आवारागर्द
'सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहां/ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहां', कुर्तुलऐन हैदर की कहानी 'आवारागर्द' को पढ़ते हुए ख़्वाजा मीर दर्द का यह शेर बरबस ही याद हो आता है. द्वितीय विश्वयुद्ध और उसकी विभीषिका ने यूरोपीय पीढ़ी को किस तरह और कितना प्रभावित किया, यह कहानी इसकी भी बानगी है। एक जर्मन नौजवान, जो अपनी अकेली बूढ़ी मां को पीछे छोड़ दुनिया की सैर पर निकला हुआ है, वह अपनी इस यात्रा में किन-किन अनुभवों से गुज़रता है, यह उसका रोजनामचा है। मगर यह कहानी केवल एक जर्मन नौजवान यात्री का रोजनामचा भर नहीं है, बल्कि एक ऐसा दस्तावेज है, जो बताता है कि अपनी तमाम खूबसूरती के बावजूद, यह दुनिया अभी भी ऐसी जगह बनी हुई है, जहां हिंसा रह-रह कर और लगातार सुलगती रहती है।
October 29, 2022