पटचित्र: रवि कावड़े
अनुवाद: शहादत खान
अप्रैल शुरू होकर ख़त्म हो गया। मई और जून एक क़तरा पानी बरसे बग़ैर गुज़र गए। वसंत से अब तक आसमान नीले रेगिस्तान की तरह है। हर सुबह सूरज किसी चमकदार सफ़ेद तश्तरी की तरह उगता है, जो दिन गुज़रने के साथ बढ़ती और गर्म होती जाती है। झींगुर बेदिली से पेड़ों की झुरमुटों में रेंगते रहते हैं। गांव से बाहर बना विशाल तालाब अब सिकुड़कर लड़कों के लिए नहाने का टब बन चुका है। कमर तक आते पानी में लड़के एक-दूसरे पर मूतते रहते हैं। सड़क के किनारे खड़ी चार या पांच साल की दो लड़कियां चिड़िया के बच्चों के परों की तरह अपने नंगे बाजू ठहरी हुई हवा में हिलाती हुए गा रही हैं, “आओ पूर्व की हवा। आओ पश्चिम की हवा। आओ पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण की हवाओं और मुझे ठंडक पहुंचाओ।”
जब जुलाई के दरवाजे से निकलने में कुछ ही दिन रह गए, तो हमने बारिश बरसने की बजाए बारिश न होने की दुआएं करनी शुरू कर दी। ताकि कटाई के मौसम के आख़िर तक इसी तरह सूखा बना रहे। हम किसान हैं। बग़ैर दानों के पतझड़ का मौसम कैसे काटेंगे यह सोच-सोच कर परेशान हैं। लेकिन आश्चर्य से बिना बारिश का यह मौसम हमारी ज़िंदगियों में फीका-सा इतमीनान लाया है। रोज़ाना सुबह से शाम तक हम वृद्ध शिवालय के पेड़ के नीचे बैठे तंबाकू पीते रहते हैं। और जब तक पेड़ की छाया हमें पूरी तरह सूरज के रहम-ओ-करम पर छोड़ देने की धमकी नहीं देती तब तक हम वहां से नहीं हटते। घर में हमारी औरतें हमारे लिए अच्छा खाना बनाने के लिए सिर खुर्चती रहती हैं। पिछले साल के चावल बस अब ख़त्म होने को हैं। इससे पहले ही हमारी औरतों के बाल बहुत ज़्यादा खुर्चने के कारण पतले हो जाएंगे और वे गंजी हो जाएंगी। लेकिन इन सब छोटे-मोटे हादसों से हमने परेशान होना छोड़ दिया है, ऐसी चीजें तो दुनिया भर में होती ही रहती हैं। हम बस बैठे पाइप में तंबाकू फूंकते रहते हैं जब तक कि हमारा उस दिन के तंबाकू का कोटा ख़त्म नहीं हो जाता। उसके बाद हम घास की जड़ों और अर्ध-मुर्दा पत्तों से अपने पाइप भर लेते हैं। जब वे भी ख़त्म हो जाएं तो हम मिट्टी जलाने लगते हैं।
बहुत देर तक चुपचाप स्मोकिंग करने के बाद हममें से एक ने बात शुरू की, “यह सूखा क़ुदरत की सज़ा है।”
“बिल्कुल... इतनी ज़्यादा मौतें।”
“ऐसी बात है तो क़ुदरत हमसे कभी भी ख़ुश नहीं होगी। लोग तो मरते ही रहते हैं।”
“और हमें कभी बारिश की एक बूंद तक नसीब नहीं होगी।”
“मुझे तो इससे कोई तकलीफ नहीं है। मैं वैसे भी खेती-बाड़ी से तंग आ चुका हूं।”
“बिलकुल सही, क़ुदरत तुम्हें चूतड़ों पर मारना चाहती है और तुम जल्दी से नंगे होकर उससे कहते हो, मुझे यहां खुजली हो रही है, जरा आ के खुजा दो।”
“इसे कहते हैं आशावाद, रोने धोने और माफियां मांगने से तो यह बेहतर है।”
“तुम तो एक नरम ख़ुरमा हो। मैं कुदरत की पैंट पकड़ लेता और उसके चूतड़ों पर बदले में एक लात दे मारता।”
“वाह, हमारे बीच एक हीरो है।”
“क्यों नहीं?”
“क्योंकि हम पैदाइशी नरम ख़ुरमा हैं। कभी किसी ख़ुरमा से हीरो निकलते देखा है?”
“लाओ डा।”
“लाओ डा, उन्होंने तरबूज़ की तरह उसका दिमाग़ भक् से उड़ा दिया।” वह हममें से एक था। वह इस वक़्त हमारे बीच बैठा होना चाहिए था। हमारे साथ तंबाकू पीते हुए, एक दो बात कहने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए। रात होने पर हम सब के साथ वह भी घर जाता, अपने बेटे को प्यार करता, हंडिया के क़तरे अपने कांटे से लड़के के मुंह में टपकाता। लाओ डा कभी भी हीरो बनने की शैख़ियां नहीं बघारता, उसके जैसा आदमी, वह ज़मीन-ओ-आसमान के दरमियान अपनी जगह जानता था। लेकिन हक़ीक़त यह है कि यह सूखा शुरू होने से पहले ही उसे मार दिया गया। नए साल की शाम वह काउंटी के केंद्रीय स्थल पर गया और वहां सत्रह लोगों को उनके अपने-अपने घरों में गोलियों से भून डाला। इनमें चौदह मर्द और तीन औरतें थीं। उनमें से सोलह मौके पर ही मारे गए और सत्रहवां सिर्फ़ नए साल का आधा दिन देखने तक ज़िंदा रहा।
“अगर तुम नरम ख़ुरमा पैदा हुए थे तो बेहतर है तुम वैसे ही रहो”—हममें से किसी ने पुरानी कहावत दोहराई।
“ख़ुरमा पैदा होते वक़्त नरम नहीं होते।”
“लेकिन उनको पसंद उनकी नरमी के कारण ही किया जाता है।”
“उनके रस भरे होने के कारण।”
“अगर हम नरम और रस से भरे रहें तो?”
“तो क़ुदरत हमें निचोड़ती रहेगी, जब तक वह निचोड़ने से ख़ुद न थक जाए।”
“हो सकता है वह हमें पसंद करने लगे। हम उसके लिए अच्छी-ख़ासी तफ़रीह हैं।”
“तब तक हमारी सिर्फ खाल ही बची होगी।”
“खाल के बग़ैर रहने से तो बेहतर ही है।”
“गोली से दिमाग कि धज्जियां उड़वाने से तो बेहतर ही है।”
“अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए कोई बेटा न होने से तो बेहतर ही है।” एक लम्हे के लिए ख़ामोशी छा गई। सब को अपने ज़िंदा होने का एहसास हुआ। हमें एहसास हुआ कि हम कितने खुशनसीब हैं, हम सब के ख़ानदानों को आगे बढ़ाने के लिए लड़के हैं। पिछले साल लाओ डा का बेटा भी उन्हीं लड़कों में से था। उसकी उम्र पांच साल थी। सभी छोटे बच्चों की तरह बड़े बच्चों के पीछे भागता, बड़े लड़के जब अपनी ग़ुलेल से झींगुर मारते तो बाक़ी छोटे बच्चों के साथ वह भी मुर्दा झींगुर इकट्ठा करता जाता। सूखे पत्ते और सूखी टहनियां उस आग में डालता रहता, जो इन झींगुर को भुनने के लिए जलाई गई थी। एक या दो झींगुर, जो उस के हिस्से में आते, उनके लिए इंतज़ार करता।
“लाओ डा का बेटा बहुत बुरी तरह से मरा।”
“मरने का कोई अच्छा तरीका भी होता है क्या जैसे!”
“वे सत्रह, उनकी मौत अच्छे से नहीं हुई क्या? जल्द और बिना दर्द के।”
“शहर वाले कहते थे कि वे सत्रह बुरी तरह मारे गए।”
“बेरहमी से क़त्ल—क्या अख़बारों के शीर्षक यही नहीं थे?”
“वह तो सच है, उनका क़त्ल किया गया था।”
“लेकिन शहर में कोई नहीं कहता कि लड़का बुरी तरह मारा गया। वहां तो किसी ने लाओ डा के लड़के का नाम भी नहीं लिया।”
“बेशक, वे क्यों लेंगे? कोई भला क़ातिल के बेटे के बारे में क्यों कुछ सुनना चाहेगा? और वो भी एक मुर्दा बेटा।”
“अगर वे उसके बारे में लिखते भी तो क्या लिखते?”
“यही न कि तैराकी के दौरान डूब गया। यही मौत के सर्टीफ़िकेट में लिखा गया था।”
“वे ऐसा कहते कि ऐसे हादसे आए दिन होते रहते हैं।”
“लड़के की मौत कहानी बनने लायक नहीं थी।”
लेकिन उन सत्रह मर्दों और औरतों की कहानी लाओ डा के मुक़द्दमे में हमको पढ़कर सुनाई गई। उन सत्रह लोगों की बड़ी-बड़ी तस्वीरें थियेटर स्टेज से हमें देख रही थीं। इस थियेटर के स्टेज को वक़्ती तौर पर अदालत बनाया गया था ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग वहां आ सकें। हमें उनके नाम अब याद नहीं। लेकिन कुछ चेहरे याद हैं। एक औरत घने मेकअप में जो उस लड़की की तरह दिख रही थी जिस पर हम सब का अपने यौवन में दिल आया था। एक आदमी जिसकी आंखों की भौहें सीढ़ीनुमा थी। एक और आदमी जिसकी बाईं आंख के नीचे एक मनहूस तिल था। ये चेहरे हमारी स्मृतियों में जम गए हैं। और इनके साथ कुछ कहानियां भी। एक आदमी जो बीस साल से बर्फीले पानी में तैराक रहा था, और अपनी बालिग ज़िंदगी में एक दिन भी बीमार नहीं हुआ था। एक मां, जिसकी नाबालिग लड़की इसी साल के शुरू में ख़ून के रिसने से मर गई। एक सरकारी अफ़सर और उसकी जवान सेक्रेटरी, जिनके बारे में अफ़वाहों से पता चला कि उनका आपस में चक्कर चल रहा था, लेकिन अदालत में उनकी कहानी में उन्हें अपने-अपने मियां बीवी से मुहब्बत करने वाला बताया गया। इसी तरह बाकी लोगों की कहानियां, जिन्हें सुनते-सुनते हम ऊंघने लगे थे। आख़िर हमको उन लोगों की कहानियां सुनाने का क्या मक़सद था? लाओ डा के बचने का कोई तरीका नहीं था। उसने यह जानते हुए कि उसे सज़ा-ए-मौत दी जाएगी, ख़ुद को पुलिस के हवाले कर दिया। तो बेहतर नहीं था कि उनके यारों-रिश्तेदारों को अदालत में रोने धोने की शर्मिंदगी से बचा लिया जाता। इसके अलावा लाओ डा की कहानी तो सुनाई ही नहीं गई। उसके बारे में सिर्फ इतना ही बताया गया कि वह साफ तौर पर मुजरिम था।
“इस हवाले से सोचो, लाओ डा ही वह अकेला शख़्स था जो अच्छी मौत मरा।”
“एक गर्व करने लायक मौत।”
“अगले जहां के लिए उसे काफ़ी साथी मिल गए।”
“लेकिन हमें भी मुसीबत में डाल गया।”
“यह उसकी गलती नहीं है।”
“बेशक, लाओ डा तो महज़ एक बहाना बना। क़ुदरत हमें निचोड़ने का कोई और बहाना ढूंढ लेती।”
“मैं सोच रहा हूं कि हो सकता है कि क़ुदरत उसकी वजह से नहीं बल्कि उसके लिए नाराज़ हो?”
“कैसे?”
“मैंने अपने दादा से और उसने अपने दादा से सुना था कि एक औरत को मर्डर करने के जुर्म में मौत की सजा दी गई थी, तो उसके बाद तीन साल तक बारिश का एक क़तरा तक नहीं गिरा था।”
“मैंने भी अपने दादा से सुना था कि क़ुदरत उस औरत का इंतिक़ाम ले रही थी।”
“लेकिन उसके साथ गलत किया गया था। उसने अपने शौहर का क़त्ल नहीं किया था।”
“एकदम सही।”
लाओ डा के साथ गलत नहीं किया गया था। उसने सत्रह लोग मारे। उसे अपनी ज़िंदगी से उनकी क़ीमत चुकानी थी। ख़ुद लाओ डा ने भी अपना सिर हां में हिलाकर जज की सुनाई सज़ा कबूल की थी। स्टेज से उतरते वक्त वह जज के और गार्ड के आगे सम्मान में झुका भी था। “मैं एक क़दम पहले जा रहा हूं,” उसने कहा था। “दूसरी तरफ आपका इंतज़ार करूंगा।” गार्ड, जज और अफसर जो स्टेज पर थे, कोई भी लाओ डा से आंखें नहीं मिला पा रहा था। लेकिन वह अलविदा कहने से चूका नहीं। “जल्द आना, मुझे बहुत ज़्यादा इंतज़ार मत करवाना।” हमें लाओ डा से इस मज़ाक की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। हम उसे देखकर मुस्कुराए तो वह भी हमें देखकर मुस्कुराया। लेकिन फौरन ही जज ने दो और गार्ड को इशारा किया कि उसे स्टेज के पीछे ले जाएं, इससे पहले कि वह और लोगों को भी न्योता दे।
“लाओ डा मर्द था।”
“उसने क़ुदरत के भी चूतड़ों पर दे मारा।”
“लेकिन अब कौन जीत रहा है?”
“इस सबसे अब लाओ डा को कोई फर्क नहीं पड़ता। वह अपने शानदार लम्हात जी गया।”
“लेकिन हमें तो फर्क पड़ता है। हमें उनके लिए सज़ा मिल रही है जिनके साथ मौत ने ज़ुल्म किया।”
“कौन?”
“वे सत्रह।”
“जिस औरत का अपने बॉस के साथ चक्कर चल रहा था, आशा करता हूं वो तो नहीं।”
“बिल्कुल नहीं। वह तो इसी के लायक थी।”
“वह औरत लाओ डा की बीवी के पैर के नाख़ुन से भी छोटी थी।”
“वह औरत तो लाओ डा की बीवी की एक पाद से भी सस्ती थी।”
“सच।”
“लाओ डा की बीवी बहुत अच्छी औरत थी।”
“लाओ डा की ज़िंदगी के लायक।”
सबने इस बात का समर्थन किया और दिल ही दिल में अपनी बीवियों की उससे तुलना करने लगे। वह खेतों में मर्दों की तरह काम करती और घर में औरत बनकर रहती थी। वह गोल-मटोल सेहतमंद थी। जब लाओ डा उसे वाजिब या नावाजिब कारणों से या फिर बस ऐसे ही पीटता तो वह एक चूं भी न निकालती। हमारी बीवियां इतनी अच्छी नहीं हैं। अगर वे बहुत पतली नहीं हैं तो फिर बहुत मोटी हैं। अगर वे मेहनती हैं तो हमें कभी अकेला नहीं छोड़तीं। हर वक़्त हमें हमारी सुस्ती के ताने देती रहती हैं। मार खाने पर बवाल मचाती हैं। बल्कि इससे भी कहीं ज्यादा कई बार पलटकर हाथापाई भी करती हैं।
“इतनी अच्छी औरत की क़िस्मत अच्छी होनी चाहिए थी।”
“उसको एक और बेटा होना चाहिए था।”
“लेकिन उसकी तो नसबंदी हो चुकी थी।”
“ग़रीब औरत ज़िंदा रहती अगर जनसंख्या नियंत्रण दफ़्तर ने उनकी ज़िंदगी में टांग ना अड़ाई होती . . .”
“साले कीड़े मकौड़ों की तरह हैं, है ना?”
जनसंख्या नियंत्रण ऑफिस वाले लाओ डा और उसकी बीवी के पीछे पड़े हुए थे जब से उन दोनों ने अपना पहला बच्चा होने के बाद ऑफिस में पेशी नहीं दी थी। उन्होंने लाओ डा के घर पर बड़े-बड़े लाल ब्रुश से एक बच्चा एक परिवार लिख दिया था। उन्होंने यह भी लिखा था कि केवल सुअर और कुत्ते एक से ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं। लेकिन लाओ डा और उसकी बीवी ने कभी हार न मानी। वे जनसंख्या नियंत्रण दफ़्तर के साथ आंख-मिचौली खेलते रहे। जब कभी बीवी का पेट बढ़ जाता तो वे किसी न किसी रिश्तेदार के घर छुप जाते। तीन बेटियों की पैदाइश और हर बार जुर्माना भरने से होने वाले कर्जे़ के बाद आख़िरकार उनका बेटा पैदा हुआ। जिस दिन लड़का सौ दिन का हुआ तो लाओ डा ने एक बकरी और दो दूध पीते सुअर के बच्चे जश्न के तौर पर कुर्बान किए। उसके बाद बीवी को किसी विजेता के अंदाज़ में क्लीनिक नसबंदी करने के लिए भेज दिया।
“जीने का क्या फ़ायदा अगर वह लाओ डा को एक और बेटा नहीं दे सकती थी? मुर्ग़ी अंडे न दे तो वह किस काम की?”
“सही।”
“लेकिन वह औरत एक ख़ास चीज़ थी।”
“थी की नहीं?”
हमने उस औरत की हिम्मत की दाद देते हुए एक दूसरे की तरफ देखा, हमारी नज़रों में उस औरत के लिए इज़्ज़त थी तो उसके साहस के प्रति थोड़ा खौफ भी था, क्योंकि हमें पता था कि हमारी औरतें इतनी हिम्मत कभी ना जुटा पातीं। हमारी औरतें चींखती-चिल्लाती और भीख मांगतीं, जब हमारे पास एक उपजाऊ कोख के लिए उनको डिवोर्स देने के अलावा कोई विकल्प ना बचता। लेकिन लाओ डा की बीवी अलग थी, उसने कभी भी आम औरतों जैसा बर्ताव नहीं किया। जब हम सब लाओ डा के साथ उसके बच्चे की लाश को ढूंढने तालाब में कूदे थे, तब उसकी बीवी ने पेस्टिसाइड की जितनी बोतलें उसे मिली उतनी पी डालीं, छः बोतलें एक के बाद एक और फिर वह जाकर बिस्तर पर लेट गई। छः बोतलें एक साथ उसको अंदर से टुकड़े-टुकड़े करने के लिए बहुत ज़्यादा थीं। लेकिन वह चुपचाप बिस्तर पर लेटी रही। कोई आवाज़ न निकाली। जबड़े भींच लिए और मौत का इंतज़ार करने लगी।
“बहुत ही अलग किस्म की औरत।”
“हो सकता है क़ुदरत इसी के लिए नाराज़ हो।”
“लेकिन उसके साथ किसी ने भी ज़्यादती नहीं की थी।”
“हां, लेकिन उसकी रूह को धोका मिला था।”
“किससे?”
“लाओ डा से।”
“लाओ डा ने तो उसका और अपने बेटे का इंतिक़ाम लिया।”
“क्या वह यही चाहती थी?”
“वह क्या चाहती थी?”
“सुनो, वह लाओ डा की नई बीवी के लिए जगह ख़ाली कर रही थी। ताकि लाओ डा के और ज्यादा बेटे हो सकें। उसने ज़हर इसलिए नहीं पिया था कि लाओ डा का दिमाग़ ख़राब हो जाए और ऐसा बेवकूफ़ाना फ़ैसला कर ले। सत्रह लोगों को गोली मार दे। सोचो ज़रा, लाओ डा ने सब कुछ ग़लत कर दिया।”
“उसकी बीवी की मौत ज़्यादा फायदेमंद हो सकती थी।”
“यह सच है। अब तो उसकी मौत बेकार हो गई।”
“और लाओ डा की भी।”
“और उन सत्रह की भी।”
“और वह तीन बच्चियां भी बेवजह अनाथ हो गईं।”
हमने तीनों लड़कियों के बारे में सोचते हुए सिर हिलाए। उनकी चींख-ओ-पुकार से हमारे कानों के पर्दे फट रहे थे, जब काउंटी आफ़िसर उन्हें बाज़ुओं से पकड़कर ज़बरदस्ती जीप में डाल रहे थे। उन्हें तीन अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग अनाथालयों में भेज दिया गया। सफ़्फ़ाक क़ातिल का गंदा तुख़्म। लाओ डा को उसी वक़्त जब वे पैदा हुई थीं तो हमारी बात मान लेनी चाहिए थी। उन्हें तभी डुबो देता तो आज वे ज़िंदगी-भर तकलीफ़ें सहने से बच जातीं।
“लाओ डा कुछ बेहतर कर सकता था।”
“लापरवाह आदमी।”
हम लाओ डा से बेहतर चुनाव करने की उम्मीद करते थे। हम मुर्दे को दफ़न करते। नई बीवी ढूंढते और नया बेटा पैदा करते। बीवी-बच्चों को खिलाने के लिए कमर-तोड़ काम करते। हर रोज सुबह उठते वक्त नरम ख़ुरमा होने की शर्मिंदगी से दर्द तो होता लेकिन अपमान से बंदा मरता नहीं। ज़िंदगी से चिपके रहने के अलावा कुछ नहीं किया जा सकता। मौत हमें कहीं का नहीं छोड़ती।
“एक इन्सान की गलती इन्सानों से भरे पूरे जहाज़ को डुबो सकती है।”
“सही।”
“बेटे की मौत से भी ज़्यादा बुरे हादसे हो सकते हैं ज़िंदगी में।”
“किसी की भी मौत पागल होने का और आपा खो देना का सबब नहीं बन सकती।”
“लेकिन लाओ डा को अपने बेटे के लिए इंसाफ का तक़ाज़ा करने का हक़ था।”
“इंसाफ? हमारे लिए किस प्रकार का इंसाफ होता है?”
“जब कोई क़त्ल करता है तो उसे अपनी ज़िंदगी से उसकी क़ीमत चुकानी पड़ती है। इस प्राचीन उसूल में कुछ भी ग़लत नहीं है। फिर जिसने लाओ डा के बेटे का क़त्ल किया तो उसे भी तो सज़ा मिलनी चाहिए थी।”
“उसे सज़ा मिली, सबसे पहले लाओ डा ने जिसे गोली मारी, क्या वह बच्चे का क़ातिल नहीं था?”
“दो गोलियां दिमाग़ में, दो गोलियां दिल में।”
“उसकी बीवी के सामने।”
“बहुत अच्छा किया।”
“इससे बेहतर क्या हो सकता था।”
“जब मैंने ख़बर सुनी तो मुझे लगा मैंने जवार की शराब का भरा बर्तन हलक़ से नीचे उतारा हो।”
“जवार की शराब बेहतरीन से बेहतरीन वाइन को मात दे देती है।”
“यही तो इंसाफ है।”
“एकदम सही। कोई भी इंसाफ के शिकंजे से नहीं बच सकता।”
“बस सही वक़्त का इंतज़ार करना पड़ता है।”
“क़ुदरत देखती है, क्या ऐसा नहीं है?”
“अगर ऐसा है तो फिर हमें क्यों सज़ा मिलती है? यह किस किस्म का इंसाफ है।”
“मैं तुम्हें बता चुका हूं कि हम खुरमे के फलों के लिए कोई इंसाफ नहीं।”
“अगर तुम एक शख़्स का क़त्ल करो तो तुम क़ातिल और अगर तुम बहुत सारों को क़त्ल करो तो तुम हीरो हो।”
“लाओ डा ने सत्रह क़त्ल किए।”
“काफी नहीं थे।”
“अगर तुमने अपनी बात मनवा ली तो तुम हीरो, अगर नाकाम रहे तो कुछ भी नहीं।”
“बात क्या मनवानी है?”
“सब के ऊपर समान कानून और संविधान लागू होना चाहिए।”
“तुम आदर्शवादी बातें कर रहे हो। असंभव मांगें करना बंद करो।”
“हम सब ने दंगे के दौरान असंभव मांगें की थीं, लेकिन हमें क्या मिला?”
“वह इसलिए कि हमने हार मान ली।”
“बकवास, मुर्दा लड़के के लिए लड़ कर क्या फायदा था?”
“सही।”
“जो कभी हो नहीं सकता उसके लिए जान जोखिम में डालने का क्या फायदा?”
“सही।”
हम सब ने सहमती में सिर हिलाए, जिससे जो छोटा-सा शक हमारे चारों ओर मक्खी की तरह घूम रहा था, उसे दूर भगा सकें। बेशक हम जो कर सकते थे हमने किया। जब लड़के का मुर्दा जिस्म पानी से निकाल लिया गया तो हम सब उसे लेकर काउंटी के दफ़्तर गए और इंसाफ की मांग की। अपने बेलचे, कुदालें, कुल्हाड़ियां, मुट्ठियां और गले ही हम अपने साथ लड़ने के लिए लेकर गए थे, लेकिन जब हुकूमत ने सशस्त्र पुलिस दस्ते हमारी तरफ़ भेजे तो हमने वापस घर आने का फ़ैसला कर लिया। लाओ डा को समझाया कि इस मसले का हल हिंसा नहीं है। अदालत जाओ और उस पर मुक़द्दमा करो। क़ानून के मुताबिक़ चलो।
“शायद हमें लाओ डा के दिमाग़ में मुक़द्दमा बाज़ी का ख़्याल नहीं डालना चाहिए था।”
“मैं अगर उसकी जगह होता तो यही करता।”
“यही किया? शहर के चक्कर काटते-काटते अपने बेटे के लिए इंसाफ मांगते। उसका बेटा तैराकी के हादसे में डूबकर मर गया—सफ़ेद काग़ज़ पर काली स्याही से उसकी मौत की सनद में यही लिखा था।”
“लेकिन हमारे लड़कों ने तो अलग कहानी सुनाई थी।”
“अदालत उनकी कहानियां आखिर क्यों सुनेगी?”
हम बैठकर तंबाकू पीते हैं और किसी के सवाल का जवाब देने का इंतज़ार करते हैं। पानी से भीगे हुए लड़कों का एक झुंड तालाब से वापस गांव लौट रहा है। अगर पिछले साल सूखा पड़ता तो लाओ डा का लड़का कभी न डूबता। इस साल हमें बच्चों की कोई फिक्र नहीं है, सबसे छोटे बच्चों की भी नहीं जो तैरना नहीं जानते। लेकिन पिछले साल सूरत-ए-हाल अलग थे। पानी इतना गहरा था कि लाओ डा का बेटा डूब गया।
“क्या तुम्हारे ख़्याल में अफसरों ने भी कुछ गलतियां नहीं की? अगर वह लाओ डा को कुछ रक़म दे-दिलाकर ख़ामोश करा देते तो?”
“अगर वे उस आदमी को एक-दो महीनों के लिए जेल में डाल देते तो?”
“क्या यह ठीक नहीं रहता? सिर्फ जेल में डालने का स्वांग ही रच लेते?”
“हां, बस लाओ डा को बता देते कि उस आदमी को सज़ा दे दी गई है।”
“हां, कम से कम लाओ डा के साथ ज़रा बेहतर सुलूक तो करते।”
“इस तरह अपने आपको बचा लेते।”
“लेकिन उन्हें क्या पता था। उन्होंने सोचा कि लाओ डा एक नरम ख़ुरमा है।”
“उसे अपनी तफ़रीह के लिए ख़ूब निचोड़ा।”
“उसके अंदर से एक क़ातिल निचोड़ कर निकाला।”
“लाओ डा से इस तरह आपा खो देने की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी।”
“हैरानकुन बात है कि इंसान कितना कुछ बर्दाश्त करता रहता है और फिर अचानक फट पड़ता है।”
“सही।”
“लेकिन वापस मेरे सवाल की तरफ़ आओ। एक मुर्दा बीवी और मुर्दा बच्चे के लिए पागल होने और आपा खोने से आखिर क्या फायदा है?”
“कहना आसान है करना मुश्किल।”
“सही। कितनी दफ़ा हमने उसे समझाया कि अब वह मुक़द्दमे का पीछा छोड़ दे।”
“कभी-कभी एक ख़्याल इंसान के दिमाग़ में समा जाता है और वह उसके पीछे शिकारी कुत्ता बन जाता है। उसे सिर्फ अपना लक्ष्य ही दिखाई देता है।”
“और अब हम उसकी बेवक़ूफ़ी का ख़मियाज़ा भुगत रहे हैं।”
हम सब ने लाओ डा के लिए अफ़सोस में, मगर ज़्यादा अपने बारे में ग़मगीन होते हुए सिर हिलाया। लाओ डा को हमारी बात सुननी चाहिए थी। उसकी बजाए वह उन अफसरों के नाम और पते इक्ट्ठे करता रहा जिन्होंने उसे कुत्ते की तरह धुत्कारा था। हमें नहीं मालूम वह कब से उस हत्याकांड की तैयारी कर रहा था। उसने नए साल की शाम तक उस क़त्ल-ए-आम के लिए आधा साल सब्र किया। यह बेहतरीन वक़्त था, जब सभी लोग साल के पूरे होने की खुशी मनाने के लिए अपने-अपने घरों में थे।
“कम-से-कम हमें लाओ डा की इतना अच्छा प्लान बनाने के लिए तारीफ़ तो करनी चाहिए।”
“जब इंतिक़ाम का वक़्त आया तो उसने बता दिया कि उसके पास दिमाग़ है।”
“और वे सत्रह मुर्दे, सोचो, जब उस रात उन्होंने लाओ डा को देखा तो सदमे से उनकी क्या हालत हुई होगी।”
“उम्मीद है उनको पछतावे का वक़्त मिला होगा, उसके लिए जो कुछ उन्होंने लाओ डा के साथ किया।”
“उम्मीद है कि उनके ख़ानदान वाले उसी तरह लाओ डा के आगे गिड़गिड़ाए होंगे जैसे वह अपने लड़के के लिए उनके आगे गिड़गिड़ाया था।”
“कोई नहीं जानता कि एक नरम ख़ुरमा से किस वक़्त क्या उम्मीद की जा सकती है।”
“उम्मीद है उन्हें सबक़ मिल गया होगा।”
“वे मर चुके हैं।”
“तो फिर किसी और ने सबक़ सीखा होगा।”
“ख़ामोश! अगर किसी काउंटी वाले ने सुन लिया तो...।”
“इतनी गर्मी में वे यहां नहीं हो सकते।”
“तालाब अब उनके काम लायक गहरा नहीं रहा।”
“यह तालाब ही सभी बुरे वाक़ियात का कारण है। उस मेहनत का सोचो जो हमने उसके लिए की।”
हम सब ने हां में सिर हिलाया और आह भरी। कुछ सालों पहले हमने अपना सारा खाली वक़्त उसकी तामीर में लगा दिया। इस उम्मीद में कि बारिश के लिए क़ुदरत पर हमारी निर्भरता ख़त्म हो जाएगी। बहुत जल्द तालाब काउंटी अफसरों के लिए तफ़रीहगाह बन गया। गर्मियों की दोपहरों में वे जीप में भरे आते, हमारे पानी में तैराकी करते। हमारी मछलियां पकड़ते। वह शख़्स एक जज था, लेकिन उसका असल काम क्या था हमें नहीं पता, क्योंकि हम काउंटी अदालत में काम करने वाले हर शख़्स को “जज” ही कहते हैं। वह जज और उसके साथी आए, पानी में उतरने से पहले ही वे नशे से मदहोश थे। लाओ डा के बेटे ने कुछ कहा, कोई मज़ाक़ किया होगा, जिससे वह नाराज़ हो गया। उसने लाओ डा के बेटे को उठाया और गहरे पानी में फेंक दिया। एक बड़ा झपाका, लड़कों को याद रहा। बाकी लड़कों ने चीखा चिल्लाया, भीख मांगी, मिन्नतें की, लेकिन जज सालों ने कहा यह उसे सबक़ सिखाएगा। लड़कों ने अपने में से सबसे तेज़-तर्रार को मदद लेने भेजा। लाओ डा का बेटा उस रात देर से मिला। उस की आँखें, होंठ, उंगलियां, अंगूठे, लिंग सब कुछ मछलियों ने कुतर लिए था।
“याद है लाओ डा उनमें से था जो यह तालाब बनाने में सबसे आगे थे।”
“उसने काम कर-करके अपनी कमर दोहरी कर ली थी।”
“बेचारा नहीं जानता था कि वह किस लिए अपना पसीना बहा रहा था।”
“हममें से कोई नहीं जानता था।”
“कम से कम हमें इस साल तो पसीना नहीं बहाना।”
“यक़ीनन, कोई भी मौत के इंतज़ार में पसीना नहीं बहाता।”
“मौत? नहीं, इतना बुरा नहीं।”
“इतना बुरा नहीं? मैं पूछता हूं कि इन सर्दियों में हम औरतों और बच्चों को क्या खिलाएंगे।”
“जो कुछ पतझड़ के बाद बच जाएगा।”
“कुछ नहीं बचेगा।”
“तब अपनी गाएं और घोड़े खिलाएंगे।”
“फिर?”
“फिर हम काउंटी जाएंगे और भिखारी बन जाएंगे।”
“भीख मांगना जुर्म है।”
“मुझे परवाह नहीं।”
“अगर कुछ गै़रक़ानूनी करना ही है तो भिखारी क्यों बनें? ताकि हर आने-जाने वाला हम पर थूके? मैं तो काउंटी जाऊंगा और खाने की दरख़ास्त करूंगा।”
“कैसे?”
“अपनी कुल्हाड़ी और मुट्ठी से।”
“बढ़कीं न मारो। एक दफ़ा पहले भी हम अपनी कुल्हाड़ियों और मुट्ठियों के साथ गए थे।”
“लेकिन वह मुर्दा बच्चे के लिए था। इस दफ़ा हम अपने ज़िंदा बच्चों के लिए जाएंगे।”
“तुम्हारा ख़्याल है कि ऐसे काम बन जाएगा।”
“कोशिश तो करनी पड़ेगी।”
“बेवकूफ़ाना सोच, अगर ऐसे काम बनता तो पिछली दफ़ा ही बन जाता। लाओ डा को किसी को मारने की ज़रूरत न पड़ती। और हमें सज़ा न मिलती।”
सब ख़ामोश हो गए। सूरज आहिस्ता-आहिस्ता उत्तर-पश्चिमी आसमान पर पहुंच गया। झींगुरों का शोर बंद हो गया, लेकिन इसके पहले की हम खामोशी का लुत्फ उठा पाते, उन्होंने फिर अपनी पुरानी धुन साध ली। कुछ ने बुझे हुए पाइप से तसव्वुराती धुआं निकाला। दूसरों ने सूखी टहनियां ज़मीन से उठाईं और गर्द में गहरे बारिश से भरे बादलों की ड्राइंग बनाई।