किस चीज़ से डरते हैं वे?
"वे डरते हैं / किस चीज़ से डरते हैं वे / तमाम धन-दौलत / गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद? / वे डरते हैं / कि एक दिन / निहत्थे और ग़रीब लोग / उनसे डरना / बंद कर देंगे।"
गोरख पाण्डेय की क्रांतिकारी कविता के ये अमर शब्द हिंदुस्तान की सड़कों से लेकर मेक्सिको के जंगलों तक अलग-अलग आवाज़ों में गूंजते हैं। इनमें से एक सबकमानदांते मार्कोस की आवाज़ भी है, जो कहती है, “आज नहीं तो कल अमरीकी सरकार के समर्थन के बावजूद, लाखों डॉलर खर्चने के बावजूद, सैकड़ों झूठ फैलाने के बावजूद, जो तानाशाही मैक्सिको के आसमान में काले बादल की तरह छाई हुई है, उसका अंत जरूर होगा। मैक्सिको की जनता जरूर कोई तरीका ढूंढ निकालेगी, जिससे वह लोकतंत्र, स्वतंत्रता और न्याय के अपने ऐतिहासिक अधिकारों पर दावा कर सके।” आज नहीं तो कल हिन्दुस्तानी सरकार के दमन के बावजूद, करोड़ों रुपए खर्चने के बावजूद, सैकड़ों झूठ फैलाने के बावजूद, जो तानाशाही हिंदूओं और उनकी हिन्दुस्तानी सरकार ने कश्मीर, ब्रह्मपुत्र बेसिन और इंडियन उपमहाद्वीप के अन्य लोगों पर जमाई हुई है, उसका अंत भी जरूर होगा। इन सब जगहों की जनता जरूर कोई न कोई तरीका ढूंढ निकालेगी, जिससे वह लोकतंत्र, स्वतंत्रता और न्याय के अपने ऐतिहासिक अधिकारों पर दावा कर सके और तथाकथित हिंदू सभ्यता का पूर्ण विनाश कर सके। इस लेख में आप मेक्सिको के ही नहीं, दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले आज़ादी-परस्त मनुष्य की आवाज सुन सकते हैं, चाहे वह मकबूल भट्ट हो, चे ग्वेरा हो, गोरख पाण्डेय या फिर मैल्कम एक्स ही क्यों न हो।
June 19, 2022