पीयूष पंत
पीयूष पंत एक जाने माने अनुवादक हैं जिन्होंने कई रचनाओं का अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद किया है।
यहां आप विश्व साहित्य को हिन्दी भाषा में पढ़ सकते हैं। हमारा यह मानना है कि हिन्दी भाषा में कुछ वैकल्पिक विचारों को रखने की ज़रूरत है क्योंकि हिन्दी समाज का आधुनिकीकरण और विकास तभी पूर्ण रूप से हो सकता है जब हम विभिन्न तरहों की सोच को अपने अंदर सम्मिलित करें।
जब शिकारी अपना जाल बिछाता है तो उसमें भालू और हिरण, सियार और खरगोश, सभी फंस जाते हैं। तब फिर जब भालू हिरण की गर्दन मरोड़ता है और सियार खरगोश को दबोचता है, तो हम भालू को कोसते हैं और सियार को फटकारते हैं, लेकिन भूल जाते हैं उस जाल को जिसके कारण यह सब कुछ हुआ।
मेरे दोस्तों, हमारी कल्पना उनकी सेना से ज्यादा ताकतवर है। वे बारंबार गलत साबित हुए हैं। हमें आज़ादी की भावना को ज़िंदा रखना होगा। हमारे सामने केवल वही एक विकल्प है, क्योंकि हमें किसी और तरह से जीना नहीं आता।
‘देहाती डॉक्टर’ फ्रैंज़ काफ़्का की प्रसिद्ध लघुकथा है, जो पहली बार 1919 में प्रकाशित हुई थी। यह कहानी एक ग्रामीण डॉक्टर की एक रात की असामान्य यात्रा के ज़रिये आधुनिक समाज में इंसान की बेबसी, ज़िम्मेदारी के बोझ और अस्तित्व की विडंबनाओं को उजागर करती है। एक रोगी के बुलावे पर डॉक्टर घर से निकलता है, लेकिन यह यात्रा जल्द ही एक अतियथार्थवादी (surreal) अनुभव में बदल जाती है — जहाँ समय, नैतिकता, और इच्छाओं की सीमाएँ धुंधली पड़ जाती हैं। कहानी प्रतीकों और रूपकों से भरी हुई है — जैसे असंभव गति से दौड़ती घोड़ा-गाड़ी, नौकरानी पर संकट, रोगी का रहस्यमयी घाव, और समुदाय का विवेकहीन व्यवहार — जो काफ़्का की विशिष्ट शैली ‘काफ़्कायन’ का हिस्सा हैं। यह सिर्फ़ एक डॉक्टर की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की कहानी है जो अपने कर्तव्यों, समाज की अपेक्षाओं और निजी विवेक के बीच फँसा हुआ है।
हेर्ड्रिक मार्समैन की इन कविताओं में जीवन, प्राकृति, और मानवीय अनुभवों को पढ़ा जा सकता है।
हर शासक की तरह औरंगज़ेब न तो कोई नैतिक आदर्श थे, न ही महज़ एक खलनायक। एक राजा की तरह उन्होंने भी अपनी प्रजा के प्रति ज़िम्मेदारी को आत्मसात किया था। लेकिन इन सब तथ्यों से इतर, यह भी सच है कि औरंगज़ेब की मृत्यु को तीन सौ साल से ज़्यादा हो चुके हैं। आज उनके ख़िलाफ़ चलाया जा रहा यह अत्यधिक दुश्मनी से भरा अभियान एक अजीब विडंबना को जन्म देता है—वह यह कि यह अभियान खुद उसी विकृत छवि को दोहराता है, जो सत्ता में बैठे लोग औरंगज़ेब को लेकर गढ़ते आए हैं। देश की असली समस्याओं को सुलझाने और देश की सामूहिक ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ने के बजाय, हमारे नेतृत्व का ध्यान इस समय औरंगज़ेब की क़ब्र पर बहस करने और मस्जिदों के नीचे मंदिर खोजने में लगा हुआ है।
एमिल सिओरन की पुस्तक 'The Trouble with Being Born' एक गहन दार्शनिक रचना है जिसमें उन्होंने अस्तित्व और जन्म की विडंबनाओं पर विचार किया है। इस पुस्तक में सिओरन ने जीवन की अनिवार्यता और उसके साथ जुड़ी व्यर्थता का विश्लेषण किया है। उनके अनुसार, जन्म लेना एक प्रकार की त्रासदी है, और वे इस बात को विभिन्न आत्म-मननशील और निराशावादी टिप्पणियों के माध्यम से प्रकट करते हैं। इस पुस्तक में दर्शाए गए विचार जीवन के प्रति एक गहरी संवेदनशीलता और अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जिससे यह दर्शन के छात्रों और विचारशील पाठकों के लिए एक महत्वपूर्ण पठन बन जाता है। यह उस पुस्तक का पहला अध्याय है।
यह कहानी न केवल एक परिवार की फरवरी के तूफानी मौसम में संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि फ़लस्तीन के मुद्दे पर विचार करने वाले व्यापक सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को भी शामिल करती है। कहानी में, पारिवारिक संवादों और मातृक भय के माध्यम से ऐतिहासिक संघर्ष और फ़लस्तीनी संकट की गहराई को उजागर किया गया है, जो व्यक्तिगत जीवन और पारिवारिक बंधनों पर इसके प्रभाव को दर्शाता है।
जब शिकारी अपना जाल बिछाता है तो उसमें भालू और हिरण, सियार और खरगोश, सभी फंस जाते हैं। तब फिर जब भालू हिरण की गर्दन मरोड़ता है और सियार खरगोश को दबोचता है, तो हम भालू को कोसते हैं और सियार को फटकारते हैं, लेकिन भूल जाते हैं उस जाल को जिसके कारण यह सब कुछ हुआ।
‘देहाती डॉक्टर’ फ्रैंज़ काफ़्का की प्रसिद्ध लघुकथा है, जो पहली बार 1919 में प्रकाशित हुई थी। यह कहानी एक ग्रामीण डॉक्टर की एक रात की असामान्य यात्रा के ज़रिये आधुनिक समाज में इंसान की बेबसी, ज़िम्मेदारी के बोझ और अस्तित्व की विडंबनाओं को उजागर करती है। एक रोगी के बुलावे पर डॉक्टर घर से निकलता है, लेकिन यह यात्रा जल्द ही एक अतियथार्थवादी (surreal) अनुभव में बदल जाती है — जहाँ समय, नैतिकता, और इच्छाओं की सीमाएँ धुंधली पड़ जाती हैं। कहानी प्रतीकों और रूपकों से भरी हुई है — जैसे असंभव गति से दौड़ती घोड़ा-गाड़ी, नौकरानी पर संकट, रोगी का रहस्यमयी घाव, और समुदाय का विवेकहीन व्यवहार — जो काफ़्का की विशिष्ट शैली ‘काफ़्कायन’ का हिस्सा हैं। यह सिर्फ़ एक डॉक्टर की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की कहानी है जो अपने कर्तव्यों, समाज की अपेक्षाओं और निजी विवेक के बीच फँसा हुआ है।
हेर्ड्रिक मार्समैन की इन कविताओं में जीवन, प्राकृति, और मानवीय अनुभवों को पढ़ा जा सकता है।
यह कहानी न केवल एक परिवार की फरवरी के तूफानी मौसम में संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि फ़लस्तीन के मुद्दे पर विचार करने वाले व्यापक सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को भी शामिल करती है। कहानी में, पारिवारिक संवादों और मातृक भय के माध्यम से ऐतिहासिक संघर्ष और फ़लस्तीनी संकट की गहराई को उजागर किया गया है, जो व्यक्तिगत जीवन और पारिवारिक बंधनों पर इसके प्रभाव को दर्शाता है।
जिस देश ने अति-भारी सैन्य बल के ज़रिये कश्मीर पर अवैध क़ब्ज़ा जमा रखा है, वही देश कश्मीर में आज़ाद चुनाव आयोजित करवाने के बड़े-बड़े दावे करता दिखता है। इस विडंबना के कारण कई अजीबोगरीब घटनाएं होती हैं। एक ऐसी वारदात का ज़िक्र अख़्तर मोहिउद्दीन इस अनोखी कहानी में करते हैं।
यह छोटी-छोटी कुछ पंक्तियों की कहानियां हैं जो मानव दशा के बारे में बहुत कुछ कह जाती हैं।
हिंसा सिर्फ प्रत्यक्ष और उपद्रवी रूपों से नहीं होती। कभी-कभी हिंसा सामान्य तरीके से भी की जाती है, शांति से, भावनाओं के साथ खेल कर, सामने वाले में डर पैदा करके। यह कहानी ऐसी ही हिंसा के बारे में है।
कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जो अच्छे-भले इंसानों को हैवान बनने पर मजबूर कर देती हैं। कश्मीर के अंदर भारतीय राज्य की भूमिका कुछ ऐसी ही परिस्थितियों को बनाने और बनाए रखने की रही है। कश्मीर पर अपना अवैध राज कायम रखने के लिए भारतीय राज्य एक कश्मीरी को दूसरे कश्मीरी से लड़ने पर मजबूर करता है। जबकि कश्मीरी मजबूरी में बुरे काम कर रहे हैं और इसलिए अपनी इंसानियत कहीं न कहीं बचा पा रहे हैं, भारतीय राज्य अपनी इंसानियत अपनी स्वेच्छा से पूरी तरह से खो चुका है।
मेरे दोस्तों, हमारी कल्पना उनकी सेना से ज्यादा ताकतवर है। वे बारंबार गलत साबित हुए हैं। हमें आज़ादी की भावना को ज़िंदा रखना होगा। हमारे सामने केवल वही एक विकल्प है, क्योंकि हमें किसी और तरह से जीना नहीं आता।
हर शासक की तरह औरंगज़ेब न तो कोई नैतिक आदर्श थे, न ही महज़ एक खलनायक। एक राजा की तरह उन्होंने भी अपनी प्रजा के प्रति ज़िम्मेदारी को आत्मसात किया था। लेकिन इन सब तथ्यों से इतर, यह भी सच है कि औरंगज़ेब की मृत्यु को तीन सौ साल से ज़्यादा हो चुके हैं। आज उनके ख़िलाफ़ चलाया जा रहा यह अत्यधिक दुश्मनी से भरा अभियान एक अजीब विडंबना को जन्म देता है—वह यह कि यह अभियान खुद उसी विकृत छवि को दोहराता है, जो सत्ता में बैठे लोग औरंगज़ेब को लेकर गढ़ते आए हैं। देश की असली समस्याओं को सुलझाने और देश की सामूहिक ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ने के बजाय, हमारे नेतृत्व का ध्यान इस समय औरंगज़ेब की क़ब्र पर बहस करने और मस्जिदों के नीचे मंदिर खोजने में लगा हुआ है।
एमिल सिओरन की पुस्तक 'The Trouble with Being Born' एक गहन दार्शनिक रचना है जिसमें उन्होंने अस्तित्व और जन्म की विडंबनाओं पर विचार किया है। इस पुस्तक में सिओरन ने जीवन की अनिवार्यता और उसके साथ जुड़ी व्यर्थता का विश्लेषण किया है। उनके अनुसार, जन्म लेना एक प्रकार की त्रासदी है, और वे इस बात को विभिन्न आत्म-मननशील और निराशावादी टिप्पणियों के माध्यम से प्रकट करते हैं। इस पुस्तक में दर्शाए गए विचार जीवन के प्रति एक गहरी संवेदनशीलता और अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जिससे यह दर्शन के छात्रों और विचारशील पाठकों के लिए एक महत्वपूर्ण पठन बन जाता है। यह उस पुस्तक का पहला अध्याय है।
जब गांधी से अपनी बात नहीं मनवाई गई, तो उन्होंने जेल से अनशन शुरू कर दिया। यह उनके अपने सत्याग्रह के सिद्धांतों के बिल्कुल खिलाफ था – यह तो सीधा ब्लैकमेल था।
एकबाल अहमद आतंकवाद के विषय पर बात करके बताते हैं कि आतंकवाद को किन तरीकों से रोका जा सकता है: दोहरे मापदंडों के अतिरेक से बचें। अगर आप दोहरे मापदंड अपनाते हैं, तो आपको भी दोहरे मापदंडों से ही जवाब मिलेगा। इसका इस्तेमाल मत करें। अपने सहयोगियों के आतंकवाद का समर्थन न करें। उनकी निंदा करें। उनसे लड़ें। उन्हें सज़ा दें। कारणों पर ध्यान दें और उन्हें सुधारने की कोशिश करें। समस्याओं के मूल कारणों को समझें और हल निकालें। सैन्य समाधान से बचें। आतंकवाद एक राजनीतिक समस्या है, और इसका समाधान राजनीतिक होना चाहिए। राजनीतिक समाधान खोजें। सैन्य समाधान समस्याएं बढ़ाते हैं, सुलझाते नहीं। कृपया अंतरराष्ट्रीय क़ानून के ढांचे को मज़बूत करें और उसे सुदृढ़ बनाएं।
प्राचीन लोग ये कहानियां समय बिताने के लिए या बच्चों को सबक सिखाने के लिए या आपको यह बताने के लिए नहीं सुनाते थे कि शब्द “एको” कहां से आया। क्या आपको लगता है कि हमने उनके पॉप कल्चर को लेकर उसे अपने साहित्य में बदल दिया? ये कहानियां केस स्टडी की तरह थीं, ध्यान करने के लिए: आप इनमें क्या देखते हैं?
भले ही पर्यावरणविद् और शोधकर्ता ऐसी मीठी-मीठी बातें करते हों कि पानी की पहुंच एक मौलिक मानव अधिकार है, लेकिन वे इस तथ्य को पूरी तरह से नज़रंदाज़ करते हैं कि जाति इस मौलिक अधिकार की वास्तविक प्राप्ति में सबसे महत्वपूर्ण बाधा है।
प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण की बात आने पर भारत में बवाल उठ जाता है। तर्क छोड़ कर लोग तरह-तरह की भावनात्मक बातें करने लगते हैं। मेरिट या योग्यता को पिटारे से निकाल कर हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाने लगता है। जबकि आरक्षण के विरोधियों के पास डाटा-आधारित सामाजिक या आर्थिक दलीलें नहीं हैं, वे फिर भी ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर अपनी बात मनवाने पर अटल हैं। अगर वाद-विवाद से बाहर निकलकर आरक्षण के बारे में कुछ जानना चाहते हैं, तो इस लेख को पढ़ के जानिए की प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण क्यों जरूरी है। अगर आप कुछ सीख कर इस पहल के समर्थक बनना चाहते हैं तो राहुल सोनपिम्पले द्वारा संस्थापित All India Independent Scheduled Castes Association (AIISCA) से जुड़िये और उनकी जो मदद कर सकें वो करिए। https://aiisca.org