एक पाकिस्तानी सिपाही की डायरी
इंसान इतिहास से ज्यादा उसकी गाथा में रूची रखता है। उसका इंसानियत से ज्यादा शैतान में भरोसा होता है। उसे शांति से ज्यादा विध्वंस पसंद है। इतिहास भी युद्धों को याद रखता है, उनमें शहीद होने वाले को नहीं। विजेता सेनापतियों को तमगे मिलते हैं और उन्हें विजेता बनाने वाले सैनिक खाक में मिल जाते हैं। युद्धों की यही हकीकत है। 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच हुई युद्ध की गाथा सुनाती एक पाकिस्तानी सिपाही की यह डायरीनुमा रचना एक ऐसे सैनिक की कहानी है, जो घर की मजबूरियों के चलते सेना में शामिल होता है और युद्ध में अपने मासूम और निर्दोष भांजे को हमेशा के लिए खो देता है।
February 22, 2022