अराजकतावाद और संगठन: वामपंथियों के नाम एक पत्र

यह लेख प्रारम्भतः “क्रांति के संघर्ष और कालों के स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में अराजकतावादियों और व्यक्तिवादियों के ऊपर ह्युई न्यूटन की टिप्पणी” में अराजकतावादियों पर हुए हमले के जवाब में लिखा गया था। इस में बताया गया है कि अराजकतावादी संगठन के खिलाफ नहीं हैं। मगर, जैसा कि उनके नाम से स्पष्ट है, वे राज के खिलाफ हैं, किसी का भी किसी के ऊपर राज। उनके हिसाब से हर व्यक्ति अपने खुद के ऊपर राज करने के योग्य होता है और इसलिए किसी का भी किसी दूसरे के ऊपर राज करना नैतिक तौर से गलत है।

अराजकतावाद और संगठन: वामपंथियों के नाम एक पत्र

बंद मुट्ठी उठाए हुए विद्रोह और क्रांति का सार्वभौमिक संकेत, सिसिली में स्प्रे कैन ग्रफीटी, photograph by Terence Kerr

(ह्युई न्यूटन की टिप्पणी हिन्दी में यहां पढ़ें: लिंक)

अनुवाद: अक्षत जैन और अंशुल राय
स्त्रोत: Anarchist Library

यह प्रचलित मिथक है कि अराजकतावादी क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए संगठित होने में विश्वास नहीं करते। ल’एक्सप्रेस (L’Express) को दिए गए इंटरव्यू में मार्क्यूस ने इस मिथक को इसके विश्राम गृह से कुछ महीने पहले उठाया था, फिर इसको ह्युई न्यूटन ने अपनी ‘इन डिफेन्स ऑफ सेल्फ-डिफेन्स’ में दोहराया, जिसको न्यू लेफ्ट नोट्स ने अपने नैशनल कन्वेन्शन इशू में छापने का निर्णय लिया।

संगठन और गैर-संगठन पर यह बहस बेबुनियाद है; यह मामला गंभीर अराजकतावादियों के बीच कभी विवाद का विषय नहीं रहा है, यह शायद केवल उन एकाकी व्यक्तिवादियों के बीच विवादित रहा, जिनकी विचारधारा अराजकतावाद से ज़्यादा शास्त्रीय उदारवाद के एक चरम रूप पर आधारित है। हां, अराजकतावादी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तर पर संगठित होने में विश्वास रखते हैं। अराजकतावादी संगठन हर तरीके के रहे हैं—ढीले, अधिक विकेन्द्रीकृत समूहों से लेकर कई हजारों के वैनगार्ड आंदोलनों तक, जैसे स्पैनिश Iberian Anarchist Federation (FAI), जो अत्यधिक ठोस तरीके से कार्य करता है।

असल सवाल संगठन और गैर-संगठन के बीच चुनने का नहीं है, बल्कि किस तरह से संगठित हुआ जाए, इसका है। अलग-अलग तरह के अराजकतावादी संगठनों के बीच यह समानता है कि वे सभी ज़मीनी स्तर पर जैविक तरीके से विकसित हुए हैं, ऊपर से लोगों पर थोपे नहीं गए हैं। वे सभी सामाजिक आंदोलन हैं, जो रचनात्मक क्रांतिकारी जीवन शैली को रचनात्मक क्रांतिकारी सिद्धांतों के साथ जोड़ते हैं; वे राजनीतिक दल नहीं हैं, जिनका अस्तित्व अपने प्रतिवेश के पूंजीपति पर्यावरण से अभिन्न है और जिनकी विचारधारा आज़माए और परखे गए प्रोग्रामों तक ही सीमित है। जितना मानवीय रूप से संभव है, उतने हद तक वे उस स्वतंत्र समाज को प्रतिबिंबित करते हैं, जिसको वे हासिल करना चाहते हैं। वे ग़ुलाम की तरह पदानुक्रम, वर्ग और प्राधिकरण की प्रचलित प्रणाली को नहीं दोहराते। वे भाई-बहनों के सुपरिचित समूहों के इर्द-गिर्द निर्मित हैं, जिनकी सहभागिता के साथ कार्य करने की क्षमता आत्मबल, स्वतंत्रता के साथ बनाई गई धारणाओं और गहन व्यक्तिगत भागीदारी पर आधारित है, न कि नौकरशाही उपकरण पर, जो अधीन सदस्यता के बल पर बनते हैं और ऊपर से मुट्ठीभर सर्वज्ञानी नेताओं द्वारा संचालित होते हैं।  

जब ह्युई ऐसे अराजकतावादियों के बारे में बात करते हैं, जिनका मानना है कि उन्हें स्वतंत्रता हासिल करने के लिए केवल खुद को अभिव्यक्त करना है, तो मुझे नहीं पता वह किससे बहस कर रहे हैं। शायद टिम लियरी, एलेन गिन्सबर्ग, द बीटल्स जैसे लोगों से, निश्चित तौर पर उन क्रांतिकारी-अराजकतावादी कम्युनिस्ट से तो नहीं जिनको मैं जानता हूं—और मैं काफी मात्रा और प्रतिनिधि संख्या में ऐसे लोगों को जानता हूं। मेरे लिए यह भी स्पष्ट नहीं है कि फ़्रांस में मई-जून में हुए विद्रोह के बारे में तथ्य ह्युई ने कहां से प्राप्त किए। कम्युनिस्ट पार्टी और फ्रेंच वामपंथ की अन्य प्रगतिशील पार्टियां केवल जनता के पीछे नहीं छूट गईं थीं, जैसा कि ह्युई को लगता है; इन अनुशासित और केंद्रीकृत संगठनों ने क्रांति की राह में बाधा बनने, और उसको पारंपरिक संसदीय प्रणाली में वापस लाने का हर पैंतरा अपनाया। अनुशासित, केंद्रीकृत त्रोत्सकीवादी FER और माओवादी समूहों ने भी क्रांतिकारी छात्रों का, उन्हे अत्यंत-वामपंथी, उग्रवादी और रोमानी बताकर, मई में हुए पहले सड़क झगड़े तक विरोध किया। स्वाभाविक तौर से, फ्रेंच वामपंथ के अधिकतर अनुशासित, केंद्रीकृत संगठन या तो वारदातों के बेहद पीछे रहे, या फिर कम्युनिस्ट पार्टी और फ्रेंच वामपंथ की अन्य प्रगतिशील पार्टियों ने छात्रों और मज़दूरों को बेशर्मी के साथ सिस्टम को बेच खाया।

मुझे यह अजीब लगा कि जहां एक तरफ ह्युई ने फ्रेंच स्टालिनवादी टट्टुओं पर सिर्फ़ जनता के पीछे छूट जाने का आरोप लगाया, वहीं दूसरी ओर उन्होंने जनता की मजबूरी में डी गॉल की तरफ मुख करने के लिए अराजकतावादियों और डैनी कोहन-बेनडिट को जिम्मेदार ठहराया। मई-जून के विद्रोह के कुछ ही समय बाद मुझे फ़्रांस जाने का मौका मिला और मैं बिना किसी कठिनाई के इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि डैनी कोहन-बेनडिट, मार्च 22 के आंदोलन और अराजकतावादियों ने कितनी सख्ती के साथ जनसमूहों और कार्य समितियों को ऐसे संरचनात्मक प्रोग्राम में पिरोने की कोशिश की जो डी गॉल की सरकार की जगह ले सके। मैं काफी स्पष्टता के साथ यह बतला सकता हूं कि मज़दूरों की कारखानों पर पकड़ बनाए रखने के लिए और किसानों के साथ प्रत्यक्ष आर्थिक संपर्क साधने के लिए उन्होंने किस प्रकार के प्रयास किए; संक्षेप में उन्होंने कैसे फ्रेंच राजनीतिक और आर्थिक ढांचे को बदलकर रचनात्मक, व्यवहार्य क्रांतिकारी ढांचा स्थापित करने की कोशिश की। उनके इन प्रयासों में फ्रेंच वामपंथ की अनुशासित, केंद्रीकृत पार्टियां और कई त्रोत्सकीवादी और माओवादी पंथ लगातार बाधाएं डालते रहे।      

एक और मिथक है जिसका भांडाफोड़ करने की जरूरत है—यह मिथक कि सामाजिक क्रांतिकारी दृढ़ता से अनुशासित काडर के बने होते हैं, जिनको अत्यंत केंद्रीकृत लीडर निर्देशित करते हैं। सारी महान सामाजिक क्रांतियां गहरी ऐतिहासिक शक्तियों और अंतर्विरोधों का काम हैं, जिनको क्रांतिकारी और उसका संगठन बहुत कम योगदान देते हैं और, अधिकतर किस्सों में, पूरी तरह से गलत तरीके से समझते हैं। क्रांति खुद अनायास भड़क उठती है। यशस्वी पार्टियां अक्सर वारदातों के पीछे रहती हैं—और अगर विद्रोह सफल होता है तो उसे हड़पने और लगभग हमेशा अपने हिसाब से तोड़ने-मरोड़ने आ जाती हैं। तब ही क्रांति वास्तविक तौर पर अपने संकटकाल में पहुंचती है: क्या यशस्वी पार्टी क्रांति की रक्षा के अपने पवित्र मिशन में फिर से पदानुक्रम, प्रतिशोध और शक्ति का दूसरा सिस्टम बनाएगी, या खुद क्रांति में घुलकर पदानुक्रम, प्रतिशोध और शक्ति पर टिके सिस्टम को भंग कर देगी? अगर क्रांतिकारी संगठन इस तरह से संरचित नहीं हैं कि अपना उत्प्रेरक का कार्य खत्म करके उन लोकप्रिय शैलियों में घुल जाए जो क्रांति में उत्पन्न हुई हैं; अगर उसकी खुद की संरचना उस मुक्तिवादी समाज के जैसी नहीं है जैसा वह बनाना चाहती है, जिससे वह भविष्य की क्रांतिकारी शैलियों में घुल सके—तब तो फिर संगठन अतीत की शैलियों को क्रांति में ढोने का माध्यम बन जाता है। वह एक स्वयं अवरित जीव बन जाती है, एक ऐसी राज्य मशीन जो मुरझाने के जगह अपने आपको अस्तित्व में रखने के लिए सारी पुरातन परिस्थितियों को बढ़ावा देती है।

इस दावे में, कि दृढ़ता से केंद्रीकृत और अनुशासित पार्टी क्रांति की सफलता को बढ़ावा देती है, वास्तविकता से ज़्यादा मिथकता है। अक्टूबर 1917 से मार्च 1921 तक बोलशेविक विभाजित और गुटीय कलह से ग्रसित थे। विडंबना की बात तो यह है कि व्हाइट आर्मी को रूस से पूरी तरह खदेड़ने के बाद ही लेनिन पार्टी को पूरी तरह से केंद्रीकृत और अनुशासित कर पाए थे। श्रेणीबद्ध, अनुशासित और अत्यंत केंद्रीकृत सोशल डेमोक्रैटिक और कम्युनिस्ट जैसी वामपंथी पार्टियों द्वारा लगातार रचे गए विश्वासघात इससे बहुत ज़्यादा वास्तविक रहे हैं।

यह विश्वासघात लगभग अनिवार्य हो गए थे, क्योंकि हर वह संगठन (चाहे उसके बोल कितने भी क्रांतिकारी हों और उसके इरादे कितने भी नेक) जो अपने आप को उसी सिस्टम के मॉडल पर संरचित करता है जिसको वह उखाड़ फेंकना चाहता है, पूंजीपति संबंधों में आत्मसात हो ही जाता है और उसके द्वारा ध्वस्त हो जाता है। उसकी प्रकट प्रभावशीलता ही उसकी सबसे बड़ी विफलताओं का स्त्रोत बनती है।

यह बिल्कुल सच है कि कई मुसीबतें आती हैं जिनको समितियों से, समन्वय से और उच्च श्रेणी के आत्म अनुशासन से ही सुलझाया जा सकता है। एक अराजकतावादी के लिए, समितियां उन उपयोगी कार्यों तक ही सीमित होनी चाहिए जिनके कारण वे अस्तित्व में आई थीं, और उनका काम खत्म हो जाने के बाद समितियों को भंग करना जरूरी है। समन्वय और आत्म अनुशासन क्रांतिकारी की उच्च नैतिक और बौद्धिक क्षमता के बल पर स्वेच्छा से हासिल होना चाहिए। इससे कम कुछ भी मांग करने का मतलब है ऐसे क्रांतिकारी को स्वीकार करना जो नासमझ रोबोट या सत्तावादी प्रशिक्षण के बनाए गए प्राणी की तरह हो, एक ऐसा गैर-संचालित एजेंट जिसका व्यक्तित्व और दृष्टिकोण स्वतंत्र समाज के एकदम विपरीत है।

कोई भी गंभीर अराजकतावादी ह्युई की दलील से असहमत नहीं होगा कि इस साम्राज्यवादी संरचना को नेस्तनाबूद करने के लिए व्यवस्थित समूहों और संगठनों की जरूरत है। अगर ऐसा बिल्कुल भी संभव है तो हमें साथ काम करना चाहिए। हम को यह भी पहचानना होगा कि अमरीका में, जो आज विश्व साम्राज्यवाद का केंद्र है, एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था और टेक्नॉलजी विकसित की गई है जो रातों-रात उन सारी तकलीफों को खत्म करने की काबिलीयत रखती है जिनके चलते मार्क्स ने एक समय पर राज्य की जरूरत को उचित ठहराया था। संभावित प्रचुरता और साइबरनेटिक उत्पादन पर आधारित आर्थिक व्यवस्था के साथ उस सैद्धांतिक पोज़िशन से निपटना जो अभी भी कोयले, अपरिष्कृत मशीनें, लंबे समय तक कड़ी मेहनत और सामग्री के अभाव वाले प्रौद्योगिकीय काल में अटकी है, बेहद विनाशकारी हो सकता है। वक्त आ गया है कि हम माओ के चीन और कैस्ट्रो के क्यूबा से सीखने का प्रयास करना बंद करें—और उस अद्भुत आर्थिक वास्तविकता को देखें जो हमारी आंखों के सामने है और जिससे पूरी मानवजाति को लाभ पहुंचाया जा सकता है अगर हम अमरीकी पूंजीवादी साम्राज्य को ढहाकर उसके साधनों का मानवता के भले के लिए इस्तेमाल करने में कामयाब हो सकें।        

 

मुर्रे बूकचिन
मुर्रे बूकचिन

मुर्रे बूकचिन अमरीकी लेखक, समाजशास्त्री, इतिहासकार और राजनीतिक दर्शनशास्त्री थे। पर्यावरण आंदोलन के प्रथम अन्वेषकों में से एक, उन्होंने अराजकतावादी और समाजवादी विचारधाराओं में सामाजिक पारिस्थितिकी और शहरी नियोजन के सिद्धांतों को विकसित किया। मुर्रे बूकचिन अमरीकी लेखक, समाजशास्त्री, इतिहासकार और राजनीतिक दर्शनशास्त्री थे। पर्यावरण आंदोलन के प्रथम अन्वेषकों में से एक, उन्होंने अराजकतावादी और समाजवादी विचारधाराओं में सामाजिक पारिस्थितिकी और शहरी नियोजन के सिद्धांतों को विकसित किया।