुछ हो ही नहीं सकती।
दमिश्क से बहुत दूर जाकर एक पर्वत-शिखर पर जैतून के वृक्षों में छुपी एक ग्रीक ऑर्थोडोक्स खानकाह नज़र आई। उसके फाटक पर पहुंचकर काफिला रुका। अब्बा ने घोड़े से उतरकर खानकाह के घंटे का रस्सा तीन बार हिलाया। कुछ देर बाद काष्ठ्य-द्वार चरमराता हुआ खुला और एक यूनानी बूढ़ी बैरागिन ने झांका। चंद मिनट बाद दूसरी यूनानी वृद्धा हम लोगों को अंदर ले गई। एक बड़े कमरे में ठंडे भूरे पत्थरों की ज़मीन। ठंडी पथरीली दीवारें। दीवार में एक छोटी-सी खिड़की। दो खुरदरी बेंचे। वह वृद्धा ख़ानकाह की एंबेस और संन्यास लेने से पहले एक बाजेंतीनी शहज़ादी थी। दूसरे कमरे में जाकर अब्बा ने उससे बहुत देर तक बातें कीं। फिर मुझे बुलाया और इतने दिनों बाद पहली बार बोले। कहने लगे, ‘देखो बेटी, जो हुआ सो हुआ। अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम्हें मैं सदा के लिए प्रभु की शरण में दे दूं।’
‘जी अब्बा,’ मैंने सिर झुकाकर कहा। इसके अलावा कर भी क्या सकती थी?
अब्बा दूसरे कमरे में आए। ऊंट वालों को इशारा किया। उन्होंने अशर्फियों आदि से भरे हुए संदूक मदर सुपीरियर के सामने रखे, जो अब्बा ने रीति के अनुसार मेरे ‘आसमानी दहेज’ के तौर पर खानकाह की भेंट किए। इसके बाद अब्बा ने मुझे गले लगा लिया। मेरे सिर पर हाथ फेरा। आंसू रोके। भाइयों ने भी अपनी आंखों का गीलापन साफ़ किया। अब मैं यीशु की दुल्हन बनने वाली थी। ये तीनों, मेरा बाप और भाई, मेरे सामने सम्मानपूर्वक घुटनों के बल झुके और कहा, ‘हमारे लिए दुआ करना’- और उठकर बाहर चले गए। मेरा जी चाहा दहाड़े मार-मार रोऊं। हिम्मत से काम लेकर सलाख़ों वाली खिड़की में से झांका। वे तीनों फाटक से निकले, घोड़ों पर सवार हुए। सिर झुकाए पहाड़ी रास्तों पर उतर गए और रात के धुंधलके में नजरों से ओझल हो गए। उनके पीछे-पीछे वह कोतल ऊंट- एक पर खाली महमिल, दूसरे बोझा ढोने वाले ऊंट, जो मेरा सांसारिक दहेज मेरे भविष्य की आध्यात्मिक प्रवृत्ति में लेकर आए थे, अब खाली वापस जा रहे थे। यूनानी वृद्ध ने बाहर जाकर फाटक में ताला चढ़ा दिया और कुंजियों का गुच्छा झनझनाती, मोमबत्ती हाथ में लिए वापस आई और कहा, ‘चलो।’ मैं एक अंधेरी ठंडी गैलरी में उसके पीछे-पीछे चलने लगी। वह एक कोठरी में दाख़िल हुई। ठंडी पथरीली दीवरें। ठंडा फर्श, एक छोटी-सी सलाख़ोंदार खिड़की। नर्म पलंग के स्थान के ऊन की ख़ुरदरी चादर मेरे लिए तैयार रखी थी। एक काली माला, सिरहाने एक मोमबत्ती, दीवार पर काली सलीब और एक बाजेंतीनी आइकन (ईसा और मरियम की तस्वीर)। स्टूल पर एक पत्थर का प्याला, एक प्लेट, लकड़ी का एक चममचा। बड़ी नन गैलरी में चली गई। मैंने मोतियों से सुसज्जित जड़ाऊ कपड़े का लाल गाऊन तारा। खुरदरी चादर पहनी। गाऊन का बंडल बनाकर नन को थमा दिया। दरवाज़ा अंदर से बंद करके यीशु की प्रतिमा के सामने घुटनों के बल बैठ गई।”
मैंने बात ख़त्म की। फादर इस बीच सिगरेटों का आधा पैकेट फूंक चुका था।
“इसके बाद...?” उसने चौंककर पूछा।
“वह बड़ी दुर्घटनाओं और आपत्तियों भरा समय था। हमारा बादशाह हर्कल लगातार अरबों से जा भिड़ता और बुरी तरह हार जाता। हमारे कुछेक वृद्ध पादरियों का कहना था कि हम लोग इतने अधिक पथभ्रष्ट और पापी हो चुके हैं कि ख़ुदा हमसे नाराज़ हैं। हमारे तेसफून आने से कुछ साल पूर्व ही वह रोमांचक घटना घटी थी जब अरब की मरुभूमि से निकलकर दो फक़ीर समान एलची पैगंबर मोहम्मद का एक महत्वपूर्ण पत्र लेकर ईरान के बादशाह के पास आए थे, जिस तरह का पत्र ऐसे ही दरवेश-नुमा एलची, हमारे बादशाह के पास लाए थे और जैसा अपमानपूर्ण व्यवहार उसने उनके साथ किया था, उसी तरह बादशाह खुसरो परवेज ने मजाक उड़ाते हुए वह पत्र पढ़ा और एलचियों को दरबार से निकल दिया। उसके कुछ वर्ष बाद ही सासानी हुकूमत हमेशा के लिए मिट गई। जब हम लोग मदाइन में थे वह शाह खुसरो के अंतिम उत्तराधिकारी का दौर था। वह अब भी अपनी स्वर्णकुर्सी पर पर्दे के पीछे अकड़ा हुआ बैठा रहता था।
खानकाह में क़ैद, बाहरी दुनिया से मेरा संबंध पूर्णतः कट चुका था। कुछ वर्षों बाद दमिश्क से आने वाले कुछ पादरी यह खबर लाए कि शाह ने जो फौज कुछ समय से अरबों के खिलाफ कल्दानिया भेज रखी थी, उसके जवाबी हमले में अरब खलीफा की फौजों ने तेसफून का ही सफाया कर दिया। अब्बा इस जंग से जरा पहले कुस्तुंतुनिया वापस बुला लिए गए थे। सीरिया और मिस्र हमारे हाथों से निकले। ईरान सासान के वंशजों ने खोया। मुझे अब्बा की तरफ से बड़ी फिक्र थी और तीनों जवान फौजी भाई... जाने अब उनको किस कत्लगाह में भेज दिया जाए! मैं सुबह-शाम दुआएं मांगा करती। प्रार्थना के अतिरिक्त और कोई काम ही नहीं था।
लेकिन अजीब बात यह थी कि नई अरब हुकूमत ने हमारे साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया। सुना गया, वे कहते थे कि वे अपने प्रोफेट के उस चार्टर के अनुसार कर रहे हैं, जो उन्होंने खानकाह सेंट कैथरीन के संन्यासियों को दिया था।
सूर्यास्त के बाद जब हममें से कोई ‘नन’ छत पर रोशनी करने जाती तो लेबनान और फलस्तीन और मिस्र की ओर से जाने वाले कारवां घंटियां बजाते घाटी में से गुजरते नज़र आते। कभी-कभी उनमें से कोई आवाज़ देता, ‘पैगंबर ईसा की अनुयायी महिमावान महिलाओं, तुम पर सलामती हो।’ जवाब में हम देर तक मशाल उठाए बुर्जी में खड़े उनको रास्ता दिखाते रहते। यहां तक कि वे यात्री धुंधलके में खो जाते।
दमिश्क और यरुशलम की ईसाई अमीरज़ादियां अपनी दासियों और गुलामों के साथ हमारे गिरजाघर में दफ़न वली शमऊन के मजार पर बहुमूल्य चादरें चढ़ाने आतीं और मैं बड़े चाव से उनकी झिलमिलाती पोशाकें देखा करतीं।
एक सुबह मैं छत पर कबूतरों को दाना खिला रही थी, जब दूर से एक काफ़िला आता दिखाई दिया। आगे-आगे सफ़ेद घोड़े पर एक शहज़ादी सवार थी। सुनहरा ताज सिर पर। बाएं हाथ में सेंट जॉर्ज का ध्वज। गवर्नमेंट के दो अरब अफ़सर घोड़ों पर सवार उसके दाएं-बाएं आ रहे थे। मैंने हैरत से सोचा कि किस देश की मलिका है- वह गिर्जिस्तान की शहजादी कातंका तनातम थी।”
ज्योंही मैंने यह नाम लिया, फादर ग्रैगॉरी चौंक पड़ा और जल्दी-जल्दी सिगरेट के कश लगाने लगा। मैंने क़िस्सा जारी रखा...
“वह इतनी दूर की यात्रा करके वली शमऊन के मजार की जियारत करने आई थी। अरब खलीफ़ा के अफ़सरों ने उसको खानकाह तक सम्मानपूर्वक पहुंचाया। बड़ी अलबेली वैभवशाली मनचली शहज़ादी थी। जो बांके मुसलमान घुड़सवार उसे फाटक तक छोड़ने आए थे। उनसे इतनी देर तक मीठी-मीठी बातें करती रही कि हम लगो, जो उससके स्वागत के लिए निकले थे, खड़े-खड़े थक गए।
हम चार नन उसके आतिथ्य के लिए नियुक्त की गईं। शहजादी एक महीने हमारे यहां मेहमान रहीं। खानकाह और गिरजा को सोना और जवाहरात भेंट किए। वली के मजार पर सोने-चांदी के तारों से बने बेल-बूटेदार कपड़े की चादर चढ़ाई, जिसके किनारों पर हीरे और जवाहरात के फूलों की बेल बनाई गई थी।
चलते समय शहज़ादी ने हमारी एबिस में दरखास्त की कि उसने अपने राज्य में एक नई खानकाह और पूजाघर बनवाया है, उसकी देखभाल के लिए कुछ अनुभवी राहिबाओं को उसके साथ भेज दें। एबिस ने मुझे और तीन और लड़कियों को आज्ञा दी कि शहज़ादी के साथ जॉर्जिया रवाना हों। मैं खुशी से तैयार हो गई। बाकी राहिबाओं में से दो तो रास्ते में ही मर गईं। वे दोनों बेचारियां मिस्री लड़कियां थीं। रास्ते में पहाड़ों की तेज सर्दी सहन न कर सकीं। तीसरी लड़की यूनानी थी। उसके बाप ने उसे भी जबरदस्ती खानकाह में ठूंस दिया था। वह तर्बजून के करीब काफिले से बिछड़ गई और कहने वाले कहते हैं कि किसी अरब या बाजेंतीनी सौदागर के साथ भाग गई। ख़ुदा तू ही बेहतर जानता है।
उसी शहज़ादी ने इस पहाड़ पर यह आश्रम बनवाया था। यह सामने वाला गिरजा बहुत बाद में बना होगा। मैं मरते दम तक यहां रही। अक्सर मुझे अपने घर वालों की याद आती और फिक्र सताती। बाजेंतीनियम से जॉर्जिया सौदागर और पादरी लोग अक्सर आते-जाते रहते थे। उनसे वहां की ख़बरें मालूम होती रहतीं। नियमानुसार, मैं अपने मां-बाप से पत्र-व्यवहार नहीं कर सकती थी, क्योंकि अब वे सब मेरे लिए अजनबी थे। मेरा रिश्ता सिर्फ़ ख़ुदा से था। बाजेंतीनियम से आने वाले पादरी बताया करते कि कुस्तुंतुनियन द्वितीय को उसके बेटे थ्योडोसिस ने मार दिया। फिर उसके बेटे योगोनेटस ने अपने भाइयों- हर्कल और दाइबरियस की नाकें ही काट डालीं- छुरी से- और अनगिनत पादरी सूली पर चढ़ा दिए गए। फिर एक मुसाफ़िर ने, जो जानता नहीं था कि मैं कौन हूं, बातों-बातों में ज़िक्र किया कि बाजेंतीनियम के पिछले गृहयुद्ध में जो कत्लेआम हुआ, उसमें वज़ीर स्टीफन होनोरियस और उसके तीनों बेटे मारे गए। लेडी आयरीना मारिया बहुत पहले ही मर चुकी थी।
उस रात मैं अपनी कोठरी में रातभर बिलख-बिलख कर रोती रही। बर्फ के पानी से आंखें धोकर सुबह की इबादत में शामिल हुई। उसके बाद मैंने बाग के पेड़ों, फूल-पत्तों, पशु-पक्षियों, तितलियों से भी अपना दिल हटा लिया कि ये सब प्राकृतिक प्रतीक किसी-न-किसी रूप से दिल को प्रसन्नता पहुंचाते हैं और हर्ष की निशानी हैं... केवल ग़म- ख़ालिस ग़म और यातना मेरे हिस्से में थे। और वह मुझे पूरी तरह मिला। मैं घंटों सजदे में पड़ी रहती। लगातार रोज़े रखती। टाट ओढ़कर, सिर पर राख डालकर अपने पिछले किए हुए और न किए हुए, जानबूझकर और अनजाने में किए हुए गुनाहों की माफी मांगतीं लेकिन फादर ग्रैगॉरी, हम यूनानियों के यहां जो केथार्सिस की कल्पना है, वह बिल्कुल अर्थहीन है। केथार्सिस कोई चीज़ नहीं, निरंतर यातना है। प्रभु मसीह की सलीब पर सहन की हुई यातना सच्चाई का बुनियादी सच है।
अब मेरे संयम और पारसाई, विनम्रता और सहनशीलता के चर्चे कफ़काज के पहाड़ों में दूर-दूर तक होने लगे। लोग मेरे पास दुआ कराने के लिए आने लगे। इत्तिफाक़ और ख़ुदा की रहमत से ऐसा हुआ कि बहुत-से मरीजों के लिए मैंने दुआ की और वे अच्छे हो गए। अपाहिज और बूढ़े डोलियों में मेरे पास आने लगे। फिर एक छूत लगने वाली खतरनाक बीमारी का मरीज आया। मैंने उसकी तीमारदारी में दिन-रात एक कर दिया। वह तो अच्छा हो गया पर मैं उसी बीमारी से ग्रस्त होकर मर गई। अब मुझे याद नहीं वह क्या बीमारी थी। मरते समय मेरी उम्र 45 वर्ष की थी। मेरा ताबूत रीति के अनुसार खानकाह के तहखाने में रख दिया गया।”
“बहुत सुंदर थीं...?” फादर ने पूछा।
“बहुत।”
“मैं भी।”
उस वक्त, ऐ खुदा मुआफ करना, मेरे दिल में ख़्याल आया- यह अभिलाषा पैदा हुई कि काश, जब यह ज़िंदा था और फादर नहीं था और यह ग्रैंड ड्यूक ऑफ तफ्लिसी का बेटा था और मैं बाजेंतीनियम के राजदूत की सुंदर लड़की, उस वक्त अगर हमारी मुलाकात होती- मगर तेरे भेद तू ही जाने- मैंने फादर को अपने क़िस्से के अंतर में सूचित किया- “मेरे मरने के बाद यात्री दर्शन के लिए यहां आने लगे। कुछ चमत्कार मशहूर हो गए। सदियां गुजरती गईं। सन् 1872 में चर्च ने फैसला किया कि किसी पुनीतामा बंदे या बंदी को सेंट घोषित करने के लिए इस पद की जिन शर्तों को पूरा करना ज़रूरी है, जैसे कुछ प्रामाणिक चमत्कार, विश्वस्त जीव, चरित्र आदि- मगर मेरे हालात इन शर्तों को पूरा करते हों तो मुझे सेंट बना दिया जाएगा। वर्षों यह अनुसंधान चला। नियमानुसार, मेरा केस मास्को के सबसे बड़े बिशप के पास भेजा गया। आख़िर में यह फैसला किया गया कि 25 नवंबर, 1921 के दिन मुझे सेंट फ्लोरा सबीना बना दिया जाएगा। उस रोज़ मेरा उत्सव मनाने की तैयारी की जा रही थी। मगर उसी तारीख़ से कुछ दिन पूर्व यह चर्चा और खानकाह बंद कर दी गई। अतः मैं वैधानिक तौर पर सेंट फ्लोरा नहीं हूं। वैसे शायद हूं। फादर, अब तुम बताओ, तुमने सांसारिक विषय-वासना का त्याग क्यों किया? दुनिया सिर्फ़ मर्दों के लिए बनाई गई है। वे त्याग क्यों करते हैं? क्या वही पुराना क़िस्सा- महबूब की बेवफाई...?”
वह चुप रहा।
“ऐ ख़ुदा, मैं बड़ी नम्रता से स्वीकार करती हूं कि औरत का स्वभाव- साढ़े तेरह सौ वर्ष मौत की नींद सोने के बाद भी नहीं बदलता,” मैंने बड़ी दिलचस्पी से कुरेदा।
“फादर ग्रैगॉरी, क्या शहज़ादी कातंका तनातन ही तुम्हारी बेवफा महबूबा तो नहीं थी? क्योंकि वह स्वर्गवासी बड़ी दिलफेंक और आशिक-मिजाज़ स्त्री के रूप में मशहूर थी- क्या उसके कारण तुम अपना घर-बार उजाड़ बैठे?”
फादर ने कटुता से जवाब दिया, “लेडी फ्लोरा, क्यों तुम गड़े मुर्दे उखाड़ती हो?”
“हा... हा... हा...” मैंने उसके सेंस ऑफ ह्यूमर की दाद दी। बल्कि ब्लैक ह्यूमर। उसने आतुरता से एक और सिगरेट सुलगाई।
मैंने कहा, “फादर... ज्यादा तंबाकू लेना तुम्हारे फेफड़ों के लिए हानिकारक है।” सहसा ख़्याल आया- यह भी ब्लैक ह्यूमर है।
“चर्चा के प्रसंग में- तुम्हारी उस बहुधर्मनिष्ठ कातंका ने जॉर्जिया पर अरबों का कब्जा होने के तुरंत बाद तिफ्लिस के एक अरब जनरल से ब्याह कर लिया था,” फादर ने रुखाई से कहा।
“अरे...” मैं भौंचक रह गई।
“स्पष्ट है। यह तुम्हारी मृत्य के बाद की घटना है। मैं लाख ग्रैंड ड्यूक का बेटा सही, मगर अरब-प्रभुत्व हो जाने के बाद मेरी क्या हैसियत थी। मैं तो अपनी जागीर के मामलों से भी बेपरवाह था। सारा समय तिफ्लिस के चर्च के लेखन-गृह में गुजारता था। शहज़ादी कातंका हवा का रुख पहचानती थी। ज़माना जब अरबों के साथ था। मैं राजनीति से दूर भागने वाला और कातंका राजनीति के दांव-पेंच की उस्ताद। मुझे पहले-पहल दुःख हुआ। मानसिक और भावात्मक। फिर मैंने सोचा, मियां ग्रैगॉरी, औरत जात ऐसी चीज़ नहीं कि उसके लिए रोया-धोया जाए। समय की बर्बादी है। रहीं हसीन लड़कियां तो उनकी कमी कहीं नहीं। वे कौन-सी अप्राप्य चीज़ें हैं? अतः मैंने किताबों में जी लगाया। लेकिन तब्लिसी के चर्च के लेखन-गृह में निरंतर रिसर्च के लिए उन राहिबों के सिलसिले में शामिल होना ज़रूरी था। मैंने आव देखा न ताव राहिब भर्ती हो गया। कुछ महीने बाद कार्थेज चला गया और उसी मदरसे में काम किया, जहां सेंट ऑगस्टाइन ने पढ़ा था। फिर रोम गया। एथेंस गया। तुम्हारे वतन कुस्तुंतुनिया गया। नहीं, अपनी यात्रा के बीच तुम्हारा थ्योडोरक गैलासिस मुझे कहीं नहीं मिला। कहीं मर-खप गया होगा।”
“खुदा न करे।” मैं अनायास बोल उठी। फादर हंसने लगा, “फिर काले सागर के रास्ते गिर्जिस्तान वापस आया। नहीं, मैं शहज़ादी कातंका के कॉन्वेंट भी कभी नहीं आया। वह सामने जो नीले रंग की पर्वतमाला देखती हो न- उसके दामन में एक आश्रम था। चढ़ाई करने वालों के डर से उसके चारों ओर दीवार बना दी गई। कुछ राहिबों ने पहाड़ में पत्थर काटकर अपने छिपे हुए ठिकाने बनाए थे। बहुत से नवयुवक राहिब गुफाओं में रहते थे। मैंने भी एक अलग-थलग गुफा में अपना ठिकाना बनाया। सामने पत्थरों की दीवार चुनकर उस पर रंग-बिरंगे फूलों की बेलें चढ़ाईं। अराधना के लिए हम लोग बड़े गिरजा में जाया करते थे और खाना मिल-जुलकर खानकाह के हॉल में खाते थे। हममें से बहुत-से लोग स्कॉलर थे। रात को अक्सर ज्ञान के मामलों पर बहसें होतीं। कोई शामत का मारा नेस्टोरियन सेंट्रल एशिया से आ निकलता तो उससे झांय-झांय करते। वह कहता- ‘मां मरियम ईसा मसीह की मां है, ख़ुदा की मां नहीं।’ हम कहते- ‘तुम्हारे पास क्या सबूत है?’ वह कहता- ‘तुम्हारे पास क्या सुबूत है?’ कोई सीरियन पादरी आ पहुंचता। उससे झड़प रहती। वह कहता- ‘मसीह के प्रकृति के एकत्व को स्वीकार कर लो।’ हम कहते- ‘हरगिज नहीं।’ इन झड़पों से तंग आकर कई राहिब तिफ़्लिस पहुंचे और मुसलमान हो गए।
सारांश यह कि बड़ा अच्छा वक़्त गुज़र रहा था। मसीह के जन्मदिवस की खुशी से दो दिन पहले की बात है। मैं सुबह मुंह-अंधेरे रसोईघर के लिए लकड़ियां काटने जंगल गया। सारा जंगल बर्फ़ से ढंका हुआ था। घाटी में गिरजाघर के सुरीले घंटे बज रहे थे। खरगोश और गिलहरियां मेरे चारों तरफ दौड़ती फिर रही थीं। एक कोंटाकिया गुनगुनाते-गुनगुनाते मैंने ज़ोर-से कुल्हाड़ी जैसे ही दरख़्त के तने में मारी, वह आकर मेरे पांव में लग गई। मैंने तुरंत थोड़ी-सी बर्फ़ से ज़ख़्म साफ़ करके हरे पत्तों की पट्टी बांधी। लकड़ियां काटकर खानकाह में वापस लौटा और दैनिक कामों में व्यस्त हो गया। रात को अपने कक्ष में जाकर सोने से पूर्व रोज़ की तरह मोमबत्ती जलाई और सेंट ऑगस्टेन की आत्मस्वीकृतियों का अध्ययन शुरू किया। कुल्हाड़ी से खून के विषाक्त हो जाने के कारण सुबह तक ख़त्म हो चुका था। गुजरते समय आयु 54 वर्ष थी। मुझे मालूम नहीं इस तहख़ाने में कब और क्यों लाया गया।”
शायद शहज़ादी कातंका ने ताबूत यहां मंगवा लिया हो, मैंने सोचा, लेकिन चुप रही।
अलाव बुझ चुका था। हवा में हमारे ढांचे लड़खड़ाने लगे। फादर ग्रैगॉरी ने कहा,
“आओ, चलकर कहीं से गर्म कपड़े ढूंढें। ख़ुदा हमारे साथ हैं।”
सनोबरों के जंगलों से गुजरकर हम दोनों तेरे एक गिरजा में पहुंचे जो अपेक्षाकृत बहुत आधुनिक था, यानी गिर्जिस्तान की मलिका गोरानदुख्त ने 11वीं सदी में बनवाया था। वह शायद एक ‘फंक्शनिंग चर्च’ था, क्योंकि अंदर तेरे सुसज्जित आर्कनों के सामने ऊंचे शमादान रोशन थे और पादरी के कमरे का दरवाज़ा खुला पड़ा था। हम अंदर गए। गैलरी में एक आलमारी नज़र आई, जिसमें पादरियों के स्याह चोगे लटक रहे थे। पादरी शायद अपने मकान में सो रहा था। फादर ग्रैगॉरी ने आलमारी में से दो लबादे हुड के साथ चुराए जो हम दोनों ने फौरन पहन लिए। जान में जान आई। ठीक उसी समय अलमारी के पीछे एक परछाई दिखलाई दी। एक व्यक्ति- चेक का कोट, ब्राउन पतलून, सिर पर घने खिचड़ी बाल, मोटे शीशों की ऐनक। वह भी एक चोगा चुराने में व्यस्त था। हमें देखकर आलमारी के पीछे दुबक गया। हम दोनों फौरन बाहर आ गए और उस व्यक्ति के डर से भाग खड़े हुए। लड़खड़ाते-लड़खड़ाते पहाड़ी उतरने लगे। कुछ मिनट बाद पलटकर देखा, वह व्यक्ति भी एक राहिब की सादा पोशाक में हमारे पीछे-पीछे आ रहा था। हम जल्दी से तंबुओं की ओर गए ताकि वहां के अंधेरे में खो जाएं। लेकिन वहां के लड़के और लड़कियां अब अपने-अपने बैग उठाए जहाज की ओर बढ़ रहे थे, जो पास ही जेटी पर खड़ा था।
एक लड़का और लड़की बातों में खोए हुए साथ-साथ चल रहे थे। उनकी पीठ पर जो बैग बंधे हुए थे, उनमें दो-दो जोड़ी चमड़े के दस्ताने लटक रहे थे। फादर ग्रैगॉरी ने तुरंत हाथ की सफाई दिखाई। इसके बाद वह एक ख़ाली तंबू में घुस गया और वहां से दो जोड़े फुलबूट और दो मफलर उड़ा लाया। एक और तंबू से दो काले चश्मे पार किए। अब हम दोनों ने एक पेड़ के पीछे जाकर फुललबूट और समूरी-अस्तर वाले चमड़े के दस्ताने पहने। गॉगल्स से आंखें और मफलर से गर्दनें छिपाईं और बीसवीं सदी के पचहत्तरवें साल का मुकाबला करने के लिए तैयार हुए। अब हमें देखकर कोई नहीं कह सकता था कि दो मुर्दे जा रहे हैं। हमारे चेहरे हुड में छुपे हुए थे। आंखें गॉगल्स में। जीते-जागते राहिब और राहिबा लग रहे थे।
अब प्रभात होने वाला था। दरिया पर गहरी धुंध छाई हुई थी। जहाज ने चलने का भोंपू बजाया। लड़कों और लड़कियों का समूह गाता-बजाता सीढ़ी पर चढ़ने लगा। वहां सैंकड़ों छात्र थे। हम भी उनकी भीड़ में जा घुसे और जहाज पर चढ़ गए। धुंधलके पर भीड़-भड़क्के में हमें किसी ने नहीं देखा- जहाज पर पहुंचकर पलटकर देखा तो वह रहस्यमयी व्यक्ति मौजद। वह भी हमारे साथ-साथ लगा रहा। हम फुर्ती से एक अंधेरे कोने में दुबक गए। वह भी हमारे साथ बैठ गया। जहाज ने लंगर उठाया और दक्षिण की ओर चल पड़ा।
हम दोनों भूख-प्यास और नींद से निश्चिंत थे। उस तीसरे पर क्या गुज़र रही होगी इसका अंदाज़ा हमें नहीं हुआ, लेकिन वह बिल्कुल चुप बैठा रहा। दूसरी रात जहाज ने बातूमी पर लंगर डाले। प्रसन्नचित हंसते, गाते-बजाते नौजवानों की भीड़ के साथ-साथ हम तीनों जहाज से उतरकर तट पर आ गए और जल्दी-जल्दी एक तरफ़ को चलने लगे। पता ही नहीं था कि किधर जा रहे हैं। केवल भाग रहे थे। सालभर के एडवेंचर की आकांक्षा जो तुझसे की थी।
चलते-चलते हम लोग एक जगह पहुंचे, जहां बहुत सारी नावें खड़ी थीं। अभी सूरज निकलने में देर थी और किनारा सुनसान पड़ा था। फादर ग्रैगॉरी ने एक मोटरबोट का रस्सा उसके खूंटे से अलग किया और तेरा नाम लेकर उसमें कूद गया। मुझे भी हाथ पकड़कर सवार कराया। वह तीसरा अब भी किनारे पर मौजूद था। या अल्लाह! सुना था कि मौत ज़िंदगी का पीछा करती है। यहां उल्टा हिसाब था। उसने हाथ हिला-हिलाकर जोर से कहा, “मुझे भी साथ ले चलो- मुझे भी।” उसने पहली बार बात की थी। फादर ने इशारे से उसको बोट में बुला लिया और इंजन स्टार्ट किया। इस सावधानी से जैसे सातवीं सदी के दरिया-ए-कुरा में आप मोटरबोट ही पर तिफ्लिस आया-जाया करते थे।
वह अनजान व्यक्ति आकर हमारे बराबर बैठ गया। फादर ग्रैगॉरी ने एकदम प्रोफेशनल आवाज़ में पूछा, “प्यारे बेटे, तुम्हें क्या तकलीफ है? तुम मलिका गोरानदुख्त के गिरजा से लेकर यहां तक हमारा पीछा क्यों कर रहे हो?”
सहसा मुझे संबोधित किया, “यह जैट नाव है-” फिर उस आदमी की तरफ मुंह करके कहा, “हां, तो प्यारे बेटे, तुम्हें क्या तकलीफ है?”
उसने अपने मुंह पर हाथ रखकर धीरे-से कहा, “फादर, मैं एक डिसीडैंट इंटलेक्चुअल हूं। वेस्ट को डीफेक्ट कर रहा हूं। मेरी मदद करो।”
“वेस्ट...?” फादर ने फौरन कश्ती का रुख पश्चिम की ओर कर दिया। “बुल्गारिया के कौन-से द्वीप जाना चाहते हो? उस क्षण फादर ग्रैगॉरी की खोपड़ी से वर्तमान विद्याएं और सामान्य-ज्ञान शायद अस्थायी तौर पर गायब हो चुका था या उसकी खोपड़ी उस वक़्त कहीं और थी। उस व्यक्ति ने घबराकर कहा- “फादर, शायद आप सन् 45 ई. के बाद से अपनी खानकाह से बाहर नहीं निकले...।”
“सन् 45 में मैं तिब्लिसी में था,” फादर बोला। मगर शुक्र है, मोटर के शोर में उस व्यक्ति ने यह बात नहीं सुनी। वह कहता रहा, “फादर, वेस्ट अब बर्लिन की दीवार के दूसरी तरफ से शुरू होता है।”
या खुदा, मैं भोली-भाली हव्वा की कमअक्ल बेटी, बोल उठी-
“दीवारे चीन तो मैंने भी सुनी है... सद्दे-सिकंदरी और दरबंद हमारे कफ़काज ही में हैं- यह बर्लिन की दीवार कहां है?”
फादर ने मुझे टहोका दिया कि चुप रहूं। उस क्षण फादर ग्रैगॉरी की सारी ‘समकालीन चेतना’ वापस आ चुकी थी। उन्होंने मोटरबोट का रुख तुर्की की तरफ़ कर दिया। कश्ती खुले समंदर में फर्राटे भरती हवा से बातें करने लगी। फादर ने उस डिसीडैंट इंटलेक्चुअल से कहा, “प्यारे बेटे, खुदा को याद करो, जिसने युनुस पैगंबर को बचाया। हमारा भी रक्षक और साथी है और समंदरों का सितारा- मां मरियम हमारी मार्गदर्शक हैं...”
“आमीन...” मैंने कहा, “प्यारे बेटे ख़ुदावंद करीम, बादबानी जहाजों और कारखानों के मार्गदर्शक को याद करो। मैं उम्मीद करती हूं कि तुम मसीही संतों और शहीदों के हालात नियमित रूप से पढ़ते होगे।”
उसने जवाब दे दिया, “मैं केवल मेलार्मे काफका और बॉदलियर का अध्ययन करता हूं।”
ऐ ख़ुदा, मैं स्वीकार करती हूं कि मैंने इन संतों के नाम पहले न सुने थे।
ऐ जग के पालनहार... इसके बाद के सारे हालात तुझको पता है। हम किस तरह, किन एडवेंचर्स का सामना करके आख़िर में वियाना पहुंचे। वहां किस तरह हमारा स्वागत हुआ। डिसीडैंट इंटलेक्चुअल ने किस तरह प्रेस कांफ्रेंस बुलाई। टीवी और प्रेस के साक्षात्कार हुए। किताबों के कॉन्ट्रैक्ट, दावतें और गार्डन पार्टियां। मैं और फादर ग्रैगॉरी हर जगह साथ रहे। लेकिन वियाना पहुंचते ही फादर ने डिसीडैंट इंटलेक्चुअल से कह दिया था कि तुम सबको अच्छी तरह समझा दो कि मैं और मदर फ्लोरा दोनों, गिर्जिस्तान के जॉर्जियन चर्च के एक ऐसे प्राचीनतम ऑर्डर से संबंध रखते हैं, जिसके सदस्य मरते-दम तक पूर्ण रूप से मौन धारण करने का प्रण ले चुके हैं। अतः हम दोनों को इंटरव्यू देने से अलग रखा जाए। दैनिक आवश्यकताओं के संबंध में हम दोनों एक पर्ची पर कुछ शब्द लिख दिया करेंगे। इसके अलावा हम तस्वीरें भी नहीं खिंचवाएंगे, क्योंकि यह आत्मप्रशंसा और आत्मप्रदर्शन की अभिव्यक्ति है। इंटलेक्चुअल ने यह पैगाम पत्रकारों को दे दिया। एक तहलका मच गया। अब वर्ल्ड-प्रेस में सुर्खियां छपीं- “फादर ग्रैगॉरी और मदर फ्लोरा का ज़िंदगीभर ख़ामोश रहने का संकल्प...” इसके बाद पेरिस में एक पत्रकार ने जिद की- “मेरे सवाल का जवाब पर्चे पर लिखकर दे दीजिए।” फादर ने जवाब में लिखा- “मैं किसी कारणवश कुछ नहीं कहना चाहता।” चुनांचे और भी सुर्खियां लगीं- “फादर ग्रैगॉरी का बयान। वे किसी कारणवश कुछ कहना नहीं चाहते।”
पेरिस से हम लोग लंदन ले जाए गए। वहां भी यही हंगामा रहा। अब हमारा नित्य-नियम यह था कि डिसीडैंट इंटलेक्चुअल मीडिया के प्रतिनिधियों में घिरा रहता था, फादर ग्रैगॉरी पुस्तकालयों में वक्त गुजारता, मैं विंडो-शॉपिंग करती फिरती। हम लोग बेहतरीन होटलों में ठहराए गए। प्रेस ने हमारी इच्छाओं का सम्मान करके मुझे और फादर को बिल्कुल अकेला छोड़ दिया। हमें भी अगले दिन के प्रोग्राम के बारे में जो कुछ कहना होता डिसीडैंट इंटलेक्चुअल को बता देते थे।
एक महीने बाद, ऐ परमात्मा, तुझे अच्छी तरह पता है कि हम तीनों अमरीका आमंत्रित किए गए, जहां प्रोग्राम के अनुसार, हम तीनों स्थायी रूप से निवास करने वाले थे। इंटलेक्चुअल अब बे-तरह व्यस्त था। अपनी किताब और सिलसिलेवार लेखों के लिए अत्यधिक रॉयल्टी पहले ही ले चुका था और ऐश कर रहा था। हम लोग न्यूयॉर्क हिल्टन में ठहराए गए। अब यहां मुझे और फादर को उसी समस्या का सामना करना पड़ा, जिसने हमको पश्चिमी यूरोप और इंग्लैंड के होटलों में परेशान किया था। ऐ खुदा, तू जानता है कि हम दोनों को भूख-प्यास, नींद और बाथरूम जाने की आवश्यकता नहीं थी। अतः हम अपने कमरों में ब्रेकफास्ट मंगवाते, न खाना खाने के लिए नीचे जाते। न रूम सर्विस की किसी जरूरत के लिए फोन करते। लेकिन सबसे बड़ा मामला बाथरूम था। कमोड पर बंधे कागजी रिबन ज्यों-के-त्यों रखे रहते। तौलिया, साबुन, वाश-बेसिन हर चीज़ अनछुई। सुबह को मेड सपाई के लिए आती तो चकित होती। फादर से इस सिलसिले में बात करते मुझे शर्म आती थी। आख़िर एक दिन मैंने उससे कहा, वह बोला- “औरत वाकई मंदबुद्धि है। यह तो बड़ी सरल चीज़ है। मैं कागजी रिबन अलग कर देता हूं। वाश-बेसन के आस-पास पानी छिड़क देता हूं। जरा-सा छींटा साबुन पर डाल देता हूं। यह कोई प्रॉब्लम नहीं।” खाने-पीने के बारे में हमने वियाना ही में अपने मेजबानों को कह दिया था कि हम दोनों निरंतर व्रत रखते हैं और रात को मात्र जौ की रोटी, पियाज-पनीर और सादे पानी से व्रत तोड़ते हैं, सो चांदी की प्लेटों और बढिया बर्तनों में नैपकिन में ढका व्रत खोलने का यह सामान हमें शाम के वक्त हमारे कमरों में पहुंचा दिया जाता, जिसे हम कागज में रखकर सुबह को बाहर ले जाते और सड़क के किनारे कूड़ेदान में डाल आते। लेकिन हिल्टन में ठहरने के चौथे रोज फादर ने मुझसे कहा, “हमारे मेजबानों ने हमें अलास्का की ग्रीक ऑर्थोडोक्स खानकाहों में भेजने का प्रबंध किया है। नीचे आओ तो मैं तुमसे सलाह करुं।”
मैं घबराई हुई नीचे गई। फादर ने कहा, “मैंने अभी-अभी कमेटी के सचिव से बात की है और उससे कहा है कि हम पहले अपने कुछ जॉर्जियन रिश्तेदारों से मिलने फिलाडेल्फिया जाएंगे। इसके बाद कुछ समय न्यूयॉर्क ही में कुछ मित्रों के साथ ठहरेंगे, क्योंकि यहां पुस्तकालयों में थोड़ा-साम काम करना चाहता हूं। उन्होंने मुझे एक बड़ी धन-राशि इस बीच होने वाले खर्चे के लिए दे दी है। कल सुबह यहां से चैक आउट कर जाएं।” अतः दूसरे दिन हम डिसीडैंट इंटलेक्चुअल और अपने मेजबानों को ख़ुदा हाफ़िज़ कहकर हिल्टन से निकल लिए। फादर ने एक मामूली बोर्डिंग हाउस में दो कमरे किराए पर लिए। पैसे की कमी नहीं थी। फादर साईंस और टेक्नोलॉजी और विश्व-राजनीति पर नई-नई किताबें खरीदता। मैं फैशन मैगजीन। वह पुस्तकालयों में समय गुजारता। मैं विंडो शॉपिंग करती। एक रोज एक बुक-शॉप में मैंने देखा कि फादर ‘प्ले ब्वॉय’ का अध्ययन कर रहा है। मुझे देखकर झेंप गया। बोला, “इस पत्रिका में इंटरव्यू बहुत अच्छे छपते हैं। मैं सालबेलो पर एक लेख पढ़ रहा था।”
फादर पुस्तकालयों से एकाध किताब चुरा भी लाता था। और सिगरेट पीने की तल ऐसी पड़ी थी कि अपने कमरे में बैठकर निरंतर सिगरेट पीता था। पब्लिक में सिगरेट पी नहीं सकता था, क्योंकि उसके लिए हुड़ में छुपा हुआ चेहरा खोलना पड़ता था।
सालभर का समय तेजी से खत्म हो रहा था। पतझड़ का मौसम आ चुका था। हर तरफ पेड़ों में लाल पत्ते झिलमिला रहे थे। मेरी बड़ी अभिलाषा थी कि कम-से-कम एक खूबसूरत ड्रेस खरीदकर अपने कमरे में उसे पहन लूं। फादर पक्का मेल शोवनिस्ट था। मेरी इस इच्छा को लापरवाही से अनसुनी करता रहा। बल्कि मेरे हिस्से के डॉलर भी अपनी किताबों पर खर्च कर डाले। अक्सर जाकर सिनेमा और थियेटर देखता। मुझसे कह जाता, तुम्हारे कमरे में टीवी है उसे देखो और फिर इबादत करो।
हाय अल्लाह, मैं यह बताना तो भूल ही गई। मैंने तेरे भुलक्कड़ फ़रिश्ते से पूछा थाः “मान लो, हम निश्चित समय पर जॉर्जिया के इस तहखाने में न पहुंच सके तो क्या होगा?” उसने जाते-जाते जवाब दिया था कि तुम जहां भी हो किसी पास के कब्रिस्तान चले जाना और दो खाली कब्रों में सो जा पड़ना। ...साल खत्म होने वाला था। खुदाया तेरी इतनी बड़ी, इतनी रोमांचक, आकर्षक और इतनी उन्नत दुनिया में हम तो अभी कुछ भी न देख पाए। फादर ने कब्रिस्तान तलाश करने का काम भी मुझ पर छोड़ दिया। सैर-सपाटे के लिए निकल जाता और मैं गोरिस्तानों के चक्कर लगाती कि कहीं दो खाली कब्रें दिखलाई दे जाएं तो उन्हें नज़र में रखूं।
वापसी के लिए अब केवल कुछ ही दिन बाकी रह गए थे। पैसा खत्म होने के करीब था। फादर इसके लिए तैयार नहीं था कि मेजबानों को फोन करके कुछ और डॉलर मांगे। वह पूछता, “तुम लोग अब तक यहां क्या कर रहे हो? अलास्का की खानकाह क्यों नहीं गए?” बाकी बचे डॉलर से (जो मेरे हिस्से ही के थे) मैं अपनी पहली और आख़िरी इच्छा- एक गाऊन खरीदना चाहती थी। लेकिन फादर इस रकम से अरब आइल की अर्थव्यवस्था और यूरोपियन कामन मार्केट पर दो किताबें उठा लाया। मैं रो पड़ी। उसने कहा, “वक्त बहुत कम रह गया है। दिन-रात लगकर यह पढ़ूंगा।” फिर मुझे बहलाने के लिए बोला- “जरा यह तो सोचो, हमारे अंडरग्राउंड हो जाने पर सारी दुनिया में किस तरह लहलका मचेगा? (मैंने ‘अंडरग्राउंड’ की प्रशंसा की) अमरीकन और रूसी दोनों यह समझेंगे कि हम डबल एजेंट थे और बेचारे डिसीडैंट इंटलेक्चुअल पर आफत आएगी। मगर स्थिति कुछ ऐसी है कि हम उस गरीब की किसी तरह मदद नहीं कर सकते। आओ ज़रा टहल आएं।”
हम घूमने निकले। एक वैभवशाली दुकान में ‘क्रिश्चियन डियोर’ की ताज़ा रचनाओं की नुमाइश हो रही थी। मैं फादर को दुकान में घसीट ले गई। फैशन शो शुरू हो चुका था। उस दुकान का मालिक कोई कैथोलिक था। हमारे स्याह लबादे देखकर किसी ने कुछ नहीं कहा। हम जाकर एक पिछली पंक्ति में बैठ गए। मैं वस्त्रों को और फादर ग्रैगॉरी मॉडल लड़कियों को देखता रहा। अचानक मैं आश्चर्यचकित रह गई। एक मॉडल लड़की लाल बहुमूल्य कपड़े का गाऊन पहने सामने से गुज़री, जिसके किनारे और पेटी पर मोती टंके थे। लगभग उसी का बाजेंतीनी गाउन मैंने उस रात सीरिया की खानकाह के कक्ष में आख़िरी बार उतारकर राहिबा की खुरदरी चादर पहनी थी। मैं फटी-फटी आंखों से उसे देखती रही। बेहद बहुमूल्य लिबास था।
फादर ने चुपके से पूछा, “लेडी फ्लोरा सबीना, क्या तुम भी वही सोच रही हो जो मैं सोच रहा हूं?” मैंने कहा, “हां, फादर ग्रैगॉरी।” वह चुप रहा। कुछ बाद उसने कहा, “तुम अब घर चली जाओ। मैं रात को आऊंगा।” मैंने उसका कहना मान लिया।
रात के दो बजे फादर बोर्डिंग हाउस पहुंचा। उसका कमरा मेरे कमरे की बगल में था। मैंने खटर-पटर की आवाज़ सुनी। उसने दरवाज़े पर दस्तक दी। मैंने किवाड़ खोला। उसने अपने क्लाक के अंदर से एक पैकेट निकालकर मुझे थमा दिया। इत्मीनान से कहा, “भीड़-भड़क्के में एक बैकरूम में जा घुसा। यह गाऊन सामने ही हैंगर पर मौजूद था। खुदा हमारे साथ है।” वह अपने कमरे में जाकर आइल क्राइसिस पर किताब पढ़ने में व्यस्त हो गया। मैंने गाऊन पहना, उसमें पैडिंग की बहुत ज्यादा ज़रूरत थी। दूसरे रोज मैं बाज़ार से आवश्ययक सामान खरीद लाई। फिर दो दिन कमरे में बैठकर सारे गाऊन के नीचे रूई का मोटा अस्तर लगाया। अब जो पहना तो मालूम ही न होता था कि एक ढांचे ने उसे पहना है। तीसरे पहर फादर मेरे कमरे में आया। मुझे इस लिबास में देखकर सीटी बजाई। हम लोग पार्क में जाकर अपनी पसंद की बेंच पर बैठ गए। फादर उदासी से मुझे देखता रहा। कुछ देर बाद उसने अपने काले लबादे की जेब से एक किताब निकाली और आहिस्ता बोला, “आज मैं लायब्रेरी से आयरलैंड के महाकवि डब्ल्यू.बी. यीट्स की किताब चुरा लाया हूं।” हमारे चारों तरफ शाहबलूत के सूखे लाल पत्तों की बारिश हो रही थी। सूरज डूबने वाला था और अंधकार छा रहा था। फादर ग्रैगॉरी ने कहा, “इस कविता का शीर्षक है- ‘सेलिंग टू बाईजैंटीयम’- लो सुनो।” उसने गंभीर स्वर में धीरे-धीरे पढ़ना शुरू किया।
मैं रोए जा रही थी। फादर ने किताब बंद करके एक लंबी सांस ली और कहा- “चलो, आखिरी बार डाउनटान हो आएं।” हम दोनों पार्क से निकले। टैक्सी में शहर पहुंचे। रास्ते में एक शानदार होटल पर लिखा नज़र आया- “इस्राईल फंड के लिए मास्क बाल।” फादर ने मुझे देखा, मैंने उसे। हम एक डिपार्टमेंटल स्टोर पर उतर गए। पार्क से चलते समय मैंने अपना काला लबादा अपने गाऊन के ऊपर पहन रखा था। नित्य की तरह काले चश्मे और हुड में चेहरा छुपाए हमने दुकान में जाकर दो मास्क खरीदे और सुनहरे विग। जनाने और मर्दाने क्लोकरूम में जाकर हम दोनों तैयार हुए।
फादर चलते-चलते अपने लिए एक बढ़िया स्कार्फ खरीदने लगा। तब मैंने उसे फिर याद दिलाया- “आज हमारी छूट का आख़िरी दिन, बल्कि आखिरी शाम है। ठीक से ग्यारह बजे हमें अंडरग्राउंड होना है। जो कब्रिस्तान मैंने तलाश किया है। हमारे ठहरने की जगह से काफी दूर है। सारे पैसे मत ख़र्च कर दो। कब्रिस्तान जाने के लिए टैक्सी करनी होगी।” फिर भी उसने कीमती सिगरेटों का एक पैकेट खरीद लिया। हम भागम-भाग करके हॉल में पहुंचे। प्रवेश टिकट द्वारा था। हमने सबसे कम कीमत के दो टिकट खरीदे। मुख्य द्वार पर फुटमैन नाम एनाउंस कर रहा था। फादर ने (जो अपने स्याह लबादे में था और सिर्फ चेहरे पर मास्क पहन रखा था) गंभीरता से कहा- “प्रिंसिस कातंका तनातन ऑफ जॉर्जिया, ग्रैंड ड्यूक ओरबेलियानी ऑफ तिब्लिसी।”
होटल के चोबदार ने हमें 1917 के इंकलाब के बाद आए हुए सफेद रूसी समझा। अंदर जाकर हम दीवार के करीब एक सोफे पर बैठ गए। बड़ा वैभवशाली रंगारंग कार्यक्रम था। आर्केस्ट्रा ‘ब्ल्यू डेन्यूब’ बजा रहा था।
कुछ मिनट के बाद फादर सिगरेट पीने के लिए बाथरूम चला गया। मैं वहां चुपचाप बैठी सोचती रही। अब सिर्फ़ दो घंटे बाद कयामत तक कब्रिस्तान एकांत और अंधकार तभी सहसा मुझे वह दिखलाई दे गया। थ्योडोरक गेलासिस- वही घुंघराले बाल, लंबा, ऊंचा पूरा। यूनानी नाक। वह एक रोमन सीनेटर का वेश बदले एक ‘स्पेनी डांसर’ के साथ नाच रहा था। मुझे अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ। यह किस तरह संभव है? क्या यह भी एक चमत्कार है? या ख़ुदा, मैं बिल्कुल बौखला गई। वह कई बार नाचता हुआ मेरे सामने से गुजरा और शायद मुझे अपनी तरफ ध्यान देते देखकर डांस के बाद खुद मेरे पास आया और अपने साथ नाचने की प्रार्थना की। मैंने हड़बड़ाकर कहा, “मेरे पांव में मोच आ गई है थ्योडोरक...”
उसने केवल आंखों पर मास्क पहन रखा था। वह उतारा। वह कोई और था... मेरे थ्योडोरक से उसकी हल्की-सी एकरूपता ज़रूरत थी लेकिन वह कोई और था। भला वह कैसे हो सकता था, मगर मुझसे रहा न गया। बड़ी मूर्खता से पूछा, “माफ कीजिए, क्या आपका नाम थ्योडोरक गेलासिस तो नहीं है?” उसने कहा- “नहीं जी, जी नहीं, मैं रिचर्ड कोहन हूं। कोलम्बिया में पढ़ता हूं।” फिर दो-चार बातें करके चला गया। कुछ मिनट बाद फादर सिगरेट पीकर वापस आया। सोफ़े पर बैठते ही दीवार के क्लॉक पर नज़र डाली और कहा,
“लेडी फ्लोरा... अब चलना चाहिए... दस बज चुके हैं... चलो... उठो...”
तब उस वक्त सहसा एक ख़ौफ़नाक विचार मेरी खोपड़ी में आया। मैंने बौखलाकर काफी ऊंची आवाज़ में अंग्रेज़ी भाषा में कहा- (हम दोनों लंदन पहुंचे थे और वहां से अमरीका, अब अनवरत अंग्रेजी में एक-दूसरे से बात करते थे। फादर का कहना था... कि इस तरह एक नई भाषा बोलने की प्रैक्टिस रहेगी। मैं चिढ़कर उससे कहती, फादर हमें सिर्फ़ चंद महीने इस दुनिया में और रहना है। मैं क्यों अपनी कोपड़ी खपाऊं, तो वह जवाब देता- ‘लेड़ी फ्लोरा... इंसान आम तौर से हद-से-हद साठ-सत्तर साल दुनिया में जीवित रहता है। कभी-कभी इससे भी बहुत कम। लेकिन इस अहसास के होते भी कि उसकी उम्र बहुत छोटी है, वह ज़िंदगी का आधार हिस्सा ज्ञान प्राप्त करने में व्यतीत करता है। दिमाग ख़पाता है। मेहनत करता है और अपनी सारी शिक्षा, सारा ज्ञान, तजुर्ब, आत्मज्ञान के बावजूद- एक दिन पट-से मर जाता है। अब चाहे एक व्यक्ति को दस साल और जीना हो या एक साल। बात तो एक ही है।’ अल्लाह, फादर बड़ा झक्की था। बहरहाल, तो हम लोग हमेशा कानाफूसी में गुफ़्तगू करते थे, लेकिन उस वक़्त क्लॉक पर नज़र पड़ते ही मैं घबराकर ऊंची आवाज़ में अंग्रेज़ी में बोल उठी) “हमें जो वापसी का वक़्त बताया गया था, क्या वह ‘ग्रेनेज टाइम’ था...? रूस और यहां के वक़्त में तो कम-से-कम अठारह घंटे का फर्क होगा... और... उसने तो पुराने रूसी कैलेंडर के हिसाब से 23 सितंबर कहा था...”
इस पर फादर ग्रैगॉरी भी हड़बड़ाकर बोला, “अरे... अब क्या होगा?”
“अब... यह होगा...” एक पुलिस अफ़सर ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। हम दोनों भयभीत होकर सोफ़े से खड़े हो गए। हमारे आस-पास नाचने वालों की भीड़ लग गई। पुलिस अफसर के साथ दो सिपाही मौजूद थे। उसने फादर को सख़्त आवाज़ में संबोधित किया, “अमुक डिपार्टमेंटल स्टोर से यह गाऊन, जो तुम्हारी गर्लफ्रेंड ने पहन रखा है, तुम चुराकर भागे थे। पुलिस उस रात से तुम्हारी तलाश में व्यस्त है। यह गाऊन जेकलीन ओनासिस की फरमाइश पर ख़ास तौर पर तैयार किया गया था। विभिन्न लायब्रेरियों से भी हमें सूचना मिली है कि एक व्यक्ति राहिब के वेश में श्रेष्ठ अप्राप्त किताबों चुराता फिर रहा है, परंतु यह बहुमूल्य गाऊन... तुम दोनों को हमारे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा।”
तब फादर ग्रैगॉरी ओरबेलियानी ने मुझे देखा और मैंने फादर ग्रैगॉरी ओरबेलियानी को। हम दोनों ने पहले अपने दस्ताने उतारे। अपने पंजे अपने चेहरों की तरफ ले गए। काले चश्में अलग किए और अपने-अपने मास्क उतारे।