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नगीब महफूज़|Naguib Mahfouz

नगीब महफूज़

1988 में साहित्य का नोबेल प्राइज जीतने वाले महफूज़ अरबी साहित्य में अस्तित्ववाद के विषयों पर लिखने वाले शुरुआती लेखकों में से एक है। महफूज़ का जन्म 1911 में काहिरा में हुआ। 17 साल की उम्र में उन्होंने लिखना शुरु किया और 38 साल की उम्र में जाकर उनकी पहली किताब प्रकाशित हुई। 1988 में जिस किताब पर उन्हें नोबेल पुरुस्कार मिला वह 30 साल पहले प्रकाशित हुई थी। नगीब महफूज़ ने तीस से ज्यादा उपन्यासों, पांच नाटको और 350 से ज्यादा कहानियों की रचना की है।

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मदारी रकाब ले उड़ा|Madari Raqab Le Uda

मदारी रकाब ले उड़ा

किशोरावस्था का दौर हर इंसान की ज़िंदगी का सबसे रंगीन दौर होता है। किसी भी चिंता या फिक्र से बेपरवाह रात-दिन तपती दोपहर से सावन की ठंडी बूंदों में कब बदल जाते हैं, पता ही नहीं चलता। मिस्र और अरबी साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले कथाकार नजीब महफ़ूज़ की प्रस्तुत कहानी ऐसे ही किशोर के सपनों और उसकी नटखत गतिविधियों के गिर्द घूमती है, जिसे उसकी अम्मी बाजार से कोई सामान लेने भेजती है। सामान लाने के इस सिलसिले में अपनी उम्र के मुताबिक घूमता-झूमता वह जितनी बार भी दुकान पर पहुंचता है, हर बार अपने साथ लाए सामान में से कुछ न कुछ रास्ते में ही गुम कर देता है। चीज़ों को खो देने की अपनी इस यात्रा में वह न केवल पाठक को तत्कालीन काहिरा शहर की गतिविधियों के बारे में बताता है, साथ ही वह खुद को एक ऐसी घटना के गवाह के रूप में भी पाता है, जिसका उसके अलावा और कोई गवाह होता ही नहीं है। पेश है मिस्री कहानी 'मदारी रकाब दे उड़ा।'

August 28, 2022