बेनकाब हुआ अल्जीरिया

बुरके और हिजाब को लेकर आज कल हिंदुस्तान में काफी बवाल चल रहे हैं। यह सब नया नहीं है। औरतों के ऊपर काबू पाने और रखने की राजनीति बहुत पुरानी है। यहां के हिंदुओं के प्रहार के सामने मुसलमान औरतें क्यों नकाब पहनती हैं या उतारती हैं, वह समझने में हमें यह लेख मदद कर सकता है। इस लेख में फ़्रांस के प्रहार के आगे अल्जीरिया की औरतों के बर्ताव को समझाया गया है। नकाब पहनना या उतारना औरतों के लिए इतना जरूरी नहीं है जितना कि वह न करना है जो कि उनके दुश्मन उनसे करवाना चाहते हैं। उसके अलावा, नकाब पहनना या उतरना एक भावुक विकल्प नहीं, बल्कि एक रणनीतिक विकल्प है।

बेनकाब हुआ अल्जीरिया

 

 

अनुवाद: अक्षत जैन

किसी भी समाज की विशिष्टता का सबसे विशेष रूप वहां के लोगों के कपड़े पहनने का ढंग होता है, जिससे मतलब है उनके पहनावे और सजने-धजने के पारंपरिक रिवाज। सबसे पहले किसी अन्य समाज के लोगों के बारे में हमें यही नज़र आता है। किसी भी पोशाक के सामान्य पैटर्न में भी ज़रूर ही सूक्ष्म अंतर उभरते हैं, जो अति-विकसित समाजों में फैशन की प्रक्रियाओं को चिह्नित करते हैं। लेकिन इस भिन्नता के बावजूद, पोशाकों में समरूपता बने रहती है। पुरुषों और महिलाओं के कपड़े बनाने और पहनने की मूल एवं विशिष्ट तकनीकों के आधार पर सभ्यता के विशाल क्षेत्र एक साथ जोड़े जा सकते हैं।

उनके पहनावे से ही समाज के अलग-अलग प्रकारों के बारे में पहली बार मालूम पड़ता है, चाहे यह लिखित विवरणों द्वारा हो, फोटोग्राफ द्वारा हो या फिर फिल्मों द्वारा। इस प्रकार, कुछ ऐसी सभ्यताएं हैं, जिनमें नेकटाई नहीं होती और कुछ में लुंगी होती है तो कुछ में टोपी नहीं होती। कपड़ों की परंपरा से ही मालूम पड़ता है कि व्यक्ति किस सांस्कृतिक समुदाय से संबंध रखता है। उदाहरण के तौर पर, अरबी देशों में पर्यटक फ़ौरन देख लेते हैं कि महिलाएं नकाब पहनती हैं। वे बहुत समय तक इस बात से अनभिज्ञ रह सकते हैं कि मुसलमान सूअर का गोश्त नहीं खाते या फिर रमज़ान के महीने में यौन संबंध नहीं बनाते, लेकिन अरबी समाज में नकाब इतनी स्थिरता के साथ मौजूद है कि उससे पूरे समाज का चरित्र-चित्रण किया जा सकता है।

अरबी मग़्रिब में नकाब ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, मोरक्को और लीबिया के राष्ट्रीय समाजों की वस्त्र परंपराओं में शामिल है। पर्यटकों और विदेशियों के लिए नकाब अल्जीरियाई समाज और उसकी महिलाओं को चिह्नित करता है।[1] दूसरी ओर, अल्जीरियाई पुरुषों के मामले में क्षेत्रीय परिवर्तन देखे जा सकते हैं: शहरों में फेज़ पहने जाते हैं और ग्रामीण इलाकों में पगड़ी एवं जीलाबा[2] पुरुषों के वस्त्रों में थोड़ी विविधता की और पसंद के हिसाब से चुनाव करने की जगह होती है। एक ही तरह के सफेद नकाब में महिलाओं को देख कर लगता है कि अल्जीरिया की सभी महिलाएं एक जैसी हैं। जाहिर ही हमारे सामने एक ऐसी पोशाक है, जिसमें किसी तरह के बदलाव या किसी विविधता की कोई आशंका नहीं है।[3]  

हाइक[4] बहुत स्पष्ट तौर से औपनिवेशिक अल्जीरियाई समाज को चिह्नित करता है। एक छोटी लड़की के आगे हिचकिचाना ज़रूर संभव है, लेकिन सारी अनिश्चितता यौवनारम्भ के समय गायब हो जाती है। नकाब के साथ चीजें स्पष्ट और सुव्यवस्थित हो जाती हैं। किसी देखने वाले की नज़रों में अल्जीरियाई महिला वह है, “जो नकाब के पीछे छुपी होती है।”

हम देखेंगे कि कैसे यह नकाब—जो कि पारंपरिक अल्जीरियाई पोशाक का हिस्सा था—एक वैभवशाली युद्ध में फसाद की जड़ बना। हम देखेंगे कि कैसे नकाब के कारण कब्ज़ाधारी बलों ने अपने सबसे शक्तिशाली और विभिन्न संसाधनों को एकत्र किया, जिसके चलते उपनिवेशित लोगों ने चौंका देने वाली जड़ता दिखाई। अगर संपूर्ण रूप से देखें तो अपने मूल्यों, दर्शन और ताकत के क्षेत्रों के साथ औपनिवेशिक समाज नकाब के प्रति समरूप प्रतिक्रिया दिखाता है। निर्णायक लड़ाई 1954 के पहले छिड़ चुकी थी, निश्चित रूप से बात करें तो 1930 के दशक की शुरुआत में। अल्जीरियाई राष्ट्र की मौलिकता का विनाश करने के लिए प्रतिबद्ध, और इन आदेशों के तहत काम करते हुए कि उन्हें किसी भी कीमत पर उस तरह के जीने के तरीकों को बर्बाद करना है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अल्जीरियाई राष्ट्र की वास्तविकता की ओर इशारा करते हैं, अल्जीरिया में फ्रेंच प्रशासन के अफसरों ने अपने प्रयास नकाब पर केंद्रित किए, जिसको उस समय अल्जीरियाई महिलाओं की हैसियत के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा था। यह धारणा आकस्मिक नहीं बनी। समाजशास्त्रियों और नृवंशविज्ञानियों के विश्लेषणों के आधार पर मूल निवासियों के मामलों के विशेषज्ञ कहलाने वालों ने और अरब ब्यूरो के प्रमुखों ने अपने काम का समायोजन किया। शुरुआती पड़ावों में, इस जाने-माने फार्मूले को पूरी तरह से अपनाया गया: “अगर महिलाओं का दिल जीत लिया जाए तो बाकी सब हासिल हो जाएगा।” नीति की यह परिभाषा समाजशास्त्रियों की “खोजों” को केवल विज्ञान की रंगत देती है।[5]

विशेषज्ञों ने अल्जीरियाई समाज के पितृवंशीय पैटर्न के नीचे मातृवंशीय मूलतत्त्व वाली संरचना का विवरण किया। पश्चिमी लोगों ने अरबी समाज को अक्सर औपचारिक समाज के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें बाहरी दिखावे को प्रमुख स्थान दिया जाता है। इस दृष्टिकोण में अस्पष्ट शक्तियों और ग्रुप के बीच मध्यस्थता करने वाली अल्जीरियाई महिलाएं मूल महत्व धारण कर लेती हैं। दृश्यमान, प्रत्यक्ष पितृसत्ता के पीछे बुनियादी मातृसत्ता के अधिक महत्वपूर्ण अस्तित्व की अभिपुष्टि की गई। अल्जीरियाई मां, दादी, भुआ, मौसी और ‘बूढ़ी महिला’ की भूमिका को ढूंढा और परिभाषित किया गया।

इस कार्य प्रणाली ने औपनिवेशिक प्रशासन को सटीक राजनीतिक सिद्धांत परिभाषित करने की सक्षमता दी: “अगर हमें अल्जीरियाई समाज की संरचना और उसके प्रतिरोध की क्षमता का विनाश करना है तो हमें सबसे पहले महिलाओं पर विजय पानी होगी; हमें उन्हें उनके नकाब के पीछे ढूंढना होगा, जहां वे अपने आपको छुपा कर रखती हैं; और उनके घरों में ढूंढना होगा, जहां पुरुष उन्हें दूसरों की नज़र से दूर रखते हैं।” इस प्रकार समाज में महिलाओं की परिस्थिति को कार्रवाई का विषय चुना गया। सत्तावादी प्रशासन ने बड़ी गंभीरता से इन महिलाओं को बचाने की ठान ली, जिनको उन्होंने अपमानित, तन्हा और बंधा हुआ पाया . . . उस प्रशासन ने महिलाओं की विशाल संभावनाओं का विवरण करते हुए यह बताया कि दुर्भाग्यवश इन महिलाओं को अल्जीरियाई पुरुषों ने निष्क्रिय, बेकार और यहां तक कि मनुष्य के गुणों से भी वंचित वस्तु में तब्दील कर दिया है। अल्जीरियाई पुरुष के बर्ताव को मध्यकालीन और बर्बर बताकर उसका दृढ़ता से खंडन किया गया। अथाह विज्ञान के द्वारा अल्जीरियाई पुरुषों की महिलाओं के प्रति “क्रूर और पिशाची” मनोदृष्टि के खिलाफ व्यापक अभियोग तैयार किया गया। अल्जीरियाई लोगों की पारिवारिक ज़िंदगी के ऊपर कब्ज़ाधारियों ने मूल्यांकनों, विकृतियों, कारणों, इकट्ठा की गई कहानियों और शिक्षाप्रद उदाहरणों का पहाड़ जमा कर दिया, और इस प्रकार उन्होंने अल्जीरियाई जनता को दोष के घेरे में कैद करने का प्रयास किया।

परस्पर सहायता सोसाइटियां और अल्जीरियाई महिलाओं के संग एकजुटता को बढ़ावा देने वाली सोसाइटियां भारी संख्या में उभर आईं। शोक सभाओं का आयोजन किया गया। “हम अल्जीरियाई पुरुष को उसके महिलाओं के प्रति किए गए व्यवहार के लिए शर्मिंदा करना चाहते हैं।” यह जोश-ख़रोश का समय था, जिसमें घुसपैठ की एक पूरी तकनीक को लागू किया गया, जिसके चलते सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ता और महिलाएं चैरिटी करने के नाम पर अरबी घरों और मोहल्लों पर टूट पड़े।

गरीब और भूखी महिलाओं को सबसे पहले घेरा गया। सूजी के हर किलो के साथ महिलाओं को नकाब और बंदिश के खिलाफ पट्टी पढ़ाई गई। आक्रोश पैदा करने के बाद व्यावहारिक सलाह दी गई। अल्जीरियाई महिलाओं को अपनी स्थिति सुधारने में “सक्रिय और मुख्य भूमिका” निभाने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्हें सदियों पुरानी अधीनता को “ना” कहने के लिए प्रोत्साहित किया गया। जिस विशाल भूमिका को निभाने के लिए उन्हें बुलाया जा रहा था, वह उन्हें ठीक से समझाई गई। औपनिवेशिक शासन ने इस लड़ाई में बड़ी रकम निवेश की। एक बार यह मान लिया गया कि महिलाएं अल्जीरियाई समाज की धुरी के रूप में काम करती हैं, तो उसके बाद उन पर नियंत्रण पाने के लिए सारे पैंतरे अपनाए गए। यह भी मान लिया गया कि जब तक महिलाएं बदलने के लिए राज़ी नहीं होतीं, तब तक अल्जीरियाई पुरुष भी नहीं बदलेंगे और वे कब्ज़ाधारी द्वारा सांस्कृतिक विनाश के उठाए गए कामों का और फ्रेंच समाज में उनको मिलाने के प्रयासों का विरोध करेंगे। औपनिवेशिक प्रोग्राम में अल्जीरियाई पुरुषों को बदलने का ऐतिहासिक मिशन महिलाओं को दिया गया। महिलाओं का परिवर्तन करना, उन्हें विदेशी मूल्यों की तरफ खींच लाना, उन्हें उनके दिए गए दर्जे से आज़ाद करना ही पुरुषों के ऊपर असली शक्ति हासिल करना था और साथ ही अल्जीरियाई संस्कृति का विनाश करने का व्यावहारिक और प्रभावी तरीका भी था।

आज 1959 में भी “बेनकाब हुई महिलाओं की मदद और शरण के साथ” अल्जीरियाई समाज को पूर्ण तरह से पालतू बनाने का सपना औपनिवेशिक अधिकारियों को परेशान कर रहा है।[6]

अल्जीरियाई पुरुष अपने यूरोपीय भाइयों की निंदा का निशाना बने हुए हैं, या और औपचारिक रूप में कहें तो अपने यूरोपीय शासकों की। ऐसा एक भी यूरोपीय कर्मचारी नहीं है, जो साइट, दुकान या ऑफिस में काम करते वक्त अपने अल्जीरियाई साथी से आज नहीं तो कल यह आनुष्ठानिक सवाल नहीं उठाता: “क्या तुम्हारी पत्नी नकाब पहनती है? तुम अपनी पत्नी को पिक्चर दिखाने, खाना खिलाने या किसी और तरह के मनोरंजन के लिए बाहर क्यों नहीं लेकर जाया करते?”

यूरोपीय बॉस अपने आपको इस कपटी सवाल या यदाकदा निमंत्रण तक सीमित नहीं रखते। वे “इंडियन चालाकी” का इस्तेमाल करके अल्जीरियाई पुरुष को घेरते हैं और उसे कठिन फैसले लेने पर मजबूर करते हैं। किसी छुट्टी के संबंध में—जैसे क्रिसमस या न्यू ईयर या फिर कंपनी का ही कोई सामाजिक अवसर—बॉस अल्जीरियाई कर्मचारी और उसकी पत्नी दोनों को आमंत्रित करते हैं। यह निमंत्रण सामूहिक नहीं होता। हर अल्जीरियाई पुरुष को डायरेक्टर के ऑफिस में अलग से बुलाकर “अपने छोटे से परिवार” के साथ आने का निमंत्रण दिया जाता है। “हमारी कंपनी एक बड़ा परिवार है तो कई लोगों का अपनी पत्नियों के बगैर आना अजीब लगेगा, समझ रहे हो?” इस औपचारिक बुलावे के सामने अल्जीरियाई पुरुष को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अगर वह अपनी पत्नी के साथ आता है तो वो हार मानने जैसा होगा, क्योंकि उसका मतलब होगा “उसकी पत्नी की वेश्यावृत्ति करना,” उसे दूसरों के सामने प्रदर्शित करना, विरोध करने के एक तरीके को गंवाना। दूसरी ओर, अकेले जाने का मतलब होगा, अपने बॉस को खुश करने से इनकार करना; जिसका मतलब होगा नौकरी से वंचित होने का जोखिम उठाना। यह अल्जीरियाई को बेनकाब करने हेतु यूरोपी द्वारा बिछाया गया जाल है, वह चाहता है की अल्जीरियाई या तो कबूल करे: “मेरी पत्नी नकाब पहनती है और वह बाहर नहीं आएगी” या फिर वह अपने लोगों को धोखा दे: “तुम्हें उसे देखना है, लो देख लो।” इस बेतरतीब तौर पर चुने हुए मामले का अध्ययन इन संबंधों के क्रूर और भ्रष्ट चरित्र को दिखलाएगा। इसके जरिये हम सूक्ष्म तरीके से औपनिवेशिक स्थिति की मानसिक त्रासदी को देख सकेंगे। हम देख सकेंगे कि किस तरह से दो सिस्टम एक दूसरे से प्रत्यक्ष तौर पर भिड़ते हैं—एक तरफ अपने विशेष तरीकों से जीने वाला उपनिवेशित समाज और दूसरी तरफ अनेक सिरों वाला औपनिवेशिक सांप।  

अल्जीरियाई बुद्धिजीवियों के साथ यह आक्रमणशीलता पूरी तीव्रता के साथ निकलकर आती है। फेलाह को—“जो कठोर रूप से संरचित समूह का अप्रतिरोधी गुलाम है”—औपनिवेशिक विजेता एक प्रकार के लाड़ के साथ देखते हैं।[7] दूसरी ओर, वकील और डॉक्टर को बेहद निंदक नज़रों के साथ देखा जाता है। अपनी पत्नियों को अर्द्ध गुलामी में रखने वाले इन बुद्धिजीवियों के ऊपर उंगली उठाई जाती है और लांछन लगाए जाते हैं। अल्जीरियाई महिला की हीन स्थिति को देख पूरा औपनिवेशिक समाज आग बबूला हो उठता है। उसके सदस्य इन बदकिस्मत महिलाओं के लिए चिंता ज़ाहिर करते हैं, जिनको दीवारों के पीछे कैद करके रखा जाता है और जो सिर्फ़ बच्चे पैदा करने का काम कर सकती हैं।

अल्जीरियाई बुद्धिजीवी के सामने नस्लवादी तर्क विशेष तत्परता के साथ निकल कर आते हैं। लोग कहते हैं कि डॉक्टर होने के बावजूद वह अरबी ही रहेगा। “प्रकृति से कोई नहीं भाग सकता।” इस प्रकार की नस्लवादी पूर्वधारणा के अनगिनत उदाहरण दिए जा सकते हैं। यह साफ है कि अल्जीरियाई बुद्धिजीवी को प्रबुद्ध पश्चिमी आदतों के विस्तार को सीमित करने के लिए टोका जा रहा है—क्योंकि वह उपनिवेशित समाज की क्रांति में सक्रिय एजेंट की भूमिका नहीं निभा रहा है, क्योंकि वह अपनी पत्नी को अधिक योग्य और अर्थपूर्ण जीवन के लाभ का फायदा उठाने नहीं दे रहा है . . . बड़े शहरों में किसी यूरोपीय को जहरीले तरीके से यह कबूल करते हुए सुनना आम है कि बीस साल किसी अल्जीरियाई को जानने के बाद भी उसने कभी उसकी पत्नी को नहीं देखा। अधिक अस्पष्ट, लेकिन अत्यधिक खुलासा करने वाली आशंका के स्तर पर हम उन्हें कड़वाहट के साथ यह बोलते पाते हैं, “हमारा सारा काम व्यर्थ है . . . इस्लाम अपने शिकार को जकड़े हुए है।” 

अल्जीरियाई को प्रदर्शित करने की यह पद्धति—जिसमें वह ऐसा शिकार है जिसके लिए इस्लाम और फ़्रांस के रूप में पश्चिमी सभ्यता समान उग्रता के साथ युद्ध कर रहे हैं—कब्ज़ाधारी के पूरे तरीके, दृष्टिकोण और नीति का खुलासा करती है। यह अभिव्यक्ति संकेत देती है कि अपनी विफलताओं से गुस्सा होकर कब्ज़ाधारी उस मूल्य प्रणाली को अपमानजनक और सरल रूप में पेश करता है, जिससे उपनिवेशित व्यक्ति अपने खिलाफ किए गए अनगिनत अपराधों का विरोध कर रहा होता है। जो असल में एक विशिष्ट पहचान के होने का दावा है और राष्ट्रीय अस्तित्व के कुछ चिथड़ों को बचाने का प्रयास है, उसे धार्मिक, जादुई और कट्टर व्यवहार कह कर खारिज कर दिया जाता है।

कब्ज़ाधारी की यह अस्वीकृति परिस्थितियों के या औपनिवेशिक स्थिति के प्रकार के हिसाब से विभिन्न रूप लेती है। पिछले बीस सालों में इस तरह के व्यवहार का काफी गहन अध्ययन हो चुका है; लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इसके जो निष्कर्ष निकले हैं, वे पूरी तरह से वैध हैं। पिछड़े हुए देशों के बुनियादी शिक्षा के विशेषज्ञों या मंद-समाजों की उन्नति के तकनीशियनों के लिए उपनिवेशित समाज में किसी एक तत्व पर अधिमानतः रोशनी डालने के प्रयासों के बंजर और हानिकारक स्वभाव को समझना अहम है। नव-स्वतंत्र राष्ट्र में भी संपूर्ण संस्कृति के किसी इस या उस हिस्से पर विशेष तौर से हमला करना पूरे कार्य को खतरे में डाल सकता है (और अभी हम मूल निवासी के मानसिक संतुलन की भी बात नहीं कर रहे हैं)। ज्यादा सटीक तौर पर, किसी और सांस्कृतिक ढांचे में मढ़ने की प्रक्रिया को समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि किसी भी संस्कृति की एक भी प्रथा को बिना उस संस्कृति के सबसे गहरे मूल्यों और स्थिर आदर्शों का पुनर्मूल्यांकन किए नहीं बदला जा सकता। औपनिवेशिक स्थिति में नए सांस्कृतिक ढांचे में मढ़ने की बात करना भी मूर्खता है। उपनिवेशित लोगों में देखे गए विरोध को समझने के लिए हमें उसे उनके औपनिवेशिक संस्कृति में मिलने से इनकार करने से जोड़ना होगा। हमें देखना होगा कि वे अपनी सांस्कृतिक, और इस प्रकार अपनी राष्ट्रीय मौलिकता बरकरार रखना चाह रहे हैं।

अपना अधिकतर ध्यान अल्जीरियाई महिलाओं द्वारा पहने गए नकाब पर लगा कर कब्ज़ाधारी बलों को कुछ नतीजे तो प्राप्त होने ही थे। कई-कई जगहों पर ऐसा हुआ भी होगा कि कोई महिला “बचा ली” गई होगी, और प्रतीकात्मक तौर पर बेनकाब हो गई होगी।

जिन महिलाओं पर यह परीक्षण किए गए, वे अपने नंगे चेहरे और आज़ाद शरीरों के साथ अल्जीरिया के यूरोपीय समाज में सुदृढ़ मुद्रा की तरह परिचालित होने लगीं। ये महिलाएं नएपन के माहौल से घिर गईं। अति-उत्साहित और पूरी तरह से अपनी जीत में मदहोश हुए यूरोपीय रूपांतरण के मनोविज्ञान के बारे में बातें हांकने लगे। और सच में, यूरोपीय समाज में इस रूपांतरण के एजेंटों को बहुत सम्मान मिला। लोग उनको ईर्ष्या की नज़रों से देखने लगे। प्रशासन का कृपालु ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ।

प्रत्येक सफलता के बाद, अधिकारियों का यह विश्वास मजबूत हुआ कि अल्जीरियाई महिलाएं अपने समाज में पश्चिमी प्रवेश का समर्थन करेंगी। हर ठुकराया गया नकाब औपनिवेशिकों की आंखों के सामने उन क्षितिजों का खुलासा करता जो अब तक उनके लिए प्रतिबंधित थे और एक-एक करके उनके सामने अल्जीरिया के नंगे हुए शरीर पर प्रकाश डालता। कब्ज़ाधारी की आक्रामकता, और इसलिए उसकी उम्मीदें, हर बार एक नया चेहरा बेनकाब होने पर दस गुना बढ़ जाती। हर नई अल्जीरियाई महिला की बेनकाबी कब्ज़ाधारी के लिए घोषणा समान थी कि अल्जीरियाई समाज की सुरक्षा प्रणाली टूट रही है और वे उसके अंदर घुसपैठ कर पा रहे हैं। हर नकाब जो गिरा, हर शरीर जो हाइक के पारंपरिक आलिंगन से आज़ाद हुआ, हर चेहरा जिसने खुद को कब्ज़ाधारी की निर्भीक और अधीर दृष्टि के लिए प्रस्तावित किया, इस तथ्य की नकारात्मक अभिव्यक्ति था कि अल्जीरिया खुद को नकारना शुरू कर रहा है और उपनिवेशी का बलात्कार स्वीकार कर रहा है। हर ठुकराए नकाब के साथ अल्जीरियाई समाज यह व्यक्त करता दिख रहा था कि वह अपने मालिक के स्कूल जाने के लिए तैयार है और कब्ज़ाधारी के निर्देश एवं संरक्षण में अपनी आदतें बदलने का निर्णय ले चुका है।

हम देख चुके हैं कि औपनिवेशिक समाज और प्रशासन नकाब को किस नज़र से देखता है, और हमने संस्थागत रूप से इससे लड़ने के लिए उपनिवेशित समाज द्वारा किए गए प्रयासों की गतिशीलता का एवं विकसित किए गए प्रतिरोध का खाका खींचा है। निजी यूरोपीय व्यक्ति के स्तर पर, नकाब के अस्तित्व से उत्पन्न होने वाली विभिन्न प्रतिक्रियाओं का अनुसरण करना दिलचस्प हो सकता है। ऐसा करने से वह मूल तरीका प्रकट होता है, जिससे अल्जीरियाई महिला उपस्थित या अनुपस्थित रहती है।

उस यूरोपीय के लिए जो रूपांतरण के कार्य में सीधे तौर पर शामिल नहीं है, कौन-सी प्रतिक्रियाएं दर्ज की जा सकती हैं?

प्रमुख मनोवृत्ति कामुकता से बुरी तरह से प्रभावित रूमानी विदेशीवाद प्रतीत होती है।

और नकाब सबसे पहले एक सुंदरी को छिपाता है।

इस मानसिक स्थिति का प्रत्यक्ष उदाहरण हमें अल्जीरिया का दौरा कर रहे एक यूरोपीय के लेखन से मिलता है, जिसको अपने पेशे के अभ्यास में (वह वकील था) कई अल्जीरियाई महिलाओं को बिना नकाब के देखने का मौका मिला। उसने अल्जीरिया के पुरुषों के बारे में कहा कि ये लोग बहुत सारी अनोखी सुंदरियों को छिपाने के दोषी हैं। वह इस नतीजे पर पहुंचा कि जिन लोगों के पास ऐसे इनाम हैं, प्रकृति की ऐसी उत्तम रचनाएं हैं, उनका फर्ज बनता है कि वे उन्हें दिखाएं, उनका प्रदर्शन करें। अगर बुरे से बुरा हुआ तो उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर करना संभव होना चाहिए।

किसी ट्राम या ट्रेन में खुले हुए बाल, माथे या “अत्यधिक सुंदर” चेहरे की एक झलक यूरोपियों के इस अतार्किक दृढ़ विश्वास को बनाए रखने और उसकी पुष्टि करने के लिए काफी है कि अल्जीरियाई महिलाएं सभी महिलाओं में रानियों के समान हैं। 

लेकिन यूरोपियों में अल्जीरियाई महिलाओं के प्रति एक तरह की आक्रामकता का खिंचाव है, एक प्रकार की हिंसा का तनाव है। एक महिला को बेनकाब करना उसकी सुंदरता को उजागर करना है; उसके रहस्य को खोलना है, उसके प्रतिरोध को तोड़ना है, उसे कामुकता के लिए उपलब्ध कराना है। चेहरा छिपाना राज़ छिपाने जैसा है; यह एक रहस्य की दुनिया को जन्म देता है, एक छिपी हुई दुनिया को। भ्रमित तरीके से यूरोपीय अल्जीरियाई महिला के साथ अपने संबंध को अत्यधिक जटिल स्तर पर अनुभव करता है। इसमें उस महिला को अपनी पहुंच में लाने की इच्छाशक्ति है, उसे एक ऐसी वस्तु बनाने की इच्छा है जिसके ऊपर कब्ज़ा करना संभव हो।

जो महिला बिना दिखे देख सकती है, वह उपनिवेशी को परेशान करती है। उस संबंध में कोई पारस्परिकता नहीं है। वह उसे खुद को सौंपती नहीं है, और न ही खुद को समर्पित और पेश करती है। अल्जीरियाई पुरुष का अल्जीरियाई महिला की तरफ जो नज़रिया है, वह मोटे तौर पर साफ है। वह उसे देखता ही नहीं है। यहां तक कि स्त्री को न समझने एवं महिलाओं पर ध्यान न देने का उसका स्थायी इरादा है। इसलिए अल्जीरियाई पुरुष और अल्जीरियाई महिला का सड़क पर सामना यौनाचार के दायरे में नहीं आता, वहां न नज़रों का मिलाना-चुराना है, न चाल-चलन में बदलाव, न शारीरिक टेंशन, न ही कोई उथल-पुथल के संकेत, जिनके बारे में हमें इस तरह के सामनों के मनोविज्ञान से पता चला है।

अल्जीरियाई महिला का सामना करने पर यूरोपीय उसे देखना चाहता है। वह अपनी अनुभूति की इस सीमा के सामने आक्रामक तरीके से प्रतिक्रिया करता है। यहां भी हताशा और आक्रामकता साथ-साथ विकसित होती हैं। यह आक्रामकता हमें सबसे पहले यूरोपीय के सपनों में उसके संरचनात्मक रूप से उभय-भावी रवैये में देखने को मिलती है, चाहे वह सामान्य यूरोपीय हो या न्यूरोपैथोलॉजिकल रोगों से पीड़ित हो।[8]

मिसाल के तौर पर, सुबह के आख़िर में किए गए चिकित्सीय परामर्श में यूरोपीय डॉक्टरों को अपनी निराशा व्यक्त करते हुए सुनना आम बात है। जो महिलाएं उनके सामने नकाब उतारती हैं, वे साधारण होती हैं; उनके बारे में कुछ भी रहस्यमय नहीं होता। उन्हें देखकर आश्चर्य होता है कि वे क्या छिपा रही हैं।

यूरोपीय महिलाएं इस संघर्ष को अधिक सीधे तरीके से सुलझाती हैं। वे स्पष्ट रूप से दावा करती हैं कि सुंदरता को कोई नहीं छिपाता। वे इस अजीब रिवाज में खामियों को छिपाने का एक “पूरी तरह से स्त्रैण” इरादा खोज निकालती हैं। वे यूरोपीय महिला की रणनीति—जिसका उद्देश्य सुधारना, अलंकृत करना, सामने लाना है (सौंदर्य उपचार, हेयर स्टाइल, फैशन)—की तुलना अल्जीरियाई महिला की रणनीति—जो पर्दा करना, छिपना, पुरुष के संदेह और इच्छा को बढ़ाना पसंद करती है—से करती हैं। अलग स्तर पर यह दावा किया जाता है कि उनका इरादा ग्राहक को गुमराह करना है, और जिस लपेटन में “माल” प्रस्तुत किया जाता है, वह वास्तव में उसकी प्रकृति या उसके मूल्य को नहीं बदलता।

यूरोपीय लोगों के सपनों की सामग्री अन्य विशेष विषयों को सामने लाती है। ज्यां पाल सार्त्र ने अपने निबंध रिफ्लेक्शन्स ऑन द जूइश क्वेशन (यहूदियों के सवाल पर मेरे विचार) में लिखा है कि अचेतन के स्तर पर यहूदी महिला के इर्द-गिर्द हमेशा बलात्कार की आभा होती है।

फ़्रांस के अल्जीरिया पर विजय के इतिहास ने—जिसमें सैनिकों द्वारा गांवों पर कब्ज़ा करना, संपत्ति की ज़ब्ती, महिलाओं के साथ बलात्कार और देश की लूट शामिल हैं—उसी तरह की गत्यात्मक छवि को जन्म दिया है और परिपक्व किया है। कब्ज़ाधारी की मानसिक परत के स्तर पर, विजयी की परपीड़न-रति एवं कामुकता को दी गई यह स्वतंत्रता ऐसे उपजाऊ अंतराल और दोष उत्पन्न करती है, जिनके माध्यम से स्वप्न जैसे व्यवहार के रूप और, कुछ अवसरों पर, आपराधिक कृत्य उभर सकते हैं।

इस प्रकार, यूरोपीय के सपने में अल्जीरियाई महिला के बलात्कार के पहले हमेशा नकाब उतारा जाता है। हमें यहां दोहरा बलात्कार देखने को मिलता है। इसी तरह, महिला का आचरण कभी भी सहमति या स्वीकृति का नहीं होता, बल्कि नितांत दीनता का होता है।

जब भी कामुक सामग्री वाले सपनों में कोई यूरोपीय किसी अल्जीरियाई महिला से मिलता है, उपनिवेशित समाज के साथ उसके संबंधों की विशिष्ट विशेषताएं खुद-ब-खुद प्रकट होती हैं। ये सपने न तो उस कामुक धरातल पर विकसित होते हैं, न ही उसी गति से, जैसे कि वे सपने जिनमें एक यूरोपीय महिला शामिल होती है।

एक अल्जीरियाई महिला के साथ कोई प्रगतिशील विजय नहीं है, कोई पारस्परिक रहस्योद्घाटन नहीं है। सीधे तौर पर अधिकतम हिंसा के साथ कब्ज़ा, बलात्कार, निकट-हत्या है। यह कृत्य एक सामान्य यूरोपीय में भी अर्ध-विक्षिप्त क्रूरता और परपीड़न का रूप धारण करता है। अल्जीरियाई महिला का डरा हुआ रवैया वास्तव में इस क्रूरता और परपीड़न को और उजागर करता है। सपने में पीड़ित महिला चिल्लाती है, हिरणी की तरह संघर्ष करती है और जैसे ही वह कमजोर और बेहोश हो जाती है, उसका बेरहमी से बलात्कार कर दिया जाता है।

इसी तरह इस स्वप्न की सामग्री की एक विशेषता की ओर भी ध्यान आकर्षित किया जाना चाहिए, जो हमारे लिए महत्वपूर्ण प्रतीत होती है। यूरोपीय कभी अकेली अल्जीरियाई महिला के बारे में सपना नहीं देखता। उन दुर्लभ अवसरों पर जब मुलाकात एक बंधनकारी रिश्ता बन जाती है, जिसे एक जोड़े के रूप में माना जा सकता है, महिला हताश होकर भाग जाती है और पुरुष को अनिवार्य रूप से “महिलाओं के बीच” खींचकर ले जाती है। यूरोपीय हमेशा महिलाओं के समूह का, महिलाओं से भरे मैदान का सपना देखते हैं, जो कि जनानखाने या हरम की ओर इशारा करता है—ऐसे आकर्षक विषय-वस्तु जो उनके अचेतन में गहराई से निहित हैं।

यूरोपीय की आक्रामकता अल्जीरियाई महिला की नैतिकता के चिंतन में भी इसी तरह व्यक्त होगी। उसकी शर्म और संयमशीलता विरोधाभासी मनोविज्ञान के सामान्य नियमों के अनुसार इसके विपरीत में बदल जाती है, और इस प्रकार अल्जीरियाई महिला पाखंडी, विकृत और यहां तक कि हद से ज्यादा कामुकता से भरी बन जाती है।

हमने देखा है कि व्यक्तियों के स्तर पर अल्जीरियाई समाज की संरचना को नष्ट करने की औपनिवेशिक रणनीति ने बहुत तेजी से अल्जीरियाई महिला को प्रमुख स्थान दिया। उपनिवेशिकों की निर्दयता और लड़ने के तरीकों के कारण उपनिवेशितों के व्यवहार में प्रतिक्रियावादी रूपों को जन्म लेना ही था। कब्ज़ाधारी की हिंसा के सामने उपनिवेशितों ने खुद को अपनी मूल संस्कृति के पूर्व निष्क्रिय तत्व का सैद्धांतिक रूप से बचाव करते हुए पाया। अल्जीरियाई महिला को बेनकाब करने की उपनिवेशिकों की सनक ने और उनके नकाब की लड़ाई को किसी भी कीमत पर जीतने की जिद ने अल्जीरिया के मूल निवासियों में कट्टर प्रतिरोध को भड़काया। हाइक के संबंध में उपनिवेशिकों के जानबूझकर आक्रामक इरादों ने अल्जीरियाई संस्कृति के इस मृत तत्व को नया जीवन दिया—वह मृत इसीलिए था, क्योंकि वह स्थिर हो गया था, उसके रूप या रंग में कोई प्रगतिशील परिवर्तन नहीं हो रहा था। हम यहां उपनिवेशीकरण के मनोविज्ञान के एक नियम को देख सकते हैं। प्रारंभिक चरण में कब्ज़ाधारी की कार्रवाई एवं योजनाएं ही उन प्रतिरोध के केंद्रों का निर्धारण करती हैं, जिनके चारों ओर लोगों की जीवित रहने की इच्छा संगठित होती है।

गोरे लोग नीग्रो का निर्माण करता है। लेकिन नीग्रो खुद नेग्रिट्यूड [9] का निर्माण करता है। नकाब के खिलाफ उपनिवेशिकों के आक्रमण का सामना उपनिवेशित नकाब को अधिक ऊंचा दर्जा देकर करते हैं। समरस संपूर्णता में जो एक अविभाज्य तत्व था, वह एक वर्जित चरित्र प्राप्त कर लेता है, और नकाब के प्रति किसी अल्जीरियाई महिला के रवैये का संबंध विदेशी कब्जे के प्रति उसके रवैये का प्रतिनिधित्व करने लगता है। उपनिवेशिकों द्वारा अपनी परंपराओं के इस या उस पहलू पर दिए गए जोर के सामने, उपनिवेशित बहुत हिंसक प्रतिक्रिया करता है। इस पहलू को बदलने पर दिया गया ध्यान, वह भावना जो विजेता अपने शैक्षणिक कार्य में डालता है, उसकी प्रार्थनाएं, उसकी धमकियां, संस्कृति के इस विशेष तत्व के चारों ओर प्रतिरोधों का एक पूरा ब्रह्मांड बुनती हैं। इस विशेष तत्व पर कब्ज़ाधारी के खिलाफ विरोध करने का मतलब उसे एक शानदार हार देना है; अधिक प्रमुख तौर पर इसका मतलब "सह-अस्तित्व" को संघर्ष और अव्यक्त युद्ध के रूप में बनाए रखना है। इसका मतलब है सशस्त्र संघर्ष विराम का माहौल बनाए रखना।

आज़ादी का संघर्ष शुरू होने पर नकाब के संबंध में अल्जीरियाई महिला और व्यापक रूप से पूरे अल्जीरियाई समाज के रवैये को महत्वपूर्ण संशोधनों से गुजरना पड़ा। ये नवाचार इस तथ्य के कारण अधिक विशेष रुचि रखते हैं कि इन्हें किसी भी समय संघर्ष के कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया था। क्रांति के सिद्धांत और युद्ध की रणनीति ने कभी भी नकाब के संबंध में व्यवहार के रूपों में संशोधन की आवश्यकता नहीं बताई। हम अब भी यह पुष्टि करने में सक्षम हैं कि जब अल्जीरिया अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर लेगा तो ऐसे प्रश्न नहीं उठाए जाएंगे, क्योंकि क्रांति के अभ्यास में लोगों ने यह समझ लिया है कि समस्याओं का समाधान उसी आंदोलन में होता है, जो उन्हें जगाता है।

1955 तक युद्ध विशेष रूप से पुरुषों द्वारा लड़ा जाता था। इस लड़ाई की क्रांतिकारी विशेषताओं एवं पूर्ण गोपनीयता की आवश्यकताओं ने मिलिटेन्टस को अपनी महिलाओं को पूर्ण अज्ञानता में रखने के लिए बाध्य किया। जैसे-जैसे दुश्मन ने धीरे-धीरे खुद को युद्ध के तरीकों में ढाला, नई कठिनाइयां सामने आने लगीं, जिनके लिए नए समाधानों की आवश्यकता थी। एक तरह से, युद्ध की पूरी अवधारणा को ही बदलना पड़ा। कब्ज़ाधारी की हिंसा, क्रूरता और राष्ट्रीय क्षेत्र के प्रति उसके पागलों जैसे लगाव के कारण विद्रोह के लीडरों को युद्ध के नए रूपों का इस्तेमाल करना पड़ा। धीरे-धीरे संपूर्ण युद्ध की जरूरत महसूस होने लगी। लेकिन महिलाओं को केवल पूरे देश को एकजुट करने की इच्छा के ही कारण शामिल नहीं किया गया। युद्ध में महिलाओं का प्रवेश युद्ध की क्रांतिकारी प्रकृति के अनुरूप हुआ। दूसरे शब्दों में, महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही त्याग की भावना दिखानी पड़ी। इसलिए उन पर वही भरोसा रखना जरूरी था, जो कई बार जेल की सजा काट चुके अनुभवी मिलिटेन्टस पर रखा जा रहा था। इसलिए महिलाओं से पूरी तरह से असाधारण नैतिक उत्थान और चरित्र की ताकत की आवश्यकता थी। झिझक की कोई कमी नहीं थी। क्रांतिकारी पहियों ने ऐसे ही आयाम धारण कर लिए थे; तंत्र एक निश्चित दर पर चल रहा था। मशीन का जटिल होना जरूरी था; दूसरे शब्दों में इसकी दक्षता को प्रभावित किए बिना इसके नेटवर्क का विस्तार करने की आवश्यकता थी। महिलाओं को पुरुषों की जगह नहीं लेनी थी, बल्कि उन्हें नए कार्य सक्षमता से पूरे करने थे। 

महिलाएं पहाड़ों में पड़ाव के दौरान या किसी घाव के बाद स्वस्थ होने में या जेबेल[10] में टाइफाइड के मामलों में गुरिल्ला योद्धाओं की मदद करती थीं। लेकिन महिलाओं को आवश्यक तत्व के रूप में शामिल करने का निर्णय, क्रांति को इस या उस क्षेत्र में उनकी उपस्थिति और कार्रवाई पर निर्भर करना, जाहिर तौर पर पूरी तरह से क्रांतिकारी कदम था। क्रांति के किसी भी बिंदु को उनकी गतिविधियों के ऊपर निर्भर बनाना एक महत्वपूर्ण विकल्प था।

ऐसा निर्णय कई कारणों से कठिन बन गया था। निर्विवाद प्रभुत्व की पूरी अवधि के दौरान, हमने देखा कि अल्जीरियाई समाज और विशेष रूप से महिलाओं में कब्ज़ाधारियों से दूर भागने की प्रवृत्ति थी। महिलाओं को बेनकाब करने के प्रयास में कब्ज़ाधारी की दृढ़ता और सांस्कृतिक विनाश के काम में महिलाओं को सहयोगी बनाने के उनके प्रयास से अल्जीरियाई समाज में व्यवहार के पारंपरिक रूप और मजबूत हो गए। उपनिवेशी की हानिकारक कार्रवाई के प्रतिरोध की रणनीति में अपनाए गए इन मौलिक तौर से सकारात्मक रूपों का स्वाभाविक तौर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। महिला, विशेषकर शहरी महिला को सहजता और आश्वासन की कमी का सामना करना पड़ा। बंदिश की आदी होने के कारण उसके शरीर में रास्तों, खुले फुटपाथों, घरों, बचते-भिड़ते लोगों के असीमित क्षितिज के सामने सामान्य गतिशीलता नहीं थी। अपने ज्ञात, वर्गीकृत, विनियमित दिनचर्या के साथ यह अपेक्षाकृत बंधा हुआ जीवन किसी भी तात्कालिक क्रांति को एक संशयात्मक प्रस्ताव बनाता प्रतीत होता था। राजनीतिक नेता इन समस्याओं से भली-भांति परिचित थे और उनकी झिझक उनकी जिम्मेदारियों के प्रति उनकी जागरूकता को व्यक्त करती थी। उनके लिए इस उपाय की सफलता पर संदेह करना सही था। क्या ऐसे निर्णय से क्रांति की प्रगति के लिए विनाशकारी परिणाम नहीं होंगे?

इस संदेह में एक और महत्वपूर्ण तत्व भी जुड़ गया। लीडर महिलाओं को शामिल करने में इसलिए भी झिझक रहे थे, क्योंकि वे उपनिवेशी की क्रूरता से भली-भांति परिचित थे। क्रांति के लीडरान को दुश्मन की आपराधिक क्षमताओं के बारे में कोई भ्रम नहीं था। उनमें से लगभग सभी कैदखानों में रह चुके थे, या फिर उनकी मुलाकात फ्रांसीसी न्यायिक पुलिस के शिविरों या कोठरियों से निकले लोगों से हो चुकी थी। उन सबको यह अच्छे से पता था कि गिरफ्तार की गई हर अल्जीरियाई महिला को टॉर्चर करके मार दिया जाएगा। खुद को इस रास्ते पर चलने के लिए प्रतिबद्ध करना और टॉर्चर की मौत झेलने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करना अपेक्षाकृत आसान होता है। मसला तब थोड़ा और मुश्किल हो जाता है जब ऐसे किसी व्यक्ति को शामिल करना हो जो स्पष्ट रूप से निश्चित मृत्यु का जोखिम उठा रहा हो। लेकिन यह निर्णय लेना जरूरी था कि महिलाएं क्रांति में हिस्सा लेंगी या नहीं; आंतरिक विरोध भारी होता गया, और प्रत्येक निर्णय ने वही झिझक पैदा की और उसी निराशा को जन्म दिया।

लोकप्रिय लड़ाई के इस नए रूप की असाधारण सफलता के सामने पर्यवेक्षकों ने अल्जीरियाई महिलाओं की कार्रवाई की तुलना कुछ महिला प्रतिरोध सेनानियों या यहां तक ​​कि विशेष सेवाओं के गुप्त एजेंटों से भी की है। यह लगातार याद रखने की जरूरत है कि प्रतिबद्ध अल्जीरियाई महिला “सड़क पर अकेली महिला” के रूप में अपनी भूमिका और अपने क्रांतिकारी मिशन दोनों को सहज रूप से सीखती है। अल्जीरियाई महिला कोई गुप्त एजेंट नहीं है। बिना ट्रेनिंग के, बिना ब्रीफिंग के, बिना किसी हो-हल्ले के वह अपने हैंडबैग में तीन हथगोले या अपनी चोली में किसी क्षेत्र की गतिविधि रिपोर्ट के साथ सड़क पर निकल जाती है। उनमें ऐसी भूमिका निभाने की कोई अनुभूति नहीं है, जिसके बारे में उन्होंने कई बार उपन्यासों में पढ़ा हो, या चलचित्रों में देखा हो। उनकी कार्रवाई में खेल या नकल का एक क्षण भी नहीं है, जो हमें किसी पश्चिमी महिला में हमेशा देखने को मिलता है।

हम यहां कहानियों या कल्पनाओं में हजार बार बनाए गए किसी चरित्र को सामने नहीं ला रहे हैं। यह प्रारंभिक निर्देश के बिना शुद्ध अवस्था में एक प्रामाणिक जन्म है। नकल करने के लिए कोई चरित्र नहीं है। इसके विपरीत, स्त्री और क्रांतिकारी के बीच एक गहन नाटकीयता और निरंतरता है। इसके ज़रिये अल्जीरियाई महिला सीधे त्रासदी के स्तर पर पहुंचती है।[11]

एफ.एल.एन. के दस्तों की संख्या में वृद्धि, नये कार्यों की श्रृंखला—फाइनेन्स, इंटेलिजेंस, काउंटर-इंटेलिजेंस, राजनीतिक प्रशिक्षण—एक सक्रिय दस्ते के पीछे उसके जैसे तीन या चार ऐसे दस्ते रिज़र्व में रखने की व्यवस्था करने की आवश्यकता, जो कि फ्रन्ट पर काम कर रहे दस्ते को कुछ होने की खबर मिलते ही सक्रिय होने तैयार हों, इन सब जरूरतों ने क्रांति के लीडरों को व्यक्तिगत कार्यों को कराने के लिए नए रास्ते खोजने के लिए बाध्य किया। लीडरों के बीच बैठकों की अंतिम श्रृंखला के बाद, और खास तौर से क्रांति के सामने आने वाली रोज़ाना की समस्याओं की तात्कालिकता को देखते हुए महिलाओं को राष्ट्रीय संघर्ष में ठोस रूप से शामिल करने का निर्णय लिया गया।

इस निर्णय के क्रांतिकारी चरित्र पर एक बार फिर जोर देना जरूरी है। शुरुआत में शादीशुदा महिलाओं से ही संपर्क किया गया। लेकिन जल्द ही इन प्रतिबंधों को छोड़ दिया गया। सबसे पहले उन विवाहित महिलाओं को चुना गया जिनके पति मिलिटेन्ट थे। बाद में विधवाओं या तलाकशुदा महिलाओं को नामित किया गया। किसी भी हाल में अविवाहित लड़कियों को कभी नहीं चुना गया—यह इसलिए भी था क्योंकि 20 या 23 साल की लड़की मुश्किल ही कभी परिवार के किसी सदस्य के बिना घर से बाहर निकलती है। लेकिन मां या जीवनसाथी के रूप में महिला के कर्तव्य, उसकी गिरफ़्तारी और उसकी मृत्यु के संभावित परिणामों को न्यूनतम तक सीमित करने की इच्छा, और साथ ही अविवाहित लड़कियों की अधिकाधिक संख्या में स्वैच्छिक भागीदारी ने भी राजनीतिक लीडरान को एक और छलांग लगाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने सारे प्रतिबंध हटाकर सभी अल्जीरियाई महिलाओं के समर्थन को अंधाधुंध स्वीकार करना शुरू कर दिया।

इस बीच, उस आदमी से लगभग सौ या दो सौ मीटर आगे चलते हुए, जिसके आदेश पर वह पेपरों के वाहक के रूप में या संपर्क एजेंट के रूप में काम कर रही थी, महिला ने नकाब पहन रखा था; लेकिन एक निश्चित अवधि के बाद संघर्ष में शामिल गतिविधि का पैटर्न यूरोपीय शहर की दिशा में स्थानांतरित हो गया। कस्बे का सुरक्षात्मक आवरण, सुरक्षा का वह लगभग जैविक पर्दा जो अरब शहर अपने मूल निवासी के चारों ओर बुनता है, हट गया और बेनकाब हुई अल्जीरियाई महिला को विजेता के शहर में भेज दिया गया। बहुत जल्द उसने बिल्कुल अविश्वसनीय आक्रामक रणनीति अपनाई। जब उपनिवेशित लोग उत्पीड़क के विरुद्ध कार्रवाई करते हैं, और जब यह उत्पीड़न अल्जीरिया की तरह तीव्र और निरंतर हिंसा के रूप में किया जाता है, तब उन्हें काफी सारी वर्जनाओं को तोड़ते हुए आगे बढ़ना होता है। यूरोपीय शहर मूल शहर का विस्तार नहीं है। उपनिवेशी मूल निवासियों के बीच में नहीं बसे हैं। उन्होंने मूल नगर को घेर लिया है; उन्होंने इसकी घेराबंदी कर दी है। अल्जीयर्स के कस्बे से हर निकास दुश्मन की जमीन पर खुलता है। और ऐसा ही कॉन्स्टेंटाइन में, ओरान में, ब्लिडा में, बोन में भी है।

देशी शहरों को जानबूझकर विजेता के जाल में फंसाया जाता है। उस कठोरता का अंदाजा लगाने के लिए जिसके साथ देशी शहर की मूल आबादी का स्थिरीकरण आयोजित किया जाता है, किसी के हाथ में वे योजनाएं होनी चाहिए जिनके अनुसार औपनिवेशिक शहर की रूपरेखा तैयार की गई है और उसकी तुलना कब्ज़ाधारी सेनाओं के सामान्य कर्मचारियों की टिप्पणियों से करनी चाहिए। विजेताओं के घरों में कार्यरत नौकरानियों के अलावा, जिन सभी को उपनिवेशी “फातिमा” बुलाता है, अल्जीरियाई महिलाएं, विशेषकर युवा अल्जीरियाई महिलाएं शायद ही कभी यूरोपीय शहर में प्रवेश करती हैं। उनकी गतिविधियां लगभग पूरी तरह से अरब शहर तक ही सीमित हैं। और यहां तक ​​कि अरब शहर में भी उनकी आवाजाही न्यूनतम हो गई है। ऐसे दुर्लभ अवसर जब अल्जीरियाई महिला शहर छोड़ कर जाती है, लगभग हमेशा किसी न किसी घटना के संबंध में होते हैं, या तो असाधारण प्राकृतिक घटनाएं (पास के इलाके में रहने वाले किसी रिश्तेदार की मृत्यु), या, अधिक बार, तीर्थ यात्रा या धार्मिक दावतों के लिए पारंपरिक पारिवारिक यात्राएं। ऐसे मामलों में यूरोपीय शहर को आमतौर पर सुबह-सुबह कार में पार किया जाता है। अल्जीरियाई महिला, खासकर युवा अल्जीरियाई महिला—बहुत कम छात्रों को छोड़कर (जिनके पास वैसे भी अपने यूरोपीय समकक्षों के समान सहजता कभी नहीं होती)—को अनेक प्रकार के आंतरिक प्रतिरोधों, व्यक्तिपरक रूप से संगठित डरों और भावनाओं पर काबू पाना होता है। साथ ही साथ उसे कब्ज़ाधारी की मूल रूप से शत्रुतापूर्ण दुनिया और संगठित, सतर्क एवं कुशल पुलिस बलों का सामना करना होता है। हर बार जब वह यूरोपीय शहर में प्रवेश करती है तो अल्जीरियाई महिला को अपने बचकाने डर पर और खुद पर जीत हासिल करनी होती है। उसे अपने मन और शरीर में कहीं न कहीं दर्ज कब्ज़ाधारी की छवि पर विचार करना होता है, उसे नए सिरे से तैयार करना होता है, उसे मिटाने का आवश्यक कार्य शुरू करना होता है, उसे अनावश्यक बनाना होता है, उससे जुड़ी शर्मिंदगी को कुछ हद तक दूर करना होता है और उसे अमान्य बनाना होता है।

प्रारंभ में व्यक्तिपरक, उपनिवेशवाद में किए गए छेद उपनिवेशितों के पुराने डर और उस निराशा के माहौल पर जीत के परिणाम हैं, जो दिन पर दिन उपनिवेशवाद ने सदैव बने रहने की संभावना के साथ बनाया है।

युवा अल्जीरियाई महिला को जब भी बुलाया जाता है तो वह एक संबंध स्थापित कर लेती है। अल्जीयर्स अब अरब शहर नहीं है, बल्कि अल्जीयर्स का स्वायत्त क्षेत्र है, शत्रु का तंत्रिका तंत्र उपकरण। ओरान, कॉन्स्टेंटाइन अपने आयाम विकसित करते हैं। संघर्ष शुरू करने में अल्जीरियाई उस शिकंजे को ढीला कर रहा है, जो देशी शहरों के आसपास सख्ती से बांधा जा रहा था। अल्जीयर्स के एक क्षेत्र से दूसरे तक, रुसो से हुसैन-डे तक, एल्बियार से रुए मिशेले तक, क्रांति नए संबंध बनाती है। अधिक से अधिक यह अल्जीरियाई महिला है, अल्जीरियाई लड़की है, जो इन कार्यों को संभालेगी।

अल्जीरियाई महिला को सौंपे गए कार्यों में संदेश ले जाना शामिल है। कभी-कभार स्कूली शिक्षा की पूर्ण अनुपस्थिति के बावजूद उन्हें जटिल मौखिक आदेश याद रखने होते हैं और सही जगह पहुंचाने होते हैं। लेकिन उसे उस घर के सामने एक घंटे या उससे भी अधिक समय तक निगरानी रखने के लिए भी कहा जाता है, जहां जिला नेता विचार-विमर्श कर रहे होते हैं।

उन अनंत मिनटों के दौरान जब वह स्थिर नहीं खड़ी हो सकती, क्योंकि ऐसा करने से उसकी तरफ ध्यान आकर्षित होगा, लेकिन वह बहुत दूर भी नहीं जा सकती, क्योंकि वह भीतर बैठे भाइयों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है, ऐसी घटनाएं जो एक साथ हास्यास्पद और दयनीय हों, दुर्लभ नहीं हैं। जब युवा पुरुष एक बेनकाब अल्जीरियाई लड़की को “सड़क पर चलते हुए” देखते हैं तो वे वैसे ही व्यवहार करते हैं जैसा कि दुनियाभर में युवा पुरुष करते हैं, लेकिन वे उससे बात करने का एक विशेष तरीका चुनते हैं, क्योंकि नकाब नहीं पहनी महिला के बारे में उनके दिमाग में पहले से एक छवि बनी होती है। उसको अश्लील एवं अपमानजनक टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। जब ऐसी चीजें होती हैं तो उसे अपने दांत पीसकर उन राहगीरों से बचने के लिए कुछ कदम दूर चले जाना पड़ता है, जो उसकी ओर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं, जो अन्य राहगीरों को या तो उनके उदाहरण का अनुसरण करने, या उसके बचाव में आने की इच्छा दे रहे हैं। या हो सकता है कि अल्जीरियाई महिला अपने बैग में या छोटे सूटकेस में बीस, तीस, चालीस मिलियन फ़्रैंक ले जा रही हो, क्रांति से संबंधित पैसा, जिसका उपयोग कैदियों के परिवारों की जरूरतों का ख्याल रखने या गुरिल्लाओं के लिए दवा और आपूर्ति खरीदने के लिए किया जाना है।

इस क्रांतिकारी गतिविधि को अल्जीरियाई महिला ने अनुकरणीय दृढ़ता, आत्म-निपुणता और सफलता के साथ आगे बढ़ाया है। अंतर्निहित और व्यक्तिपरक कठिनाइयों और परिवार के एक हिस्से की कभी-कभी हिंसक नासमझी के बावजूद, अल्जीरियाई महिला उसे सौंपे गए सभी कार्यों को पूरा करती है।

लेकिन चीजें धीरे-धीरे और अधिक जटिल होती गईं। यूनिट लीडर, जो शहर में जाते हैं और महिला-स्काउट्स की मदद लेते हैं, उन लड़कियों का जिनका काम रास्ता दिखाना है, अब राजनीतिक गतिविधि में नए नहीं हैं, अब पुलिस के लिए अज्ञात नहीं हैं। प्रामाणिक सैन्य प्रमुखों ने अब शहरों से गुजरना शुरू कर दिया है। इनका पता चल गया है और इनकी तलाश की जा रही है। कोई भी पुलिस अधीक्षक नहीं बचा है जिसके डेस्क पर उनकी तस्वीरें न हों।

चलते-फिरते ये सैनिक, ये लड़ाके, हमेशा अपने हथियार—स्वचालित पिस्तौल, रिवॉल्वर, ग्रेनेड, कभी-कभी तीनों—लेकर चलते हैं। इन लोगों को, जो किसी भी हालत में खुद को बंदी नहीं बनने देंगे, यह समझाने के लिए कि उन्हें अपने हथियार उस लड़की को देने हैं जो उनके आगे चल रही है, राजनीतिक लीडरों को बहुत प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है; क्योंकि अगर चीजें बिगड़ती हैं तो तुरंत हथियार बरामद करने की जिम्मेदारी उन्हीं की है। समूह तदनुसार यूरोपीय शहर में अपना रास्ता बनाता है। सौ मीटर आगे एक लड़की सूटकेस ले जा रही होगी और उसके पीछे दो या तीन सामान्य दिखने वाले पुरुष होंगे। यह लड़की जो समूह का प्रकाशस्तंभ और बैरोमीटर है, खतरे की स्थिति में चेतावनी देती है। फ़ाइल रुक-रुक कर अपना रास्ता बनाती है; पुलिस की गाड़ियां और गश्ती दल आगे-पीछे घूमते रहते हैं।

कई बार ऐसा भी होता है, जैसा कि इन सैनिकों ने इस तरह के मिशन को पूरा करने के बाद स्वीकार किया है, जब पकड़े जाने के डर और खुद का बचाव करने के लिए समय नहीं होने के कारण अपने हथियार वापस पाने की इच्छा लगभग अप्रतिरोध्य हो जाती है। इस चरण के साथ अल्जीरियाई महिला क्रांति की देह में थोड़ा और घुस जाती है।

लेकिन 1956 से ही उनकी गतिविधि ने वास्तव में विशाल आयाम ग्रहण कर लिया है। पहाड़ों और शहरों में अल्जीरियाई नागरिकों के नरसंहार पर तेजी से प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता में क्रांतिकारी लीडरशिप ने पाया कि अगर वे लोगों को आतंक की चपेट में आने से बचाना चाहते हैं तो उनके पास आतंक के उन रूपों को अपनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, जिन्हें उन्होंने तब तक अस्वीकार किया था। इस घटना का पर्याप्त विश्लेषण नहीं किया गया है; उन कारणों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है जो क्रांतिकारी आंदोलन को उस हथियार को चुनने के लिए प्रेरित करते हैं जिसे आतंकवाद कहा जाता है।

फ्रांसीसी प्रतिरोध के दौरान, आतंकवाद के निशाने पर सैनिक, कब्ज़ाधारी जर्मन या दुश्मन के रणनीतिक प्रतिष्ठान थे। आतंकवाद की तकनीक अभी भी वही है। इसमें बम और व्यक्तिगत या सामूहिक प्रयास द्वारा ट्रेनों को पटरी से उतारने की कोशिशें शामिल हैं। अल्जीरिया में, जहां अनेक यूरोपीय निवासी हैं और क्षेत्रीय लड़ाकों ने दमनकारी व्यवस्था में डाकिया, नर्स और किराना व्यापारी को शामिल करने में कोई समय नहीं गंवाया, संघर्ष का निर्देशन करने वाले लोगों को एक बिल्कुल नई स्थिति का सामना करना पड़ा।

सड़क पर किसी नागरिक को मारने का निर्णय आसान नहीं है, और कोई भी इसे हल्के में नहीं लेता है। अंतरात्मा की लड़ाई के बिना कोई भी सार्वजनिक स्थान पर बम रखने का कदम नहीं उठाता।

वे अल्जीरियाई लीडर, जिन्होंने दमन की तीव्रता और उत्पीड़न के उन्मादी चरित्र को देखते हुए ऐसा सोचा था कि अंतरात्मा के गंभीर संकटों के बिना वे लड़ पाएंगे, उन्होंने पाया कि सबसे भयानक अपराध भी कुछ निर्णयों की इजाजत नहीं देते हैं।

कई मामलों में नेताओं ने योजनाएं रद्द कर दीं, या यहां तक कि अंतिम क्षण में बम रखने के लिए भेजे गए फिदायी[12] को वापस बुला लिया। यह झिझक मारे गए या घायल हुए नागरिकों की स्मृति के कारण पैदा हुई। ऐसे चीजें न करने की राजनीतिक जरूरतें भी थीं जो स्वतंत्रता की लड़ाई को खतरे में डाल दें। यह भी डर था कि कहीं फ्रन्ट के साथ काम करते यूरोपीय इन हमलों में न मारे जाएं। इस तरह तीन प्रकार की चिंताऐं थीं: संभवतः निर्दोष पीड़ितों को न मारना; क्रांति की गलत तस्वीर न देना; और, आखिरकार, दुनिया के सभी देशों के लोकतंत्रवादियों सहित फ्रांसीसी लोकतंत्रवादियों को और अल्जीरिया के उन यूरोपीयों को जो अल्जीरियाई राष्ट्रीय आदर्श से आकर्षित थे, सबको अपनी तरफ रखना।

ब अल्जीरियाई लोगों के नरसंहार और ग्रामीण इलाकों में छापों ने यूरोपीय नागरिकों के आश्वासन को मजबूत किया, उनको ऐसा प्रतीत हुआ कि औपनिवेशिक स्थिति मजबूत हो रही है और इससे उनके अंदर आशा बढ़ी। अल्जीरियाई लोगों के संघर्ष के पक्ष में की गई अल्जीरियाई राष्ट्रीय सेना की सैन्य कार्रवाई के कारण जिन यूरोपीयों ने अपने नस्लीय पूर्वाग्रह और दुर्व्यवहार को नरम कर दिया था, उन्होंने अपना पुराना अहंकार, अपना पारंपरिक तिरस्कार वापस अपना लिया।

मुझे बिर्टौटा की एक महिला क्लर्क याद है, जो नेशनल लिबरेशन फ्रंट के पांच सदस्यों को ले जा रहे विमान के अवरोधन के दिन अपनी दुकान के सामने उनकी तस्वीरें लहराते हुए चिल्ला रही थी, “वे पकड़े गए! अब उनके उसको-क्या-बोलते-हैं को काट देंगे!”

क्रांति पर पड़े हर प्रहार, शत्रु द्वारा किए गए हर नरसंहार ने उपनिवेशिकों की क्रूरता को बढ़ा दिया और अल्जीरियाई नागरिकों को हर तरफ से घेर लिया।

फ्रांसीसी सैनिकों से भरी रेलगाड़ियां, फ्रांसीसी नौसेना की अल्जीयर्स और फिलिपविल पर बमबारी, जेट विमान, मिलिशिया के सिपाही जिन्होंने डौआर्स[13] पर प्रहार कर अनगिनत अल्जीरियाई लोगों को मार गिराया, इस सबने लोगों को यह आभास देने में योगदान दिया कि उनका कोई बचाव नहीं कर रहा है, कि उनकी कोई रक्षा नहीं कर रहा है, कि कुछ बदला नहीं है और यूरोपीय जो चाहे वह कर सकते हैं। यह वह समय था, जब यूरोपियों को सड़कों पर यह घोषणा करते हुए सुना जाता था: “अगर हममें से प्रत्येक उनमें दस का खात्मा कर दे तो समस्या पलक झपकने की देरी में हल हो जाएगी।” और अल्जीरियाई लोगों ने, विशेष रूप से शहरों में इस घमंड को देखा, जिसने उनके जख्मों पर नमक छिड़क दिया और उन अपराधियों की दण्डमुक्ति पर ध्यान दिया, जिन्होंने छिपने की भी जहमत नहीं उठाई। किसी भी शहर में कोई भी अल्जीरियाई पुरुष या महिला वास्तव में क्षेत्र के अत्याचारियों और हत्यारों का नाम बता सकता था।

एक वक्त आया जब कुछ लोगों ने शंका को अपने दिमाग में घुसने दिया और वे यह सोचने लगे कि क्या मात्रात्मक और गुणात्मक रूप से कब्ज़ाधारी के हमलों का विरोध करना सच में संभव है? क्या आज़ादी आतंकवाद और आतंकवाद-निरोध के उस विशाल दायरे में घुसने के परिणामों के लायक है? क्या यह अनुपातहीनता उत्पीड़न से बचने की असंभवता को व्यक्त नहीं करती?

हालांकि, जनता का एक अन्य हिस्सा अधीर हो गया और उसने आतंक के रास्ते पर चलने से दुश्मन द्वारा प्राप्त लाभ को समाप्त करने के विचार की कल्पना की। दुश्मन पर व्यक्तिगत रूप से और नाम लेकर हमला करने के निर्णय को अब टाला नहीं जा सकता था। उन सभी कैदियों ने, जिनकी “भागने की कोशिश करते समय गोली मारकर हत्या कर दी गई,” और प्रताड़ित लोगों की चीखों ने मांग की कि युद्ध के नए रूपों को अपनाया जाए।

पुलिस के सदस्य और उपनिवेशिकों के मिलन स्थल (अल्जीयर्स, ओरान, कॉन्स्टेंटाइन में कैफे) सबसे पहले चुने गए। इस बिंदु से अल्जीरियाई महिला पूरी तरह से और जानबूझकर क्रांतिकारी कार्रवाई में डूब गई। वह अपने बैग में हथगोले और रिवॉल्वर ले जाती, जो एक फिदायी आखिरी समय में बार के आगे, या नामित अपराधी के गुजरने पर उससे ले लेता था। इस अवधि के दौरान यूरोपीय शहर में पकड़े गए अल्जीरियाई लोगों को बेरहमी से चुनौती दी गई, उन्हें गिरफ्तार किया गया और उनकी तलाशी ली गई।

यही कारण है कि हमें इस पुरुष और इस महिला की, इस जोड़े की समानांतर प्रगति को देखना चाहिए, जो दुश्मन को मौत और क्रांति को जीवन प्रदान करता है। वे एक-दूसरे का समर्थन करते हैं, लेकिन जाहिर तौर पर एक-दूसरे के लिए अजनबी हैं। एक जो मूल रूप से यूरोपीय महिला में बदल गई, संतुलित और अप्रतिबंधित, जिस पर कोई शक नहीं करता, पानी में मछली की तरह अपने वातावरण में घुली हुई, और दूसरा, एक अजनबी और तनावग्रस्त अपने भाग्य की ओर बढ़ता हुआ।

साहित्य में प्रसिद्ध असंतुलित अराजकतावादियों के विपरीत, अल्जीरियाई फिदायी नशा नहीं करता। फिदायी को खतरे से अनजान रहने, अपनी चेतना को धुंधला करने या भूलने की जरूरत नहीं है। “आतंकवादी” जिस क्षण से कोई काम करने की जिम्मेदारी लेता है, उसी क्षण से मृत्यु को अपनी आत्मा में प्रवेश करने देता है। उसने मृत्यु के साथ मुलाकात तय कर ली होती है। दूसरी ओर, फिदायी की क्रांति के जीवन और अपने स्वयं के जीवन के साथ मुलाकात होती है। फिदायी का बलिदान नहीं दिया जाता। ऐसा नहीं है कि वह मौत से या अपने देश को आज़ाद कराने से डरता है, लेकिन किसी भी पल में वह मौत को चुनता नहीं है।

यदि यातनाओं के लिए जिम्मेदार किसी पुलिस अधीक्षक या किसी उपनिवेशिक नेता को मारने का निर्णय लिया गया है तो ऐसा इसलिए है, क्योंकि ये लोग क्रांति की प्रगति में बाधा बनते हैं। उदाहरण के लिए, फ्रोगर एक औपनिवेशिक परंपरा और 1954 में गुएल्मा एवं सेटिफ में उद्घाटित एक पद्धति का प्रतीक था।[14] इसके अलावा, फ्रोगर की प्रत्यक्ष शक्ति ने औपनिवेशीकरण को नई ज़िंदगी प्रदान की थी और उन लोगों को फिर से आशा दी थी, जो इस सिस्टम की असल मजबूती पर शंका करने लगे थे। फ्रोगर जैसे लोगों के इर्द-गिर्द ही अल्जीरियाई लोगों के लुटेरे और हत्यारे मिलते थे और एक दूसरे को प्रोत्साहित करते थे। यह बात फ़िदायी जानता था और उसके साथ वाली उसकी महिला-शस्त्रागार भी जानती थी।

रिवॉल्वर, हथगोले, सैकड़ों झूठे पहचान पत्र या बम लेकर, बेनकाब हुई अल्जीरियाई महिला पश्चिमी जल में मछली की तरह तैरती है। जब वह गुजरती है तो फ्रांसीसी सैनिक एवं गश्ती दल उसे देखकर मुस्कुराते हैं। यहां-वहां उसके लुक्स की तारीफें सुनने को मिलती हैं, लेकिन किसी को शक नहीं होता कि उसके सूटकेस में स्वचालित पिस्तौल है, जो जल्द ही गश्ती दल के चार या पांच सैनिकों को गिरा देगी।

हमें उस युवा लड़की के पास वापस आना चाहिए, जिसका नकाब कल ही हटा है, जो पुलिसकर्मियों, पैराशूटिस्टों, मिलिशिया के सिपाहियों से भरे यूरोपीय शहर की सड़कों पर निश्चित कदमों से चलती है। वह अब दीवारों से सट कर नहीं चलती, जैसा कि वह क्रांति से पहले चलती थी। प्रभुत्वशाली समाज के सदस्यों के सामने खुद को मिटाने के लिए लगातार कहे जाने पर अल्जीरियाई महिला फुटपाथ के बीच से जाने से बचती रही, जिस पर दुनिया के सभी देशों में उन लोगों का अधिकार होता है जो कमांड में होते हैं।

बेनकाब हुई अल्जीरियाई महिला स्वतंत्रता से अपना सीना चौड़ा करके चलती है। वह सुडौल, नपे-तुले कदमों से चलती है, न तो बहुत तेज़ और न ही बहुत धीमी। उसके पैर नकाब से ढके नहीं हैं, वे खुले हैं और उसकी कमर स्वतंत्र है।

पारंपरिक समाज में युवा अल्जीरियाई महिला का शरीर उसके परिपक्व होने पर नकाब के द्वारा उसके सामने प्रकट होता है। ठीक उसी समय जब शरीर अपने सबसे बड़े उत्साह के चरण का अनुभव कर रहा होता है तो नकाब शरीर को ढकता है, उसे अनुशासित करता है और उसे संयमित करता है। नकाब सुरक्षा प्रदान करता है, आश्वस्त करता है और अलग करता है। महिला के शरीर के लिए नकाब के महत्व को समझने के लिए अल्जीरियाई महिलाओं की स्वीकारोक्ति सुनना या हाल ही में बेनकाब हुई कुछ महिलाओं के स्वप्न की सामग्री का विश्लेषण करना जरूरी होगा। नकाब के बिना उसे ऐसा आभास होता है कि उसका शरीर टुकड़ों में कट रहा है, बह रहा है; उसको ऐसा प्रतीत होता है कि उसके अंग लंबे होते जा रहे हैं। कुछ समय तक अल्जीरियाई महिला सड़क पार करते हुए दूरी तय करने में गलती करती है। बेनकाब हुआ शरीर भागता, भंग होता प्रतीत होता है। उसे अनुचित ढंग से कपड़े पहनने, यहां तक कि नग्न होने का भी आभास होता है। वह अपूर्णता की भावना का बड़ी तीव्रता से अनुभव करती है। उसे यह व्यग्रता महसूस होती है कि कुछ अधूरा है। इसके साथ ही बिखरने की भयावह अनुभूति भी होती है। नकाब की अनुपस्थिति अल्जीरियाई महिला के शारीरिक पैटर्न को विकृत कर देती है। उसे जल्दी ही अपने शरीर के लिए नए आयाम, मांसपेशियों पर नियंत्रण के नए साधन ईजाद करने होते हैं। उसे बहार की दुनिया में बेनकाब हुई महिला का नया रवैया अपनाना पड़ता है। उसे सारी भीरुता, सारी अजीबता पर काबू पाना होता है (क्योंकि उसे यूरोपीय जैसा दिखना होता है), लेकिन साथ ही उसे यह भी सावधानी बरतनी पड़ती है कि वह इसे ज़्यादा न कर दे और अपनी ओर ध्यान आकर्षित न करे। अल्जीरियाई महिला जो यूरोपीय शहर में बिल्कुल नग्न होकर घूमती है, वह अपने शरीर के बारे में फिर से सीखती है, उसे पूरी तरह से क्रांतिकारी अंदाज में फिर से स्थापित करती है। शरीर और संसार की यह नई द्वंद्वात्मकता एक तरह की क्रांतिकारी महिला के मामले में प्राथमिक है।[15]

लेकिन अल्जीरियाई महिला केवल अपने शरीर के साथ ही संघर्ष में नहीं है। वह कभी-कभी क्रांतिकारी मशीन में आवश्यक कड़ी भी होती है। वह हथियार रखती है, महत्वपूर्ण शरणस्थलों को जानती है और उन ठोस खतरों के संदर्भ में, जिनका वह सामना करती है, हमें उन दुर्गम जीतों का भी आकलन करना चाहिए जो उसे जीतनी पड़ी हैं, ताकि वह अपनी वापसी पर अपने चीफ से कह सके: “मिशन पूरा हुआ . . . आर.ए.एस।”[16]    

एक और कठिनाई जो ध्यान देने योग्य है, वह स्त्री गतिविधि के पहले महीनों के दौरान सामने आई। उसके आने-जाने के दौरान, कभी-कभी ऐसा हो जाता कि अल्जीरियाई महिला को बिना नकाब के परिवार का कोई रिश्तेदार या दोस्त देख लेता। उसके पिता को खबर पहुंचा दी जाती। ऐसे आरोपों पर यकीन करने में उन्हें स्वाभाविक तौर पर झिझक होती। फिर उनको इस तरह की और खबरें पहुंचती। अलग-अलग लोग आकर दावा करते कि उन्होंने “ज़ोहरा या फातिमा को बिना नकाब के देखा, और वह ऐसे चल रही थी . . . की बस अल्लाह ही बचाए!” फिर पिता अपनी बेटियों से सफाई मांगते। वे बोलना शुरू ही करते कि उन्हें चुप होना पड़ता। युवा लड़की की दृढ़ता भरी दृष्टि से पिता को समझ आ जाता कि उसकी प्रतिबद्धता लंबे समय से चली आ रही है। बेइज्जती के पुराने डर के आगे एक नया डर आ जाता, ताज़ा और ठंडा—युद्ध में मृत्यु का, या लड़की के टॉर्चर होने का। लड़की के पीछे-पीछे पूरा परिवार—यहां तक कि अल्जीरियाई पिता भी, जो सभी चीज़ों का अधिकारी है, हर मूल्य का संस्थापक है—नए अल्जीरिया की तरफ प्रतिबद्ध हो जाता।

बार-बार हटाया और वापस पहना गया नकाब हेरफेर करके छलावरण की तकनीक में बदल दिया गया है, संघर्ष के साधन में बदल दिया गया है। औपनिवेशिक स्थिति में नकाब द्वारा ग्रहण किया गया लगभग वर्जित चरित्र स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान लगभग पूरी तरह से गायब हो गया। यहां तक ​​कि संघर्ष में सक्रिय रूप से शामिल नहीं होने वाली अल्जीरियाई महिलाओं ने भी नकाब पहने बिना बाहर निकलने की आदत बना ली। यह सच है कि कुछ हालातों में, विशेषकर 1957 से, नकाब फिर से प्रकट हो गया। वास्तव में, मिशन अधिकाधिक कठिन होते गए। दुश्मन को अब पता लग गया था, क्योंकि कुछ महिलाओं ने टॉर्चर होने पर उन्हें बता दिया था, कि बहुत सारी यूरोपियों जैसी दिखने वाली महिलाएं लड़ाई में अहम भूमिका निभा रही थीं। इसके अलावा, अल्जीरिया की कुछ यूरोपीय महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे दुश्मन को घबराहट होने लगी कि उसका खुद का सिस्टम टूट रहा है। स्वतंत्रता संग्राम में यूरोपीय लोगों की भागीदारी के बारे में फ्रांसीसी अधिकारियों को पता चलना अल्जीरियाई क्रांति में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतीक है।[17] उस दिन से फ्रांसीसी गश्ती दल प्रत्येक व्यक्ति को चुनौती देने लगे। यूरोपीय और अल्जीरियाई समान रूप से संदिग्ध बन गए। सारी ऐतिहासिक सीमाएं बिखर गईं और लुप्त हो गईं। पैकेज ले जाने वाले किसी भी व्यक्ति को उसे खोलकर उसकी चेकिंग कराने के लिए कहा जा सकता था। अल्जीयर्स, फिलिपविल, या बटना में पार्सल ले जाते व्यक्ति से हर कोई सवाल-जवाब करने का हकदार बन गया। उन परिस्थितियों में पैकेज को कब्ज़ाधारी की नजरों से छिपाना और फिर से खुद को सुरक्षात्मक हाइक से ढंकना अत्यावश्यक हो गया।

यहां फिर एक नई तकनीक सीखनी पड़ी: किसी भारी एवं खतरनाक वस्तु को नकाब के नीचे ऐसे कैसे ले जाया जाए कि देखने वाले को ऐसा लगे कि हाथ खाली हैं और हाइक के नीचे लाचार महिला या महत्वहीन लड़की के अलावा कोई नहीं है। सिर्फ नकाब से ढका होना काफी नहीं था। इतना ‘फातिमा’ जैसा दिखना जरूरी था कि सैनिक को लगे कि इस महिला से कोई खतरा हो ही नहीं सकता।

बहुत मुश्किल। आपसे तीन मीटर आगे पुलिस वाला ऐसी महिला को चुनौती दे रहा है जो नकाब के पीछे है और विशेषकर संदिग्ध भी नहीं लग रही है। यूनिट के लीडर की व्यथित अभिव्यक्ति से आपने अंदाजा लगा लिया है कि वह महिला बम ले जा रही है, या फिर हथगोलों का थैला, जो उसके शरीर से डोरियों और पट्टियों की पूरी प्रणाली द्वारा बंधे हैं। क्योंकि हाथों का खाली होना आवश्यक है, उन्हें पूरी विनम्रता और लाचारगी के साथ सैनिकों को दिखाना जरूरी है, जिससे उन्हें आश्वासन मिले कि उन्हें आगे कुछ और देखने की जरूरत नहीं है। खाली और जाहिरी तौर पर गतिशील एवं मुक्त हाथ दिखाना दुश्मन सैनिक को निरस्त्र करने वाला संकेत है।

अल्जीरियाई महिला का शरीर, जिसको शुरुआती चरण में पतला किया गया था, अब फूल गया है। जबकि पहले के समय में शरीर को आकर्षक और लुभावना बनाने के लिए अनुशासित करना पड़ा था और पतला करना पड़ा था, अब उसे भींचना होगा, आकारहीन और यहां तक ​​कि हास्यास्पद भी बनाना होगा। जैसा कि हमने देखा, यह वह चरण है जिसके दौरान महिला ने बम, हथगोले, मशीन-गन की गोलियां ले जाने का काम किया।

हालांकि, दुश्मन सतर्क हो गया था, और सड़कों पर दीवार से सटी ऐसी अल्जीरियाई महिलाओं का दिखना आम हो गया, जिनके शरीर पर प्रसिद्ध मेटल डिटेक्टर या ‘फ्राइंग पैन’ चलाए जा रहे हों। हर नकाब पहनी महिला, हर अल्जीरियाई महिला संदिग्ध हो गई। कोई भेदभाव नहीं किया गया। यह वह अवधि थी जिसके दौरान पुरुष, महिलाएं, बच्चे, संपूर्ण अल्जीरियाई जनता ने एक ही समय में अपनी राष्ट्रीयता और नए अल्जीरियाई समाज के पुनर्निर्माण का अनुभव किया।  

आचरण के इन नए रूपों से अनभिज्ञ या अनभिज्ञ होने का दिखावा करते हुए, 13 मई के अवसर पर फ्रांसीसी उपनिवेशवाद ने अल्जीरियाई महिला के पश्चिमीकरण के अपने पुराने अभियान को फिर से दोहराया। नौकरी से निकाले जाने की धमकी देकर नौकरों को, उनके घरों से गरीब महिलाओं को और जगह-जगह से वेश्याओं को घसीट कर सार्वजनिक चौराहों पर लाया गया और “फ्रांसीसी अल्जीरिया जिंदाबाद!” के नारों के बीच प्रतीकात्मक रूप से बेनकाब किया गया। इस नई आक्रामकता का सामना करने के लिए पुरानी प्रतिक्रियाएं फिर उभर कर आ गईं। अनायास और बिना किसी के बताए अल्जीरियाई महिला, जिसने नकाब पहनना छोड़ दिया था, उसने फिर हाइक पहन लिया। ऐसा करके उसने इस बात की पुष्टि की कि यह सच नहीं है कि महिलाओं ने फ्रांस और जनरल डी गॉल के निमंत्रण पर खुद को आज़ाद किया है।

इन मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं के पीछे, इस तत्काल और लगभग सर्वसम्मत जवाब के नीचे, हम फिर से कब्ज़ाधारी के मूल्यों की अस्वीकृति का समग्र दृष्टिकोण देखते हैं, चाहे फिर यह मूल्य वस्तुनिष्ठ रूप से चुनने लायक ही क्यों न हों। क्योंकि वे इस बौद्धिक वास्तविकता, इस विशिष्ट विशेषता (उपनिवेशितों की प्रसिद्ध संवेदनशीलता), को समझने में असफल रहते हैं, इसलिए उपनिवेशी हमेशा “उनके बावजूद उनके लिए अच्छा करने” या उनकी “एहसान फ़रामोशी” पर क्रोधित रहते हैं। उपनिवेशवाद चाहता है कि उपनिवेशित को सब कुछ उपनिवेशी से प्राप्त हो। लेकिन उपनिवेशितों की प्रमुख मनोवैज्ञानिक विशेषता उपनिवेशी के किसी भी निमंत्रण को ठुकराने की है। 13 मई के प्रसिद्ध काफिले का आयोजन करके, उपनिवेशवाद ने अल्जीरियाई समाज को पहले से ही पुराने हो चुके संघर्ष के तरीकों पर वापस जाने के लिए बाध्य किया है। एक अर्थ में, ये विभिन्न समारोह पीछे मुड़ने का कारण बन गए हैं।

उपनिवेशवाद को इस तथ्य को स्वीकारना होगा कि चीजें उसके नियंत्रण और उसकी दिशा के बिना होती हैं। हमें एक अफ़्रीकी राजनीतिक हस्ती द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सभा में कहे गए शब्द याद आते हैं। उपनिवेशित लोगों की अपरिपक्वता और खुद को प्रशासित करने में उनकी अक्षमता के मानक बहाने का जवाब देते हुए इस व्यक्ति ने अल्पविकसित लोगों के लिए “खुद पर बुरी तरह से शासन करने के अधिकार” की मांग की। अपने प्रभुत्व को बनाए रखने को उचित ठहराने के प्रयास में औपनिवेशवाद द्वारा किए गए सैद्धांतिक दावे, उपनिवेशितों को लगभग हमेशा समझौता न करने वाले, कठोर, स्थिर प्रति-प्रस्ताव देने की स्थिति में धकेल देते हैं। 

13 मई के बाद नकाब पहनना फिर से शुरू कर दिया गया, लेकिन इसके विशेष रूप से पारंपरिक आयाम को हमेशा के लिए हटा दिया गया।

इस प्रकार, नकाब पहनने की ऐतिहासिक गतिशीलता है, जो अल्जीरिया में उपनिवेशवाद के विकास में बहुत ठोस रूप से देखी जा सकती है। शुरुआत में नकाब प्रतिरोध का एक तंत्र था, लेकिन सामाजिक समूह के लिए इसका महत्व बहुत मजबूत रहा। नकाब इसलिए पहन गया, क्योंकि परंपरा के अनुसार लिंगों के बीच कठोर अलगाव करना जरूरी था, लेकिन वह इसलिए भी पहन गया क्योंकि कब्ज़ाधारी अल्जीरिया को बेनकाब करने पर तुला हुआ था। दूसरे चरण में, क्रांति के संबंध में और विशेष परिस्थितियों में उत्परिवर्तन हुआ। क्रांतिकारी कार्रवाई के दौरान नकाब हटा दिया गया। कब्ज़ाधारी के मनोवैज्ञानिक या राजनीतिक हमलों को रोकने के लिए जो इस्तेमाल किया गया था वह एक साधन, एक उपकरण बन गया। नकाब ने अल्जीरियाई महिला को संघर्ष से पैदा हुई नई समस्याओं से निपटने में मदद की।

उपनिवेशी उपनिवेशितों की प्रेरणाओं को समझने में असमर्थ हैं। ये युद्ध की आवश्यकताएं हैं, जो अल्जीरियाई समाज में नए दृष्टिकोण, कार्रवाई के नए तरीकों और जीने के नए प्रकारों को जन्म देती हैं।

परिशिष्ट[18]

दिन-ब-दिन खुद को उपनिवेशी की पकड़ से मुक्त हो रही अल्जीरियाई धरती पर हम पुराने मिथकों के विस्थापन को देख रहे हैं।

औपनिवेशिक दुनिया के लिए जो चीजें “समझ से बाहर” हैं, उनमें अल्जीरियाई महिला का मामला कुछ ज्यादा ही उल्लेखित किया गया है। समाजशास्त्रियों, इस्लाम विशेषज्ञों और न्यायविदों के अध्ययन अल्जीरियाई महिला पर टिप्पणियों से भरे हुए हैं।

पुरुष की दासी या घर की निर्विवाद शासक के रूप में बारी-बारी से वर्णित अल्जीरियाई महिला और उसकी स्थिति सिद्धांतकारों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करती आई है। समान अधिकार वाले अन्य लोग इस बात की पुष्टि करते हैं कि अल्जीरियाई महिला “स्वतंत्र होने का सपना देखती है,” लेकिन क्रूर पितृसत्ता इस वैध आकांक्षा का विरोध करती है। फ़्रेंच नेशनल असेंबली में सबसे हालिया बहसें इस “समस्या” के हल के लिए सुसंगत दृष्टिकोण विकसित करने की रुचि का संकेत देती हैं। अधिकांश वक्ता अल्जीरियाई महिला के भाग्य का वर्णन करते हैं और उसकी स्थिति में सुधार की मांग करते हैं। इन बहसों में यह भी कहा गया है कि विद्रोह को दबाने का यही एकमात्र साधन है। उपनिवेशिक बुद्धिजीवी लगातार औपनिवेशिवादी व्यवस्था को समझने के लिए “समाजशास्त्रीय केस स्टडी” के दृष्टिकोण का उपयोग करते हैं। वे कहते हैं कि फला-फला देश कब्ज़े की मांग कर रहा था, उसके लिए रो रहा था। अगर एक प्रसिद्ध उदाहरण लें तो मेडागास्कन के बारे में यह कहा गया कि वह “डिपेन्डेन्सी कॉम्प्लेक्स” से ग्रसित है, या उसे किसी और पर निर्भर होने की मानसिक बीमारी है।

जहां तक ​​अल्जीरियाई महिला का सवाल है, वह “दुर्गम एवं उभयभावी है और उसके अंदर परपीड़न-कामुक प्रवृत्तियां हैं।” विशिष्ट व्यवहारों का वर्णन किया गया है, जो इन विभिन्न विशेषताओं को दर्शाते हैं। सच तो यह है कि सैन्य रूप से एक अटल प्रभुत्व के अधीन कब्जे में रहने वाले लोगों के अध्ययन के लिए ऐसे दस्तावेज़ीकरण और जांच की आवश्यकता होती है, जिनको संयोजित करना कठिन होता है। कब्ज़ा मिट्टी पर नहीं किया गया है। बंदरगाह और हवाई अड्डों पर नहीं किया गया है। फ्रांसीसी उपनिवेशवाद ने खुद को अल्जीरियाई व्यक्ति के केंद्र में स्थापित कर लिया है और उसकी सफाई का, उसके स्व के निष्कासन का, तर्कसंगत रूप से उसे अंग-भंग करने का निरंतर कार्य अपने ऊपर ले लिया है।

ऐसा नहीं है कि एक तरफ क्षेत्र पर कब्ज़ा किया गया है लेकिन दूसरी तरफ व्यक्ति स्वतंत्र हैं। विकृत करने और अंतिम विनाश की आशा के साथ प्रहार पूरे देश, उसके इतिहास और उसके रोजमर्रा के जीवन पर किया जा रहा है। इन परिस्थितियों में व्यक्ति की श्वास एक अवलोकनीय कब्ज़ा की हुई श्वास है। वह एक प्रतिरोधक श्वास है।

इस बिंदु से उपनिवेशितों के असल मूल्य तेजी से गुप्त रूप धारण कर लेते हैं। उपनिवेशी की उपस्थिति में उपनिवेशित झूठ बोलना, छल करना सीख लेता है। सैन्य कब्जे के कलंक का विरोध वह संपर्क के कलंक से करता है। उपनिवेशित और उपनिवेशी के बीच हर संपर्क कपट से भरा है। अड़तालीस घंटों में अल्जीरियाई महिला ने उन सभी छद्म सत्यों को खारिज कर दिया, जिनके बारे में माना जाता था कि वर्षों की “फील्ड स्टडीज़” ने उनकी पर्याप्त पुष्टि कर दी है। निश्चित रूप से, अल्जीरियाई क्रांति ने रवैये और दृष्टिकोण में वस्तुनिष्ठ संशोधन लाया है। लेकिन अल्जीरियाई लोगों ने कभी भी अपने हथियार नहीं डाले थे। 1 नवंबर 1954 जनता के जागरण का दिन नहीं था, बल्कि वह संकेत था जिसका वे गति में आने के लिए इंतजार कर रहे थे, ताकि फ्रेंको-मुस्लिम काल के चरम दिनों में हासिल की गई और ठोस रूप से मजबूत की गई रणनीति को दिन के पूरे उजाले में अमल में ला सकें।

अल्जीरियाई महिला ने अपने भाइयों की तरह रक्षा तंत्र का सूक्ष्मता से निर्माण किया था, जो आज उसे स्वतंत्रता के संघर्ष में प्राथमिक भूमिका निभाने में सक्षम बनाता है।

पहले तो अल्जीरियाई महिला की स्थिति बहुचर्चित है—उसका कथित कारावास, उसकी महत्वहीनता, उसकी विनम्रता, अर्ध अनुपस्थिति की सीमा पर उसका मौन अस्तित्व। और “मुस्लिम समाज” ने उसके लिए कोई जगह नहीं बनाई है, उसके व्यक्तित्व को खंडित कर दिया है, उसे न तो विकास और न ही परिपक्वता की अनुमति दी है, उसे एक सतत शैशवावस्था में बनाए रखा है। “वैज्ञानिक कार्यों” से प्रकाशित ऐसी पुष्टिओं को आज एकमात्र वैध चुनौती मिल रही है: क्रांति का अनुभव।

अल्जीरियाई महिला का घर के प्रति प्रबल प्रेम ब्रह्मांड द्वारा लगाई गई कोई सीमा नहीं है। यह सूरज या सड़कों या तमाशों से नफरत नहीं है। यह दुनिया से उड़ान नहीं है।

सच तो यह है कि सामान्य परिस्थितियों में परिवार और समाज के बीच बड़े पैमाने पर परस्पर क्रिया होती है। घर समाज की सच्चाई का आधार है, लेकिन समाज परिवार को प्रमाणित और वैध बनाता है। औपनिवेशिक संरचना इस पारस्परिक औचित्य का निषेध है। अल्जीरियाई महिला, खुद पर इस तरह का प्रतिबंध लगाकर, सीमित दायरे में अस्तित्व का एक रूप चुनकर, संघर्ष की अपनी चेतना को गहरा कर रही थी और युद्ध की तैयारी कर रही थी।

यह दूर हटना, थोपी गई संरचना की यह अस्वीकृति, प्रतिबंधित लेकिन सुसंगत अस्तित्व का प्रतिनिधित्व करने वाले उपजाऊ बीज की ओर यह वापस जाना, लंबे समय से उपनिवेशितों की मौलिक ताकत का गठन कर रहा है। अल्जीरियाई महिला ने अकेले ही जागरूक तकनीकों के माध्यम से व्यवस्था की स्थापना की अध्यक्षता की। आवश्यक यह था कि कब्ज़ाधारी का टकराव हमेशा एक संयुक्त मोर्चे से हो। परंपरा के कठोर बनने का कारण यही है।

वास्तव में, महिला ने ही घर में उत्साह और क्रांतिकारी भावना को जीवित रखा है, क्योंकि क्रांतिकारी युद्ध मर्दों का युद्ध नहीं है।

यह एक सक्रिय सेना और आयुद्ध भंडार के साथ लड़े जाने वाला युद्ध नहीं है। जिस तरह का क्रांतिकारी युद्ध अल्जीरियाई लोग लड़ रहे हैं, वह एक संपूर्ण युद्ध है, जिसमें महिला केवल सैनिक के लिए बुनाई नहीं करती या शोक नहीं मनाती। अल्जीरियाई महिला लड़ाई के केंद्र में है। गिरफ़्तार की गई, प्रताड़ित की गई, बलात्कार की गई, मार दी गई, वह कब्ज़ा करने वाले की हिंसा और उसकी अमानवीयता की गवाही देती है।

नर्स, संपर्क एजेंट और लड़ाके के रूप में वह संघर्ष की गहराई और सघनता की गवाह है। हम महिला के भाग्यवाद, प्रतिकूल परिस्थितियों में उसकी प्रतिक्रिया की अनुपस्थिति, घटनाओं की गंभीरता को मापने में उसकी असमर्थता के बारे में भी बात करेंगे। उसकी निरंतर मुस्कुराहट, उसके अंदर स्पष्ट रूप से निराधार आशा की दृढ़ता, घुटनों पर गिरने से उसका इनकार करना, इन सब चीजों के कारण ऐसा कहा जाता है कि वह वास्तविकता को समझने में असमर्थ है।

कब्ज़ाधारी उस हास्य से अनभिज्ञ है, जो घटनाओं का एक कठोर मूल्यांकन है। अल्जीरियाई महिला ने संघर्ष में जो साहस दिखाया है, वह कोई अप्रत्याशित रचना या उत्परिवर्तन का परिणाम नहीं है। वह उसी हास्य का विद्रोहात्मक चरण है।

अल्जीरियाई समाज में महिला के स्थान को इतनी दृढ़ता से दर्शाया गया है कि कब्ज़ाधारी का भ्रम आसानी से समझा जा सकता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अल्जीरियाई समाज वैसा महिलाविहीन समाज नहीं निकलता है, जैसा कि उसका इतने स्पष्ट तरीके से वर्णन किया गया था।

हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर हमारी बहनें दुश्मन प्रणाली को और अधिक ध्वस्त करने और पुरानी मिथ्याओं को हमेशा के लिए खत्म करने में अपनी भूमिका निभाती हैं।    

 

                    

 

 


[1] हम यहां उन ग्रामीण क्षेत्रों की बात नहीं कर रहे, जहां महिला अक्सर नकाब के बिना रहती है। न ही हम उस कबील (उत्तर अल्जीरिया में रहने वाली बर्बर जनजाति को कबील कहते हैं) महिला की बात कर रहे हैं, जो बड़े शहरों को छोड़कर कभी भी नकाब का उपयोग नहीं करती है। जो पर्यटक पहाड़ों पर कम ही जाते हैं, उनके लिए अरब महिला सबसे पहले वह है जो नकाब पहनती है। अन्य चीजों के सहित, कबील महिला की यह भिन्नता अरब और बर्बर लोगों के बीच विरोध पैदा करने का उपनिवेशिक प्रचार का एक अहम हिस्सा है। इस तरह के शोध जो मनोवैज्ञानिक भिन्नता के विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित करते हैं, उन विचारों की उपेक्षा करते हैं जो उचित रूप से ऐतिहासिक हैं। हम जल्द ही अल्जीरियाई वास्तविकता की क्रिया के इस दूसरे पहलू को देखेंगे। यहां हम यह इंगित करके ही संतुष्ट हो जाएंगे कि 130 वर्षों के प्रभुत्व के दौरान कबील महिलाओं ने कब्ज़ाधारी के संबंध में अन्य रक्षा तंत्र विकसित किए हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनकी कार्यशैली ने भी बिल्कुल भिन्न पहलू ग्रहण किए हैं।

[2] फेज़ – कई मुस्लिम देशों में मर्दों द्वारा पहने जाने वाली टोपी; जीलाबा – एक लंबा हुड वाला लबादा (अनुवादक का नोट)

[3] यहां एक घटना स्मरणीय है। मोरक्को के लोगों के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान, मुख्य रूप से शहरों में सफेद नकाब की जगह काले नकाब ने ले ली। इस महत्वपूर्ण संशोधन को मोरक्को की महिलाओं की महामहीम मुहम्मद पंचम के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करने की इच्छा से समझा जा सकता है। यह याद रखने योग्य है कि मोरक्को के राजा के निष्कासित होने के तुरंत बाद काला नकाब शोक के प्रतीक के रूप में सामने आया था। ध्यान देने योग्य बात यह है कि मोरक्कन या अरबी समाज में शोक या कष्ट कभी भी काले रंग ने व्यक्त नहीं किया है। एक विद्रोही उपाय के रूप में काले रंग को अपनाना कब्ज़ाधारी पर प्रतीकात्मक दबाव डालने की इच्छा की प्रतिक्रिया है, और इस प्रकार अपने स्वयं के प्रतीकों का तार्किक इस्तेमाल करना है।

[4] हाइक – अरबी महिलाओं द्वारा चेहरे और पूरे शरीर को ढकने वाले बड़े चौकोर नकाब का अरबी नाम। (अनुवादक का नोट)

[5] इस अध्याय के अंत में परिशिष्ट देखें।

[6] शिक्षा प्रतिष्ठानों में भी मैदान तैयार कर लिया गया है। जिन शिक्षकों को माता-पिता अपने बच्चों को सौंपते हैं, वे जल्द ही अल्जीरियाई समाज में महिलाओं के भाग्य पर गंभीर निर्णय देने की आदत बना लेते हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि आप कम से कम इतना मजबूत होंगे कि अपनी बात मनवा सकें... "युवा मुस्लिम लड़कियों" के लिए स्कूल तेजी से बढ़ रहे हैं। अपने विद्यार्थियों के यौवन के करीब पहुंचने पर शिक्षक या नन वास्तव में असाधारण गतिविधि करते हैं। सबसे पहले माताओं की सोच को समझा जाता है, फिर उन्हें घेर लिया जाता है और पिता को झकझोरने एवं समझाने का मिशन दिया जाता है। युवा छात्रा की तेज़ बुद्धि और उसकी परिपक्वता का बखान किया जाता है; उन उत्सुक युवा प्राणियों के शानदार भविष्य का व्याख्यान किया जाता है और संकेत दिए जाते हैं कि बच्चे की स्कूली शिक्षा बाधित करना आपराधिक होगा। उपनिवेशित समाज की कमियों को स्वीकार किया जाता है और यह प्रस्तावित किया जाता है कि माता-पिता को "छोटी सोच वाले पड़ोसियों" की आलोचना से बचने के लिए युवा छात्र को बोर्डिंग स्कूल भेज देना चाहिए। औपनिवेशिक मामलों के विशेषज्ञ, पुराने सिपाही और "विकसित" मूल निवासी कमांडो हैं, जिन्हें उपनिवेशित देश के सांस्कृतिक प्रतिरोध को नष्ट करने का काम सौंपा गया है। क्षेत्रों को तदनुसार विकसित "सक्रिय इकाइयों" की संख्या के आधार पर वर्गीकृत किया गया है; दूसरे शब्दों में, उनमें निहित राष्ट्रीय संस्कृति के क्षरण के कारकों के आधार पर।

[7] फेलाह – छोटे किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए अल्जीरियाई शब्द (अनुवादक का नोट)

[8] विशेष रूप से विकसित मूल निवासियों की एक विशेष श्रेणी के संबंध में यूरोपीय महिलाओं के रवैये पर ध्यान दिया जाना चाहिए। कुछ बेनकाब हुई अल्जीरियाई महिलाएं अद्भुत तेजी और अप्रत्याशित सहजता के साथ खुद का पूर्ण पश्चिमीकरण कर लेती हैं। इन महिलाओं की मौजूदगी में यूरोपीय महिलाएं एक खास तरह की बेचैनी महसूस करती हैं। वे नकाब की उपस्थिति में तो निराश रहती ही हैं, लेकिन ऐसा ही अनुभव उन्हें बेनकाब हुए चेहरे को देखकर भी होता है; और उस शरीर के सामने भी होता है जो सभी अजीबता, सभी डरपोकपन खो चुका है, और सर्वथा आक्रामक हो गया है। न केवल बेनकाब हुई महिला के विकास की निगरानी करने और उसकी गलतियों को सुधारने की संतुष्टि यूरोपीय महिला से छीन ली गई है, बल्कि वह उससे स्त्री-आकर्षण, लालित्य के स्तर पर भी चुनौती महसूस करती है। यहां तक ​​कि इस पेशेवर और प्रचारक में रूपांतरित नौसिखिए में एक प्रतियोगी को भी देखती है। यूरोपीय महिला के पास अल्जीरियाई पुरुष के साथ आम सहमति बनाकर बेनकाब हुई महिला को बुरा और भ्रष्ट घोषित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। "सच में!" यूरोपीय महिलाएं ज़ोर दे कर कहती हैं, ये बेनकाब हुई औरतें काफी अनैतिक और बेशर्म हैं।एकीकरण, सफल होने के लिए, वास्तव में एक निरंतर, स्वीकृत पितृत्ववाद ही प्रतीत होता है।

[9] अफ्रीकी विरासत के सांस्कृतिक और भौतिक पहलुओं के प्रति जागरूकता और गर्व। (अनुवादक का नोट)

[10] जेबेल पहाड़

[11] हम यहां केवल उन वास्तविकताओं का उल्लेख कर रहे हैं जो शत्रु को ज्ञात हैं। इसलिए हम क्रांति में महिलाओं द्वारा अपनाई गई कार्रवाई के नए रूपों के बारे में कुछ नहीं कह रहे हैं। असल में, 1958 के बाद से, महिला मिलिटेन्टस को टॉर्चर करके कब्जाधारी ने महिलाओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति का अंदाजा लगा लिया है। आज नए तरीके विकसित हो चुके हैं। इसलिए उनके बारे में हमारी चुप्पी को समझना आसान है।

[12] फिदायी – इस्लामी परंपरा में आत्मघाती स्वयंसेवक।

[13] डौआर – गांव

[14] फ्रॉगर एक उपनिवेशिक नेता था जिसको 1956 के अंत में एक फिदायी द्वारा मार दिया गया।

[15] वह महिला, जो क्रांति से पहले अपनी मां या पति के बिना कभी घर से बाहर नहीं निकलती थी, अब उसे ओरान से कॉन्स्टेंटाइन या अल्जीयर्स तक जाने जैसे विशेष मिशन सौंपे गए हैं। कई दिनों तक क्रांति के लिए बेहद महत्वपूर्ण निर्देशों को लेकर वह अकेले ही ट्रेन पकड़ती है, मिलिटेन्टस के बीच एक अज्ञात परिवार के साथ रात बिताती है। यहां भी उसे अपनी गतिविधियों में सामंजस्य बिठाना होता है, क्योंकि दुश्मन किसी भी गलत कदम की तलाश में है। लेकिन यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि पति अपनी पत्नी को मिशन पर जाने देने में कोई बाधा नहीं डालता। वास्तव में, संपर्क एजेंट के वापस आने पर वह उससे गर्व से कहता है, देखो, तुम्हारी अनुपस्थिति में भी सब ठीक से चल रहा है। अल्जीरियाई की सदियों पुरानी ईर्ष्या, उसकी जन्मजात शंका, क्रांति के संपर्क में आने पर पिघल गई है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि जिन मिलिटेन्टस की पुलिस तलाश कर रही होती है, वे अन्य मिलिटेन्टस के यहां शरण लेते हैं, जिनकी पहचान अभी तक कब्जाधारी द्वारा नहीं की गई है। ऐसे मामलों में भगोड़े के साथ पूरे दिन अकेली रहने वाली महिला ही बिना किसी संदेह या भय के उसके लिए भोजन, समाचार पत्र, डाक लाती है। संघर्ष में शामिल होकर पति या पिता लिंगों के बीच संबंधों को एक नई नजर से देखना सीखते हैं। उग्रवादी पुरुष को उग्रवादी महिला मिलती है, और वे मिलकर अल्जीरियाई समाज के लिए नए आयाम बनाते हैं

[16] आर.ए.एस – रिपोर्ट करने के लिए कुछ नहीं का फ्रेंच में एक सैन्य संक्षिप्त रूप।

हम यहां उनके रवैयों का विवरण कर रहे हैं। हालांकि, क्रांति में महिला की भूमिका पर एक महत्वपूर्ण काम किया जाना बाकी है: शहर में, जेबेल में, दुश्मन प्रशासन में महिला; वेश्या और उसके द्वारा प्राप्त जानकारी; जेल में, यातना सहती, मौत का सामना कर रही, अदालतों के सामने महिला; ये सभी अध्याय शीर्षक, सामग्री की छंटाई के बाद, राष्ट्रीय संघर्ष के इतिहास के लिए आवश्यक असंख्य तथ्यों को उजागर करेंगे।

[17] अध्याय पांच देखिए।

[18] यह पाठ जो रेसिस्टेंस अल्जीरियन में 16 मई 1957 के अंक में छपा था, उस चेतना को इंगित करता है जो नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नेताओं में हमेशा क्रांति में अल्जीरियाई महिला द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में थी।

 

फ्रांत्ज़ फ़ैनोन
फ्रांत्ज़ फ़ैनोन

फ्रांत्ज़ फ़ैनोन (1925-1961) अल्जीरिया में रहने वाले मनोचिकित्सक और समाज विज्ञानी थे। उन्होंने उपनिवेशीकरण से उपनिवेशित लोगों की मानसिकता पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया। उनका काम दुनिया भर के स्वतंत्रता संघर्षों में प्रभावी था और आज तक प्रभावी है। फ्रांत्ज़ फ़ैनोन (1925-1961) अल्जीरिया में रहने वाले मनोचिकित्सक और समाज विज्ञानी थे। उन्होंने उपनिवेशीकरण से उपनिवेशित लोगों की मानसिकता पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया। उनका काम दुनिया भर के स्वतंत्रता संघर्षों में प्रभावी था और आज तक प्रभावी है।