अफ़गानिस्तान में तालिबान राज के एक साल पूरे होने पर अल-जज़ीरा को दिया अनस हक्कानी का इंटरव्यू

अफ़गानिस्तान में हुकूमत करते हुए तालिबान के एक साल पूरे होने के मौके पर अफ़गान तालिबान के नेता अनस हक्कानी ने अल-जज़ीरा को यह इंटरव्यू दिया था। इस विशेष साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि उनकी सरकार विदेशी सशस्त्र समूहों को अपनी ज़मीन से संचालित नहीं होने देगी।

अफ़गानिस्तान में तालिबान राज के एक साल पूरे होने पर अल-जज़ीरा को दिया अनस हक्कानी का इंटरव्यू

पटचित्र: Shutterstock


अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद: अक्षत जैन और अंशुल राय
स्तोत्र: Al Jazeera

तालिबान ने अगस्त 2021 में अफगानिस्तान को अपने नियंत्रण में यह वादा करते हुए लिया कि वे दशकों से छिड़ी जंग और अमरीकी कब्ज़े से ग्रसित इस देश में शांति लाएंगे।

जैसे तालिबान सत्ता की पहली सालगिरह करीब आ रही है, देश की सुरक्षा स्थिति पर अन्य लोगों द्वारा सवाल उठाए जा रहे हैं, ISIL (ISIS) पिछले साल में कई घातक हमले करने में कामयाब रहा है। पिछले हफ्ते ISIL से जुड़े समूह ने वरिष्ठ तालिबान विद्वान को मार गिराया।

उस हत्या के बस कुछ दिन पहले ही अमरीका ने अल-कायदा लीडर अयमान अल जवाहिरी को ड्रोन स्ट्राइक में ढेर कर दिया था। इससे पश्चिम देशों में चिंता बढ़ गई कि सशस्त्र समूहों को अफगानिस्तान में शरण मिल रही है।

अमरीका के नेतृत्व में विदेशी सेनाएं अफगानिस्तान से तब ही निकली थीं जब तालिबान इस बात पर राज़ी हुआ था कि वह पश्चिमी देशों के हितों पर हमला करने के लिए सशस्त्र समूहों को अफगानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल नहीं करने देगा।

इस विशेष साक्षात्कार में वरिष्ठ तालिबान नेता अनस हक्कानी अल जज़ीरा को बताते हैं कि 15 अगस्त 2021 में सत्ता हासिल करने के बाद वह अपने समूह की सफलताओं और विफलताओं को किस तरह देखते हैं।       

 

अल जज़ीरा: आप की सरकार एक साल से सत्ता में है, आपने क्या-क्या हासिल किया और आप कहां विफल हुए?

अनस हक्कानी: पिछले एक साल में हमने कई बड़ी उपलब्धियां प्राप्त की हैं, उनमें अहम हमारे देश की आजादी और स्वतंत्रता और विदेशी कब्ज़े, अन्याय और उत्पीड़न से मुक्ति है। कोई भी समुदाय या देश, जो सदियों से ग़ुलामी में धसे हों, यही चाहेंगे। यह हमारे लिए गर्व की बात है, और यह हम पर अल्लाह की रहमत भी है।

आप हमारे देश में कई जगहों पर घूम चुके हैं, आप खुद देख सकते हैं कि यहां कितने बड़े-बड़े बदलाव हुए हैं, खासकर सुरक्षा के संदर्भ में। चालीस साल में यह पहली बार हो रहा है कि एक केन्द्रीय सरकार देश के कोने-कोने तक, ज़मीन के हर इंच पर नियंत्रण कर पा रही है। और भी बहुत-सी उपलब्धियां हैं, लेकिन इसका जिक्र करना ज़रूरी है कि जिस तरह के टैक्स सुरक्षा के नाम पर लोगों पर पहले लगाए जाते थे, वे अब खारिज कर दिए गए हैं। कोई विशेष सशस्त्र समूह अब इस देश में नहीं हैं। केन्द्रीय सरकार, बिना कोई नया टैक्स लागू किए या विदेशी सहायता के, सारे सरकारी संस्थानों में कार्यरत कर्मचारियों के वेतन देने में समर्थ है। ये बस कुछ ही उदाहरण है।

अल जज़ीरा: पिछले साल की बात करते हैं। आपने तत्कालीन पश्चिम-समर्थित सरकार से बातचीत करने के बजाय काबुल पर बलपूर्वक कब्जा क्यों किया? कुछ लोगों का कहना है कि वह 2020 में हुए दोहा समझौते का उल्लंघन था।    

अनस हक्कानी: हमने शुरुआत से ही दोहा समझौते को पूरी तरह सम्मान दिया और माना है। अमरीकी और NATO सेनाओं के निकलने के बाद के चौदह महीनों में दोहा समझौते के उल्लंघन का एक भी मामला सामने नहीं आया। यह इस तथ्य का जीवंत सबूत है समझौते का मेज़बान और प्रायोजक, क़तर का राज्य।

इसके विपरीत, अमरीकी सेना और राष्ट्रपति अशरफ ग़नी के नेतृत्व में काबुल की पूर्व सरकार ने हजार से भी ज्यादा उल्लंघन किए हैं। उदाहरण के तौर पर, जब अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन सत्ता में आए, उन्होंने बिना हमसे बातचीत किए ही दोहा समझौते में तय किए गए निकासी के वक्त को चार महीने बढ़ा दिया। अमरीका आतंक की ब्लैक्लिस्ट से नाम हटाने  और अफ़गान कैदियों को रिहा करने में आज तक भी विलंब कर रहा है। उनके द्वारा किए गए उल्लंघनों की लिस्ट बहुत लंबी है। हालांकि, निराशा के बावजूद हमने हिंसा का मार्ग अपनाना सही नहीं समझा।  

हमको काबुल जाना पड़ा, क्योंकि वहां सरकार चलाने वाला कोई नहीं बचा था, पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ाई और पूर्व मुख्य कार्यकारी अब्दुल्लाह ने तो हमसे आकर चीजों को नियंत्रित करने की दरख्वास्त की ही थी।

अल जज़ीरा: आपने बहुत से वादे किए थे। आपने शांति का वादा किया था, आपने अफ़ग़ानियों को अधिकार देने का वादा किया था, आपने समावेशी सरकार बनाने का वादा किया था, आपने औरतों को अधिकार देने का वादा किया था। आपने इन में से कितने वादे पूरे किए?

अनस हक्कानी: जो विदेशी कब्ज़ाधारी ताकतें अपनी अति-आधुनिक टेक्नॉलजी, विपुल क्षमताओं और संसाधनों के साथ पिछले बीस साल से अफगानिस्तान को नियंत्रित कर रही थीं, वे इतने लंबे समय में विफल रहीं। वे लोगों को वह सुरक्षा और अनुशासन देने में असफल रहे, जिनका लोग आज लुत्फ उठा रहे हैं।

अभी सत्ता हासिल किए हमें बस एक ही साल हुआ है, और दुनिया को हमसे यह अपेक्षा नहीं होनी चाहिए कि हम रातों रात अपने सारे लक्ष्य पा लेंगे। यह लगभग नामुमकिन है, खासकर तब जब अंतर्राष्ट्रीय समाज अपने दिए हुए वादों से मुखर रहा है, जिसमें हमारी सरकार को मान्यता और विदेश सहायता न प्रदान करना भी शामिल है। उनकी तरफ से विलंब के बावजूद, हमने अल्लाह की रहमत से कई मायनों में भारी प्रगति हासिल की है।

अब आप देख सकते हैं कि लड़कियां बारहवीं कक्षा तक स्कूल और यूनिवर्सिटी भी जा रही हैं [अधिकतर प्रांतों में लड़कियों को हाई स्कूल जाने की अनुमति नहीं है और अभी हाल ही में यूनिवर्सिटी जाने कि अनुमति भी उन से छीन ली गई है]। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हमारे सभी मंत्रालयों और अन्य राज्य संस्थानों में अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। जिस तरह की चुनौतियां हमारे सामने हैं, उनको देखते हुए हमसे वह हासिल करने की अपेक्षा मत कीजिए, जो दूसरे पिछले बीस साल में भी नहीं कर पाए।

अल जज़ीरा: क्या तालिबान के लिए उन नेताओं को सरकार में शामिल करना आवश्यक है, जिन पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगे हैं? क्या वह सरकार के लिए बाधा नहीं है? जो अफ़ग़ानी तालिबान से बाहर हैं, उनको सरकार में शामिल क्यों नहीं किया जाता?

अनस हक्कानी: आज तक भी सारे देश आतंकवाद की किसी एकरूप परिभाषा पर सहमति नहीं बना पाएं हैं। यह आम बात है कि शक्तिशाली लोग ऐसे किसी को भी आतंकवादी, दुश्मन, प्रतिरोधी, अपराधी इत्यादि घोषित कर देते हैं, जो उनके रास्ते में रोड़ा बन रहे होते हैं। इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरण हैं: यासिर अराफ़ात और नेल्सन मंडेला कई सालों तक ब्लैक्लिस्ट में रहे। बाद में उन्हें नोबल पीस प्राइज़ से सम्मानित किया गया। ब्लैक्लिस्ट और प्रतिबंध महज राजनीतिक उपकरण हैं।

हमारा प्रमुख लक्ष्य था अपने देश को कब्ज़े की बेड़ियों से मुक्त करना, अपनी आज़ादी और स्वतंत्रता को वापस पाना, और हमने वही हासिल किया। हम अन्य देशों या लोगों के मामलों में दखलंदाजी की इच्छा नहीं रखते। हम और अफगानिस्तान के सारे लोग, हमारे लीडरों का बहुत आदर करते हैं। हमारे लीडर हीरो माने जाते हैं, वे स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखे जाते हैं। हमारा मानना है कि जो भी मुश्किलें आज हमारे सामने हैं, वे समय के  साथ हल हो जाएंगी।

अल जज़ीरा: 26 लाख से भी ज़्यादा अफ़ग़ानी शरणार्थी हैं और लगभग 30 लाख लोग अफगानिस्तान के अंदर ही विस्थापित हो चुके हैं। आज इस देश को दुनिया के दूसरे सबसे बड़े खाद्य संकट का सामना करना पड़ रहा है। जो आपने पिछले एक साल में हासिल किया है, क्या आप उससे संतुष्ट हैं? और इस मानवीय संकट से निपटने के लिए आप क्या कर रहे हैं?

अनस हक्कानी: जैसे कि मैंने पहले कहा, अफगानिस्तान आज उससे बिल्कुल अलग है जो वह बीस साल पहले था। उदाहरण के तौर पर, पिछली सरकार मज़ार-ए-शरीफ का कुछ नहीं कर पाई; वे अमरीका के कब्ज़े के बोझ तले दबे हुए थे। हमने सही दिशा में कुछ काम करना शुरू किया। आज आप देख सकते हैं कि स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों द्वारा वहां से खनिज पदार्थ और प्राकृतिक संसाधन निकाले जा रहे हैं। अल्लाह की रहमत से इन परियोजनाओं के माध्यम से हम अपने मंत्रालयों और दूसरे संस्थानों के लिए पैसा जुटा पा रहे हैं, उनमें काम करने वालों को वेतन दे पा रहें हैं। 

हमारी आय का एक और स्त्रोत है: कस्टम ड्यूटी। अतीत में यह सारी आय गलत हाथों में जाया करती थीं। अब सभी प्रांतों की आय केन्द्रीय सरकार के राजकोष, केन्द्रीय बैंक, और वित्त मंत्रालय में जाती हैं। यह हमारी प्रगति के सबसे प्रमुख उदाहरण हैं।

यह कहने के बाद मैं बोलना चाहूंगा कि हम सभी देशों और संपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ अच्छे और मैत्रीपूर्ण संबंध बनाना चाहते हैं। यह हमारा कर्तव्य भी है कि हम अपने लोगों के लिए गरिमापूर्ण और सुखद जीवन उपलब्ध करायें। हम यहां अपने लोगों की सेवा करने के लिए हैं। मेरा मानना है कि हमने अपने लोगों के लिए बहुत कुछ हासिल किया है। हालांकि, हम और हासिल करने की कामना करते हैं, उन चुनौतियों के बावजूद जिनका हमें सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि हमारी सरकार को अंतर्राष्ट्रीय समाज द्वारा मान्यता नहीं मिल रही है।

अल जज़ीरा: एक वादा जो आपने अंतर्राष्ट्रीय समाज से किया था, वह यह था कि आप विदेशी सशस्त्र समूहों को अफगानिस्तान में नहीं रहने देंगे और आतंकवादी संगठनों के प्रति आपकी जीरो टॉलरेंस की नीति रहेगी। पिछले कुछ हफ्तों में हमने देखा कि कई हत्याएं हुईं हैं। पाकिस्तान तालिबान के लीडर का कत्ल कर दिया गया। अल-कायदा के लीडर को काबुल में मार गिराया। आपकी सरकार इस बारे में क्या कर रही है, और वह अपने वादे को कैसे पूरा करेगी?

अनस हक्कानी: दोहा समझौते के बाद से हम सारे दायित्वों का पालन कर रहे हैं। हम सबको चुनौती देते हैं कि केवल एक उदाहरण या घटना बताकर दिखायें, जहां हमारे क्षेत्र का इस्तेमाल किसी अन्य देश पर हमला करने के लिए किया गया हो। हम इस मामले में किसी भी आरोप को झूठ साबित करने के लिए तैयार हैं। पहले तो हम सच्चे मुसलमान हैं, इसलिए अपनी जुबान का पालन करना हमारा दायित्व है। अपनी दिशा को स्पष्ट करने के लिए इस्लामिक एमिरेट (तालिबान) द्वारा दिया गया बयान बिल्कुल साफ है: “हम दोहा समझौते के प्रति प्रतिबद्ध हैं।” बाकी, समझौते में बहुत ही स्पष्ट तौर पर हमारे और अमरीका दोनों के दायित्व निर्धारित किए गए हैं। अगर किसी ने उल्लंघन किया तो वह अमरीका है, जो हमसे बिना पूछे और बिना बताए हमारे क्षेत्र में घुस आया। यह अमरीका की तरफ से किया गया साफ उल्लंघन है।

यह सब झूठे दावे हैं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तालिबान की छवि बिगाड़ने के लिए किया जाने वाला विद्वेषपूर्ण अधिप्रचार। हम इन झूठे दावों का खंडन करते हैं। मैं फिर से यह कहना चाहूंगा कि हमने दोहा समझौते के किसी भी दायित्व का उल्लंघन नहीं किया है। अब हम दूसरी पार्टी को अपने दायित्वों का पालन करते और अपनी जिम्मेदारियां निभाते देखना चाहते हैं।              

 

अनस हक्कानी
अनस हक्कानी

अनस हक्कानी इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफगानिस्तान और तालिबान आंदोलन के वरिष्ठ नेता हैं, और दोहा, क़तर में स्थित तालिबान के राजनीतिक कार्यालय में तालिबान की समझौता-वार्ता टीम के भी सदस्य हैं। उनकी रुचि पश्तो कविताओं में हैं और वे खुद भी कवि हैं। अनस हक्कानी इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफगानिस्तान और तालिबान आंदोलन के वरिष्ठ नेता हैं, और दोहा, क़तर में स्थित तालिबान के राजनीतिक कार्यालय में तालिबान की समझौता-वार्ता टीम के भी सदस्य हैं। उनकी रुचि पश्तो कविताओं में हैं और वे खुद भी कवि हैं।