हवा की हूक

वह बूढ़ा खड़ा हुआ था और दोहरी सड़क के उस पार घूरे जा रहा था। उस पार सड़क की दरमयानी नहर के किनारे एक जवान औरत और एक तगड़ा-सा मर्द खड़े बातें कर रहे थे। सड़क ख़ाली थी, अलबत्ता कभी-कभी कोई मोटर कार आकर तेज़ी से निकल जाती थी। अंधेरा हो चला था। चिनार के दरख़्तों को झन्नझोड़ती हुई तुंद हवा से सड़क की ख़ाक उड़-उड़ कर फ़िज़ा में फैल रही थी।

हवा की हूक

पटचित्र: फाइन आर्ट अमेरिका 

फ़ारसी से उर्दू अनुवाद: नय्यर मसऊद
उर्दू से हिंदी अनुवाद: शहादत

 

वह बूढ़ा खड़ा हुआ था और दोहरी सड़क के उस पार घूरे जा रहा था। उस पार सड़क की दरमयानी नहर के किनारे एक जवान औरत और एक तगड़ा-सा मर्द खड़े बातें कर रहे थे। सड़क ख़ाली थी, अलबत्ता कभी-कभी कोई मोटर कार आकर तेज़ी से निकल जाती थी। अंधेरा हो चला था। चिनार के दरख़्तों को झन्नझोड़ती हुई तुंद हवा से सड़क की ख़ाक उड़-उड़ कर फ़िज़ा में फैल रही थी।

बूढ़े के कमज़ोर हाथ में हिलती हुई लाठी डामर के फुटपाथ पर खट-खट कर रही थी। उसके होंठ हिल रहे थे और मुंह से बेमानी आवाज़ें निकल रही थीं। उसकी निगाहें सड़क की दूसरी तरफ से हटाए नहीं हट रही थीं। तगड़ा आदमी दुबले बदन की छोटी-सी औरत के सामने झुका हुआ हाथ नचा-नचाकर कुछ कह रहा था। औरत के लंबे काले बाल हवा से उड़ रहे थे और उसके लिपे-पुते चेहरे पर सड़क की धूल जमी थी।

उन दोनों से कुछ फ़ासले पर सड़क के किनारे लाल रंग की एक कार खड़ी थी। स्टेयरिंग के पीछे एक आदमी बैठा सिगरेट पी रहा था और उन पर नज़रें गाड़े हुए था।

बूढ़ा लाठी टेकता हुआ नहर की ओर बढ़ा। नहर मटमैले पानी से लबालब भरी हुई थी और गिराती हुई सड़क की ढाल के रुख बह रही थी। बूढ़ा इधर से पलटा और सड़क के पुल के पास पहुंचा, तेज़ी के साथ पुल को पार करके दूसरी तरफ़ उतरा और वह उसी तेज़ी से उधर की सड़क भी पार करना चाहता था कि हॉर्न की लंबी चीख़ ने उसके क़दम रोक दिए। एक कार उसके क़रीब से होकर सन्न से निकल गई।

लाठी टेकते हुए बूढ़े ने सड़क की चौड़ान पार की और जल्दी से ख़ुद को नहर वाले किनारे पर पहुंचा दिया। तगड़े आदमी ने औरत की बांह पकड़ ली थी और उसको आहिस्ता-आहिस्ता लाल कार की तरफ़ ले जाने लगा था।

बूढ़ा पीछे से उनके सिर पर आ पहुंचा। उसने लाठी उठाकर एक जमा हुआ हाथ मारा। लाठी तगड़े आदमी के सिर के पास से होती हुई उसके बाएं बाज़ू पर लगी। वह उछल कर पलटा और तेज़ी से पीछे हट गया। बूढ़ा की लाठी फिर उठी लेकिन उसका निशाना चूक गया। तगड़े आदमी की हैरत-ज़दा आवाज़ बुलंद हुई, “ओ....!”

उसने बूढ़े की लाठी को, जो फिर बुलंद हो गई थी, बीच ही में पकड़ लिया, बूढ़े की सुर्ख़ अंगारा आंखों को देखा, लपककर औरत को पीछे खींचा और बोला, “खड़ी रहो, पागल है।”

उसने बूढ़े का हाथ पकड़ कर पीछे की तरफ़ मरोड़ दिया। बूढ़ा तकलीफ़ से कराहने लगा। औरत उनकी तरफ़ लपकी और चीख़ी, “छोड़ो छोड़ो!”

मर्द पलटा और भौंचक्का-सा होकर औरत को देखने लगा। फिर बोला, “मैं क्या कर रहा हूं, ये ख़ुराफ़ाती ख़ुद ही भिड़ा हुआ है।”

उसने बूढ़े को छोड़ दिया। लाठी ज़मीन पर गिर गई। बूढ़ा गालियां बकता हुआ फिर उस पर झपटा। आदमी ने ताव खाकर उसके मुंह पर एक हाथ रसीद किया और लातें मार-मारकर उसे पीछे खदेड़ने लगा। बूढ़ा उलटे पांव हटता गया, यहां तक कि उसके पैर नहर की पक्की मुंडेर से टकराए और वह चारों कंधे चित्त पानी में जा पड़ा।

स्टेयरिंग के पीछे बैठे हुए आदमी ने खिड़की से सिर बाहर निकाला और पुकारकर पूछा, “क्या बात है, अब्दुल? ये बूढ़ा कहां से आ मरा?”

तगड़ा आदमी बुरा-सा मुंह बनाए हुए मुड़ा और बोला, “कसम से, मुझे नहीं पता। कम्बख़्त ने मेरा हाथ...”

वह अपना बाज़ू सहलाने लगा। स्टेयरिंग वाले ने फिर पुकारकर पूछा, “पागल-वागल है क्या?”

औरत बूढ़े की तरफ़ दौड़ी, जो नहर में पड़ा हाथ-पांव मार रहा था। बूढ़े के चेहरे पर ख़ून था और सिर और मुंह से पानी की धारें बह रही थीं।

हवा दरख़्तों को कभी झुकाती, कभी सीधा करती, आस-पास के मकानों की दुछत्तियों में हूकती फिर रही थी। चिनार के सूखे पत्ते उड़ रहे थे और दरख़्तों की सनसनाहट से फ़िज़ा गूंज रही थी।

फुटपाथ पर चलता हुआ एक राहगीर ठिठक कर रुक गया और पूछने लगा, “क्या मामला है?”

तगड़े आदमी की त्यौरियां चढ़ गईं। वह धमकाने के अंदाज़ में राहगीर की तरफ़ हाथ लहरा कर बोला, “जाओ जाओ, अपना काम करो जी।”

स्टेयरिंग वाले ने फिर पुकारकर कहा, “इसे छोड़ो बाबा। चलो ना, कहां अटक गए?”

बूढ़ा अब नहर के किनारे बैठा हुआ था। उसके सफ़ैद बालों से पानी टपक रहा था, पूरा बदन कीचड़ में लथ-पथ हो गया था और नथनों से ख़ून निकल रहा था। औरत उसके पहलू में ज़मीन पर बैठ गई थी और रूमाल से उसके चेहरे का ख़ून पोंछ रही थी। उसका अपना चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था।

तगड़े आदमी ने झुककर औरत का हाथ पकड़ा और उसे उठाने की कोशिश करने लगा। औरत ने ग़ज़बनाक होकर ख़ुद को छुड़ा लिया और चीख़ी, “छोड़ मुझको, बदज़ात!”

आदमी उसका बाज़ू छोड़कर अलग हट गया। उसने सहमे हुए अंदाज़ में स्टेयरिंग वाले की तरफ़ मुड़कर देखा और बेबसी के साथ कंधे उचकाए। उसके चेहरे और बदन की एक-एक जुंबिश से ज़ाहिर था कि वह बुरी तरह सिटपिटाया हुआ है।

अचानक बूढ़ा उछलकर खड़ा हो गया और औरत पर घूंसे और लातें चलाने लगा। औरत ने गर्दन झुका रखी थी और उसने ख़ुद को बूढ़े के हमलों के हवाले कर दिया था।

नहर के इस तरफ़ वाले फुटपाथ पर वह आदमी और एक बच्चा चुप-चाप खड़े यह तमाशा देख रहे थे। बूढ़ा औरत पर पिला पड़ा था और दोनों मुट्ठियों में उसके बाल जकड़े हुए अपने घुटनों और एड़ियों से उसको कूटे डाल रहा था। औरत उसी तरह घुटनों में सिर दिए ज़मीन पकड़े बैठी थी और ज़रा भी विरोध नहीं कर रही थी। हवा इसी तरह सड़क पर हूक रही थी और दरख़्तों के शोर से उसी तरह हर तरफ़ हंगामा बरपा था।

स्टेयरिंग वाला कार को बढ़ाकर क़रीब लाया और उस पर से कूद कर नीचे उतरा। उसने तैश में आकर बूढ़े को पीछे ढकेल दिया और औरत को घसीटकर उसके पंजे से छुड़ाया। वह बेहोश-सी होकर सड़क पर ढेर हो गई।

तगड़ा आदमी आगे बढ़ा। दोनों ने मिलकर औरत को ज़मीन पर से उठाया और गाड़ी की तरफ़ चले।

बूढ़ा उनके पीछे लपका। आदमी ने पलटकर उसे एक और धक्का दिया। बूढ्ढा उलटकर सड़क पर गिर गया। तगड़े आदमी ने औरत को गोद में उठाकर गाड़ी की पिछली सीट पर डाल दिया और ख़ुद भी वहीं बैठ गया। बूढ़ा लंगड़ाता और शोर मचाता हुआ गाड़ी के पीछे दौड़ा, लेकिन गाड़ी रवाना हो चुकी थी। स्टेयरिंग वाले ने गाड़ी के साइड़ मिरर में उसको देखा और बोला, “बांध कर रखने वाला है, पागल।”

उसने गाड़ी की रफ़्तार बढ़ाई और फिर बोला, “हम ना पहुंच गए होते तो बच्ची को मार ही डाला था।”

उसकी पीठ पर औरत की सिसकियों की आवाज़ बुलंद हो रही थी।

 

 

जमाल मीर सादिक़ी
जमाल मीर सादिक़ी

1933 में जन्मे जमाल (हुसैन) मीरसादिक़ी ईरानी लेखक हैं। उनका जन्म तेहरान में हुआ था और उन्होंने तेहरान यूनिवर्सिटी के साहित्य और मानव विज्ञान फैकल्टी से फ़ारसी साहित्य में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की है। उन्होंने नेशनल ओल्ड डॉक्यमेंट सेंटर में सरकारी नियोक्ताओं और कर्मचारियों के लिए एक सहयोगी,... 1933 में जन्मे जमाल (हुसैन) मीरसादिक़ी ईरानी लेखक हैं। उनका जन्म तेहरान में हुआ था और उन्होंने तेहरान यूनिवर्सिटी के साहित्य और मानव विज्ञान फैकल्टी से फ़ारसी साहित्य में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की है। उन्होंने नेशनल ओल्ड डॉक्यमेंट सेंटर में सरकारी नियोक्ताओं और कर्मचारियों के लिए एक सहयोगी, शिक्षक, पुस्तकालय कर्मचारी और एग्जाम डिजाइनर के रूप में काम किया है। इसके अलावा, उन्होंने क्रिएटिव राइटिंग लेक्चरर के रूप में भी विभिन्न नौकरियां कीं। उन्होंने दस उपन्यास, कई लघु कथाएं, एक काल्पनिक शब्दकोश लिखा है। साथ ही उन्होंने साहित्य और लघु कहानी पर कुछ शोध प्रकाशित किए हैं। उनके लेखन का अंग्रेजी, जर्मन, अर्मेनियाई, जॉर्जियाई, इतालवी, रूसी, रोमानियाई, हिब्रू, अरबी, हंगेरियन, उर्दू, हिंदी और चीनी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। वह तेहरान में रहते हैं और रचनात्मक लेखन करते हैं।