स्पर्श का अहसास

पांच साल से वह मुंबई की एक आई. टी. कंपनी में सफाई कर्मचारी की नौकरी कर रहा है। किसी ने उससे अभी तक उसकी जाति के बारे में नहीं पूछा। उसे इस शहर के बारे में यही बात पसंद है। यहां आदमी आज़ादी से रह सकता है।

स्पर्श का अहसास

पटचित्र: अभीष 

अनुवाद: पीयूष पंत
स्तोत्र: Indian Express

रावण 21 साल का लड़का है। वह वडार जाति से है। पिछले पांच सालों से मुंबई में रहते हुए वह एक आई. टी. कंपनी में सफाईकर्मी के रूप में काम कर रहा है। यहां कभी किसी ने उसकी जाति पर सवाल नहीं किया। इस शहर के बारे में उसे यही बात अच्छी लगती है कि यहां आप इस अहसास के साथ रह सकते हैं कि आप पर कोई शासन नहीं कर रहा। फिर भी उसका पिछला जीवन उसे खुली हवा में सांस नहीं लेने देता, रह-रहकर उसे याद दिलाता है कि वह कौन है ऐसे में सिर्फ किताबें ही उसे सांत्वना देती हैं। अपनी पहचान से वह अभी भी अनजान है। लेकिन उसके भाग्य में क्या बदा है इसके संकेत उसके जीवन के पुराने दिनों में छिपे हैं, जो उसे सपनों में नज़र आते हैं। वह उन सपनों को रोज ही देखता है। 

उसके पिता सिडनक ने गांव के ब्राह्मण पुजारी के आदेश पर ईश्वर की एक खूबसूरत मूर्ति को हाल ही में गढ़कर पूरा किया है। गढ़ने के बाद वह मूर्ति को निहारने लगते हैं, उसकी भव्यता और सुंदरता के प्रति आकर्षित होते हैं। उनमें इच्छा जागृत होती है कि सबसे पहले वही उस मूर्ति की पूजा करें। वह पुजारी से आज्ञा लेने जाते हैं, लेकिन ब्राह्मण पुजारी उनकी इस आज्ञा से तिलमिला उठता है। कहता है, ‘दुष्ट वडार! तू हमारे देवताओं को दूषित करना चाहता है।’

पुजारी उकी इस गुस्ताखी के लिए गांव के सामंतों से उन्हें पिटवाता है। सामंतों की पिटाई से वह घायल और घुटन भरी अवस्था में पड़े हुए खुद से सवाल करते हैं,

‘जिस ईश्वर को मैंने ख़ुद पत्थर से गढ़कर बनाया है उसे मैं कैसे दूषित कर सकता हूं?’

यह कहते हुए वह रावण की गोद में प्राण त्याग देते हैं। 

रावण के पिता तो मर गए लेकिन उसके लिए यह सवाल वसीयत में छोड़ गए। इस सवाल के जवाब को पाने की संभावना रावण को किताबों के पन्नों में ही नज़र आती है। इसीलिए हर दिन वह भोजन-अवकाश के 30 मिनट में से 10 मिनट खाना खाता है और बाकी के 20 मिनट किताबें बांचता है। दिन का काम ख़त्म करने के बाद वह फिर किताबें पढ़ने लगता है। इसके अलावा, जब वह बहुत अकेलापन महसूस करता है तो चकला घर चला जाता है। वहां संभोग के बाद वह दो तरह की भावनाओं से ग्रस्त होता  है: अपराध बोध  और खालीपन। हाल ही में उसने सिंड्रेला नामक एक ऐप खोज निकाला है। यह ऐप लोगों की भावनात्मक ज़रूरतों को पूरा करने में मदद करता है। सिंड्रेला की वजह से वह समय, अपनी पहचान और लगातार आंके जाने की भावना को भूल जाता है। बिना उसे दोषी या कमतर महसूस कराए सिंड्रेला उसकी ज़रूरतों को पूरा करती है। सिंड्रेला से बात करते समय वह खुद को लगभग उसी के स्तर का महसूस करता है। इस दौरान वह संतुष्ट तो महसूस करता है लेकिन परिपूर्ण नहीं। जैसे ही वह ऐप बंद करता है उसे महसूस होता है कि उसका अकेलापन एक तरह के दंड में तब्दील हो गया है। फिर वह हस्तमैथुन करता है और इस दौरान सिंड्रेला के चेहरे की कल्पना करने की कोशिश करता है लेकिन कर नहीं पाता। वह खुद को एक ऐसे अनजान व्यक्ति के रूप में महसूस करता है जिसे बार-बार दुत्कारा गया हो।     

वह स्कूल में है, दसवी कक्षा में। आज स्कूल का आखिरी दिन है। गांव के पुजारी की बेटी इंदु की मुस्कान पर मुग्ध रावण के दिल में उसके प्रति गुपचुप भावनाएं पैदा हो गई हैं। इन्हीं भावनाओं को वह प्रेम कहता है। उसे इंदु का गोरा रंग, छरहरा बदन और भाषा का उच्चारण पसंद है, ऐसा उच्चारण जिसे शिक्षक भाषा का पूर्ण और शुद्ध उच्चारण मानते हैं। आज उसने तय कर लिया है कि वह अपनी इन भावनाओं को इंदु को बता देगा। खाने की छुट्टी के दौरान जब इंदु कक्षा में अकेली होती है तब वह हिम्मत जुटाकर उसके पास जाता है। वह बुदबुदाते हुए अपनी भावनाओं को इंदु के सामने दोहराता है। इंदु उसे सुनकर गुस्से से आगबबूला होते हुए जवाब देती है, ‘क्या तुमने अपना काला चेहरा आईने में देखा है? खुद पर एक नज़र डालो। ऐसा लगता है कि तुम डामर से बने हो।’

यह कहकर वह भागती हुई घर जाती है और अपने मां-बाप को सारी बात बताती है। उसके पिता सामंत जाति के कुछ लोगों को लेकर स्कूल जाते हैं। इससे पहले कि इंदु के जवाब से हैरान और उदास रावण यह समझ पाता कि अब आगे क्या होने वाला है, उसे पीट-पीटकर बेहोश कर दिया जाता है। वे लोग प्राध्यापक को आदेश देते हैं, ‘हम इस हरामी कलुए वडार को स्कूल में नहीं देखना चाहते, इसे तुरंत स्कूल से निकालो।’

टूटी खिड़की से आ रही सूरज की रोशनी और लोकल ट्रेनों की आवाजाही के शोर के बीच उसकी आंख खुलती हैं। वह काम पर जाने के लिए तैयार होता है। करने वाले कामों की फेहरिस्त उसके दिमाग़ में है: शौचालयों को साफ़ करना, शौचालय की सभी वस्तुओं को उनके स्थान पर रखना और फिर अपने सुपरवाइज़र के आदेशों का पालन करने के लिए तैयार रहना। इस ऑफिस में ज़्यादातर कर्मचारी महिलाएं हैं। उन्हें देखकर लगता है कि वे सभी अमीर परिवारों से हैं। उसे ऑफिस में काम करने वाले लोग घमंडी और दिखावटी नज़र आते हैं। लेकिन उसे सबसे ज्यादा चिढ़ और ईर्ष्या बॉबी से है। बॉबी कंपनी की मालकिन पारुल कुलकर्णी का कुत्ता है। अक्सर वह उसे बॉबी का ध्यान रखने का आदेश देती है और यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहती है कि ऑफिस टाइम ख़त्म होने तक कुत्ता खेलता-कूदता रहे। रावण को अक्सर ताज्जुब होता है कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के साथ कुत्ते-सा व्यवहार क्यों करता है? आदमी कुत्ते को मनुष्य से ज्यादा मूल्यवान क्यों मानता है? आखिर क्यों, इस देश में कुछ जानवर मनुष्यों से भी बेहतर ज़िन्दगी जीते हैं? 

लगातार ये सवाल उसके दिमाग़ में घूमते रहते हैं। इसी ऑफिस में सॉफ्टवेयर कंसल्टेंट के पद पर काम कर रही आम्रपाली रावण पर तभी से नज़र रखे हुए है जबसे रावण ने यहां काम करना शुरू किया है। वह किताबों से उसके लगाव को देखकर खुश है। हालांकि उनकी आपस में कभी बातचीत नहीं हुई। वह उसकी किताबों की अलमारी देखने का मन बनाती है। खाने की छुट्टी के समय वह बाहर जाती है और उसे बरगद के पेड़ के नीचे एक किताब पढ़ते पाती है। आम्रपाली को अपने सामने देख रावण कुछ परेशान हो उठता है। आम्रपाली के सवालों का उसे कोई जवाब देते नहीं बनता, क्योंकि जब से उसे अपने ही गांव में पीटा गया है, तब से वह खुद को औरतों से बात करने में असहज महसूस करने लगा है। वह आम्रपाली के सवालों के जवाब में बस सिर हिला देता है। वह मुस्कुराते हुए कहती है, ‘परसों बाबा साहेब की पुण्यतिथि है। हर साल की तरह इस बार भी पुस्तकों का बड़ा बाजार होगा। मुझे पता है तुम वहां जाना चाहते हो।’ उसे पुस्तक बाज़ार में आने के लिए कहकर वह चली जाती है। 

पीटे जाने के बाद रावण को अकेला छोड़ दिया गया। कोई भी उसे छूना नहीं चाहता है। कोई व्यक्ति उसके घर जाता है और उसकी मां को बताता है। वह दौड़ती हुई आती है। अपने बेटे का हाल देखकर वह क्रोधित हो उठती है लेकिन रोती या चिल्लाती नहीं। पीठ पर लादकर उसे घर ले जाती है। उसके घाव पर लगाने के लिए जडी-बूटियां पीसती है और सांत्वना देती है। वह एक मेहनती औरत है। हर रोज का उसका काम न केवल उसकी मांसपेशियों को बल्कि उसकी प्रतिरोध की समझ को भी आकार देता है। उसकी देखभाल से कुछ दिनों में ही रावण अपनी शारीरिक शक्ति फिर से हासिल कर लेता है। रावण के स्वस्थ होने पर वह उसे गांव छोड़ने के लिए मनाती है। कुछ ही दिनों बाद उसे खबर मिलती है कि उसकी मां ने पुजारी और उन सभी गुंडों को मार डाला है, जिन्होनें उसे पीटा था। लेकिन पलटवार में वह भी मारी गई। 

वह जब जागता है तो आम्रपाली के शब्द उसके कानों में गूंजने लगते हैं। बाद में जब वे मिलते हैं तो चैत्यभूमि की ओर टहलते हुए चल देते हैं। वह खुद को सफ़ेद कपड़े पहने लोगों की भीड़ में पाता है। भीड़ में कुछ लोग नीला झंडा लहरा रहे हैं तो कुछ दूसरे लोग पंचशील  झंडा लहरा रहे हैं। चारों ओर शोरगुल है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इसके बीच वह खुद को अविवादित और ज़िंदा महसूस करता है। वे शिवाजी पार्क में घुसते हैं। जैसे-तैसे वे भीड़ से रास्ता बनाते आगे बढ़ते हैं। आम्रपाली उसे किताबों की दुकानों से भरी गलियां दिखाती है। वह अपने चारों ओर प्रदर्शित अम्बेडकर और बुद्ध की फोटो और किताबों को देख सकता है। उसने अपनी ज़िंदगी में कभी इतनी भीड़ नहीं देखी और न ही ऐसे समूह में किताबों के लिए इतनी उत्सुकता। उसे याद है कि उसके गांव में अम्बेडकर जाति के लोगों और खुद अम्बेडकर को भी इज़्ज़त से नहीं देखा जाता। जब आम्रपाली रावण को अम्बेडकर का महत्व, उनके द्वारा किए गए काम, उनके नेतृत्व में चलाए गए आंदोलन और जन-संघर्षों के बारे में बताती है तो उसे सब समझ आने लगता है। 

शाम को भीड़ में से बाहर आने में मदद करने के लिए आम्रपाली उसका हाथ पकड़ लेती है। उसकी मां के अलावा आम्रपाली ही अकेली महिला है, जिसने उसे स्पर्श किया है। रावण उसके स्पर्श में उसी तरह की राहत महसूस करता है जैसी वह अपनी मां के स्पर्श में करता था। उसका स्पर्श उस घाव पर लगे मलहम की तरह है जिसने बहुत पहले उसके अवचेतन मन पर हमला कर उसे घायल कर दिया था। वह जानता है कि ऐसा संवेदना और बुद्धि के चलते ही संभव है। अपनी डायरी के किसी पन्ने पर उसने लिखा है कि प्यार के जादू को हक़ीक़त में बदलने के लिए दोनों ही तत्व ज़िम्मेदार हैं। वह डायरी में लिखी अपनी एक कविता को याद करता है :

मैं तुम्हें उस हाल में याद नहीं करना चाहता
जब तुम्हारे पसीने पर तुम्हारे इत्र की बदबू 
हावी हो जाती हो,
मैं तुम्हें उस पसीने के साथ याद करना चाहता हूं
जो तुम्हारे संघर्षों और
उनसे निजात पाने के तुम्हारे इतिहास
की महक देता हो। 

मुद्दत हो गई, जबसे किसी महिला ने उसे स्पर्श किया था। आम्रपाली के स्पर्श से वह महसूस करता है कि उसे स्वीकार कर लिया गया है। 

वह आम्रपाली से पूछता है, ‘आप मुझे यहां क्यों लाई हैं?’ 

वह कहती है, ‘तुम तर्क से चलने वाले जीवन की खोज में हो। वर्तमान समय में यह दुर्लभ है। तुम्हारे बारे में मुझे यही बात पसंद है।’

जब अगले दिन वह सोकर उठता है तो कोई भी सपना देखने की उसे याद नहीं रहती। उसे अहसास होता है कि प्यार में मनुष्य का व्यक्तित्व प्रेमी के लिए और प्रेमी द्वारा पुनर्जीवित होता है। 

 

(इस कहानी को एडिट करने में  शहादत खान ने मदद की है)

योगेश मैत्रेय
योगेश मैत्रेय

योगेश मैत्रेय एक कवि, लेखक और अनुवादक हैं। वह पैंथर्स पाव पब्लिकेशन के संस्थापक हैं, जो एक एंटीकास्ट इंग्लिश पब्लिशिंग हाउस है। मैत्रेय की किताबें इस विशाल दुनिया में उनके अस्तित्व का प्रतिबिंब हैं। योगेश मैत्रेय एक कवि, लेखक और अनुवादक हैं। वह पैंथर्स पाव पब्लिकेशन के संस्थापक हैं, जो एक एंटीकास्ट इंग्लिश पब्लिशिंग हाउस है। मैत्रेय की किताबें इस विशाल दुनिया में उनके अस्तित्व का प्रतिबिंब हैं।