मदारी रकाब ले उड़ा
किशोरावस्था का दौर हर इंसान की ज़िंदगी का सबसे रंगीन दौर होता है। किसी भी चिंता या फिक्र से बेपरवाह रात-दिन तपती दोपहर से सावन की ठंडी बूंदों में कब बदल जाते हैं, पता ही नहीं चलता। मिस्र और अरबी साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले कथाकार नजीब महफ़ूज़ की प्रस्तुत कहानी ऐसे ही किशोर के सपनों और उसकी नटखत गतिविधियों के गिर्द घूमती है, जिसे उसकी अम्मी बाजार से कोई सामान लेने भेजती है। सामान लाने के इस सिलसिले में अपनी उम्र के मुताबिक घूमता-झूमता वह जितनी बार भी दुकान पर पहुंचता है, हर बार अपने साथ लाए सामान में से कुछ न कुछ रास्ते में ही गुम कर देता है। चीज़ों को खो देने की अपनी इस यात्रा में वह न केवल पाठक को तत्कालीन काहिरा शहर की गतिविधियों के बारे में बताता है, साथ ही वह खुद को एक ऐसी घटना के गवाह के रूप में भी पाता है, जिसका उसके अलावा और कोई गवाह होता ही नहीं है। पेश है मिस्री कहानी 'मदारी रकाब दे उड़ा।'
August 28, 2022